नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने राष्ट्रीय विधिक सेवाएं प्राधिकरण (NALSA) से कहा है कि कानून के मुताबिक जेल से सजायाफ्ता कैदियों की 'समयपूर्व रिहाई' के अधिकारों की रक्षा के लिए देशव्यापी समान मानक संचालन प्रक्रिया जारी करने पर विचार करें.
उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फरवरी 2019 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास के सजा की पुष्टि की थी. अदालत ने कहा कि आगरा जेल के अधिकारियों की तरफ से जारी हिरासत प्रमाण पत्र के मुताबिक दोषी ने बिना छुट्टी लिए करीब 16 वर्ष कैद की सजा भुगती है.
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ (Justices D Y Chandrachud ) और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह (Justices M R Shah ) की पीठ ने आगरा के वरिष्ठ जेल अधीक्षक को यह भी निर्देश दिया कि सजायाफ्ता कैदी को उसके अधिकारों के बारे में बताएं कि नियमों के मुताबिक समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन सौंपे.
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पीठ ने शुक्रवार को जारी आदेश में कहा, 'नालसा से आग्रह किया जाता है कि वह कानून के प्रावधानों के मुताबिक एक की स्थिति वाले दोषियों की समय पूर्व रिहाई के अधिकारों की रक्षा के लिए देशव्यापी समान एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) जारी करने पर विचार करे.'
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वरिष्ठ जेल अधीक्षक की तरफ से जारी हिरासत प्रमाण पत्र के अनुसार इस वर्ष 26 जून तक बिना छूट के वास्तविक काटी गई सजा अवधि 15 वर्ष, 11 महीने और 22 दिन है जबकि छुट्टी के साथ यह अवधि 19 वर्ष, एक महीने और 22 दिन है.
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण को सुनिश्चित करना चाहिए कि इसके वकीलों की समिति राज्य के हर जेल का दौरा करे और सजा की प्रकृति, सजा की अवधि और जितने दिन कैद की सजा भुगती जा चुकी है, उन्हें ध्यान में रखकर सजायाफ्ता कैदियों को सलाह दें और कानून के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन तैयार करने में उनकी मदद करें.
पीठ ने कहा, 'एक बार इस तरह का आवेदन मिलते ही सक्षम अधिकारी तीन महीने के अंदर उनका निपटारा करेंगे.'
(पीटीआई-भाषा)