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पोषण का खजाना है मां का दूध

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी निर्देशिका के अनुसार बच्चे को उसके जन्म के तुरंत उपरांत, यहां तक की गर्भनाल कटने से पहले ही मां के स्तनों से स्पर्श करवा देना चाहिए, जिससे माता के शरीर में जरूरी हार्मोन उत्पन्न हो और स्तनों से दूध का स्राव हो. बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद शरीर से स्रावित होने वाला पहला दूध बच्चे के लिए अमृत कहलाता है. कोलोस्‍ट्रम यानि पहला दूध पोषक तत्वों का खजाना होता है, जो बच्चों को कई गंभीर बीमारियों से दूर रखता हैं.

breastfeed cycle
पोषण का खजाना है मां का दूध
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Published : Sep 2, 2020, 9:33 AM IST

Updated : Sep 3, 2020, 9:49 AM IST

जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी मां के लिए भी यह एक नया अनुभव होता हैं. खासतौर पर जब कोई महिला पहली बार मां बनती है, तो उसके लिए बच्चे से जुड़ी सभी बातें नई होती है. मां बनने के बाद सबसे खास अनुभव होता है, बच्चे को स्तनपान करवाना. स्तनपान बच्चे के शरीर के विकास और पोषण के लिए तो जरूरी होता ही है, बल्कि मां और बच्चे के बीच ममता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान निभाता है. लेकिन जानकारी के अभाव में कई बार नई माएं कुछ गलतियां कर बैठती हैं, जैसे समय से पहले ही बच्चों को ऊपरी दूध देना शुरू कर देना या फिर जन्म के तुरन्त बाद उन्हें दूध नहीं पिलाना. जिससे बच्चे के पाचनतंत्र और पोषण पर काफी नकारात्मक असर पड़ता हैं. जगदीश चाइल्ड गाइडेंस एंड लैक्टेशन मैनेजमेंट क्लिनिक, नासिक के बाल विकास एवं बाल रोग विशेषज्ञ तथा एमबीबीएस, डीसीएच, आईबीसीएलसी चिकित्सक डॉ. शामा जगदीश कुलकर्णी ने ETV भारत सुखीभवा टीम से चर्चा के दौरान नवजात के लिए दुग्धपान के सही तरीके, उसके विकास के लिए मां के दूध की जरूरत तथा उससे होने वाले फायदों के बारे में जानकारी दी.

स्तनपान चक्र

breastfeed cycle
स्तनपान चक्र

दुग्धपान, मां तथा बच्चों दोनों के लिए जरूरी

स्तनपान को मां और बच्चे दोनों के लिए सबसे जरूरी बताते हुए डॉ. शामा जगदीश बताती हैं कि जब बच्चा पहली बार स्तनपान करता है, तो मां के निप्पलों के माध्यम से ही उससे परिचित होता है. क्योंकि मां के निप्पलों की गंध काफी हद तक वैसी ही होती हैं, जैसी मां के गर्भ में बच्चे के आसपास रहने वाले एमनीओटिक द्रव्य की होती है. इसलिए जन्म के उपरांत जब वह अपनी मां के स्तनों का स्पर्श करता हैं, तो वह स्वतः ही अपनी मां को पहचान जाता हैं.

जच्चा और नवजात के लिए जरूरी बातें

नई माओं का सबसे बड़ा डर यह होता है की कहीं उनका बच्चा कम दूध तो नहीं पी रहा है? और सबसे बड़ा प्रश्न ये की कितना दूध उसके लिए जरूरी है. डॉ. शामा बताती हैं की यदि बच्चे का वजन एक माह में 500 ग्राम बढ़ता है तथा वह 24 घंटे में कम से कम 6 बार पेशाब करता है, तो इसका मतलब वह सही मात्रा में दूध ग्रहण कर रहा है.

एक बच्चे को 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए. मां का दूध उसके शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करता है. इस दौरान घुट्टी, शहद तथा पानी देने की भी कोई जरूरत नहीं होती हैं. जन्म के उपरांत जो पहला दूध जिसे कोलोस्‍ट्रम भी कहा जाता है, एक तरह से बच्चे के लिए पहला टीका यानि वैक्सीन होता है, जो बच्चों को कई बीमारियों से बचाता है. वहीं दूध पिलाने वाली माता के खानपान पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी होता हैं. बच्चे को जन्म देने के कुछ क्षणों के बाद से ही उसे घर का बना हुआ हल्का, तरल तथा पाचन में सरल रहने वाला भोजन देना चाहिए. क्योंकि मां के भोजन का पोषण उसके शरीर में बनने वाले दूध की मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है.

