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प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र-दिल्ली से पूछा- क्या किया अब तक ? - Supreme Court

दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई हुई. कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली, दोनों सरकारों को कटघरे में खड़ा किया. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को करेगा.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज
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Published : Nov 17, 2021, 9:56 AM IST

Updated : Nov 19, 2021, 7:01 AM IST

नई दिल्ली : दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंताजनक हालात, आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा, मुद्दे को घुमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. इसी क्रम में दिल्ली समेत एनसीआर में शामिल सभी राज्यों ने हलफनामा दाखिल किया. अब इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को होगी.

प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने 392 पेज का हलफनामा दायर किया. सीजेआई जेआई ने सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि अब तक प्रदूषण को रोकने के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं.

तुषार मेहता ने इसके जवाब में वायु गुणवत्ता प्रबंधन समिति की बैठक की अदालत को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि बैठक में ऊर्जा सचिव, सचिव डीओपीटी हरियाणा और पंजाब, दिल्ली के मुख्य सचिव उपस्थित थे.

तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली के 300 किलोमीटर दायरे में 11 थर्मल प्लांटों में से केवल पांच काम कर रहे हैं, अन्य को बंद कराया गया है. जरूरत पड़ने पर क्षेत्र के दायरे से बाहर के संयंत्रों को भी बंद कराया जा सकता है.

सीजेआई ने दिल्ली सरकार से पूछा कि क्या कदम उठाए जा रहे हैं, क्या आपने अखबार देखे हैं, हर अखबार का अलग आंकड़ा है.

केंद्र ने अदालत को बताया कि वह अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम कराने के पक्ष में नहीं है. कोविड के चलते ही पहले ही कामकाज प्रभावित हुआ है, इसलिए वर्क फ्रॉम होम मुमकीन नहीं है.

तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में केंद्र सरकार के वाहनों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, जब वर्क फ्रॉम होम की बात आती है तो अधिक नुकसान होते है.

सीजेआई ने कहा कि क्या आपके पास केंद्रीय कर्मियों की संख्या है ?

तुषार ने कहा कि ये संख्या ज्यादा नहीं है, वाहनों की संख्या कम है. अगर कोई आदेश दिया तो अखिल भारतीय प्रभाव होगा.

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वायु प्रदूषण में पराली जलाने में योगदान के बारे में सोमवार को किए गए उनके सबमिशन को मीडिया में गलत समझा गया. उनके खिलाफ 'गैर-जिम्मेदार और भद्दे बयान' दिए गए.

मामले की सुनवाई कर रहे पीठ के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट को किसी भी तरह से गुमराह नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों की सुनवाई में जब अदालत ने चार प्रतिशत का आंकड़ा बताया था (जैसा कि केंद्र के हलफनामे में पराली जलाने के योगदान के बारे में बताया गया है), विकास सिंह ने कहा था कि हलफनामे में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत है. इससे अदालत किसी भी तरह से गुमराह नहीं हुआ है.

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि मैंने आपसे बार-बार कहा है कि जब आप किसी सार्वजनिक पद पर होते हैं, तो आपको इस प्रकार के आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें - Delhi-NCR में स्कूल, कॉलेज अगले आदेश तक रहेंगे बंद, ट्रकों की एंट्री पर रोक

उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान प्रदूषण कम करने पर है. आप सभी ऐसे मुद्दों को बार-बार उठा रहे हैं जो प्रासंगिक नहीं हैं. टीवी पर बहस ज्यादा प्रदूषण फैला रही है.

सीजेआई ने दिल्ली सरकार से कहा कि अगर आप इसी तरह और बातें उठाते रहेंगे तो मुख्य मुद्दा नहीं सुलझेगा. आप सभी अलग-अलग आंकड़े कह रहे हैं. हम किसानों को दंडित नहीं करना चाहते हैं. हमने पहले ही केंद्र से उन किसानों को आगे बढ़ाने और अनुरोध करने के लिए कहा है कि वे कम से कम एक सप्ताह तक पराली न जलाएं.

वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राजनीति या महीने की बात भूल जाइए. यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपको बताएं कि पराली जलाना एक कारण है.

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आखिर किसान को पराली जलाना क्यों पड़ता है? पांच सितारा होटल में एसी में बैठकर किसानों को दोष देना बहुत आसान है. आप किसानों को मशीन मुहैया कराने की क्षमता रखते हैं.

सिंघवी ने कहा कि केंद्र पूरे साल की बात कर रहा है. हम इन दो महीनों को लेकर ज्यादा चिंतित हैं. पराली जलाने को कम करके आंकने का नुकसान है.

सीजेआई ने कहा कि हमने सिर्फ यही कहा है कि किसानों को दंडित मत कीजिए.

सिंघवी : बायो ट्रीटमेंट कारगर

सीजेआई : आप चाहते हैं कि हम कुछ बोलें और वह खबर बने.

जस्टिस सूर्यकांत : हर साल अक्टूबर-नवंबर में जब दिल्ली का दम घुटने लगता है, तो सुप्रीम कोर्ट कदम उठाने को मजबूर होता है. कोई बताए कि साल भर सरकार क्या करती है.

सिंघवी : मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि पटाखों से प्रदूषण होता है.

सीजेआई ने कहा कि आप पूसा शोध अध्ययन का हवाला देते रहते हैं, लेकिन पहले से ही ऐसी खबरें आ रही हैं कि पराली के प्रबंधन का तरीका विफल है. पराली जलाने का काम कुछ राज्यों में है. ये मुद्दा हाईकोर्ट का है, लेकिन हर बार हमें इसमें आना पड़ता है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली सरकार बताए कि क्या कदम उठा रही है.

सिंघवी ने बताया कि 13 नवंबर को हमारे हलफनामे में निर्माण और सड़क की धूल के उपायों पर हमारे उपाय बताए गए हैं, कल जो मीटिंग हुई है, उनमें से 90% कदम दिल्ली सरकार ने उठाए हैं. अन्य राज्य थोड़े पीछे हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने पिछली बार केवल 69 रोड सफाई मशीनों के मुद्दे का उल्लेख किया था, कोई नई भी खरीदी गई.

सिंघवी ने कहा कि एमसीडी को बताना है कि और कितने की जरूरत है. हम पूरी आर्थिक सहायता देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि 15 और के लिए खरीद आदेश दिया गया है. सफाई का काम एमसीडी का है, हम ये साफ करना चाहते हैं.

इस पर सीजेआई भड़क उठे और कहा कि फिर से मुद्दा है कि एमसीडी आपके अधीन नहीं है. उन्होंने कहा कि कितनी सफाई मशीनें हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट को इसमें जाना चाहिए ?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली सरकार से कहा कि हमारे पास एक सुझाव है. आपने कहा है कि गैर-जरूरी उद्योगों को बंद करना संभव है, लेकिन तभी जब NCR के दूसरे लोग भी ऐसा करें. उन्होंने कहा कि क्या आप सीएनजी बसों को नहीं बढ़ा सकते ताकि लोग निजी वाहनों के बजाय उन पर स्विच हो जाएं. ऐसी और बसें किराए पर लें.

सिंघवी ने कहा कि इस पर जांच कर सकते हैं, भले ही इसे मध्यम अवधि में लागू किया जा सके, तुरंत संभव नहीं हो सकता.

जस्टिस चंद्रचूड़ : अगले दो दिनों में सकारात्मक कदम उठाएं. अल्पकालिक प्रभाव के लिए ये जरूरी है.

सिंघवी : हम तुरंत बसें नहीं खरीद सकते. मेट्रो व बसों की फ्रीकेंसी बढा सकते हैं, लेकिन एनसीआर को भी कदम उठाना होगा.

तुषार : हमने दिल्ली सरकार को ट्रांसपोर्ट बढ़ाने और पानी का छिड़काव करने को कहा है.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से सवाल किया कि एक राज्य के तौर पर आपने क्या किया है. आपने प्रदूषण रोकने के लिए क्या किया है.

