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कृषि कानून वापस लेकर मोदी बैकफुट पर आए या यह विधानसभा चुनाव से पहले मास्टरस्ट्रोक है

गुरु नानक जयंती पर कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़े मुद्दे को चुनावी बनने से रोक लिया.इससे पहले किसानों ने 26 नवंबर से प्रदर्शन तेज करने की चेतावनी दी थी. संसद सत्र के दौरान अगर प्रदर्शन गरमाता तो सरकार को काफी नुकसान होना तय था. मगर क्या इससे भाजपा को चुनावों में फायदा होगा ? क्या यह फैसला सिर्फ और सिर्फ चुनाव के कारण लिए गए हैं. क्या है फैसले के पीछे का सच, पढ़ें रिपोर्ट

repeal farm laws
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Published : Nov 19, 2021, 4:44 PM IST

Updated : Nov 19, 2021, 7:17 PM IST

हैदराबाद : दिन- शुक्रवार, तारीख-19 नवंबर 2021, समय-सुबह 9 बजे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया और करीब डेढ़ साल से प्रदर्शन कर रहे किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील की. सात साल के मोदी राज में ऐसा पहली बार हुआ, जब सरकार ने किसी मुद्दे पर अपने कदम पीछे खींच लिए. अपने राजनीतिक इतिहास में नरेंद्र मोदी ने पहली बार अपने फैसले को वापस लिया है.

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कानून वापस लेने की घोषणा के बाद जश्न मनाते किसान.

पीएम मोदी के इस ऐलान का राजनीतिक विश्लेषण में कई बातें सामने आ रही हैं. कई राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि अगले साल 2022 में होने वाले राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया. कई इसे फैसले को नरेंद्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक भी मान रहे हैं, जिससे उन्होंने एक ही झटके में विपक्ष को निहत्था कर दिया. कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल इसे केंद्र की हार बता रहे हैं.

सबसे पहला सवाल, क्या सरकार ने विधानसभा चुनावों के कारण कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया है. अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से तीन राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में किसान आंदोलन की आंच पहुंचने लगी थी. सबसे बड़ी चिंता का विषय उत्तरप्रदेश का था, जहां से दिल्ली की राह खुलती है. 2024 में जीत के लिए 2022 में उत्तरप्रदेश की सत्ता में लौटना जरूरी है.

repeal farm laws
किसान आंदोलन की फाइल फोटो.

पंजाब और वेस्टर्न यूपी में डैमेज कंट्रोल की कोशिश : पंजाब और पश्चिम उत्तरप्रदेश में बीजेपी किसान आंदोलन के कारण पार्टी के जाट वोटर नाराज थे, जो 2014 के बाद भाजपा के पाले में आए थे. 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी की जबरदस्त जीत के पीछे जाट वोटरों की ताकत थी. उनके बिदकने से यूपी में 140 सीट दांव पर लगी थी. पंजाब और यूपी के कई गांवों में भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की एंट्री बंद कर दी गई थी. विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही थी. नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले फिलहाल किसान आंदोलन को काबू में कर लिया है.

सिर्फ चुनावी फैसला नहीं, आंदोलन का असर है : एक्सपर्ट

मगर पॉलिटिकल एक्सपर्ट योगेश मिश्र नरेंद्र मोदी को इस फैसले को सिर्फ चुनाव से जुड़ा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि किसान आंदोलन के दौरान ही बीजेपी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पांडिचेरी का चुनाव लड़ चुकी है. यह फैसला किसानों की मांग को देखते हुए किया गया है. चुनाव भी उनमें से एक कारण हो सकता है. योगेश मिश्र यह भी नहीं मानते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार बैकफुट पर आई है. उन्होंने कृषि बिल वापस लेने के फैसले को सरकार की ओर से किया गया करेक्शन माना है.

