कहीं आपको कमर, गर्दन, घुटने या शरीर के किसी भी हिस्से में हड्डियों में दर्द महसूस होता है? यदि हां, तो यह चिंता की बात है क्योंकि आप ऑस्टियोपोरोसिस के शिकार हो सकते हैं. ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों से जुड़ा एक ऐसा रोग है, जो हड्डियों को कमजोर कर देता है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा काफी बढ़ जाता है. ऑस्टियोपोरोसिस की एक बड़ी वजह खान-पान और व्यायाम के प्रति लापरवाही को भी माना जाता है. हड्डी रोग के पीड़ितों तथा आमजन तक ऑस्टियोपोरोसिस को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 20 अक्टूबर को 'विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस' मनाया जाता है.
साधारण बीमारी नहीं है ऑस्टियोपोरोसिस
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी (डब्ल्यूएचओ)के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में हृदय रोग के बाद दूसरे स्थान पर आ चुका है. लेकिन भारत में इसके रोगियों की संख्या अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा आंकी गई है. आंकड़ों की माने तो भारत में इस समय लगभग तीन करोड़ लोग ऑस्टियोपोरोसिस के शिकार हैं. महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का असर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखने को मिलता है. अनुमान है कि भारत में हर आठ में से एक पुरुष और हर तीन में एक महिला ऑस्टियोपोरोसिस की शिकार है. आमतौर पर 30 से 60 वर्ष के लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं. पहले इस बीमारी के लक्षण 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में देखने को मिलते थे. अब ये 30 साल से भी कम उम्र के युवकों में भी देखने को मिलते हैं.
विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस का इतिहास
यूनाइटेड किंगडम की नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस सोसायटी द्वारा 20 अक्टूबर 1996 को विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस की शुरुआत की गई थी. जिसका समर्थन यूरोपियन आयोग ने किया था. जिसके उपरांत अंतर्राष्ट्रीय ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन द्वारा हर साल इस विशेष दिवस का आयोजन किया जाता है. विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस को 'ऑस्टियोपोरोसिस मेटाबॉलिक बोन डिजीज' के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक साल तक चलने वाले अभियान के रूप में भी जाना जाता है.
ऑस्टियोपोरोसिस के कारण
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां काफी कमजोर हो जाती है. जैसे-जैसे मनुष्य की उम्र बढ़ती है, इस बीमारी के पीड़ितों के शरीर में उतनी कोशिकाओं का निर्माण नहीं होता है,जितनी संख्या में उनका विनाश होता है. ऊपर से यदि हड्डियों के लिए पोषक तत्व जैसे कि कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन डी और खनिज पदार्थों की शरीर में कमी हो जाए, तो हड्डियों का क्षय तेजी से होने लगता है. चिकित्सकों के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस के मुख्य कारण इस प्रकार हैं.
- आलस भरी जीवनशैली
- खाने की अस्वस्थ आदतें
- नियमित तौर पर व्यायाम ना करना
- नशीले पदार्थों का सेवन तथा धूम्रपान करना
- भोजन में मिलावट तथा कम उम्र में मधुमेह रोग का होना
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण
ऑस्टियोपोरोसिस रोग के शुरुआती दौर में मरीज में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है. इसका पता तब चलता है, जब कूल्हे, रीढ़ की हड्डी या कलाई में दर्द होने लगता है तथा हड्डियां कमजोर होकर टूटने लगती हैं. कुछ खास लक्षणों के आधार पर ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में पता लगाया जा सकता है.
- मसूड़ों का ढीलापन: ऑस्टियोपोरोसिस में मसूड़े ढीले तथा दांत कमजोर हो जाते हैं. इसमें जबड़े की हड्डी का घनत्व कम हो जाता है.
- पकड़ने की क्षमता में कमी: चिकित्सकों के अनुसार इस रोग में हाथों की हड्डियों तथा मांसपेशियों में कमजोरी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि वह सरलता से चीजों को पकड़ तथा उठा नहीं पाते है.
- नाखूनों की कमजोरी: नाखूनों के कमजोर होने से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि हड्डियों का घनत्व कम हो रहा है.
- लंबाई का कम होना: रीढ़ की हड्डी जब संकुचित हो जाती है, तो व्यक्ति की लंबाई में मामूली कमी हो जाती है. जब आपकी लंबाई थोड़ी सी भी कम हो जाए, तो सावधान हो जाएं और तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें.
- फ्रैक्चर: हड्डियों का कमजोर होकर टूटना इस रोग का सबसे बड़ा लक्षण है. गंभीर ऑस्टियोपोरोसिस होने पर बहुत ही आसानी से फ्रैक्चर हो जाता है. स्थिति बिगड़ने पर कई बार हड्डी के टूटने का खतरा होता है.
इन लक्षणों के अलावा लगातार कमर में दर्द, शरीर में थकावट, किसी भी काम को करने में परेशानी होना तथा हाथ पांव में दर्द जैसे लक्षण भी ऑस्टियोपोरोसिस के दौरान नजर आते हैं.
ऑस्टियोपोरोसिस से बचने के उपाय
ऑस्टियोपोरोसिस रोग से बचने के लिए जरूरी है कि नियमित तौर पर कैल्शियम, विटामिन डी, मिनरल्स तथा प्रोटीन युक्त पौष्टिक आहार का सेवन किया जाए. पनीर, रागी, पत्तेदार सब्जियां, बादाम, दूध, टमाटर, अंजीर, ब्रोकली, तिल, दही, संतरा, आंवला, सोयाबीन आदि लें. जंग फूड तथा डिब्बाबंद प्रिजर्व्ड आहार खाने से बचें. आहार में मैग्नीशियम का भी ध्यान रखें. विटामिन डी की पूर्ति के लिए मछली, डेयरी उत्पाद, गाजर, दलिया आदि लें.