आज की प्रेरणा
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जिसके समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित हैं, ऐसे उस ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा भस्म हुये कर्मों वाले पुरुष को ज्ञानीजन पण्डित कहते हैं. कर्म की बारीकियों को समझना अत्यन्त कठिन है. अतः मनुष्य को चाहिए कि वह यह ठीक से जाने कि कर्म क्या है, विकर्म क्या है और अकर्म क्या है. जब कोई उस ज्ञान से प्रबुद्ध होता है, जिससे अविद्या का विनाश होता है, तो उसके ज्ञान से सब कुछ उसी तरह प्रकट हो जाता है, जैसे दिन में सूर्य से सभी वस्तुएँ प्रकाशित हो जाती हैं. जब मनुष्य की बुद्धि, मन, श्रद्धा तथा शरण सब कुछ भगवान् में स्थिर हो जाते हैं, तभी वह पूर्ण ज्ञान द्वारा समस्त भौतिक विकारों से शुद्ध होता है और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है. ज्ञानीजन विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण, तथा गाय, हाथी, कुत्ते में और चाण्डाल में भी सम तत्त्व को देखते हैं. जिनके मन एकत्व तथा समता में स्थित हैं उन्होंने जन्म तथा मृत्यु के बन्धनों को पहले ही जीत लिया है. वे ब्रह्म के समान निर्दोष हैं और सदा ब्रह्म में ही स्थित रहते हैं. जो इन्द्रियों और विषयों के संयोग से पैदा होने वाले भोग (सुख) हैं, वे आदि-अन्त वाले और दुःख के ही कारण हैं. अतः विवेकशील मनुष्य उनमें रमण नहीं करता. जो मनुष्य इसी लोक में शरीर त्यागने के पूर्व ही काम और क्रोध से उत्पन्न हुए वेग को सहन करने में समर्थ है, वह योगी और सुखी मनुष्य है. जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुख वाला, आत्मा में ही आराम वाला तथा आत्मा में ही ज्ञान वाला है, वह योगी ब्रह्मरूप बनकर ब्रह्मनिर्वाण अर्थात परम मोक्ष को प्राप्त होता है. जिनका शरीर मन-बुद्धि-इन्द्रियों सहित वश में है, जो सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रत हैं, जिनके संशय दोष और नष्ट हो गये हैं, वे विवेकी साधक मोक्ष को प्राप्त होते हैं. बालबुद्धि वाले नासमझ लोग सांख्य अर्थात संन्यास और योग को परस्पर भिन्न समझते हैं, किसी एक में भी सम्यक प्रकार से स्थित हुआ पुरुष दोनों के फल को प्राप्त कर लेता है. यहां आपको हर रोज मोटिवेशनल सुविचार पढ़ने को मिलेंगे. जिनसे आपको प्रेरणा मिलेगी.