ETV Bharat / sukhibhava

स्वीटनर्स के इस्तेमाल से बढ़ता है कई तरह के कैंसर का खतरा: शोध

कृत्रिम स्वीटनर्स और उनके सेवन का आकलन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को एक खाद्य डायरी रखने के लिए कहा. लगभग आधे प्रतिभागियों ने आठ वर्षों से अधिक समय तक इसका पालन किया. अध्ययन में बताया गया कि विशेष रूप से एस्पार्टेम और एसेसल्फेम के, कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े थे. इसमें विशेष रूप से स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर मुख्य रूप से शामिल थे.

can sweeteners increase risk of cance
स्वीटनर्स से बढ़ता है कैंसर का खतरा
author img

By

Published : Apr 1, 2022, 7:27 AM IST

बर्मिंघम: भले ही स्वीटनर्स, आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके हों लेकिन इन्हें लंबे समय से हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब बताया जाता रहा है. जेम्स ब्राउन एसोसिएट प्रोफेसर इन बायोलॉजी एंड बायोमेडिकल साइंस, एस्टन यूनिवर्सिटी के अध्ययनों ने बहुत अधिक स्वीटनर्स के सेवन को मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग जैसी गंभीर स्थितियों से जोड़ा है. लेकिन इस दिशा में कैंसर के साथ संबंध कम निश्चित रहे हैं. साइक्लामेट के नाम से जाना जाने वाला आर्टिफिशियल स्वीटनर को 1970 के दशक में अमेरिका में बेचा जाता था. लेकिन शोध में यह चूहों में मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया था. हालांकि, मानव शरीर क्रिया विज्ञान चूहों से बहुत अलग है और शोध मनुष्यों में स्वीटनर और कैंसर के जोखिम के बीच एक संबंध खोजने में विफल रहे हैं. लेकिन हाल ही में इसे लेकर एक नया शोध सामने आया है.

पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो लोग कुछ स्वीटनर्स का ज्यादा सेवन करते हैं, उनमें कुछ प्रकार के कैंसर के विकास के जोखिम में थोड़ी वृद्धि(Use of sweeteners can increase the risk of cancer) होती है. इस शोध में 100,000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया था. एक कृत्रिम स्वीटनर, जिसे साइक्लामेट कहा जाता है, जिसे 1970 के दशक में अमेरिका में बेचा गया था, चूहों में मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया था. हालांकि, मानव शरीर क्रिया विज्ञान चूहों से बहुत अलग है, और अवलोकन संबंधी अध्ययन मनुष्यों में स्वीटनर और कैंसर के जोखिम के बीच एक संबंध खोजने में विफल रहे हैं. कृत्रिम स्वीटनर्स और उनके सेवन का आकलन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को एक खाद्य डायरी रखने के लिए कहा. लगभग आधे प्रतिभागियों ने आठ वर्षों से अधिक समय तक इसका पालन किया. अध्ययन में बताया गया कि विशेष रूप से एस्पार्टेम और एसेसल्फेम के, कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े थे. इसमें विशेष रूप से स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर मुख्य रूप से शामिल थे.

कई आम खाद्य पदार्थों की मिठास, इस प्रकार के कैंसर का खतरा होती है. ये खाद्य योजक हमारे टेस्ट रिसेप्टर्स पर चीनी के प्रभाव की नकल करते हैं, जो बिना या बहुत कम कैलोरी के साथ तीव्र मिठास प्रदान करते हैं. इसमें कुछ मिठास स्वाभाविक रूप से होती है (जैसे स्टीविया या याकॉन सिरप) एवं अन्य, जैसे कि एस्पार्टेम, कृत्रिम स्वीटनर हैं. हालांकि इनमें कैलोरी कम या ना के बराबर होती है लेकिन फिर भी यह मिठास हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है. उदाहरण के लिए, जब शरीर इसे पचाता है तो एस्पार्टेम फॉर्मलाडेहाइड (एक ज्ञात कार्सिनोजेन) में बदल जाता है. यह संभावित रूप से देखा जा सकता है कि यह कोशिकाओं में जमा हो जाता है और उनमें कैंसर का कारण बनता है. हमारी कोशिकाएं कैंसर होने पर स्वयं को नष्ट करने के लिए अभ्यस्त होती हैं. लेकिन एस्पार्टेम कैंसर कोशिकाओं को ऐसा करने के लिए कहने वाले जीन को 'बंद' कर देता है.