  • I had been saying for three months. I had said that the farmers' issue comes first, only then would we have seat adjustment with you: Former Punjab CM & ex-Congress leader Captain Amarinder Singh when asked that what would be his next step, if his party would go with BJP pic.twitter.com/AduYwPGaKF

    — ANI (@ANI) November 19, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पंजाब के राजनीतिक हालात ने भी किया मजबूर : पंजाब में कृषि कानूनों का जबर्दस्त विरोध हुआ. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक मोदी सरकार की ओर से पारित कृषि कानून से नेताओं और आढ़तियों का ग्रुप परेशान था, जो पंजाब में अनाज की खरीद को नियंत्रित करता है. पंजाब में यह धारणा बनाई गई कि नया कृषि कानून गुरुद्वारों की संपत्ति को खत्म कर देगा. गुरुद्वारों की अर्थव्यवस्था, पंजाब की राजनीति और मंडियों में अरबों रुपये के व्यापार ने आंदोलन के दौरान धार्मिक ताना-बाना भी बुना. सरकार का मानना ​​है कि पंजाब में किसान विरोधी कानून आंदोलन को खालिस्तान समर्थक ताकतों ने समर्थन दिया था. यानी समय रहते इसे नियंत्रित नहीं किया जाता तो 1984 से पहले जैसा माहौल भी पंजाब में बन सकता था.

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को 7 फीसद वोट ही मिलते हैं. ऐसे में केंद्र सरकार के सामने और कोई दूसरा रास्ता नहीं था. इसके अलावा अब बीजेपी का अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस से गठबंधन की उम्मीद बढ़ गई है. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, बीजेपी को भले ही पंजाब में फायदा नहीं हो, मगर अब वह कांग्रेस का नुकसान करने का ताकत हासिल कर सकती है.

क्या अगले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को फायदा होगा

अभी विधानसभा चुनाव में करीब 3 महीने का समय है. इन तीन महीनों में सरकार अगर किसानों का विश्वास हासिल कर लेती है तो कृषि कानून वापस लेने का फायदा बीजेपी को मिल सकता है. सरकार ने फैसला लेने में लंबा समय लिया है. इस दौरान 700 किसान मारे गए. योगेश मिश्र का कहना है कि वोट सरकार की नीति और नीयत पर निर्भर है. कानून वापस लेकर सरकार ने अपनी नीति साफ कर दी है, अब संसद के जरिये इसे निरस्त करेगी तो नीयत भी साफ हो जाएगा. अगर किसी कारण संसद में यह कानून निरस्त नहीं होता है तो लोगों का विश्वास कम हो जाएगा.

किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने आंदोलन खत्म करने के लिए सरकार से वार्ता की मांग की है. किसान अब एमएसपी सुनिश्चित करने की मांग कर रहे हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि मोदी सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में साफ किया था कि वह कानून के लाभ के प्रति किसानों को कम्युनिकेट नहीं कर पाए. अगर अब वह किसान नेताओं से बात नहीं करेंगे तो इसका फायदा बीजेपी नहीं बल्कि विपक्ष को मिलेगा, जो किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे थे.

हैदराबाद : दिन- शुक्रवार, तारीख-19 नवंबर 2021, समय-सुबह 9 बजे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया और करीब डेढ़ साल से प्रदर्शन कर रहे किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील की. सात साल के मोदी राज में ऐसा पहली बार हुआ, जब सरकार ने किसी मुद्दे पर अपने कदम पीछे खींच लिए. अपने राजनीतिक इतिहास में नरेंद्र मोदी ने पहली बार अपने फैसले को वापस लिया है.

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कानून वापस लेने की घोषणा के बाद जश्न मनाते किसान.

पीएम मोदी के इस ऐलान का राजनीतिक विश्लेषण में कई बातें सामने आ रही हैं. कई राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि अगले साल 2022 में होने वाले राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया. कई इसे फैसले को नरेंद्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक भी मान रहे हैं, जिससे उन्होंने एक ही झटके में विपक्ष को निहत्था कर दिया. कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल इसे केंद्र की हार बता रहे हैं.

सबसे पहला सवाल, क्या सरकार ने विधानसभा चुनावों के कारण कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया है. अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से तीन राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में किसान आंदोलन की आंच पहुंचने लगी थी. सबसे बड़ी चिंता का विषय उत्तरप्रदेश का था, जहां से दिल्ली की राह खुलती है. 2024 में जीत के लिए 2022 में उत्तरप्रदेश की सत्ता में लौटना जरूरी है.

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किसान आंदोलन की फाइल फोटो.