हरियाणा सरकार ने बताया कि हमने किसानों से पराली न जलाने को कहा है, वर्क फ्रॉम होम भी किया है.

अब आई पंजाब की बारी. अदालत ने पंजाब सरकार से जब उनके द्वारा उठाए गए कदम पर सवाल किये, तब उन्होंने जवाब दिया कि हम एनसीआर में नहीं आते हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को दो हफ्ते पराली ना जलाने को कहा है. पराली खेतों में ही पड़ी है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यानी आपने किसानों को रोक दिया, लेकिन पराली को नहीं हटाया.

जब सीजेआई ने पंजाब सरकार से सवाल किया कि किसान पराली का क्या करेगा, इसके जवाब में पंजाब सरकार ने कहा कि हम मशीनों से मदद कर रहे हैं.

याचिकाकर्ता की ओर से विकास सिंह ने कहा कि जो करना है अदालत को करना है. सरकारों पर इसे अगले साल अक्टूबर तक लागू करने को मत कहिए.

विकास सिंह ने कहा कि सरकारों को कदम उठाना चाहिए. ये एंडेमिक प्रोबलम है. दिल्ली सरकार को कुछ कदम उठाने चाहिए. अदालत सरकारों से कदम उठाने को कहती है और सरकारें कहती हैं कि हम कर रहे हैं. जब हम सवाल उठाते हैं तो कहते हैं कि एजेंडा है.

उन्होंने कहा कि पराली जलाना गंभीर समस्या है. इसे किसानों को कोसने की बजाए हल करना चाहिए. पराली जलाना मिट्टी के लिए भी हानिकारक है, जिससे किसानों को लंबी अवधि में नुकसान होता है. इसकी गलत सूचना दी गई कि पराली का योगदान केवल 10 प्रतिशत है. चालू सीजन के दौरान यह 50 प्रतिशत तक हो सकता है. अगले साल के लिए आज ही निर्देश दें.

याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि मैं चाहता हूं कि अभी कुछ कदम उठें, न कि उन्हें अगले अक्टूबर के लिए छोड़ दिया जाए. गाड़ियों-उद्योगों के लिए भी नियम हैं. किन बातों का पालन हो रहा है, यह देखने की बात है, लेकिन पराली जलाने की समस्या की उपेक्षा नहीं हो सकती है.

सीजेआई ने इसके बाद एक बार फिर पटाखों की बात उठाई. उन्होंने कहा कि देख रहे हैं कि पिछले दिनों से कैसे शहर में पटाखे चलाए जा रहे हैं. इस पर बैन लगाने की जिम्मेदारी सरकार की है.

सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि आपकी रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसपोर्ट एक बड़ा कारण है. आप कहते हैं कि लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इंकरेज करेंगे. हमारा सवाल ये है कि कैसे करेंगे और कौन करेगा.

तुषार मेहता ने कहा कि कल की बैठक में मौसम विभाग से भी मशविरा किया गया. हमारे उपाय 21 नवंबर तक हैं, क्योंकि उसके बाद हवा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है. हमारा सुझाव है कि कठोर कदम उठाने से पहले कोर्ट 21 नवंबर तक इंतजार करें.

सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज कोई आदेश जारी नहीं करेंगे. सरकार जरूरी कदम उठाए.

बता दें कि दिल्‍ली समेत पूरे एनसीआर में प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति पर कमीशन फॉर एयर क्‍वालिटी मॉनिटरिंग (CAQM) ने निर्देश दिए हैं कि दिल्‍ली और आसपास के राज्‍यों में सभी स्‍कूल, कॉलेज और सभी शैक्षणिक संस्‍थान अगले आदेश तक बंद रखा जाए. इसके साथ ही कमीशन फॉर एयर क्‍वालिटी मॉनिटरिंग ने आदेश दिया है कि एनसीआर में वर्क फ्रॉम होम मोड में काम करें . वहीं ऑफिस में महज 50 फीसदी स्‍टाफ को बुलाया जाए.

इससे पूर्व दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर जरूरत पड़े तो दो दिन का लॉकडाउन लगा दें.

