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कृषि कानून के बाद क्या CAA, NRC और अनुच्छेद 370 बढ़ाएगी मोदी सरकार की मुसीबत ?

कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद देशभर के अलग-अलग हिस्सों में कुछ और कानूनों को भी वापिस लेने की मांग उठ रही है. इसमें CAA, 370, NRC का नाम मुख्य है. सवाल है कि क्या पीएम मोदी के लिए ये नई मुसीबत बनने वाली है ? क्या इसका नुकसान बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनाव में होगा ? ऐसे सवालों का जवाब जानिये इस स्पेशल स्टोरी में.

नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी
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Published : Nov 23, 2021, 5:21 PM IST

Updated : Nov 23, 2021, 5:40 PM IST

हैदराबाद: पीएम मोदी (PM MODI) के कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के बाद देशभर में कुछ और कानूनों को वापस लेने की आवाज उठने लगी है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीएम मोदी के जिस फैसले को कल तक कोई मास्टरस्ट्रोक तो कोई मजबूरी बता रहा था, क्या आने वाले वक्त में केंद्र सरकार और बीजेपी के लिए मुसीबत बन जाएगा ? इस फैसले से बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा ? क्या कृषि कानून वापसी के फैसले ने ब्रांड मोदी को झटका दिया है ? इस तरह के सवाल अगले साल की शुरुआत में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए उठ रहे हैं. पहले जानते हैं कि आखिर वो कौन से कानून है जिन्हें वापस लेने की आवाज उठ रही है.

1. CAA

कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन कानून (citizenship amendment act) को वापस लेने की आवाजें उठने लगी हैं. लखनऊ में प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने पीएम मोदी से इस कानून को वापस लेने की मांग की है. महिला प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सीएए वापिस नहीं लिया गया तो देशभर में बड़ा आंदोलन होगा. उधर असम में भी सीएए के खिलाफ आवाजें फिर उठने लगी हैं.

क्या है ये CAA ?- CAA के तहत अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों यानि हिंदू, सिक, बौद्ध, पारसी, इसाई और जैन धर्म के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. मगर शर्त यही है कि इसका लाभ वही अल्पसंख्यक ले सकेंगे, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले इन देशों से भारत आए. इससे पहले नागरिकता अधिनियम, 1955 ( Citizenship Act, 1955 ) के अनुसार, एक विदेशी भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है , शर्त यह है कि पिछले 14 साल में से 12 साल से भारत में रह रहा हो. साथ ही, आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो

CAA के खिलाफ भी उठी थी आवाज
CAA के खिलाफ भी उठी थी आवाज

इस कानून के तहत सिर्फ गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने को लेकर देशभर में बवाल मचा था. लखनऊ से लेकर असम और देश की राजधानी दिल्ली समेत कई इलाकों में प्रदर्शन हुए थे. खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों ने इस कानून के लागू होने से मूल निवासियों के सामने पहचान और आजीविका के संकट का सवाल उठाया था. हालांकि सरकार बार-बार कहती रही है कि इस कानून का मकसद सिर्फ पड़ोसी देशों से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना है ना कि किसी भारतीय की नागरिकता छीनना.

2. धारा 370

धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल था. जिसके तहत देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. राज्य में दोहरी नागरिकता और अलग झंडे की इजाजत थी, यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता था और राष्ट्रपति शासन लागू नहीं हो सकता था. लेकिन 5 अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया. जिसके बाद देश का हर कानून, सरकार की हर नीति यहां उसी तरह लागू होती है जैसी देश के दूसरे राज्यों में.

कृषि कानून वापसी के ऐलान के बाद सोशल मीडिया से लेकर जम्मू-कश्मीर के सियासी हलकों में धारा 370 को लेकर भी आवाज उठने लगी है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसले का स्वागत किय और उम्मीद जताई है कि सरकार ने साल 2019 यानी 5 अगस्त को जो फैसला जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 को लेकर किया था, उसको भी ठीक किया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में की गई गलतियों में सुधार करे और अपना वह फैसला वापस ले.

3. NRC

NRC अभी देश में लागू नहीं हुआ है. NRC यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (national ragister of citizen) एक रजिस्टर है, जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा. एनआरसी की शुरुआत साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेक में असम में हुई थी. फिलहाल ये असम के अलावा देश के किसी भी राज्य में लागू नहीं हुआ है, हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा. सरकार के मुताबिक एनआरसी का किसी भी धर्म के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है , इसका मकसद सिर्फ भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है.

