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कृषि अध्यादेशों का क्यों हो रहा है विरोध ? जानिए एक्सपर्ट की राय

कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर ने बताया कि कृषि के तीनों अध्यादेश सरकार द्वारा एक प्रयास है, ताकि समूचे देश के अंदर 'वन नेशन, वन मार्केट' की पॉलिसी को अमल में लाया जाए.

agriculture expert comment on agriculture ordinance
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Published : Sep 13, 2020, 5:53 PM IST

Updated : Sep 13, 2020, 6:52 PM IST

अंबाला: केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेशों के खिलाफ लगातार विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसान सड़कों पर उतर कर इसका विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश किसान हितैषी नहीं बल्कि किसान विरोधी हैं. किसान लगातार इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर धरना प्रदर्शन करके दबाव बना रहे हैं.

इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर से बातचीत की और इन अध्यादेशों के उन अहम पहलुओं को जानने की कोशिश की, जिनकी वजह से किसान इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर दवाब बना रहे हैं.

'वन नेशन, वन मार्केट'

कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश सरकार द्वारा एक प्रयास है, ताकि समूचे देश के अंदर 'वन नेशन, वन मार्केट' की पॉलिसी को अमल में लाया जाए, लेकिन जब इन अध्यादेशों को धरातल पर लागू करने की बात की जाती है तो वहां पर बहुत सारे पहलू सरकार द्वारा छोड़ दिए जाते हैं, जिसके चलते किसान नेताओं को इन अध्यादेशों में बहुत सी कमियां नजर आती हैं.

कृषि के तीनों अध्यादेशों कृषि विशेषज्ञ की राय, देखें वीडियो

ट्रेड यूनियनों का डर

उन्होंने बताया कि सबसे पहले अध्यादेश जिसमें सरकार फॉर्म प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स ऑर्डिनेंस की बात करती है. वहां पर किसान नेताओं को ये डर सता रहा है कि इस अध्यादेश के पारित होने से ट्रेड यूनियन फीस तो कटेगी, लेकिन ट्रेड यूनियंस पूरी तरह खत्म हो जाएंगी.

'कालाबाजारी बढ़ेगी'

वहीं, दूसरे अध्यादेश में जहां पर एसेंशियल एक्ट-1955 के तहत बहुत ही फसलों को इससे हटा दिया गया है. इससे किसानों को डर सता रहा है कि इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी जो सिर्फ कुछ एक पूंजीपतियों को ही फायदा पहुंचाएगी, लेकिन उसका फायदा बिल्कुल भी किसानों को नहीं मिलेगा. उल्टा किसान अपने खेतों में मजदूर बनकर रह जाएगा.

उन्होंने साफ किया कि सरकार के कृषि मंत्रियों को और खास तौर पर हरियाणा के कृषि मंत्री को किसानों के साथ बात करनी चाहिए और किसानों के सवालों के जवाब देने चाहिए. ताकि किसानों द्वारा शुरू किए गए किसान बचाओ मंडी बचाओ आंदोलन को समय रहते उग्र रूप लेने से पहले रोका जा सके.

किसान कर रहे तीनों अध्यादेशों का विरोध

गौरतलब है कि गुरुवार को कुरुक्षेत्र के पीपली मंडी परिसर में कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों ने रैली बुलाई थी, जिसमें प्रदेश भर के किसान जुटे. पीपली अनाज मंडी में भारतीय किसान यूनियन की रैली में पहुंचने से पहले किसानों को पीपली चौक पर रोक लिया गया. उन्‍हें वापस जाने को कहा गया, लेकिन वो नहीं मानें. आगे बढ़ने पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके किसानों को खदेड़ा. इसके बाद कुछ लोगों को हिरासत में भी ले लिया गया.

पहला अध्यादेश है: किसान का उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य

इसके तहत केंद्र सरकार 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनाने की बात कह रही है. इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री किसान मंडी में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा.

दूसरा अध्यादेश: आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव

इस अध्यादेश लाने के पीछे सरकार की मंशा है कि Essential Commodity Act 1955 में बदलाव किया जाए. जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कुछ कृषि उत्पादों का एक लिमिट से अधिक भंडारण पर लगी रोक को हजा दी जाए. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

तीसरा अध्यादेश: मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश पर किसानों का समझौता

इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कंपनिया किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का एग्रीमेंट करेगी. फसल तैयार होने पर वो कंपनी सीधे किसान के खेत से उपज उठा लेगी.