यह देखा गया कि सुक्रालोज और सैकरीन सहित अन्य स्वीटनर्स भी डीएनए को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे कैंसर हो सकता है. इसकी मिठास हमारी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया पर भी गहरा प्रभाव डाल सकती है. इससे आंत में बैक्टीरिया को बदलने से प्रतिरक्षा प्रणाली खराब हो सकती है, जिसका अर्थ यह होता है कि वे कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन्हें हटाने में सक्षम नहीं रह जाते हैं. लेकिन यह अभी भी जानवरों और कोशिका-आधारित प्रयोगों से स्पष्ट नहीं है कि कैसे स्वीटनर्स कोशिकाओं में कैंसर के परिवर्तनों की शुरुआत या समर्थन करते हैं. इनमें से कई प्रयोग मनुष्यों पर लागू करना भी मुश्किल होगा क्योंकि स्वीटनर की जो मात्रा दी गई थी, वह इंसानों के उपभोग की मात्रा से कहीं अधिक थी.

वहीं पिछले शोध अध्ययनों के परिणाम सीमित हैं, क्योंकि इस विषय पर अधिकांश अध्ययनों में मिठास के सेवन के प्रभाव को तो बताया है, लेकिन इसका सेवन नहीं करने वालों से तुलना नहीं की गई है. हाल ही में लगभग 600,000 प्रतिभागियों की एक व्यवस्थित समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात के सीमित सुबूत हैं कि कृत्रिम मिठास की भारी खपत कुछ कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं. बीएमजे में एक समीक्षा में भी इसी तरह के निष्कर्ष निकाले गए. हालांकि, इस हालिया अध्ययन के निष्कर्ष निश्चित रूप से आगे के शोध की गारंटी देते हैं, लेकिन अध्ययन की सीमाओं को स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है.

सबसे पहले, खाद्य डायरी अविश्वसनीय हो सकती हैं क्योंकि लोग जो खाते हैं उसके बारे में हमेशा ईमानदार नहीं होते हैं या वे भूल सकते हैं कि उन्होंने क्या खाया है. हालांकि इस अध्ययन ने हर छह महीने में भोजन डायरी एकत्र की, फिर भी एक जोखिम है कि लोगों ने हमेशा सही ढंग लिखा की नहीं कि वे क्या खा रहे थे और क्या पी रहे थे. हालांकि शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों द्वारा खाए गए भोजन की तस्वीरें लेने के द्वारा इस जोखिम को आंशिक रूप से कम कर दिया, फिर भी लोगों ने उन सभी खाद्य पदार्थों को शामिल नहीं किया होगा जो उन्होंने खाए थे. वर्तमान साक्ष्यों के आधार पर, आमतौर पर इस बात पर सहमति बनी कि कृत्रिम मिठास का उपयोग शरीर के वजन में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है - हालांकि शोधकर्ता पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं कि क्या स्वीटनर्स सीधे ऐसा होने का कारण बनते हैं.

यह भी पढ़ें-त्वचा को प्रीमेच्योर एजिंग से बचाना है तो रखें जीवन शैली स्वस्थ और दुरुस्त

हालांकि इस हालिया अध्ययन में लोगों के बॉडी मास इंडेक्स को भी ध्यान में रखा गया, यह संभव है कि बॉडी फैट के परिवर्तन ने इनमें से कई प्रकार के कैंसर के विकास में योगदान दिया हो और यह जरूरी नहीं कि इसका कारण स्वीटनर्स ही हों. जबकि स्वीटनर के उपयोग और कैंसर सहित बीमारियों के बीच की कड़ी अभी भी विवादास्पद है. साथ ही साथ, यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि सभी स्वीटनर समान नहीं होते हैं. एस्पार्टेम और सैकरीन जैसे स्वीटनर खराब स्वास्थ्य से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन सभी स्वीटनर ऐसे नहीं हैं. तो महत्वपूर्ण विकल्प आपके द्वारा खाए जाने वाले स्वीटनर की मात्रा का नहीं बल्कि आपके द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्वीटनर के प्रकार का हो सकता है.

