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अवसाद का कारण बन सकता है कार्यस्थल पर तनाव - how can stress lead to depression

कार्यस्थल पर विभिन्न कारणों से होने वाला तनाव आज के दौर में आम बात मानी जाती है. लेकिन यह तनाव यदि जरूरत से ज्यादा बढ़ जाये तो पीड़ित के मानसिक, शारीरिक और व्यवहारिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है.

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अवसाद
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Published : Oct 15, 2021, 12:43 PM IST

आमतौर पर ज्यादातर नौकरी पेशा लोग अपने कार्यस्थल पर डेडलाइन, बॉस के व्यवहार या अन्य कारणों से उत्पन्न तनाव और दबाव का सामना करते हैं. यह तनाव या दबाव जरूरत से ज्यादा बढ़ जाने पर कई बार लोगों में अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न करने लगता है, जिससे पीड़ित की कार्य क्षमता, उसकी कार्य करने की इच्छा और उसका पारिवारिक व सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है.

काउंसलर, पूर्व व्याख्याता तथा मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका शर्मा (पी.एच.डी) बताती हैं कि कार्यस्थल पर कुछ प्रतिशत तक का दबाव हमारी कार्यक्षमता, मन में प्रतियोगिता की भावना, सफलता पाने की चाह उत्पन्न करने के साथ ही परफॉर्मेंस को भी बेहतर करता है. लेकिन यदि अलग-अलग कारणों से व्यक्ति ऑफिस में ज्यादा तनाव महसूस करने लगे तो उसके व्यावसायिक जीवन के साथ ही उसका पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होने लगता है. हद से ज्यादा तनाव व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है जिससे उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन , खीज और गुस्सा बढ़ जाता है तथा चीजों को लेकर उदासीन रवैया तथा सामाजिक जीवन में ज्यादा ना घुलने-मिलने वाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है. इसका असर उसके निकटतम रिश्तों जैसे माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी या पति , तथा बच्चों के साथ संबंधों पर भी पड़ता है.

कार्यस्थल पर तनाव को बढ़ाने वाले तथ्य

  • कार्य का बोझ तथा डेडलाइन की चिंता

वर्तमान समय में सरकारी तथा निजी दोनों प्रकार के कार्यालयों में कम से कम लोगों से ज्यादा से ज्यादा काम लेने का प्रयास किया जाता है. जिसके चलते व्यक्ति कभी ना खत्म होने वाली जिम्मेदारी तथा अत्यधिक कार्य के कारण हद से ज्यादा दबाव महसूस करने लगता है. ज्यादा कार्य के चलते उसके कार्य करने या कार्यालय में रहने की समय की अवधि भी बढ़ जाती है जो उसके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है.

  • नौकरी में असुरक्षा की भावना

विशेष तौर पर निजी सेक्टर में नौकरी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती है. इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा के चलते, तथा संगठन द्वारा लागत में कटौती की रणनीति के चलते बहुत जल्दी-जल्दी कर्मचारियों की छटनी होती रहती है, जिससे कार्यस्थल पर नौकरी के स्थाई होने को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है.

  • अपर्याप्त वेतन

लगातार बढ़ती महंगाई, स्कूलों की बहुत ज्यादा फीस, तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के भी महंगे होने के कारण सीमित वेतन वाले व्यक्ति की जेब पर काफी असर पड़ता है. उस पर जब कार्यालय में व्यक्ति हद से ज्यादा कार्य करता है और उसे उसके अनुरूप पर्याप्त वेतन नहीं मिल पाता है तो उसमें कुंठा बढ़ने लगती है.

  • पसंदीदा कार्य ना कर पाना

घर तथा जीवन दोनों चलाने के लिए पैसा बहुत जरूरी है जिसके चलते कई बार व्यक्ति वह नौकरी भी करता है जिसे करने में उसकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती है. ऐसे में उसकी नौकरी उसकी आय का साधन तो होती है लेकिन उसे किसी प्रकार की मानसिक संतुष्टि प्रदान नहीं करती है. बगैर मन के लगातार कार्य करने पर भी लोग तनावग्रस्त या उदासी महसूस करने लगते हैं.