नई दिल्ली : दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंताजनक हालात, आज फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा, मुद्दे को घुमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. इसी क्रम में दिल्ली समेत एनसीआर में शामिल सभी राज्यों ने हलफनामा दाखिल किया. अब इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को होगी.

प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने 392 पेज का हलफनामा दायर किया. सीजेआई जेआई ने सॉलिसिटर जनरल से सवाल किया कि अब तक प्रदूषण को रोकने के लिए आपने क्या कदम उठाए हैं.

तुषार मेहता ने इसके जवाब में वायु गुणवत्ता प्रबंधन समिति की बैठक की अदालत को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि बैठक में ऊर्जा सचिव, सचिव डीओपीटी हरियाणा और पंजाब, दिल्ली के मुख्य सचिव उपस्थित थे.

तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली के 300 किलोमीटर दायरे में 11 थर्मल प्लांटों में से केवल पांच काम कर रहे हैं, अन्य को बंद कराया गया है. जरूरत पड़ने पर क्षेत्र के दायरे से बाहर के संयंत्रों को भी बंद कराया जा सकता है.

सीजेआई ने दिल्ली सरकार से पूछा कि क्या कदम उठाए जा रहे हैं, क्या आपने अखबार देखे हैं, हर अखबार का अलग आंकड़ा है.

केंद्र ने अदालत को बताया कि वह अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम कराने के पक्ष में नहीं है. कोविड के चलते ही पहले ही कामकाज प्रभावित हुआ है, इसलिए वर्क फ्रॉम होम मुमकीन नहीं है.

तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में केंद्र सरकार के वाहनों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, जब वर्क फ्रॉम होम की बात आती है तो अधिक नुकसान होते है.

सीजेआई ने कहा कि क्या आपके पास केंद्रीय कर्मियों की संख्या है ?

तुषार ने कहा कि ये संख्या ज्यादा नहीं है, वाहनों की संख्या कम है. अगर कोई आदेश दिया तो अखिल भारतीय प्रभाव होगा.

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वायु प्रदूषण में पराली जलाने में योगदान के बारे में सोमवार को किए गए उनके सबमिशन को मीडिया में गलत समझा गया. उनके खिलाफ 'गैर-जिम्मेदार और भद्दे बयान' दिए गए.

मामले की सुनवाई कर रहे पीठ के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट को किसी भी तरह से गुमराह नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि पिछले दिनों की सुनवाई में जब अदालत ने चार प्रतिशत का आंकड़ा बताया था (जैसा कि केंद्र के हलफनामे में पराली जलाने के योगदान के बारे में बताया गया है), विकास सिंह ने कहा था कि हलफनामे में यह आंकड़ा 35 प्रतिशत है. इससे अदालत किसी भी तरह से गुमराह नहीं हुआ है.

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि मैंने आपसे बार-बार कहा है कि जब आप किसी सार्वजनिक पद पर होते हैं, तो आपको इस प्रकार के आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें - Delhi-NCR में स्कूल, कॉलेज अगले आदेश तक रहेंगे बंद, ट्रकों की एंट्री पर रोक

उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान प्रदूषण कम करने पर है. आप सभी ऐसे मुद्दों को बार-बार उठा रहे हैं जो प्रासंगिक नहीं हैं. टीवी पर बहस ज्यादा प्रदूषण फैला रही है.

सीजेआई ने दिल्ली सरकार से कहा कि अगर आप इसी तरह और बातें उठाते रहेंगे तो मुख्य मुद्दा नहीं सुलझेगा. आप सभी अलग-अलग आंकड़े कह रहे हैं. हम किसानों को दंडित नहीं करना चाहते हैं. हमने पहले ही केंद्र से उन किसानों को आगे बढ़ाने और अनुरोध करने के लिए कहा है कि वे कम से कम एक सप्ताह तक पराली न जलाएं.

वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राजनीति या महीने की बात भूल जाइए. यह हमारा कर्तव्य है कि हम आपको बताएं कि पराली जलाना एक कारण है.