NRC सिर्फ असम में लागू हुआ
NRC सिर्फ असम में लागू हुआ

एनआरसी के तहत खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को ये साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे. असम में एनआरसी का मसौदा जारी हुआ तो पता चला कि राज्य में 2.89 करोड़ लोग तो देश के नागरिक हैं लेकिन 40 लाख लोगों का नाम सूची से गायब था. इसमें 3 दशक तक सेना में रहे ग्रुप कैप्टन पद से रिटायर हुए शख्स समेत ऐसे कई लोगों का नाम इस सूची में नहीं था. जिसके बाद एनआरसी पर सवाल भी उठे और इसके खिलाफ देशभर में मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन किए और कई सियासी दलों ने भी एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

अब कृषि कानून वापस लेने के पीएम मोदी के फैसले के बाद AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर सरकार एनपीआर (NPR) और एनआरसी (NRC) लाए तो हम सड़कों पर उतरेंगे.

4. clinical establishment act

इसके अलावा राजस्थान में आईएमए (indian medical association) के प्रदेश अध्यक्ष समेत अन्य डॉक्टर्स ने मांग कर दी है कि उनके खिलाफ बनाए गए कानून भी वापस लिए जाएं. जिनमें पीसीपीएनडीटी (pcpndt act), क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट (clinical establishment act) शामिल है. कुल मिलाकर कृषि कानून वापस लेने के एक फैसले के बाद देशभर में कई कानूनों को वापस लेने की मांग उठने लगी है.

क्या CAA, NRC, धारा 370 पर भी पीछे हटेगी सरकार ?

इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि कृषि कानून के खिलाफ देश का किसान लामबंद था और एक साल से ज्यादा वक्त से सड़कों पर मोर्चा खोले बैठा है जबकि सीएए से लेकर एनआरसी तक की खिलाफत एक विशेष और छोटे गुट कर रहे थे. वहीं धारा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने पर कुछ गिने चुने नेताओं को छोड़ दें तो फैसले का देशभर में स्वागत हुआ है. योगेश मिश्रा आरक्षण के खिलाफ आंदोलनों का हवाला देते हुए बताते हैं कि पहले भी देश में कानूनों के खिलाफ आंदोलन हुए हैं लेकिन सरकार ने कानून वापस नहीं लिए हैं.

क्या कानून वापसी बढ़ाएगी मोदी सरकार की मुसीबत ?
क्या कानून वापसी बढ़ाएगी मोदी सरकार की मुसीबत ?

क्या इसका चुनावों में बीजेपी को नुकसान होगा ?

योगेश मिश्रा कहते हैं कि CAA, NRC जैसे कानूनों को वापस लेने की मांग उठाने वाले नेताओं को इसका कोई फायदा नहीं मिलने वाला. इन कानूनों के किलाफ खड़े असदुद्दीन ओवैसी यूपी में चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उनकी छवि सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी के रूप में है और बीजेपी को इन कानूनों को वापस लेने की मांगों को लेकर कोई नुकसान नहीं होने वाला.

क्या मुसीबत बनेगा कृषि कानून वापस लेने का फैसला ?

कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों और खासकर यूपी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. इस फैसले को बीजेपी मास्टरस्ट्रोक बता रही है और विपक्ष मजबूरी, लेकिन क्या ये फैसला आगामी चुनावों को देखते हुए बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकता है ? योगेश मिश्रा कहते हैं कि इस फैसले का असर कितना होगा, ये कहना फिलहाल जल्दबाजी होगा. जब संसद से कानून वापस हो जाएगा उसके बाद जनता सरकार की नीति और नीयत को देखते हुए फैसला लेगी. संसद में होने वाली बहस के बाद सरकार की नीति, नीयत और आगे की रणनीति समझने के बाद ही इस पर लोग अपनी राय बनाएंगे.

क्या इस फैसले से मोदी की छवि या बीजेपी को नुकसान हुआ है ?

नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापसी के ऐलान से देश को चौंकाया तो है लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी था जो मानता था कि कुछ भी हो जाए पीएम मोदी अपने कदम पीछे नहीं खीचेंगे. तो क्या कृषि कानून पर कदम वापस लेने से पीएम मोदी की छवि या ब्रांड मोदी को नुकसान हुआ है ? सियासी जानकार मानते हैं कि कृषि कानून वापस लेना जरूरी था और नरेंद्र मोदी की छवि लोकतंत्र से बनती है. इस फैसले ने उनकी इस छवि को और मजबूत किया है. जनता की आवाज सुनकर फैसला लेने को बीजेपी चुनावों में भी भुना सकती है.

