आज की प्रेरणा - अधर पणा
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परमात्मा समस्त इन्द्रियों के मूल स्त्रोत हैं, फिर भी वे इन्द्रियों से रहित हैं. वे प्रकृति के गुणों के परे हैं, फिर भी वे भौतिक प्रकृति के समस्त गुणों के स्वामी हैं. पंच महाभूत, बुद्धि, दसों इन्द्रियां तथा मन, पांच इन्द्रिय विषय, जीवन के लक्षण तथा धैर्य - इन सब को संक्षेप में कर्म का क्षेत्र तथा उसकी अन्तः क्रियाएं विकार कहा जाता है. परम सत्य जड़ तथा चलायमान समस्त जीवों के बाहर तथा भीतर स्थित हैं. सूक्ष्म होने के कारण वे भौतिक इन्द्रियों के द्वारा जानने या देखने से परे हैं. यद्यपि वे अत्यन्त दूर रहते हैं, किन्तु हम सबों के निकट भी हैं. परमात्मा प्रकाशमान वस्तुओं के प्रकाशस्त्रोत हैं. वे भौतिक अंधकार से परे हैं और अगोचर हैं. वे ज्ञान हैं, ज्ञेय हैं और ज्ञान के लक्ष्य हैं. वे सबके हृदय में स्थित हैं.