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आखिर किसान को पराली जलाना क्यों पड़ता है? पांच सितारा होटल में एसी में बैठकर किसानों को दोष देना बहुत आसान है. आप किसानों को मशीन मुहैया कराने की क्षमता रखते हैं.

सिंघवी ने कहा कि केंद्र पूरे साल की बात कर रहा है. हम इन दो महीनों को लेकर ज्यादा चिंतित हैं. पराली जलाने को कम करके आंकने का नुकसान है.

सीजेआई ने कहा कि हमने सिर्फ यही कहा है कि किसानों को दंडित मत कीजिए.

सिंघवी : बायो ट्रीटमेंट कारगर

सीजेआई : आप चाहते हैं कि हम कुछ बोलें और वह खबर बने.

जस्टिस सूर्यकांत : हर साल अक्टूबर-नवंबर में जब दिल्ली का दम घुटने लगता है, तो सुप्रीम कोर्ट कदम उठाने को मजबूर होता है. कोई बताए कि साल भर सरकार क्या करती है.

सिंघवी : मैं इस बात से इनकार नहीं करता कि पटाखों से प्रदूषण होता है.

सीजेआई ने कहा कि आप पूसा शोध अध्ययन का हवाला देते रहते हैं, लेकिन पहले से ही ऐसी खबरें आ रही हैं कि पराली के प्रबंधन का तरीका विफल है. पराली जलाने का काम कुछ राज्यों में है. ये मुद्दा हाईकोर्ट का है, लेकिन हर बार हमें इसमें आना पड़ता है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली सरकार बताए कि क्या कदम उठा रही है.

सिंघवी ने बताया कि 13 नवंबर को हमारे हलफनामे में निर्माण और सड़क की धूल के उपायों पर हमारे उपाय बताए गए हैं, कल जो मीटिंग हुई है, उनमें से 90% कदम दिल्ली सरकार ने उठाए हैं. अन्य राज्य थोड़े पीछे हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने पिछली बार केवल 69 रोड सफाई मशीनों के मुद्दे का उल्लेख किया था, कोई नई भी खरीदी गई.

सिंघवी ने कहा कि एमसीडी को बताना है कि और कितने की जरूरत है. हम पूरी आर्थिक सहायता देने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि 15 और के लिए खरीद आदेश दिया गया है. सफाई का काम एमसीडी का है, हम ये साफ करना चाहते हैं.

इस पर सीजेआई भड़क उठे और कहा कि फिर से मुद्दा है कि एमसीडी आपके अधीन नहीं है. उन्होंने कहा कि कितनी सफाई मशीनें हैं. क्या सुप्रीम कोर्ट को इसमें जाना चाहिए ?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली सरकार से कहा कि हमारे पास एक सुझाव है. आपने कहा है कि गैर-जरूरी उद्योगों को बंद करना संभव है, लेकिन तभी जब NCR के दूसरे लोग भी ऐसा करें. उन्होंने कहा कि क्या आप सीएनजी बसों को नहीं बढ़ा सकते ताकि लोग निजी वाहनों के बजाय उन पर स्विच हो जाएं. ऐसी और बसें किराए पर लें.

सिंघवी ने कहा कि इस पर जांच कर सकते हैं, भले ही इसे मध्यम अवधि में लागू किया जा सके, तुरंत संभव नहीं हो सकता.

जस्टिस चंद्रचूड़ : अगले दो दिनों में सकारात्मक कदम उठाएं. अल्पकालिक प्रभाव के लिए ये जरूरी है.

सिंघवी : हम तुरंत बसें नहीं खरीद सकते. मेट्रो व बसों की फ्रीकेंसी बढा सकते हैं, लेकिन एनसीआर को भी कदम उठाना होगा.

तुषार : हमने दिल्ली सरकार को ट्रांसपोर्ट बढ़ाने और पानी का छिड़काव करने को कहा है.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से सवाल किया कि एक राज्य के तौर पर आपने क्या किया है. आपने प्रदूषण रोकने के लिए क्या किया है.

हरियाणा सरकार ने बताया कि हमने किसानों से पराली न जलाने को कहा है, वर्क फ्रॉम होम भी किया है.

