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एंटीबायोटिक्स का अनावश्यक उपयोग खतरनाक हो सकता है: अध्ययन

जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों का विस्तार दुनिया भर में काफी तेजी से फैल रहा है जिसके चलते भविष्य में घातक संक्रामक रोगों का सुरक्षित उपचार भी खतरे की सीमा में आ सकता है। लेकिन फिलहाल चिंता की बात यह है की नए एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट्स की खोज के लिये किए जा रहे शोध, निवेश की कमी के चलते प्रभावित हो रहे हैं।

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एंटीबायोटिक्स
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Published : Aug 24, 2021, 5:06 PM IST

Updated : Aug 26, 2021, 11:08 AM IST

अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन (आई.आर.ए.ए.डी.डी) द्वारा प्रस्तुत एक अध्धयन में बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों (एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट्स) के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए दूरंदेशी रणनीतियों को प्रस्तुत किया गया है। इस अध्धयन में जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च (डीजेआईएफ) के वैज्ञानिकों की भूमिका प्रमुख रही है।

शोध में हेल्महोल्ट्ज़ इंस्टीट्यूट फॉर फार्मास्युटिकल रिसर्च सारलैंड के निदेशक (एचआईपीएस), हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च की एक साइट, और डीजेडआईएफ के समन्वयक प्रोफेसर रॉल्फ मुलर बताते हैं की कई दवाओं के लिए प्रतिरोधी माने जाने वाले बैक्टीरिया का उपयोग, यदि सावधानियों के बिना और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों को जाने बिना किया जाय तो वह कोरोना महामारी के समकक्ष खतरनाक हो सकते हैं। गौरतलब है की रॉल्फ मुलर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन के समन्वयक होने के साथ ही लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं में से एक हैं जो संयुक्त रूप से एन्टिमाइक्रोबियल के चलते भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाले आसन्न खतरे को रोकने के लिये प्रयास कर रहे हैं।

वे बताते हैं की इस अध्धयन में उन्होंने तथा उनके सहयोगी शोधकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर ऐसी अवधारणाएँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिनका उद्देश्य अनुसंधान और औद्योगिक कार्यान्वयन के लिये एक ऐसी पाइपलाइन बनाना है जो भविष्य के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक्स बनाने की संभावना उत्पन्न करती है।

वे बताते हैं की दवा, पशुपालन और कृषि के क्षेत्र में एंटीबायोटिक के अनावश्यक और जरूरत से ज्यादा उपयोग के कारण रोगजनकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में कम से कम 7,00,000 लोग मल्टी रेजिसटेंट पैथोजीन्स (बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों) के कारण होने वाले संक्रमण का शिकार हैं, जान गंवा रहे हैं, क्योंकि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग के कारण उन पर दवाएं ज्यादा असर नहीं दिखा रहीं हैं।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है की यह आंकड़ा वर्ष 2050 तक दस मिलियन मृतकों तक पहुंच सकता है। शोध में बताया गया है की वर्तमान समय में चिकित्सीय वैज्ञानिक लगभग 4000 कैंसर की दवाओं के विकास को लेकर कार्य कर रहे हैं, जिनमें केवल 30 से 40 नए एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट (रोगाणुरोधी) नैदानिक ​​​​परीक्षणों में शामिल हैं। इन दवाओं में एक चौथाई से भी कम, एक्टिव सबस्टेनस (सक्रिय पदार्थ) दवाओं के किसी नए वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रोफेसर मुलर बताते हैं, इनमें से कोई भी दवा डब्ल्यूएचओ द्वारा प्राथमिकताओं के रूप में वर्गीकृत रोगजनकों के प्रति प्रभावी नहीं है।

इस अध्धयन के पोजिशन पेपर में तीन प्रमुख विषयों को प्रस्तुत किया गया है,

  • सिंथेटिक आधार पर नए सक्रिय तत्वों की खोज, कम आणविक (मोलिक्युलर) भार वाले पदार्थों पर आधारित तत्व तथा उनका चिकित्सीय आधार पर नैदानिक ​​अध्ययन।
  • प्राकृतिक पदार्थों के आधार पर नए सक्रिय पदार्थों का विकास, जिसकी सफलता विशेष रूप से नई खोजों पर निर्भर करेगी।
  • एक प्रतिभागी तत्व से तैयार हुई दवा के निर्माण में संभावित बाधाएं और उसके अनुकूलन के विकल्प।

प्रोफेसर रॉल्फ मुलर बताते है की इस अध्धयन के पोजीशन पेपर में शोधकर्ताओं द्वारा दिए गए प्रस्ताव भविष्य में एंटीबायोटिक के अत्याधिक उपयोग के कारण, विफल होते इलाजों और संक्रमण के कारण बढ़ने वाली मृत्यु दर के खतरे को टालने को लेकर नए आयाम प्रस्तुत करते हैं।

