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कोविड उपचार व बचाव के लिए स्वः चिकित्सा से बचे - kappa and delta variant

स्वः चिकित्सा यानी किसी भी रोग या समस्या होने पर बगैर चिकित्सक की सलाह और परामर्श के दवाइयाँ लेना सामान्य परिस्तिथियों जैसे सरदर्द, हल्का बुखार जैसी समस्याओं में तो सामान्य बात है लेकिन कोरोना जैसी अवस्था में सिर्फ सरसरी जानकारी के आधार पर अपने आप दवाइयाँ लेना या उपचार करना सेहत के लिये घातक हो सकता है।

कोविड उपचार,कोविड बचाव, कोविड स्वः चिकित्सा
COVID and self medication
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Published : Jun 5, 2021, 4:26 PM IST

दुनिया भर में लोग कोरोना महामारी के विकराल स्वरूप के गवाही दे रहे हैं । इस घातक संक्रमण के प्रभाव के चलते रोज बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गवा रहे हैं, वही बहुत से लोग ठीक होने के बाद भी इसके पार्श्व प्रभाव झेल रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है की इस संक्रमण से पीड़ित बहुत से लोग विभिन चिंताओं और आशंकाओं के प्रभाव में आकर ना सिर्फ कोरोना पोजिटिव आने के बाद बल्कि उससे पहले भी चिकित्सक से बगैर सलाह लिए स्वः चिकित्सा यानी इधर-उधर से जानकारियाँ लेकर अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर दे रहें हैं, जो सही नही है ।

जापान तथा एपीईसी देशों में विभिन्न संस्थाओं से सम्बद्ध फार्मा रणनीति सलाहकार स्वरूप पांडा ने इटीवी भारत सुखी भव के साथ एक विशेष चर्चा में बताया की इस तरह की प्रव्रत्ति ना मरीज के कोरोना से ठीक होने की रफ्तार को कम करती है बल्कि उनके शरीर में संक्रमण के स्थाई या गंभीर प्रभाव भी छोड़ सकती है। ऐसे मरीजों में ठीक होने के बाद भी गंभीर और जानलेवा पार्श्व प्रभाव नजर आ सकते है।

लोगों में भारी अनिश्चितता और डर

स्वरूप पांडा बताते हैं की वर्तमान समय में परिस्तिथिया ऐसी हैं की हमारी जनसंख्या का एक बड़ा प्रतिशत इस महामारी का शिकार है ऐसे में बड़ी संख्या में लोग अस्पताल जाकर इलाज करवाने में डर रहें हैं। ऐसे बहुत से कारण जिनके चलते लोग संक्रमण की पुष्टि होने पर अपने आप ही बिना चिकित्सक से सलाह लिए इधर उधर से जानकारी लेकर दवाइयां लेना शुरू कर दे रहे हैं। चिकित्सक तथा जानकर कोरोना संक्रमण को लेकर स्वः चिकित्सा प्रवत्ति का कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि बगैर शारीरिक अवस्था की जांच किए अपने आप कोरोना के लिए दवाई लेने से पीड़ित के शरीर पर कोरोना का असर कम नहीं होता है बल्कि बहुत ज्यादा बढ़ सकता है।यहाँ तक की स्तिथि जानलेवा भी हो सकती है।

क्यों अपनाते हैं लोग स्वः चिकित्सा

ऐसी कई परिस्तिथ्यां या कारण हो सकते हैं जिनके चलते लोग अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर देते हैं जो इस प्रकार हैं।

  • संक्रमण से बचाव की उम्मीद में लोग पहले से ही दवाइयाँ खाना शुरू कर देते हैं।
  • उपचार के विकल्प के रूप में।
  • चिकित्सक द्वारा दिए गए प्रिस्क्रिप्शन में बेहतर परिणाम की संभावना में कुछ लोग अपने आप कुछ दवाइयां बढ़ा लेते हैं ।
  • संक्रमण के इलाज की अवधि लगभग पूरी होने के बावजूद भी यदि किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो भी लोग अपने आप अतिरिक्त दवाइयों का सेवन शुरू कर देते हैं ।

पढ़ें : कोविड-19 के नित नए प्रकार प्रकार दे रहें है चेतावनी

सूचनाओं का दुरुपयोग

स्वरूप पांडा बताते हैं की आजकल कोरोना को लेकर दवाइयों और उपचारों के बारे में सभी जगह जानकारियां उपलब्ध है विशेष तौर पर सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और सर्च इंजंस पर। यही नहीं बहुत से लोगों ने कोरोना होने पर चिकित्सक द्वारा दिए गए प्रिसक्रिप्शन को सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रसारित कर दिया है। ऐसे में कई लोग इस संक्रमण से बचने या संक्रमण के हल्के लक्षण नजर आने पर भी लोग खुद ही अपना इलाज शुरू कर दे रहे हैं भले ही वह कोरोना पॉजिटिव हो या नहीं हों।

विभिन्न चिकित्सक और जानकार अलग अलग माध्यमों से इस बारें में लोगों को अवगत करवाते रहते हैं की कोरोना का स्थाई इलाज नही है और मरीज के अवस्था के आधार पर ही उनकी दवाइयाँ तथा उपचार निर्धारित किया जाता है। इसी संबंध में स्वरूप पांडा बताते हैं की रोगी की शारीरिक अवस्था ,उसकी आयु, उस पर संक्रमण का असर तथा उसकी पुरानी शारीरिक बीमारियों सहित बहुत से ऐसे कारक हैं जो उसकी दवाइयों तथा उनकी मात्रा को निर्धारित करते हैं।

