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राइटर्स क्रैम्प में फिजियोथेरेपी कितनी फायदेमंद? - वजन संबंधी व्यायाम

राइटर्स क्रैम्प, जैसे की नाम से ही पता चलता है की यह एक ऐसी समस्या है, जो ऐसे लोगों से संबंधित है, जिनका ज्यादातर कार्य लेखन से जुड़ा है. दरअसल यह डिसऑर्डर उंगलियों तथा हाथों की मांसपेशियों से जुड़ा है, जो व्यक्ति की उंगलियों की कार्य क्षमता पर तो असर डालता है, वहीं संबंधित मांसपेशियों को भी बीमार करता है. जिससे रोगी को कई बार उंगलियों में दर्द और ऐठन का भी सामना करने पड़ता है.

Writers Cramp
राइटर्स क्रैम्प
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Published : Jan 12, 2021, 10:41 AM IST

राइटर्स क्रैम्प समस्या न्यूरोलोजी तथा ऑर्थोपेडिक दोनों से जुड़ी है. जिसमें हमारी उंगलियों की कार्यक्षमता पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही संबंधित मांसपेशियां भी क्षतिग्रस्त हो जाती है. यहां तक की समस्या गंभीर हो जाने पर चिकित्सक सर्जरी की सलाह देते है. लेकिन जानकार बताते है की यदि समस्या के संज्ञान में आते ही फिजियोथेरेपी चिकित्सा की मदद ली जाए, तो समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. राइटर्स क्रैम्प क्या है तथा क्यों होता है, इस बारे में ETV भारत सुखीभवा को जानकारी देते हुए साइकोथेरेपिस्ट, योग प्रशिक्षक तथा वैकल्पिक चिकित्सा व्यवसायी डॉ. जान्हवी कथरानी ने इस रोग में फिजियोथेरेपी के फायदों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी.

क्या है राइटर्स क्रैम्प डिसऑर्डर?

डॉ. जान्हवी बताती है की राइटर्स क्रैम्प को आम तौर पर फोकल हैंड डिस्टोनिया (एफएचडी) तथा इडीओपेथिक मूवमेंट डिसऑर्डर भी कहा जाता है. यह उंगलियों से लेकड़ हाथों की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, जिससे उंगलियों को काम करने में काफी समस्या होती है. रोग के प्रारंभ में रोगी को उंगलियों तथा कलाई में एक प्रकार की दुर्बलता महसूस होती है. इसके अतिरिक्त रोगी के हाथ में कंपन, दर्द युक्त कंपन तथा कई बार दर्द भरे कड़ेपन के साथ ही उंगलियों के जमने जैसी समस्याएं भी सामने आने लगती है. यहां तक की कई बार रोगी को उंगलियों में अस्थाई पक्षाघात जैसी अवस्था भी महसूस होती है, जो स्क्रीवेनर पालसी कहलाता है.

राइटर्स क्रैम्प तथा फिजियोथेरेपी

राइटर्स क्रैम्प डिसऑर्डर में स्थिति गंभीर होने पर चिकित्सक सर्जरी की सलाह देते है, लेकिन डॉ. जान्हवी बताती है की यदि समस्या की शुरुआत से ही ध्यान दिया जाए तथा फिजियोथेरेपी की मदद ली जाए, तो सर्जरी की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है. फिजियोथेरेपी पद्धती में विभिन्न ट्रीटमेंट के द्वारा रोगी की उंगलियों और कड़ी हो चुकी हाथों की मांसपेशियों को लचीला बनने का प्रयास किया जाता है. साथ ही मांसपेशियों की मजबूती पर भी काम किया जाता है, जिससे ऐठन के दौरे पड़ने पर होने वाले दर्द में कुछ हद तक कमी आ सके. साथ ही हमारी मांसपेशियां ऐठन के दौरान होने वाले दर्द के सहने के काबिल बन सके.

डॉ. जान्हवी बताती है की फिजियोथेरेपी सिर्फ सर्जरी से पहले ही मददगार नहीं होती है, बल्कि सर्जरी के बाद भी मांसपेशियों और अंगों को पुनः पहले जैसी अवस्था में लाने तथा उनके कार्य करने की सामान्य क्षमता को लौटाने में मदद करती है.