कैसे करें तनाव प्रबंधन

डॉक्टर रेणुका शर्मा बताती हैं कि तनाव बंधन के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कौन से तथ्य हैं जो तनाव का कारण बन रहे हैं. क्योंकि कई बार हम यह तो जानते हैं कि हम तनावग्रस्त हैं लेकिन उसके स्रोत या स्पष्ट कारणों लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं. ऐसे में अपनी समस्याओं और परेशानियों को लिखने से उन्हें समझने में काफी सरलता होती है.

तनाव की मूल कारणों को जानने के बाद उन्हें दूर करने के लिए प्रयास किया जाना जरूरी हो जाता है. यदि पीड़ित को लगता है कि वह स्वयं अपने स्तर से तनाव का प्रबंधन करने में असमर्थ है तो उसे चिकित्सीय परामर्श या बाहरी मदद लेनी चाहिए. कई बार बहुत सी ऐसी समस्याएं होती हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते हैं लेकिन यदि उन्हें लेकर हम अपने दृष्टिकोण में थोड़ा सा परिवर्तन करें और एक नई सोच के साथ उन समस्याओं को हल करने का प्रयास करें तो कार्यस्थल पर मानसिक दबाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

कार्यस्थल के तनाव को कम करने के लिए हमें अपनी सोच, व्यवहार तथा जीवन शैली सभी को अनुशासित और प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए निम्नलिखित आदतों को अपनाया जा सकता है.

  • दिनचर्या को अनुशासित करें.
  • ना सिर्फ कार्यस्थल बल्कि घर के कार्यों को पूरा करने के लिए समय सारणी यानी टाइम शेड्यूल बनाएं. जिससे आप निर्धारित समय में अपना कार्य पूरा कर पाएंगे.
  • घर हो या कार्यालय अपनी जीवन तथा कार्य की प्राथमिकताओं को तय करें तथा उनके अनुसार योजना बनाकर अपने कार्य को पूरा करें.
  • प्रयास करें कि अपने कार्यस्थल का दबाव, तनाव या गुस्से को किसी भी रूप में अपने परिजनों पर ना निकाले. इससे घर का माहौल बिगड़ता है और तनाव और ज्यादा बढ़ जाता है.
  • प्रयास करें कि हमारी नित्य क्रियाएं जैसे सोना या भोजन संतुलित और सीमित मात्रा में हो यानी शरीर की जरूरत के अनुसार नींद और भोजन ग्रहण करें.
  • योग तथा व्यायाम भी हमारे तनाव को कम करने में काफी मददगार हो सकते हैं. इसलिए प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट का समय योग या व्यायाम के लिए निर्धारित करें. प्रतिदिन 30 मिनट की कसरत हमारे शरीर में एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ाकर तनाव में राहत महसूस करा सकती है.
  • प्रतिदिन कार्य के बीच में कुछ मिनटों के लिए ही सही लेकिन अंतराल यानी ब्रेक लेते रहें.
  • कार्यालय में अपने स्तर से माहौल को खुशनुमा बनाने का प्रयास करें. सोच बदलने का प्रयास करें और सभी समस्याओं के सकारात्मक पहलुओं को देखने और दूसरों के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करें. आपका एक प्रयास ना सिर्फ आपके और आपके सहयोगीयों के बीच के संबंध को बेहतर करेगा बल्कि कार्यस्थल के माहौल को हल्का करेगा.
  • सिर्फ अपने वरिष्ठ अधिकारियों बल्कि जूनियर कर्मचारियों के साथ भी नियमित संवाद बनाए रखें. यदि किसी बात या तथ्य को लेकर आपके मन में शंका हो तो उनके साथ उन विषयों पर खुलकर चर्चा करने का प्रयास करें. यदि आप के बीच आपसी संवाद अच्छा होगा तो दोनों पक्ष एक दूसरे के दृष्टिकोण को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाएंगे और काम का दबाव आपकी मानसिक स्वास्थ्य पर कम नकारात्मक प्रभाव डालेगा.