ये भी पढ़ें- एक जैसे हैं कोरोना और आम बुखार के लक्षण, ऐसे समझें दोनों में अंतर

अंबाला: केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेशों के खिलाफ लगातार विशेष रूप से हरियाणा और पंजाब के किसान सड़कों पर उतर कर इसका विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश किसान हितैषी नहीं बल्कि किसान विरोधी हैं. किसान लगातार इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर धरना प्रदर्शन करके दबाव बना रहे हैं.

इसी सिलसिले में ईटीवी भारत ने कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर से बातचीत की और इन अध्यादेशों के उन अहम पहलुओं को जानने की कोशिश की, जिनकी वजह से किसान इन अध्यादेशों को वापस लेने के लिए सरकार पर दवाब बना रहे हैं.

'वन नेशन, वन मार्केट'

कृषि विशेषज्ञ नितिन थापर ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि के तीनों अध्यादेश सरकार द्वारा एक प्रयास है, ताकि समूचे देश के अंदर 'वन नेशन, वन मार्केट' की पॉलिसी को अमल में लाया जाए, लेकिन जब इन अध्यादेशों को धरातल पर लागू करने की बात की जाती है तो वहां पर बहुत सारे पहलू सरकार द्वारा छोड़ दिए जाते हैं, जिसके चलते किसान नेताओं को इन अध्यादेशों में बहुत सी कमियां नजर आती हैं.

कृषि के तीनों अध्यादेशों कृषि विशेषज्ञ की राय, देखें वीडियो

ट्रेड यूनियनों का डर

उन्होंने बताया कि सबसे पहले अध्यादेश जिसमें सरकार फॉर्म प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स ऑर्डिनेंस की बात करती है. वहां पर किसान नेताओं को ये डर सता रहा है कि इस अध्यादेश के पारित होने से ट्रेड यूनियन फीस तो कटेगी, लेकिन ट्रेड यूनियंस पूरी तरह खत्म हो जाएंगी.

'कालाबाजारी बढ़ेगी'

वहीं, दूसरे अध्यादेश में जहां पर एसेंशियल एक्ट-1955 के तहत बहुत ही फसलों को इससे हटा दिया गया है. इससे किसानों को डर सता रहा है कि इससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ेगी जो सिर्फ कुछ एक पूंजीपतियों को ही फायदा पहुंचाएगी, लेकिन उसका फायदा बिल्कुल भी किसानों को नहीं मिलेगा. उल्टा किसान अपने खेतों में मजदूर बनकर रह जाएगा.

उन्होंने साफ किया कि सरकार के कृषि मंत्रियों को और खास तौर पर हरियाणा के कृषि मंत्री को किसानों के साथ बात करनी चाहिए और किसानों के सवालों के जवाब देने चाहिए. ताकि किसानों द्वारा शुरू किए गए किसान बचाओ मंडी बचाओ आंदोलन को समय रहते उग्र रूप लेने से पहले रोका जा सके.

किसान कर रहे तीनों अध्यादेशों का विरोध

गौरतलब है कि गुरुवार को कुरुक्षेत्र के पीपली मंडी परिसर में कृषि अध्यादेशों के खिलाफ किसानों ने रैली बुलाई थी, जिसमें प्रदेश भर के किसान जुटे. पीपली अनाज मंडी में भारतीय किसान यूनियन की रैली में पहुंचने से पहले किसानों को पीपली चौक पर रोक लिया गया. उन्‍हें वापस जाने को कहा गया, लेकिन वो नहीं मानें. आगे बढ़ने पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके किसानों को खदेड़ा. इसके बाद कुछ लोगों को हिरासत में भी ले लिया गया.

पहला अध्यादेश है: किसान का उत्पाद, व्यापार और वाणिज्य

इसके तहत केंद्र सरकार 'एक देश, एक कृषि मार्केट' बनाने की बात कह रही है. इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं. कृषि माल की बिक्री किसान मंडी में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद मार्केट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा.

दूसरा अध्यादेश: आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव

इस अध्यादेश लाने के पीछे सरकार की मंशा है कि Essential Commodity Act 1955 में बदलाव किया जाए. जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कुछ कृषि उत्पादों का एक लिमिट से अधिक भंडारण पर लगी रोक को हजा दी जाए. अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है.

तीसरा अध्यादेश: मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश पर किसानों का समझौता

इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कंपनिया किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का एग्रीमेंट करेगी. फसल तैयार होने पर वो कंपनी सीधे किसान के खेत से उपज उठा लेगी.

ये भी पढ़ें- एक जैसे हैं कोरोना और आम बुखार के लक्षण, ऐसे समझें दोनों में अंतर

Last Updated : Sep 13, 2020, 6:52 PM IST
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