Kamlesh D. Patel Exclusive: ध्यान से ही होगी ईश्वर की अनुभूति, बस अभ्यास करते जाइयेः दाजी - Kamlesh D Patel

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Published : Jan 26, 2023, 9:43 AM IST

Updated : Mar 6, 2023, 6:49 PM IST

स्पिरिचुअल जगत की हस्ती कमलेश डी. पटेल को लोग प्यार और आदर से 'दाजी' के नाम से पुकारते हैं. वे हार्टफुलनेस के मार्ग पर चलकर व्यक्तिगत अनुभव द्वारा आत्मानुभूति की शिक्षा देते हैं. इन्हीं सब कामों को देखते हुए बुधवार को भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण अवार्ड देने की घोषणा की है. उनका मानना है कि बच्चों में भटकाव बड़ों के कारण आया है. बच्चे इसके लिए कदापि दोषी नहीं हैं. दाजी इस समय श्रीराम चंद्र मिशन के अध्यक्ष हैं. सहज मार्ग स्प्रिचुअलिटी फाउंडेशन के प्रबंध ट्रस्टी होने के साथ ही हार्टफुलनेस संस्थान, हार्टफुलनेस एजुकेशन ट्रस्ट और ब्राइटर माइंड के फाउंडर हैं. प्रस्तुत है ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर गीतेश्वर प्रसाद सिंह से उनकी विशेष बातचीत के अंश...

प्रश्न- आप नई पीढ़ी को अपनी विचारधारा से जोड़ रहे हैं. उसकी क्या प्रासंगिकता है?

उत्तर- नई पीढ़ी के बारे में बहुत गलतफहमियां हैं. यह पीढ़ी उसी रास्ते पर चलेगी, जिसपर आप और हम चल रहे हैं. आप खुद सेल फोन प्रयोग कर बच्चों से कहोगे कि बेटा यह अच्छी चीज नहीं, तो वह नहीं मानेगा. यह संभव ही नहीं है, क्योंकि आपसे अधिक वो स्मार्ट है. बच्चे की मारल (नैतिकता) और मसल्स (शारीरिक क्षमता) मजबूत करना है, मगर हम अपनी कमियों की वजह से नहीं कर पाते. किसी युवा को कहो कि चल बेटा ध्यान कर लो, तो वो तैयार हो जाएगा. मगर मां-बाप की सोच होती है कि अभी बहुत समय है. रिटायरमेंट के बाद कर लेंगे, तो यह नहीं होगा. चीजों को टालना ठीक नहीं. बुढ़ाने में शारीरिक लचीलापन नहीं रहेगा. इसलिए मैं कहता हूं कि समस्या बड़े हैं, बच्चे नहीं.  

योग में आसन करोगे तो पता चलेगा कि शरीर कितना लचीला हो जाता है. जब हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि यहां वो मंदिर... वहां वो मंदिर...हम जाते हैं तो तू भी चल. कोई वैज्ञानिक अवधारणा नहीं बताते. कई लोग बड़े-बड़े उदाहरण देते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है, तो बच्चा पूछता है कि जब सभी जगह ईश्वर है तो मंदिर क्यों जाएं? तो कुछ लोग उदाहरण देते हैं कि हवा सभी जगह है, मगर पंखा लग जाए तो ज्यादा आती है. इसी तरह मंदिर में अधिक कृपा मिलती है. ऐसा बेमतलब का तर्क देते हैं लोग. आप वहां जाते हो और वही का वही पत्थर होकर आते हो. कोई फर्क तो पड़ा नहीं... मंदिर में मन बदलना चाहिए... मगर ऐसा होता नहीं.  

फिल्मों में देखिये, हीरो- हीरोइन मंदिर की लाइन में लगते हैं. इधर-उधर झांकते-ताकते हैं... जब फिल्मों में है, तो हकीकत में भी होगा. हम चाहते हैं कि ईश्वर के प्रेमी वहां मिल जाते तो अच्छा होता. धर्मग्रंथों में देखिये, मंदिरों का उल्लेख नहीं मिलता. जो अंतर्यामी है, उसे बहिर्यामी कब बना दिया गया?

युवा तो प्रश्न करेगा ही, क्योंकि जिस स्टाइल से वह जीवन जी रहा है, वह विरोधाभाषी है. असलियत को समझने के लिए ध्यान को समझने की जरूरत होगी. श्रद्धा और मान्यता हमारी तपस्या की पूंजी से बनती हैं. केवल 10 से 15 मिनट अभ्यास कीजिए रोज, आपको अनुभूति हो जाएगी. शुरू में केवल श्रद्धा होनी चाहिए, इसी से बाद में भक्ति बढ़ती है.  

प्रश्न- हार्टफुलनेस के बारे में बताइये। क्या यह भारतीय संस्कृति को आगे ले जाने में सहायक है?