पंजाब और वेस्टर्न यूपी में डैमेज कंट्रोल की कोशिश : पंजाब और पश्चिम उत्तरप्रदेश में बीजेपी किसान आंदोलन के कारण पार्टी के जाट वोटर नाराज थे, जो 2014 के बाद भाजपा के पाले में आए थे. 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी की जबरदस्त जीत के पीछे जाट वोटरों की ताकत थी. उनके बिदकने से यूपी में 140 सीट दांव पर लगी थी. पंजाब और यूपी के कई गांवों में भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं की एंट्री बंद कर दी गई थी. विपक्ष लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही थी. नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले फिलहाल किसान आंदोलन को काबू में कर लिया है.

सिर्फ चुनावी फैसला नहीं, आंदोलन का असर है : एक्सपर्ट

मगर पॉलिटिकल एक्सपर्ट योगेश मिश्र नरेंद्र मोदी को इस फैसले को सिर्फ चुनाव से जुड़ा नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि किसान आंदोलन के दौरान ही बीजेपी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पांडिचेरी का चुनाव लड़ चुकी है. यह फैसला किसानों की मांग को देखते हुए किया गया है. चुनाव भी उनमें से एक कारण हो सकता है. योगेश मिश्र यह भी नहीं मानते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार बैकफुट पर आई है. उन्होंने कृषि बिल वापस लेने के फैसले को सरकार की ओर से किया गया करेक्शन माना है.

  • I had been saying for three months. I had said that the farmers' issue comes first, only then would we have seat adjustment with you: Former Punjab CM & ex-Congress leader Captain Amarinder Singh when asked that what would be his next step, if his party would go with BJP pic.twitter.com/AduYwPGaKF

    — ANI (@ANI) November 19, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पंजाब के राजनीतिक हालात ने भी किया मजबूर : पंजाब में कृषि कानूनों का जबर्दस्त विरोध हुआ. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक मोदी सरकार की ओर से पारित कृषि कानून से नेताओं और आढ़तियों का ग्रुप परेशान था, जो पंजाब में अनाज की खरीद को नियंत्रित करता है. पंजाब में यह धारणा बनाई गई कि नया कृषि कानून गुरुद्वारों की संपत्ति को खत्म कर देगा. गुरुद्वारों की अर्थव्यवस्था, पंजाब की राजनीति और मंडियों में अरबों रुपये के व्यापार ने आंदोलन के दौरान धार्मिक ताना-बाना भी बुना. सरकार का मानना ​​है कि पंजाब में किसान विरोधी कानून आंदोलन को खालिस्तान समर्थक ताकतों ने समर्थन दिया था. यानी समय रहते इसे नियंत्रित नहीं किया जाता तो 1984 से पहले जैसा माहौल भी पंजाब में बन सकता था.

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी को 7 फीसद वोट ही मिलते हैं. ऐसे में केंद्र सरकार के सामने और कोई दूसरा रास्ता नहीं था. इसके अलावा अब बीजेपी का अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस से गठबंधन की उम्मीद बढ़ गई है. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, बीजेपी को भले ही पंजाब में फायदा नहीं हो, मगर अब वह कांग्रेस का नुकसान करने का ताकत हासिल कर सकती है.

क्या अगले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को फायदा होगा

अभी विधानसभा चुनाव में करीब 3 महीने का समय है. इन तीन महीनों में सरकार अगर किसानों का विश्वास हासिल कर लेती है तो कृषि कानून वापस लेने का फायदा बीजेपी को मिल सकता है. सरकार ने फैसला लेने में लंबा समय लिया है. इस दौरान 700 किसान मारे गए. योगेश मिश्र का कहना है कि वोट सरकार की नीति और नीयत पर निर्भर है. कानून वापस लेकर सरकार ने अपनी नीति साफ कर दी है, अब संसद के जरिये इसे निरस्त करेगी तो नीयत भी साफ हो जाएगा. अगर किसी कारण संसद में यह कानून निरस्त नहीं होता है तो लोगों का विश्वास कम हो जाएगा.

किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे राकेश टिकैत ने आंदोलन खत्म करने के लिए सरकार से वार्ता की मांग की है. किसान अब एमएसपी सुनिश्चित करने की मांग कर रहे हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि मोदी सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में साफ किया था कि वह कानून के लाभ के प्रति किसानों को कम्युनिकेट नहीं कर पाए. अगर अब वह किसान नेताओं से बात नहीं करेंगे तो इसका फायदा बीजेपी नहीं बल्कि विपक्ष को मिलेगा, जो किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे थे.

Last Updated : Nov 19, 2021, 7:17 PM IST
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