ये भी पढ़ें: पीएम ने किया कृषि कानून वापसी का ऐलान तो धरा रह गया सियासी दलों का चुनावी प्लान

हैदराबाद: पीएम मोदी (PM MODI) के कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के बाद देशभर में कुछ और कानूनों को वापस लेने की आवाज उठने लगी है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि पीएम मोदी के जिस फैसले को कल तक कोई मास्टरस्ट्रोक तो कोई मजबूरी बता रहा था, क्या आने वाले वक्त में केंद्र सरकार और बीजेपी के लिए मुसीबत बन जाएगा ? इस फैसले से बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा ? क्या कृषि कानून वापसी के फैसले ने ब्रांड मोदी को झटका दिया है ? इस तरह के सवाल अगले साल की शुरुआत में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव को देखते हुए उठ रहे हैं. पहले जानते हैं कि आखिर वो कौन से कानून है जिन्हें वापस लेने की आवाज उठ रही है.

1. CAA

कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन कानून (citizenship amendment act) को वापस लेने की आवाजें उठने लगी हैं. लखनऊ में प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने पीएम मोदी से इस कानून को वापस लेने की मांग की है. महिला प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सीएए वापिस नहीं लिया गया तो देशभर में बड़ा आंदोलन होगा. उधर असम में भी सीएए के खिलाफ आवाजें फिर उठने लगी हैं.

क्या है ये CAA ?- CAA के तहत अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिमों यानि हिंदू, सिक, बौद्ध, पारसी, इसाई और जैन धर्म के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है. मगर शर्त यही है कि इसका लाभ वही अल्पसंख्यक ले सकेंगे, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले इन देशों से भारत आए. इससे पहले नागरिकता अधिनियम, 1955 ( Citizenship Act, 1955 ) के अनुसार, एक विदेशी भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है , शर्त यह है कि पिछले 14 साल में से 12 साल से भारत में रह रहा हो. साथ ही, आवेदन से पहले उसने 12 महीने का समय भारत में व्यतीत किया हो

CAA के खिलाफ भी उठी थी आवाज
CAA के खिलाफ भी उठी थी आवाज

इस कानून के तहत सिर्फ गैर मुस्लिमों को नागरिकता देने को लेकर देशभर में बवाल मचा था. लखनऊ से लेकर असम और देश की राजधानी दिल्ली समेत कई इलाकों में प्रदर्शन हुए थे. खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों ने इस कानून के लागू होने से मूल निवासियों के सामने पहचान और आजीविका के संकट का सवाल उठाया था. हालांकि सरकार बार-बार कहती रही है कि इस कानून का मकसद सिर्फ पड़ोसी देशों से आने वाले प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना है ना कि किसी भारतीय की नागरिकता छीनना.

2. धारा 370

धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल था. जिसके तहत देश की संसद को जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा अन्य किसी विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा. राज्य में दोहरी नागरिकता और अलग झंडे की इजाजत थी, यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता था और राष्ट्रपति शासन लागू नहीं हो सकता था. लेकिन 5 अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया. जिसके बाद देश का हर कानून, सरकार की हर नीति यहां उसी तरह लागू होती है जैसी देश के दूसरे राज्यों में.

कृषि कानून वापसी के ऐलान के बाद सोशल मीडिया से लेकर जम्मू-कश्मीर के सियासी हलकों में धारा 370 को लेकर भी आवाज उठने लगी है. पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसले का स्वागत किय और उम्मीद जताई है कि सरकार ने साल 2019 यानी 5 अगस्त को जो फैसला जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 को लेकर किया था, उसको भी ठीक किया जाए. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में की गई गलतियों में सुधार करे और अपना वह फैसला वापस ले.

3. NRC

NRC अभी देश में लागू नहीं हुआ है. NRC यानि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (national ragister of citizen) एक रजिस्टर है, जिसमें भारत में रह रहे सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा. एनआरसी की शुरुआत साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट की देखरेक में असम में हुई थी. फिलहाल ये असम के अलावा देश के किसी भी राज्य में लागू नहीं हुआ है, हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा. सरकार के मुताबिक एनआरसी का किसी भी धर्म के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है , इसका मकसद सिर्फ भारत से अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालना है.