(पीटीआई-भाषा)

बर्मिंघम: भले ही स्वीटनर्स, आज हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके हों लेकिन इन्हें लंबे समय से हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब बताया जाता रहा है. जेम्स ब्राउन एसोसिएट प्रोफेसर इन बायोलॉजी एंड बायोमेडिकल साइंस, एस्टन यूनिवर्सिटी के अध्ययनों ने बहुत अधिक स्वीटनर्स के सेवन को मोटापे, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग जैसी गंभीर स्थितियों से जोड़ा है. लेकिन इस दिशा में कैंसर के साथ संबंध कम निश्चित रहे हैं. साइक्लामेट के नाम से जाना जाने वाला आर्टिफिशियल स्वीटनर को 1970 के दशक में अमेरिका में बेचा जाता था. लेकिन शोध में यह चूहों में मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया था. हालांकि, मानव शरीर क्रिया विज्ञान चूहों से बहुत अलग है और शोध मनुष्यों में स्वीटनर और कैंसर के जोखिम के बीच एक संबंध खोजने में विफल रहे हैं. लेकिन हाल ही में इसे लेकर एक नया शोध सामने आया है.

पीएलओएस मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जो लोग कुछ स्वीटनर्स का ज्यादा सेवन करते हैं, उनमें कुछ प्रकार के कैंसर के विकास के जोखिम में थोड़ी वृद्धि(Use of sweeteners can increase the risk of cancer) होती है. इस शोध में 100,000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया था. एक कृत्रिम स्वीटनर, जिसे साइक्लामेट कहा जाता है, जिसे 1970 के दशक में अमेरिका में बेचा गया था, चूहों में मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया था. हालांकि, मानव शरीर क्रिया विज्ञान चूहों से बहुत अलग है, और अवलोकन संबंधी अध्ययन मनुष्यों में स्वीटनर और कैंसर के जोखिम के बीच एक संबंध खोजने में विफल रहे हैं. कृत्रिम स्वीटनर्स और उनके सेवन का आकलन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को एक खाद्य डायरी रखने के लिए कहा. लगभग आधे प्रतिभागियों ने आठ वर्षों से अधिक समय तक इसका पालन किया. अध्ययन में बताया गया कि विशेष रूप से एस्पार्टेम और एसेसल्फेम के, कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़े थे. इसमें विशेष रूप से स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर मुख्य रूप से शामिल थे.

कई आम खाद्य पदार्थों की मिठास, इस प्रकार के कैंसर का खतरा होती है. ये खाद्य योजक हमारे टेस्ट रिसेप्टर्स पर चीनी के प्रभाव की नकल करते हैं, जो बिना या बहुत कम कैलोरी के साथ तीव्र मिठास प्रदान करते हैं. इसमें कुछ मिठास स्वाभाविक रूप से होती है (जैसे स्टीविया या याकॉन सिरप) एवं अन्य, जैसे कि एस्पार्टेम, कृत्रिम स्वीटनर हैं. हालांकि इनमें कैलोरी कम या ना के बराबर होती है लेकिन फिर भी यह मिठास हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है. उदाहरण के लिए, जब शरीर इसे पचाता है तो एस्पार्टेम फॉर्मलाडेहाइड (एक ज्ञात कार्सिनोजेन) में बदल जाता है. यह संभावित रूप से देखा जा सकता है कि यह कोशिकाओं में जमा हो जाता है और उनमें कैंसर का कारण बनता है. हमारी कोशिकाएं कैंसर होने पर स्वयं को नष्ट करने के लिए अभ्यस्त होती हैं. लेकिन एस्पार्टेम कैंसर कोशिकाओं को ऐसा करने के लिए कहने वाले जीन को 'बंद' कर देता है.

