वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही किसानों के लिए नई फसल के आगमन के रूप में भी मनाया जाने वाला उगादी पर्व महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटका सहित विभिन्न राज्यों में अलग अलग नामों से मनाया जाता है. हिन्दू नववर्ष के रूप में चैत्र माह के प्रथम दिवस पर मनाए जाने वाली उगादी पर्व को इस बार 13 अप्रैल को मनाया जा रहा है. सुख, स्वास्थ्य और संपन्नता का त्योहार माने जाने वाले उगादी त्योहार तथा तथा उससे जुड़ी मान्यताओं के बारें में आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी. बी रंगनायकुलु ने ETV भारत सुखीभवा को विस्तार से जानकारी दी.
उगादी पर्व: इतिहास और मान्यताएं
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि कावेरी नदी तथा विंध्या पर्वत के बीच रहने वाले लोग उगादी को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं. यही नहीं भारत के विभिन्न हिस्सों में इस त्यौहारों को अलग-अलग नाम से भी मनाया जाता है. उगादी पर्व को चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. इस त्यौहार को हर साल इस अवधारणा के साथ मनाया जाता है की किसी भी परिस्थिति में परिवर्तन और नव सृजन रुकना नहीं चाहिए यानी इंसान को समय के साथ खुद में परिवर्तन लाते रहना चाहिए.
माना जाता है की बारहवीं शती के गणितज्ञ भास्कर द्वितीय ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर हिन्दू पंचांग का निर्माण किया था। इन्हें सातवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त के वंशज माने जाते हैं. शालीवन शक की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. पंचांग के अनुसार चैत्र नववर्ष यानी उगादी की शुरुआत आकाशीय भूमध्य रेखा से सूर्य के दक्षिण से उत्तर की ओर जाने के बाद पहले चंद्रमा तथा सूर्योदय के बाद मानी जाती है. इस दिन सूर्य मेष तारामंडल में प्रवेश करता है. कुछ राज्यों में इस उत्सव को इस घटना के घटित होने के बाद अगले दिन सूर्योदय के उपरांत मनाया जाता है. जैसे तमिलनाडु में यह उत्सव 14 अप्रैल को तमीज पोथानू के नाम से मनाया जाता है. उगादी को अलग-अलग राज्यों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है जैसे उत्तर क्षेत्र में इसे हिन्दू नववर्ष, महाराष्ट्र में उगादी या गुड़ी पड़वा तथा सिंधियों में चेटीचंड तथा मणिपुर में सजिबू नोगमा पानबा या मेईतेई चेईओबा के नाम से मनाया जाता है.
आयुर्वेद में उगादी के दौरान बनाए जाने वाले परंपरागत व्यंजनों के फायदे
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि उगादी पर्व पर बहुत सी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है. जिनमें पारंपरिक भोजन बनाया जाना विशेष है. इन परंपराओं को मनाया जाना प्रतीक होता है. सुख संपन्नता के साथ जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों को भी खुले मन से अपनाने का. इसीलिए इस उत्सव पर मीठे, कड़वे तथा सभी प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों को बनाया जाता है. उगादी पर्व के दिन नीम और गुड़ के लड्डू बांटे जाते हैं, जिसका यह मतलब होता है कि जीवन में सुख और दुख दोनों में संतुलन रहना चाहिए.
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद में प्रकृति के 6 स्वाद माने गए हैं, जो शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. यह स्वाद हैं मीठा, नमकीन, खट्टा, कड़वा, तीखी महक वाला तथा कसैला. उगादि के दिन असल जीवन से साक्षात परिचय के लिए प्रतीक के तौर पर इन सभी स्वादों को परंपरागत पकवानों में शामिल किए जाने की परंपरा है.
इन स्वादों का विवरण बताते हुए डॉ. रंगनायकूलू बताते हैं की मीठा स्वाद संतोष प्रदान करता है, खट्टा दिमाग को चौकन्ना करता है, नमक शरीर में ऊर्जा लाता है, तीव्र महक वाला जायका किसी भी धारणा की स्पष्टता का प्रतीक होता है तथा कड़वा हमारे दिमाग को सभी संवेदना हो तथा आनंद के बारे में सचेत रखता है. कसैला स्वाद हमारे मस्तिष्क को संगठित तथा संयोजित रखता है. इसका तात्पर्य है कि सभी स्वाद तथा सभी प्रकार का भोजन हमारे शरीर को किसी ना किसी प्रकार से प्रभावित करते हैं.
उगादी पर बनाए जाने वाले पकवान इस मौसम में उपलब्ध खाद्य पदार्थों के अनुसार ही बनाए जाते हैं. जिनमें मुख्य रूप से नीम आम, गुड़ और नमक का उपयोग किया जाता है. इनमें गुड खुशी का प्रतीक होता है, नीम दुख का, कच्चा आम आश्चर्य का, हरी मिर्च गुस्से का तथा नमक डर के समक्ष खड़े रहने का प्रतीक होते हैं. इन तथ्यों के आधार पर उगादी मनाने के पीछे का एक संदेश यह भी होता है कि हमें किसी भी एक प्रकार के भाव या भोजन का आदी या लती नहीं होना चाहिए क्योंकि जीवन में सभी भावों तथा सभी स्वादों का अपना एक अलग स्थान तथा अपनी अलग जरूरत होती है.
डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं की वर्तमान समय में जब नई पीढ़ी जो भोजन के नियमों तथा उससे जुड़े अनुशासन को ना मानते हुए जंक फूड और अन्य अस्वास्थ्य कारी भोजन की आदी बनती जा रही है, उगादी पर्व की ये परंपराएं और मान्यताएं उन्हें आदर्श जीवन के लिए आदर्श भोजन ग्रहण करने के लिए प्रेरित करती हैं.