हैदराबाद : सिंघु बॉर्डर पर पंजाब के दलित युवक की हत्या की जिम्मेदारी लेने वाले निहंग सिख सरबजीत सिंह ने दावा किया कि गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी यानी अपमान करने पर उसने युवक की जान ले ली. 2020 के अप्रैल में भी निहंग उस वक्त चर्चा में आए थे, जब लॉकडाउन के दौरान 'पास' मांगने पर निहंगों ने पटियाला में एक सब इंस्पेक्टर का हाथ काट दिया था.
निहंग कौन हैं, क्यों है उनका नीला बाणा : निहंग वास्तव में योद्धा होते हैं, इसलिए उनका पहनावा भी योद्धाओं जैसा होता है. निहंग सिख हमेशा नीला बाणा यानी नीले रंग के कपड़ों में रहते हैं. अपने साथ बड़ा भाला या तलवार रखते हैं. उनकी नीली या केसरी पगड़ी पर भी चांद तारा लगा होता है. हाथ में कड़ा पहनते हैं और कमर पर कृपाण होती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, निहंग सिख खालसा की आचार संहिता का सख्ती से पालन करते हैं. भाला, तलवार, कृपाण, नेजा, खंडा जैसे पारंपरिक हथियारों को चलाने में निहंगों को महारथ हासिल होती है. युद्ध कला गतका में यह पारंगत होते हैं. निहंग गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा श्री दशम ग्रंथ साहिब और सरबलोह ग्रंथ को भी मानते हैं. सरबलोह ग्रंथ में युद्ध और शस्त्र विद्या के बारे में बताया गया है.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना का हिस्सा रहे : 18वीं सदी में अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने कई बार हमला किया था. निहंगों ने उसके खिलाफ सिखों की ओर से लड़ाई लड़ी थी. महाराजा रणजीत सिंह की सेना में निहंगों की काफी अहम भूमिका थी. निहंगों को लेकर कई कहानियां हैं. निहंगों की उत्पत्ति को लेकर कुछ भी साफ नहीं है. माना जाता है कि 'निहंग' की उत्पति 1699 में उस समय हुई थी, जब दशम गुरू गोबिंद सिंह खालसा पंथ की स्थापना कर रहे थे. उन्होंने फौज में ऐसे वीरों को शामिल किया, जिसे किसी बात की शंका या डर नहीं हो यानी वह निशंक हो. नि:शंक ही बाद में निहंग कहलाए. इसे गुरु की लाडली फौज भी कहा गया.
दशम गुरु के साहिबजादे फतेह सिंह से जुड़े हैं निहंग : इसे लेकर कई लोक कथा भी प्रचलित है. माना जाता है कि एक बार दशम गुरु के तीन साहिबजादे अजित सिंह, जुझार सिंह और जोरावर सिंह युद्ध का अभ्यास कर रहे थे. इस बीच उनका चौथा पुत्र फतेह सिंह भी आए और अभ्यास में शामिल होने की इच्छा जताई. इस पर उनके बड़े भाइयों ने उनकी कम उम्र और लंबाई का हवाला देकर युद्ध अभ्यास में शामिल नहीं किया. इससे नाराज फतेह सिंह ने नीले रंग का लिबास पहना. सिर पर एक बड़ी सी पगड़ी बांधी, ताकि उनकी लंबाई ऊंची हो जाए. फिर वह हाथों में तलवार और भाला लेकर पहुंच गए. फतेह सिंह ने कहा कि वह अब लंबाई में तीनों के बराबर हो गए हैं, इसलिए वह युद्धाभ्यास में शामिल हो सकते हैं.
गुरू गोबिंद सिंह अपने बच्चों का यह संवाद देख सुन रहे थे. उन्होंने फतेह सिंह को युद्ध कला सिखाई. मान्यता है कि फतेह सिंह ने अपने बड़े भाइयों की बराबरी करने के लिए जो बाणा धारण किया था, वही आज के निहंग सिख पहनते हैं. फतेह सिंह ने जो हथियार उस समय उठाया था, वह आज भी निहंगों के साथ दिखता है. गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादे फतेह सिंह को उनके भाई जोरावर सिंह के साथ 26 दिसंबर 1704 को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था.
जिसे शंका और खौफ नहीं, वह निहंग है : निहंग शब्द के कई मतलब होते हैं, जैसे तलवार, मगरमच्छ और कलम. फारसी में मगरमच्छ को निहंग कहते हैं. माना जाता है कि सिख सैनिक युद्ध में वैसे ही वीरता का प्रदर्शन करते थे, जैसे पानी में मगरमच्छ. जिनके सामने कोई नहीं टिकता. उनकी वीरता के कारण उन्हें निहंग कहा गया. मगर यह धारणा प्रचलित नहीं है. निहंग शब्द संस्कृत के नि:शंक से आया है, इसका जिक्र पवित्र ग्रंथ श्री गुरुग्रंथ साहिब में भी है. जिसका मतलब है शंका रहित और बेखौफ.
निहंग सिख खालसा की आचार संहिता का सख्ती से पालन करते हैं. सिख धर्म के अनुसार, यह पांच ककार ( केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा) का अनिवार्य तौर से पालन करते हैं. पांच वाणियों का पाठ करते हैं. इनकी दिनचर्या सुबह एक बजे से शुरू होती है. जब कोई सिख निहंग बनता है तो उसे वैसे ही वस्त्र और हथियार दिए जाते हैं, जैसे खालसा पंथ की स्थापना के समय गुरु गोबिंद सिंह ने दिए थे. निहंग सिख भी दो तरह के होते हैं. ब्रह्मचारी और गृहस्थ. गृहस्थ निहंग के परिवार के सदस्यों को भी इससे जुड़े नियमों का पालन करना होता है. युद्ध के नियम के अनुसार, निहंग कभी कमजोर और निहत्थे पर वार नहीं करते हैं.
निहंगों के बीच शारदाई या शरबती देघ काफी लोकप्रिय है. इसमें पिसे हुए बादाम, इलायची, खसखस, काली मिर्च, गुलाब की पंखुड़ियां और खरबूजे के बीज होते हैं. जब इसमें भांग की थोड़ी सी मात्रा मिला दी जाती है, तो उसे सुखनिधान कहा जाता है. युद्ध के दौरान जब इस पेय में भांग की मात्रा बढ़ा दी जाती थी, तब इसे शहीदी देग कहा जाता था. हालांकि भांग के उपयोग को लेकर अभी आम राय नहीं है.
अभी निहंग छोटे-छोटे डेरों में रहते हैं, जिनका नेतृत्व जत्थेदार करते हैं. पूरे साल अक्सर यह आनंदपुर साहिब, दमदमा साहिब तलवंडी साबो और अमृतसर की धार्मिक यात्राओं में होते हैं. इसके अलावा यह सिख धर्म के धार्मिक आयोजनों में शिरकत करते हैं. जहां यह गतका और घुड़सवारी का प्रदर्शन करते हैं. वैसाखी, दिवाली और होला-मुहल्ला इनका त्योहार है, जो धार्मिक स्थलों पर ही मनाया जाता है.