पढ़ें: बीमारियों का मौसम कहलाता है मानसून

अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन (आई.आर.ए.ए.डी.डी) द्वारा प्रस्तुत एक अध्धयन में बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों (एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट्स) के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए दूरंदेशी रणनीतियों को प्रस्तुत किया गया है। इस अध्धयन में जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च (डीजेआईएफ) के वैज्ञानिकों की भूमिका प्रमुख रही है।

शोध में हेल्महोल्ट्ज़ इंस्टीट्यूट फॉर फार्मास्युटिकल रिसर्च सारलैंड के निदेशक (एचआईपीएस), हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च की एक साइट, और डीजेडआईएफ के समन्वयक प्रोफेसर रॉल्फ मुलर बताते हैं की कई दवाओं के लिए प्रतिरोधी माने जाने वाले बैक्टीरिया का उपयोग, यदि सावधानियों के बिना और उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों को जाने बिना किया जाय तो वह कोरोना महामारी के समकक्ष खतरनाक हो सकते हैं। गौरतलब है की रॉल्फ मुलर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान गठबंधन के समन्वयक होने के साथ ही लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं में से एक हैं जो संयुक्त रूप से एन्टिमाइक्रोबियल के चलते भविष्य में उत्पन्न हो सकने वाले आसन्न खतरे को रोकने के लिये प्रयास कर रहे हैं।

वे बताते हैं की इस अध्धयन में उन्होंने तथा उनके सहयोगी शोधकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध को लेकर ऐसी अवधारणाएँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, जिनका उद्देश्य अनुसंधान और औद्योगिक कार्यान्वयन के लिये एक ऐसी पाइपलाइन बनाना है जो भविष्य के लिए प्रभावी एंटीबायोटिक्स बनाने की संभावना उत्पन्न करती है।

वे बताते हैं की दवा, पशुपालन और कृषि के क्षेत्र में एंटीबायोटिक के अनावश्यक और जरूरत से ज्यादा उपयोग के कारण रोगजनकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में कम से कम 7,00,000 लोग मल्टी रेजिसटेंट पैथोजीन्स (बहु-प्रतिरोधी रोगजनकों) के कारण होने वाले संक्रमण का शिकार हैं, जान गंवा रहे हैं, क्योंकि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग के कारण उन पर दवाएं ज्यादा असर नहीं दिखा रहीं हैं।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है की यह आंकड़ा वर्ष 2050 तक दस मिलियन मृतकों तक पहुंच सकता है। शोध में बताया गया है की वर्तमान समय में चिकित्सीय वैज्ञानिक लगभग 4000 कैंसर की दवाओं के विकास को लेकर कार्य कर रहे हैं, जिनमें केवल 30 से 40 नए एन्टिमाइक्रोबियल एजेंट (रोगाणुरोधी) नैदानिक ​​​​परीक्षणों में शामिल हैं। इन दवाओं में एक चौथाई से भी कम, एक्टिव सबस्टेनस (सक्रिय पदार्थ) दवाओं के किसी नए वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रोफेसर मुलर बताते हैं, इनमें से कोई भी दवा डब्ल्यूएचओ द्वारा प्राथमिकताओं के रूप में वर्गीकृत रोगजनकों के प्रति प्रभावी नहीं है।

इस अध्धयन के पोजिशन पेपर में तीन प्रमुख विषयों को प्रस्तुत किया गया है,

  • सिंथेटिक आधार पर नए सक्रिय तत्वों की खोज, कम आणविक (मोलिक्युलर) भार वाले पदार्थों पर आधारित तत्व तथा उनका चिकित्सीय आधार पर नैदानिक ​​अध्ययन।
  • प्राकृतिक पदार्थों के आधार पर नए सक्रिय पदार्थों का विकास, जिसकी सफलता विशेष रूप से नई खोजों पर निर्भर करेगी।
  • एक प्रतिभागी तत्व से तैयार हुई दवा के निर्माण में संभावित बाधाएं और उसके अनुकूलन के विकल्प।

प्रोफेसर रॉल्फ मुलर बताते है की इस अध्धयन के पोजीशन पेपर में शोधकर्ताओं द्वारा दिए गए प्रस्ताव भविष्य में एंटीबायोटिक के अत्याधिक उपयोग के कारण, विफल होते इलाजों और संक्रमण के कारण बढ़ने वाली मृत्यु दर के खतरे को टालने को लेकर नए आयाम प्रस्तुत करते हैं।

पढ़ें: बीमारियों का मौसम कहलाता है मानसून

Last Updated : Aug 26, 2021, 11:08 AM IST
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