डॉ. शामा बताती है की अपने बच्चे को स्तनपान करवाते समय यदि मां उससे बात करती है तथा उसे सहलाती है तो उसके मन में ना सिर्फ ममत्व उत्पन्न होता हैं, बल्कि शरीर में दुग्ध का उत्पादन करने वाले जरूरी हार्मोन का भी निर्माण होता हैं.

क्या हो दुग्धपान का सही तरीका

डॉ. शामा बताती है की जब मां अपने बच्चे को अपनी गोद में लेकर दूध पिलाती है, तो बहुत जरूरी है की उसकी बैठने की अवस्था तथा बच्चे को गोद में लेने का तरीका बिल्कुल सही हो. स्तनपान के समय बच्चे का सिर उसकी छाती से ऊंचा होना चाहिए. इसलिए मां को कोशिश करनी चाहिए की वह बैठ कर ही अपने बच्चे को दूध पिलाएं. जब मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है, तो उसे ध्यान रखना चाहिए की गोद में बच्चा आराम से उसके हाथों का सहारा लेकर लेटा हो. नवजातों को दूध भूख लगने या रोने पर ही देना चाहिए. अपने आप से उनके दूध पिलाने के समय को निर्धारित करना ठीक नहीं है.

बच्चे को तब तक दूध पीने देना चाहिए, जब तक वह स्वयं स्तन ना छोड़े. क्योंकि मां का दूध बहुत जल्दी और सरलता से पच जाता है. इसलिए बच्चों को ज्यादा तथा जल्दी जल्दी भूख लगती है. वहीं स्तनपान के समय मां को चाहिए की वह बच्चे के मुंह और निप्पलों के बीच अपनी उंगलियों की मदद से थोड़ी स्थान रखे. जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत ना हो.

दुग्धपान करवाने वाली माताओं की समस्याएं

कई बार विभिन्न कारणों से अगर मां बच्चे को दूध नहीं पिला पाती है, तो उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिनमें से प्रमुख है निप्पलों की त्वचा में दरार आना तथा स्तनों में दर्द महसूस होना तथा स्तनों में गांठ का बनना. हार्मोनल या मौसमी बदलाव के चलते कई बार निप्पलों की त्वचा पर असर पड़ता है और वहां की त्वचा सूख जाती है. जिससे कई बार उनसे खून भी आने लगता है. हालांकि इससे बच्चों को कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन माता को काफी दर्द झेलना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है की मां दूध पिलाते समय बच्चों की पोजिशन बदलती रहे. लेकिन यहां यह ध्यान देना भी जरूरी है की बगैर चिकित्सीय सलाह के मां को बच्चे को दूध पिलाना बंद नहीं करना चाहिए. क्योंकि यदि स्तनों में दूध इकट्ठा हो जाए, तो वहां गांठ बन जाती है. यह अवस्था काफी दर्द दायक होती है.

जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी मां के लिए भी यह एक नया अनुभव होता हैं. खासतौर पर जब कोई महिला पहली बार मां बनती है, तो उसके लिए बच्चे से जुड़ी सभी बातें नई होती है. मां बनने के बाद सबसे खास अनुभव होता है, बच्चे को स्तनपान करवाना. स्तनपान बच्चे के शरीर के विकास और पोषण के लिए तो जरूरी होता ही है, बल्कि मां और बच्चे के बीच ममता बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान निभाता है. लेकिन जानकारी के अभाव में कई बार नई माएं कुछ गलतियां कर बैठती हैं, जैसे समय से पहले ही बच्चों को ऊपरी दूध देना शुरू कर देना या फिर जन्म के तुरन्त बाद उन्हें दूध नहीं पिलाना. जिससे बच्चे के पाचनतंत्र और पोषण पर काफी नकारात्मक असर पड़ता हैं. जगदीश चाइल्ड गाइडेंस एंड लैक्टेशन मैनेजमेंट क्लिनिक, नासिक के बाल विकास एवं बाल रोग विशेषज्ञ तथा एमबीबीएस, डीसीएच, आईबीसीएलसी चिकित्सक डॉ. शामा जगदीश कुलकर्णी ने ETV भारत सुखीभवा टीम से चर्चा के दौरान नवजात के लिए दुग्धपान के सही तरीके, उसके विकास के लिए मां के दूध की जरूरत तथा उससे होने वाले फायदों के बारे में जानकारी दी.

स्तनपान चक्र

breastfeed cycle
स्तनपान चक्र

दुग्धपान, मां तथा बच्चों दोनों के लिए जरूरी

स्तनपान को मां और बच्चे दोनों के लिए सबसे जरूरी बताते हुए डॉ. शामा जगदीश बताती हैं कि जब बच्चा पहली बार स्तनपान करता है, तो मां के निप्पलों के माध्यम से ही उससे परिचित होता है. क्योंकि मां के निप्पलों की गंध काफी हद तक वैसी ही होती हैं, जैसी मां के गर्भ में बच्चे के आसपास रहने वाले एमनीओटिक द्रव्य की होती है. इसलिए जन्म के उपरांत जब वह अपनी मां के स्तनों का स्पर्श करता हैं, तो वह स्वतः ही अपनी मां को पहचान जाता हैं.