पढ़ें: मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है संगीत चिकित्सा

आमतौर पर ज्यादातर नौकरी पेशा लोग अपने कार्यस्थल पर डेडलाइन, बॉस के व्यवहार या अन्य कारणों से उत्पन्न तनाव और दबाव का सामना करते हैं. यह तनाव या दबाव जरूरत से ज्यादा बढ़ जाने पर कई बार लोगों में अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न करने लगता है, जिससे पीड़ित की कार्य क्षमता, उसकी कार्य करने की इच्छा और उसका पारिवारिक व सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है.

काउंसलर, पूर्व व्याख्याता तथा मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका शर्मा (पी.एच.डी) बताती हैं कि कार्यस्थल पर कुछ प्रतिशत तक का दबाव हमारी कार्यक्षमता, मन में प्रतियोगिता की भावना, सफलता पाने की चाह उत्पन्न करने के साथ ही परफॉर्मेंस को भी बेहतर करता है. लेकिन यदि अलग-अलग कारणों से व्यक्ति ऑफिस में ज्यादा तनाव महसूस करने लगे तो उसके व्यावसायिक जीवन के साथ ही उसका पारिवारिक जीवन भी प्रभावित होने लगता है. हद से ज्यादा तनाव व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है जिससे उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन , खीज और गुस्सा बढ़ जाता है तथा चीजों को लेकर उदासीन रवैया तथा सामाजिक जीवन में ज्यादा ना घुलने-मिलने वाली प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है. इसका असर उसके निकटतम रिश्तों जैसे माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी या पति , तथा बच्चों के साथ संबंधों पर भी पड़ता है.

कार्यस्थल पर तनाव को बढ़ाने वाले तथ्य

  • कार्य का बोझ तथा डेडलाइन की चिंता

वर्तमान समय में सरकारी तथा निजी दोनों प्रकार के कार्यालयों में कम से कम लोगों से ज्यादा से ज्यादा काम लेने का प्रयास किया जाता है. जिसके चलते व्यक्ति कभी ना खत्म होने वाली जिम्मेदारी तथा अत्यधिक कार्य के कारण हद से ज्यादा दबाव महसूस करने लगता है. ज्यादा कार्य के चलते उसके कार्य करने या कार्यालय में रहने की समय की अवधि भी बढ़ जाती है जो उसके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है.

  • नौकरी में असुरक्षा की भावना

विशेष तौर पर निजी सेक्टर में नौकरी की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती है. इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा के चलते, तथा संगठन द्वारा लागत में कटौती की रणनीति के चलते बहुत जल्दी-जल्दी कर्मचारियों की छटनी होती रहती है, जिससे कार्यस्थल पर नौकरी के स्थाई होने को लेकर अनिश्चितता बनी रहती है.

  • अपर्याप्त वेतन

लगातार बढ़ती महंगाई, स्कूलों की बहुत ज्यादा फीस, तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के भी महंगे होने के कारण सीमित वेतन वाले व्यक्ति की जेब पर काफी असर पड़ता है. उस पर जब कार्यालय में व्यक्ति हद से ज्यादा कार्य करता है और उसे उसके अनुरूप पर्याप्त वेतन नहीं मिल पाता है तो उसमें कुंठा बढ़ने लगती है.

  • पसंदीदा कार्य ना कर पाना

घर तथा जीवन दोनों चलाने के लिए पैसा बहुत जरूरी है जिसके चलते कई बार व्यक्ति वह नौकरी भी करता है जिसे करने में उसकी ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती है. ऐसे में उसकी नौकरी उसकी आय का साधन तो होती है लेकिन उसे किसी प्रकार की मानसिक संतुष्टि प्रदान नहीं करती है. बगैर मन के लगातार कार्य करने पर भी लोग तनावग्रस्त या उदासी महसूस करने लगते हैं.