उत्तर- बचपन से योग में मेरी रुचि रही है. दिल से मेरे माननीय गुरु रहे स्व. रामकृष्ण परमहंस. बचपन में मैंने उनकी किताब गासपेल (Gospel) पढ़ी. हर पेज पर रोना आता था. ऐसी तड़प हो तो और कुछ नहीं करना पड़ेगा. सुनने के बाद चीजों को लागू करें, तो जीवन में बदलाव आने लगेगा. हमेशा दिल से प्रार्थना करता था कि काश! रामकृष्ण परमहंस जैसे सद्गुरु मिल जाएं. गुरु तो मिल गए और काम भी हो गया अपना.

मैं दुनिया को यही कहना चाहता हूं कि ध्यान करो, इससे आपका काम आसान हो जाएगा. 

मैं थर्ड इयर फार्मेसी की पढ़ाई कर रहा था तो ध्यान शुरू किया. फार्मेसी क्लीयर करने के बाद अमेरिका चला गया और वहां बिजनेस शुरू किया. छात्र होने के नाते क्या और कब पढ़ना है, क्या नहीं पढ़ना है, किससे दोस्ती करनी है, किससे नहीं करनी है, किससे शादी करें, यह सब मूलभूत सवाल थे. ध्यान करने से इनके जवाब मिल जाया करते थे.  

जब हम दिल की सुनते हैं तो परिणाम अच्छा होता है. इस बात का कंफ्यूजन हो सकता है कि जो भाव है वह मन का है या दिल का. तो ध्यान करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह भाव कहां से निकला है. बिजनेस में भी ध्यान बहुत काम आता है. इससे सब कुछ 360 डिग्री पर नजर में आ जाता है. ध्यान खुद को जानने के लिए करते हैं, मगर इसके अन्य फायदे भी हैं.  

प्रश्न- हैदराबाद में हार्टफुलनेस का हेडक्वार्टर है. यह हमारे देश और तेलंगाना राज्य के लिए गर्व की बात है. इस केंद्र के बारे में बताएं.  

उत्तर- यहां खासकर ध्यान के बारे में सिखाते हैं. जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि लोग तड़प उठते हैं, तब ध्यान करने से कैसे राहत दिलाई जाए, इसपर काम होता है. मध्य प्रदेश में भी हमारा केंद्र है. हम नशामुक्ति के लिए भी काम करते हैं. मध्य प्रदेश सरकार के सहयोग से हमने एक पुस्तक लिखी है- Yes, I can do it (हां, हम कर सकते हैं). मतलब नशा को दूर करो.  

खेती के बारे में बताएं तो उसी फसल को उसी खर्च में कैस दोगुना कर सकते हैं. हम ऐसा नहीं कह सकते कि - कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। तू खेती करता रह, पैसा बाद में आएगा... तो कौन करेगा. श्रीकृष्ण भगवान का संदेश गलत ढंग से समझे हैं लोग. कर्म और श्रम दो अलग चीजें हैं. मुंबई जाना एक ध्येय है...फल है... वहां जाने के लिए टिकट लेना पड़ेगा और टिकट के लिए पैसे की जरूरत होगी. तो इसको कर्म कहोगे कि श्रम? श्रम कहेंगे. कर्म का उस जमाने के हिसाब से अर्थ हुआ कि जो कुछ हम करते हैं, ब्रह्म विद्या के लिए करते हैं. हमने तपस्या कर ली और ईश्वर से कहें कि दर्शन होना ही है तो यह शर्त नहीं लगा सकते. उसमें तो शरणागत होना है. इसलिए भगवान कहते हैं कि तपस्या करना तेरा अधिकार है.  

यहां ऐसी चीजें भी हम सिखाते हैं कि राइट अंडरस्टैंडिंग आवर लिटरेचर. लोग पूछते है कि सच्चिदानंद क्या है, तो हम समझाते हैं - सत्यं शिवम सुंदरम. दार्शनिक वार्तालाप होती है. खेती की बातें होती हैं. विज्ञान, रिसर्च और मेडिटेशन की बातें होती हैं कि किस तरह मेडिटेशन आपके जीवन को बदल सकता है.  

प्रश्न- हार्टफुलनेस और इस संस्था की तमाम गतिविधियों से एक नई धार्मिकता का माहौल तैयार हो रहा है. लेकिन अभी भी यह सभी जगह नहीं पहुंचा है. इसे पूरे देश में ले जाने की आपकी क्या योजना है?

उत्तर- पहले तो जागरूकता लानी है. यह ध्यान पद्धति रिवोल्यूशनरी है. यहां सिर्फ बोलना नहीं, बल्कि कुछ करना है और उसकी अनुभूति भी करनी है. लोग कहते हैं कि ईश्वर की कृपा बरसती है. पर क्या किसी ने इस कृपा के बारे में सोची है. हमने केवल किताबों से ही जाना है. अनुभूति किसने की है? वह ध्यान से ही होती है. "वर्ड आफ माउथ" (एक दूसरे से चर्चा कर) से भी प्रचार होता है.  