NRC सिर्फ असम में लागू हुआ
NRC सिर्फ असम में लागू हुआ

एनआरसी के तहत खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए किसी व्यक्ति को ये साबित करना होगा कि उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत आ गए थे. असम में एनआरसी का मसौदा जारी हुआ तो पता चला कि राज्य में 2.89 करोड़ लोग तो देश के नागरिक हैं लेकिन 40 लाख लोगों का नाम सूची से गायब था. इसमें 3 दशक तक सेना में रहे ग्रुप कैप्टन पद से रिटायर हुए शख्स समेत ऐसे कई लोगों का नाम इस सूची में नहीं था. जिसके बाद एनआरसी पर सवाल भी उठे और इसके खिलाफ देशभर में मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन किए और कई सियासी दलों ने भी एनआरसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

अब कृषि कानून वापस लेने के पीएम मोदी के फैसले के बाद AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर सरकार एनपीआर (NPR) और एनआरसी (NRC) लाए तो हम सड़कों पर उतरेंगे.

4. clinical establishment act

इसके अलावा राजस्थान में आईएमए (indian medical association) के प्रदेश अध्यक्ष समेत अन्य डॉक्टर्स ने मांग कर दी है कि उनके खिलाफ बनाए गए कानून भी वापस लिए जाएं. जिनमें पीसीपीएनडीटी (pcpndt act), क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट (clinical establishment act) शामिल है. कुल मिलाकर कृषि कानून वापस लेने के एक फैसले के बाद देशभर में कई कानूनों को वापस लेने की मांग उठने लगी है.

क्या CAA, NRC, धारा 370 पर भी पीछे हटेगी सरकार ?

इस सवाल के जवाब में राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि कृषि कानून के खिलाफ देश का किसान लामबंद था और एक साल से ज्यादा वक्त से सड़कों पर मोर्चा खोले बैठा है जबकि सीएए से लेकर एनआरसी तक की खिलाफत एक विशेष और छोटे गुट कर रहे थे. वहीं धारा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने पर कुछ गिने चुने नेताओं को छोड़ दें तो फैसले का देशभर में स्वागत हुआ है. योगेश मिश्रा आरक्षण के खिलाफ आंदोलनों का हवाला देते हुए बताते हैं कि पहले भी देश में कानूनों के खिलाफ आंदोलन हुए हैं लेकिन सरकार ने कानून वापस नहीं लिए हैं.

क्या कानून वापसी बढ़ाएगी मोदी सरकार की मुसीबत ?
क्या कानून वापसी बढ़ाएगी मोदी सरकार की मुसीबत ?

क्या इसका चुनावों में बीजेपी को नुकसान होगा ?

योगेश मिश्रा कहते हैं कि CAA, NRC जैसे कानूनों को वापस लेने की मांग उठाने वाले नेताओं को इसका कोई फायदा नहीं मिलने वाला. इन कानूनों के किलाफ खड़े असदुद्दीन ओवैसी यूपी में चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन उनकी छवि सिर्फ वोट काटने वाली पार्टी के रूप में है और बीजेपी को इन कानूनों को वापस लेने की मांगों को लेकर कोई नुकसान नहीं होने वाला.

क्या मुसीबत बनेगा कृषि कानून वापस लेने का फैसला ?

कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों और खासकर यूपी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. इस फैसले को बीजेपी मास्टरस्ट्रोक बता रही है और विपक्ष मजबूरी, लेकिन क्या ये फैसला आगामी चुनावों को देखते हुए बीजेपी के लिए मुसीबत बन सकता है ? योगेश मिश्रा कहते हैं कि इस फैसले का असर कितना होगा, ये कहना फिलहाल जल्दबाजी होगा. जब संसद से कानून वापस हो जाएगा उसके बाद जनता सरकार की नीति और नीयत को देखते हुए फैसला लेगी. संसद में होने वाली बहस के बाद सरकार की नीति, नीयत और आगे की रणनीति समझने के बाद ही इस पर लोग अपनी राय बनाएंगे.

क्या इस फैसले से मोदी की छवि या बीजेपी को नुकसान हुआ है ?

नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापसी के ऐलान से देश को चौंकाया तो है लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी था जो मानता था कि कुछ भी हो जाए पीएम मोदी अपने कदम पीछे नहीं खीचेंगे. तो क्या कृषि कानून पर कदम वापस लेने से पीएम मोदी की छवि या ब्रांड मोदी को नुकसान हुआ है ? सियासी जानकार मानते हैं कि कृषि कानून वापस लेना जरूरी था और नरेंद्र मोदी की छवि लोकतंत्र से बनती है. इस फैसले ने उनकी इस छवि को और मजबूत किया है. जनता की आवाज सुनकर फैसला लेने को बीजेपी चुनावों में भी भुना सकती है.

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Last Updated : Nov 23, 2021, 5:40 PM IST
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