कैसे करें तनाव प्रबंधन

डॉक्टर रेणुका शर्मा बताती हैं कि तनाव बंधन के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि कौन से तथ्य हैं जो तनाव का कारण बन रहे हैं. क्योंकि कई बार हम यह तो जानते हैं कि हम तनावग्रस्त हैं लेकिन उसके स्रोत या स्पष्ट कारणों लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं. ऐसे में अपनी समस्याओं और परेशानियों को लिखने से उन्हें समझने में काफी सरलता होती है.

तनाव की मूल कारणों को जानने के बाद उन्हें दूर करने के लिए प्रयास किया जाना जरूरी हो जाता है. यदि पीड़ित को लगता है कि वह स्वयं अपने स्तर से तनाव का प्रबंधन करने में असमर्थ है तो उसे चिकित्सीय परामर्श या बाहरी मदद लेनी चाहिए. कई बार बहुत सी ऐसी समस्याएं होती हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते हैं लेकिन यदि उन्हें लेकर हम अपने दृष्टिकोण में थोड़ा सा परिवर्तन करें और एक नई सोच के साथ उन समस्याओं को हल करने का प्रयास करें तो कार्यस्थल पर मानसिक दबाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

कार्यस्थल के तनाव को कम करने के लिए हमें अपनी सोच, व्यवहार तथा जीवन शैली सभी को अनुशासित और प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए निम्नलिखित आदतों को अपनाया जा सकता है.

  • दिनचर्या को अनुशासित करें.
  • ना सिर्फ कार्यस्थल बल्कि घर के कार्यों को पूरा करने के लिए समय सारणी यानी टाइम शेड्यूल बनाएं. जिससे आप निर्धारित समय में अपना कार्य पूरा कर पाएंगे.
  • घर हो या कार्यालय अपनी जीवन तथा कार्य की प्राथमिकताओं को तय करें तथा उनके अनुसार योजना बनाकर अपने कार्य को पूरा करें.
  • प्रयास करें कि अपने कार्यस्थल का दबाव, तनाव या गुस्से को किसी भी रूप में अपने परिजनों पर ना निकाले. इससे घर का माहौल बिगड़ता है और तनाव और ज्यादा बढ़ जाता है.
  • प्रयास करें कि हमारी नित्य क्रियाएं जैसे सोना या भोजन संतुलित और सीमित मात्रा में हो यानी शरीर की जरूरत के अनुसार नींद और भोजन ग्रहण करें.
  • योग तथा व्यायाम भी हमारे तनाव को कम करने में काफी मददगार हो सकते हैं. इसलिए प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट का समय योग या व्यायाम के लिए निर्धारित करें. प्रतिदिन 30 मिनट की कसरत हमारे शरीर में एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ाकर तनाव में राहत महसूस करा सकती है.
  • प्रतिदिन कार्य के बीच में कुछ मिनटों के लिए ही सही लेकिन अंतराल यानी ब्रेक लेते रहें.
  • कार्यालय में अपने स्तर से माहौल को खुशनुमा बनाने का प्रयास करें. सोच बदलने का प्रयास करें और सभी समस्याओं के सकारात्मक पहलुओं को देखने और दूसरों के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करें. आपका एक प्रयास ना सिर्फ आपके और आपके सहयोगीयों के बीच के संबंध को बेहतर करेगा बल्कि कार्यस्थल के माहौल को हल्का करेगा.
  • सिर्फ अपने वरिष्ठ अधिकारियों बल्कि जूनियर कर्मचारियों के साथ भी नियमित संवाद बनाए रखें. यदि किसी बात या तथ्य को लेकर आपके मन में शंका हो तो उनके साथ उन विषयों पर खुलकर चर्चा करने का प्रयास करें. यदि आप के बीच आपसी संवाद अच्छा होगा तो दोनों पक्ष एक दूसरे के दृष्टिकोण को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाएंगे और काम का दबाव आपकी मानसिक स्वास्थ्य पर कम नकारात्मक प्रभाव डालेगा.

पढ़ें: मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है संगीत चिकित्सा

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