जच्चा और नवजात के लिए जरूरी बातें

नई माओं का सबसे बड़ा डर यह होता है की कहीं उनका बच्चा कम दूध तो नहीं पी रहा है? और सबसे बड़ा प्रश्न ये की कितना दूध उसके लिए जरूरी है. डॉ. शामा बताती हैं की यदि बच्चे का वजन एक माह में 500 ग्राम बढ़ता है तथा वह 24 घंटे में कम से कम 6 बार पेशाब करता है, तो इसका मतलब वह सही मात्रा में दूध ग्रहण कर रहा है.

एक बच्चे को 6 महीने तक सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए. मां का दूध उसके शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करता है. इस दौरान घुट्टी, शहद तथा पानी देने की भी कोई जरूरत नहीं होती हैं. जन्म के उपरांत जो पहला दूध जिसे कोलोस्‍ट्रम भी कहा जाता है, एक तरह से बच्चे के लिए पहला टीका यानि वैक्सीन होता है, जो बच्चों को कई बीमारियों से बचाता है. वहीं दूध पिलाने वाली माता के खानपान पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी होता हैं. बच्चे को जन्म देने के कुछ क्षणों के बाद से ही उसे घर का बना हुआ हल्का, तरल तथा पाचन में सरल रहने वाला भोजन देना चाहिए. क्योंकि मां के भोजन का पोषण उसके शरीर में बनने वाले दूध की मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करता है.

डॉ. शामा बताती है की अपने बच्चे को स्तनपान करवाते समय यदि मां उससे बात करती है तथा उसे सहलाती है तो उसके मन में ना सिर्फ ममत्व उत्पन्न होता हैं, बल्कि शरीर में दुग्ध का उत्पादन करने वाले जरूरी हार्मोन का भी निर्माण होता हैं.

क्या हो दुग्धपान का सही तरीका

डॉ. शामा बताती है की जब मां अपने बच्चे को अपनी गोद में लेकर दूध पिलाती है, तो बहुत जरूरी है की उसकी बैठने की अवस्था तथा बच्चे को गोद में लेने का तरीका बिल्कुल सही हो. स्तनपान के समय बच्चे का सिर उसकी छाती से ऊंचा होना चाहिए. इसलिए मां को कोशिश करनी चाहिए की वह बैठ कर ही अपने बच्चे को दूध पिलाएं. जब मां अपने बच्चे को दूध पिलाती है, तो उसे ध्यान रखना चाहिए की गोद में बच्चा आराम से उसके हाथों का सहारा लेकर लेटा हो. नवजातों को दूध भूख लगने या रोने पर ही देना चाहिए. अपने आप से उनके दूध पिलाने के समय को निर्धारित करना ठीक नहीं है.

बच्चे को तब तक दूध पीने देना चाहिए, जब तक वह स्वयं स्तन ना छोड़े. क्योंकि मां का दूध बहुत जल्दी और सरलता से पच जाता है. इसलिए बच्चों को ज्यादा तथा जल्दी जल्दी भूख लगती है. वहीं स्तनपान के समय मां को चाहिए की वह बच्चे के मुंह और निप्पलों के बीच अपनी उंगलियों की मदद से थोड़ी स्थान रखे. जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत ना हो.

दुग्धपान करवाने वाली माताओं की समस्याएं

कई बार विभिन्न कारणों से अगर मां बच्चे को दूध नहीं पिला पाती है, तो उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिनमें से प्रमुख है निप्पलों की त्वचा में दरार आना तथा स्तनों में दर्द महसूस होना तथा स्तनों में गांठ का बनना. हार्मोनल या मौसमी बदलाव के चलते कई बार निप्पलों की त्वचा पर असर पड़ता है और वहां की त्वचा सूख जाती है. जिससे कई बार उनसे खून भी आने लगता है. हालांकि इससे बच्चों को कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन माता को काफी दर्द झेलना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है की मां दूध पिलाते समय बच्चों की पोजिशन बदलती रहे. लेकिन यहां यह ध्यान देना भी जरूरी है की बगैर चिकित्सीय सलाह के मां को बच्चे को दूध पिलाना बंद नहीं करना चाहिए. क्योंकि यदि स्तनों में दूध इकट्ठा हो जाए, तो वहां गांठ बन जाती है. यह अवस्था काफी दर्द दायक होती है.

Last Updated : Sep 3, 2020, 9:49 AM IST
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