प्रश्न- लालाजी महाराज की 150वीं जयंती है, उनके बारे में कुछ बताइये.  

उत्तर- लालाजी महाराज का जन्म 1873 में हुआ, बसंत पंचमी के दिन. आठ साल की उम्र में उन्हें भान हुआ कि प्राणाहुति कोई चीज है. इसके बाद उन्होंने मोहल्ले में लोगों पर प्रयोग किए तो काफी लोकप्रिय हुए. दुनिया को उनकी सबसे बड़ी देन है प्राणाहुति. आप पूछेंगे कि प्राणाहुति क्या है तो मेरा साधारण जवाब होगा कि जैसे हम पौष्टिक खाना खाते हैं शरीर के लिए, विचारों का आदान-प्रदान करते हैं मन के लिए, लेकिन आत्मा के पोषण का क्या? जो प्राण को प्राण देता है. यह काम एक योगी ही कर सकता है. ऐसे थे हमारे महायोगी लाला जी.  

प्रश्न- मेडिटेशन और सहज मार्ग सुनने में जितना सहज लगता है, उतना सहज होता नहीं. इसको वास्तव में सहज कैसे बनाएं?

उत्तर- सहज या कठिन, यह खुद पर निर्भर करता है. आपको अनुभव हो गया तो सहज लगेगा. अगर आपकी रुचि नहीं होगी तो आप असहज हो जाएंगे. आपकी रुचि या तड़प जरूरी है सहजता के लिए. आध्यात्मिक भूख होगी तो कठिन नहीं लगेगा.  

प्रश्न- जिस तड़प की बात आप कर रहे हैं, वह सहजता से आती है या उसे जगाया भी जा सकता है?  

उत्तर- तड़प सहज भी है और इसको जगाया भी जा सकता है. आपको तीन- चार दिन धैर्य रखना होगा...लगे रहो मुन्ना भाई की तरह.  

प्रश्न- बच्चों की पसंद की चीजें नहीं मिलती तो वे तनाव में आ जाते हैं. डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. इसके क्या कारण हैं?

उत्तर- आपने स्वयम कहा कि जो चाहिए था वो नहीं मिला, इसलिए डिप्रेशन में आ जाते हैं.  

प्रश्न- इससे बचने के क्या उपाय हैं?

उत्तर- बच्चों को अच्छी समझ देनी है कि जो चाहते हो, वो आज नहीं तो कल मिलेगा. उनसे इतनी अपेक्षा न की जाए कि वे बीमार हो जाएं. कई बार बच्चे इस दबाव में आ जाते हैं कि मां- बाप ने मेरे लिए इतना पैसा खर्च किया. रिजल्ट न मिलने पर वो ग्लानि से भर जाते हैं. तो जितना हो सके उतना ही करो. बच्चों को अपना मित्र समझो. डंडा से सब काम नहीं होगा. पूरी फेमिली एक साथ ध्यान करे तो माहौल ही बदल जाएगा.  

प्रश्न - वो कौन-सी तीन बातें बताना चाहेंगे, जिससे लोगों का जीवन आसान हो.  

उत्तर- मैं जसराज जी की एक बात बताना चाहूंगा. वो म्यूजिक में भारत रत्न थे. उनसे एक मुलाकात में मैंने पूछा कि 90 साल की उम्र में बच्चों को क्या बताना चाहेंगे? तो उन्होंने तीन बातें बताईं.  

  1. मां-बाप की सेवा करो. सिर्फ फर्ज के लिए नहीं, प्रेम से.
  2. गुरु का आदर (गुरु का अर्थ आध्यात्मिक गुरु से है).
  3. अभ्यास.

छात्र होने के नाते जो हम पढ़ रहे हैं, वो नियमित पढ़ें. अभ्यास करें. न सिर्फ विद्यार्थी बल्कि प्रोफेसर के लिए भी यही बात लागू होती है. उसे भी अपने को अपडेट करते रहने के लिए अभ्यास करना होगा. जो ब्रह्मज्ञानी होगा, उसे और सिस्टमैटिक ध्यान करना होगा. जसराज जी 90 वर्ष की उम्र में रोज सुबह 3 से 4 घंटे तक रियाज करते थे.  

प्रश्न- गुरु की बात आती है तो बच्चे गूगल की तरफ भागते हैं. गूगल से निकलकर वो कैसे स्पिरिचुअल गुरु को ढूंढें?

उत्तर- उसके लिए घर में उदाहरण बनना होगा. कई बार बच्चे गूगल से ही जानकर सीखते हैं कि हार्टफुलनेस क्या है.

प्रश्न- अपनी शिक्षाओं का सारांश बताइये.  

उत्तर- सारांश तो बहुत कठिन है. लेकिन हमें ये चीजें याद रखनी चाहिए- नम्रता, सादगी और हृदय की पवित्रता. 

Last Updated : Mar 6, 2023, 6:49 PM IST

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