राइटर्स क्रैम्प में मददगार फिजियोथेरेपी तकनीक

  • दर्द निवारक साधन

इस रोग में सबसे ज्यादा परेशानी व्यक्ति को ऐंठन के दौरों के दौरान होने वाले तीव्र दर्द से होती है. फिजियोथेरेपी पद्धती में प्रशिक्षित चिकित्सकों के निरीक्षण में पैराफिन वैक्स बाथ, टीईएनएस तथा अल्ट्रासाउन्ड तकनीकों की मदद से ना सिर्फ ऐंठन के दौरान होने वाले दर्द बल्कि उंगलियों में कोई भी कार्य करने व उनके जाम हो जाने की स्थिति में होने वाले दर्द से आराम मिलता है.

  • हाइड्रोथेरेपी

यह तकनीक ना सिर्फ दर्द में राहत दिलाती है, बल्कि कलाई तथा उंगलियों की सख्ती को कम करती है, जिससे उनमें लचीलापन तथा कार्य करने की क्षमता बढ़ती है.

  • कोल्ड पैक प्लेसमेंट थेरेपी

इस पद्धती में आइस पैक, कोल्ड पैक या ठंडे पानी के इस्तेमाल से मांसपेशियों में ऐंठन को आराम देने का प्रयास किया जाता है.

  • व्यवहार परक थेरेपी

इस थेरेपी में मानसिक प्रशिक्षण के साथ ही न्यूरोलोजिकल कार्य-उन्मुख अभ्यास की मदद से लेखनी को सुधारने तथा उंगलियों की कार्य क्षमता को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है.

  • धीरज प्रशिक्षण

इस अभ्यास से उन मांसपेशियों पर कार्य किया जाता है, जो लिखने की क्रिया में मदद करते है. इस ट्रीटमेंट की मदद से अनियंत्रित ऐंठन के दौरों की अवस्था में मांसपेशियों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है.

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण

उंगलियों में शिथिलता की अवस्था में किस प्रकार से कार्य को पूरा किया जाए, इस तकनीक का प्रशिक्षण होना भी रोगी के लिए बहुत जरूरी है. व्यावसायिक प्रशिक्षण में रोगी को समस्या के बावजूद कार्य को पूर्ण करने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है.

  • वजन संबंधी व्यायाम

उंगलियों से लेकर कंधों तक की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए वजन संबंधी व्यायाम काफी फायदा कर सकते है. इन व्यायामों से जहां मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका कम होती है, वहीं दर्द या ऐंठन का असर तथा प्रभाव भी कम होता है.

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. जान्हवी कथरानी से jk.swasthya108@gmail.com ईमेल पर संपर्क किया जा सकता है.

राइटर्स क्रैम्प समस्या न्यूरोलोजी तथा ऑर्थोपेडिक दोनों से जुड़ी है. जिसमें हमारी उंगलियों की कार्यक्षमता पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही संबंधित मांसपेशियां भी क्षतिग्रस्त हो जाती है. यहां तक की समस्या गंभीर हो जाने पर चिकित्सक सर्जरी की सलाह देते है. लेकिन जानकार बताते है की यदि समस्या के संज्ञान में आते ही फिजियोथेरेपी चिकित्सा की मदद ली जाए, तो समस्या को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. राइटर्स क्रैम्प क्या है तथा क्यों होता है, इस बारे में ETV भारत सुखीभवा को जानकारी देते हुए साइकोथेरेपिस्ट, योग प्रशिक्षक तथा वैकल्पिक चिकित्सा व्यवसायी डॉ. जान्हवी कथरानी ने इस रोग में फिजियोथेरेपी के फायदों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी.

क्या है राइटर्स क्रैम्प डिसऑर्डर?

डॉ. जान्हवी बताती है की राइटर्स क्रैम्प को आम तौर पर फोकल हैंड डिस्टोनिया (एफएचडी) तथा इडीओपेथिक मूवमेंट डिसऑर्डर भी कहा जाता है. यह उंगलियों से लेकड़ हाथों की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, जिससे उंगलियों को काम करने में काफी समस्या होती है. रोग के प्रारंभ में रोगी को उंगलियों तथा कलाई में एक प्रकार की दुर्बलता महसूस होती है. इसके अतिरिक्त रोगी के हाथ में कंपन, दर्द युक्त कंपन तथा कई बार दर्द भरे कड़ेपन के साथ ही उंगलियों के जमने जैसी समस्याएं भी सामने आने लगती है. यहां तक की कई बार रोगी को उंगलियों में अस्थाई पक्षाघात जैसी अवस्था भी महसूस होती है, जो स्क्रीवेनर पालसी कहलाता है.