अब आई पंजाब की बारी. अदालत ने पंजाब सरकार से जब उनके द्वारा उठाए गए कदम पर सवाल किये, तब उन्होंने जवाब दिया कि हम एनसीआर में नहीं आते हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों को दो हफ्ते पराली ना जलाने को कहा है. पराली खेतों में ही पड़ी है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यानी आपने किसानों को रोक दिया, लेकिन पराली को नहीं हटाया.

जब सीजेआई ने पंजाब सरकार से सवाल किया कि किसान पराली का क्या करेगा, इसके जवाब में पंजाब सरकार ने कहा कि हम मशीनों से मदद कर रहे हैं.

याचिकाकर्ता की ओर से विकास सिंह ने कहा कि जो करना है अदालत को करना है. सरकारों पर इसे अगले साल अक्टूबर तक लागू करने को मत कहिए.

विकास सिंह ने कहा कि सरकारों को कदम उठाना चाहिए. ये एंडेमिक प्रोबलम है. दिल्ली सरकार को कुछ कदम उठाने चाहिए. अदालत सरकारों से कदम उठाने को कहती है और सरकारें कहती हैं कि हम कर रहे हैं. जब हम सवाल उठाते हैं तो कहते हैं कि एजेंडा है.

उन्होंने कहा कि पराली जलाना गंभीर समस्या है. इसे किसानों को कोसने की बजाए हल करना चाहिए. पराली जलाना मिट्टी के लिए भी हानिकारक है, जिससे किसानों को लंबी अवधि में नुकसान होता है. इसकी गलत सूचना दी गई कि पराली का योगदान केवल 10 प्रतिशत है. चालू सीजन के दौरान यह 50 प्रतिशत तक हो सकता है. अगले साल के लिए आज ही निर्देश दें.

याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि मैं चाहता हूं कि अभी कुछ कदम उठें, न कि उन्हें अगले अक्टूबर के लिए छोड़ दिया जाए. गाड़ियों-उद्योगों के लिए भी नियम हैं. किन बातों का पालन हो रहा है, यह देखने की बात है, लेकिन पराली जलाने की समस्या की उपेक्षा नहीं हो सकती है.

सीजेआई ने इसके बाद एक बार फिर पटाखों की बात उठाई. उन्होंने कहा कि देख रहे हैं कि पिछले दिनों से कैसे शहर में पटाखे चलाए जा रहे हैं. इस पर बैन लगाने की जिम्मेदारी सरकार की है.

सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि आपकी रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसपोर्ट एक बड़ा कारण है. आप कहते हैं कि लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इंकरेज करेंगे. हमारा सवाल ये है कि कैसे करेंगे और कौन करेगा.

तुषार मेहता ने कहा कि कल की बैठक में मौसम विभाग से भी मशविरा किया गया. हमारे उपाय 21 नवंबर तक हैं, क्योंकि उसके बाद हवा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है. हमारा सुझाव है कि कठोर कदम उठाने से पहले कोर्ट 21 नवंबर तक इंतजार करें.

सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई 23 नवंबर को करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज कोई आदेश जारी नहीं करेंगे. सरकार जरूरी कदम उठाए.

बता दें कि दिल्‍ली समेत पूरे एनसीआर में प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति पर कमीशन फॉर एयर क्‍वालिटी मॉनिटरिंग (CAQM) ने निर्देश दिए हैं कि दिल्‍ली और आसपास के राज्‍यों में सभी स्‍कूल, कॉलेज और सभी शैक्षणिक संस्‍थान अगले आदेश तक बंद रखा जाए. इसके साथ ही कमीशन फॉर एयर क्‍वालिटी मॉनिटरिंग ने आदेश दिया है कि एनसीआर में वर्क फ्रॉम होम मोड में काम करें . वहीं ऑफिस में महज 50 फीसदी स्‍टाफ को बुलाया जाए.

इससे पूर्व दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जमकर फटकार लगाई थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर जरूरत पड़े तो दो दिन का लॉकडाउन लगा दें.

Last Updated : Nov 19, 2021, 7:01 AM IST

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