यह देखा गया कि सुक्रालोज और सैकरीन सहित अन्य स्वीटनर्स भी डीएनए को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे कैंसर हो सकता है. इसकी मिठास हमारी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया पर भी गहरा प्रभाव डाल सकती है. इससे आंत में बैक्टीरिया को बदलने से प्रतिरक्षा प्रणाली खराब हो सकती है, जिसका अर्थ यह होता है कि वे कैंसर कोशिकाओं की पहचान करने और उन्हें हटाने में सक्षम नहीं रह जाते हैं. लेकिन यह अभी भी जानवरों और कोशिका-आधारित प्रयोगों से स्पष्ट नहीं है कि कैसे स्वीटनर्स कोशिकाओं में कैंसर के परिवर्तनों की शुरुआत या समर्थन करते हैं. इनमें से कई प्रयोग मनुष्यों पर लागू करना भी मुश्किल होगा क्योंकि स्वीटनर की जो मात्रा दी गई थी, वह इंसानों के उपभोग की मात्रा से कहीं अधिक थी.

वहीं पिछले शोध अध्ययनों के परिणाम सीमित हैं, क्योंकि इस विषय पर अधिकांश अध्ययनों में मिठास के सेवन के प्रभाव को तो बताया है, लेकिन इसका सेवन नहीं करने वालों से तुलना नहीं की गई है. हाल ही में लगभग 600,000 प्रतिभागियों की एक व्यवस्थित समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात के सीमित सुबूत हैं कि कृत्रिम मिठास की भारी खपत कुछ कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती हैं. बीएमजे में एक समीक्षा में भी इसी तरह के निष्कर्ष निकाले गए. हालांकि, इस हालिया अध्ययन के निष्कर्ष निश्चित रूप से आगे के शोध की गारंटी देते हैं, लेकिन अध्ययन की सीमाओं को स्वीकार करना भी महत्वपूर्ण है.

सबसे पहले, खाद्य डायरी अविश्वसनीय हो सकती हैं क्योंकि लोग जो खाते हैं उसके बारे में हमेशा ईमानदार नहीं होते हैं या वे भूल सकते हैं कि उन्होंने क्या खाया है. हालांकि इस अध्ययन ने हर छह महीने में भोजन डायरी एकत्र की, फिर भी एक जोखिम है कि लोगों ने हमेशा सही ढंग लिखा की नहीं कि वे क्या खा रहे थे और क्या पी रहे थे. हालांकि शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों द्वारा खाए गए भोजन की तस्वीरें लेने के द्वारा इस जोखिम को आंशिक रूप से कम कर दिया, फिर भी लोगों ने उन सभी खाद्य पदार्थों को शामिल नहीं किया होगा जो उन्होंने खाए थे. वर्तमान साक्ष्यों के आधार पर, आमतौर पर इस बात पर सहमति बनी कि कृत्रिम मिठास का उपयोग शरीर के वजन में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है - हालांकि शोधकर्ता पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं कि क्या स्वीटनर्स सीधे ऐसा होने का कारण बनते हैं.

यह भी पढ़ें-त्वचा को प्रीमेच्योर एजिंग से बचाना है तो रखें जीवन शैली स्वस्थ और दुरुस्त

हालांकि इस हालिया अध्ययन में लोगों के बॉडी मास इंडेक्स को भी ध्यान में रखा गया, यह संभव है कि बॉडी फैट के परिवर्तन ने इनमें से कई प्रकार के कैंसर के विकास में योगदान दिया हो और यह जरूरी नहीं कि इसका कारण स्वीटनर्स ही हों. जबकि स्वीटनर के उपयोग और कैंसर सहित बीमारियों के बीच की कड़ी अभी भी विवादास्पद है. साथ ही साथ, यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि सभी स्वीटनर समान नहीं होते हैं. एस्पार्टेम और सैकरीन जैसे स्वीटनर खराब स्वास्थ्य से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन सभी स्वीटनर ऐसे नहीं हैं. तो महत्वपूर्ण विकल्प आपके द्वारा खाए जाने वाले स्वीटनर की मात्रा का नहीं बल्कि आपके द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्वीटनर के प्रकार का हो सकता है.

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.