राइटर्स क्रैम्प तथा फिजियोथेरेपी

राइटर्स क्रैम्प डिसऑर्डर में स्थिति गंभीर होने पर चिकित्सक सर्जरी की सलाह देते है, लेकिन डॉ. जान्हवी बताती है की यदि समस्या की शुरुआत से ही ध्यान दिया जाए तथा फिजियोथेरेपी की मदद ली जाए, तो सर्जरी की आशंका को काफी हद तक कम किया जा सकता है. फिजियोथेरेपी पद्धती में विभिन्न ट्रीटमेंट के द्वारा रोगी की उंगलियों और कड़ी हो चुकी हाथों की मांसपेशियों को लचीला बनने का प्रयास किया जाता है. साथ ही मांसपेशियों की मजबूती पर भी काम किया जाता है, जिससे ऐठन के दौरे पड़ने पर होने वाले दर्द में कुछ हद तक कमी आ सके. साथ ही हमारी मांसपेशियां ऐठन के दौरान होने वाले दर्द के सहने के काबिल बन सके.

डॉ. जान्हवी बताती है की फिजियोथेरेपी सिर्फ सर्जरी से पहले ही मददगार नहीं होती है, बल्कि सर्जरी के बाद भी मांसपेशियों और अंगों को पुनः पहले जैसी अवस्था में लाने तथा उनके कार्य करने की सामान्य क्षमता को लौटाने में मदद करती है.

राइटर्स क्रैम्प में मददगार फिजियोथेरेपी तकनीक

  • दर्द निवारक साधन

इस रोग में सबसे ज्यादा परेशानी व्यक्ति को ऐंठन के दौरों के दौरान होने वाले तीव्र दर्द से होती है. फिजियोथेरेपी पद्धती में प्रशिक्षित चिकित्सकों के निरीक्षण में पैराफिन वैक्स बाथ, टीईएनएस तथा अल्ट्रासाउन्ड तकनीकों की मदद से ना सिर्फ ऐंठन के दौरान होने वाले दर्द बल्कि उंगलियों में कोई भी कार्य करने व उनके जाम हो जाने की स्थिति में होने वाले दर्द से आराम मिलता है.

  • हाइड्रोथेरेपी

यह तकनीक ना सिर्फ दर्द में राहत दिलाती है, बल्कि कलाई तथा उंगलियों की सख्ती को कम करती है, जिससे उनमें लचीलापन तथा कार्य करने की क्षमता बढ़ती है.

  • कोल्ड पैक प्लेसमेंट थेरेपी

इस पद्धती में आइस पैक, कोल्ड पैक या ठंडे पानी के इस्तेमाल से मांसपेशियों में ऐंठन को आराम देने का प्रयास किया जाता है.

  • व्यवहार परक थेरेपी

इस थेरेपी में मानसिक प्रशिक्षण के साथ ही न्यूरोलोजिकल कार्य-उन्मुख अभ्यास की मदद से लेखनी को सुधारने तथा उंगलियों की कार्य क्षमता को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है.

  • धीरज प्रशिक्षण

इस अभ्यास से उन मांसपेशियों पर कार्य किया जाता है, जो लिखने की क्रिया में मदद करते है. इस ट्रीटमेंट की मदद से अनियंत्रित ऐंठन के दौरों की अवस्था में मांसपेशियों को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है.

  • व्यावसायिक प्रशिक्षण

उंगलियों में शिथिलता की अवस्था में किस प्रकार से कार्य को पूरा किया जाए, इस तकनीक का प्रशिक्षण होना भी रोगी के लिए बहुत जरूरी है. व्यावसायिक प्रशिक्षण में रोगी को समस्या के बावजूद कार्य को पूर्ण करने के तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है.

  • वजन संबंधी व्यायाम

उंगलियों से लेकर कंधों तक की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए वजन संबंधी व्यायाम काफी फायदा कर सकते है. इन व्यायामों से जहां मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका कम होती है, वहीं दर्द या ऐंठन का असर तथा प्रभाव भी कम होता है.

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. जान्हवी कथरानी से jk.swasthya108@gmail.com ईमेल पर संपर्क किया जा सकता है.

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