उदाहरण के लिए मधुमेह के रोगियों की दवाइयां कुछ अलग होंगी, हृदय रोगियों या कुछ अन्य गंभीर रोगियों से ग्रसित लोगों की दवाइयां कुछ अलग होंगी । वहीं संक्रमण से जूझ रहे सामान्य स्वास्थ्य वाले लोगों की दवाइयां विशेषकर उन की मात्रा अलग होंगी। ऐसे में सभी का प्रिस्क्रीप्शन अलग होता है। लेकिन बगैर इस बात को जाने समझे जो लोग स्वः उपचार के चलते स्टेरॉइड, एंटीवायरल, एंटीबायोटिक- एंटीवायरल इंजेक्शन का बगैर चिकित्सीय सलाह के उपयोग करते हैं तो उनमें बहुत गंभीर पार्श्व प्रभाव नजर आते हैं। जैसे एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधक सूक्ष्म जीवों का पैदा होना तथा उनसे जुड़े संक्रमण होना, डर्माटोक्सिटी,कर्डियोटोक्सिटी तथा हेपाटोक्सिटी संबंधित दवाइयों के अनावश्यक उपयोग या ज्यादा या कम मात्रा में उपयोग के आधार पर शरीर में उच्च संवेदनशीलता की शिकायत होना आदि।

विशेष तौर पर कोरोना के इलाज में दिए जाने वाले स्टेरॉइड का अनावश्यक या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी ना सिर्फ शरीर पर संक्रमण के प्रभाव को गंभीर कर सकता है बल्कि संक्रमण से ठीक होने के बाद भी पीड़ित में अलग प्रकार के संक्रमण का कारण बन सकता है जैसे ब्लैक फंगस आदि। वहीं बगैर जानकारी रेमदेसीविर जैसी दवाई का इस्तेमाल भी जानलेवा हो सकता है। गौरतलब है रेमदेसीविर के इस्तेमाल को लेकर वैसे भी काफी सख्त नियम बनाए गए हैं , जैसे इसे किसी चिकित्सक के दिशा निर्देश में अस्पताल में ही मरीज को दिया जाना चाहिए। बिना जरूरत इसका उपयोग करने पर मरीज में कोरोना से ठीक होने के बाद भी घातक परिणाम नजर आते हैं।

ज्यादातर मामलों में दवाइयों की जरूरत नहीं है

इसी संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए पीजीआई चंडीगढ़ के प्रोफेसर पूरी बताते हैं कि कोरना संक्रमण से ग्रसित लगभग 80% लोगों को किसी प्रकार की दवाई की जरूरत नहीं होती है। दरअसल कोरोना के चलते जो मुख्य समस्या लोगों में नजर आती है वह है उनके फेफड़ों पर असर पड़ना, जिसके चलते उनके शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। यदि पीड़ित नियमित तौर पर ऑक्सीमीटर की मदद से अपने शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का निरीक्षण कर रहे हैं और वह सामान्य है तो चिंता की कोई बात नहीं होती है। लेकिन कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद चिकित्सीय सलाह लेना बहुत जरूरी है, जिससे जल्द से जल्द मरीज ठीक हो सके।

ऐसे मरीज जो कोरोना संक्रमण के चलते अपने घर पर ही क्वारंटाइन हो, उनके लिए भी बहुत जरूरी है कि क्वारंटाइन होने से पहले एक बार चिकित्सक से जांच करवाएं तथा उन्हीं के निर्देशों के आधार पर जरूरत के अनुसार बताई गई दवाइयों का सेवन करें। रिश्तेदारों, दोस्तों , सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम से बताए जा रहे दवाइयों या इलाज के अन्य तरीकों का उपयोग बिना चिकित्सीय सलाह के बिल्कुल भी न करें। विशेष तौर पर यदि ऑक्सीजन में कमी आने लगे, लगातार खांसी हो, सांस लेने में समस्या हो या हद से ज्यादा कमजोरी नजर आने लगे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।

दुनिया भर में लोग कोरोना महामारी के विकराल स्वरूप के गवाही दे रहे हैं । इस घातक संक्रमण के प्रभाव के चलते रोज बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गवा रहे हैं, वही बहुत से लोग ठीक होने के बाद भी इसके पार्श्व प्रभाव झेल रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है की इस संक्रमण से पीड़ित बहुत से लोग विभिन चिंताओं और आशंकाओं के प्रभाव में आकर ना सिर्फ कोरोना पोजिटिव आने के बाद बल्कि उससे पहले भी चिकित्सक से बगैर सलाह लिए स्वः चिकित्सा यानी इधर-उधर से जानकारियाँ लेकर अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर दे रहें हैं, जो सही नही है ।

जापान तथा एपीईसी देशों में विभिन्न संस्थाओं से सम्बद्ध फार्मा रणनीति सलाहकार स्वरूप पांडा ने इटीवी भारत सुखी भव के साथ एक विशेष चर्चा में बताया की इस तरह की प्रव्रत्ति ना मरीज के कोरोना से ठीक होने की रफ्तार को कम करती है बल्कि उनके शरीर में संक्रमण के स्थाई या गंभीर प्रभाव भी छोड़ सकती है। ऐसे मरीजों में ठीक होने के बाद भी गंभीर और जानलेवा पार्श्व प्रभाव नजर आ सकते है।

लोगों में भारी अनिश्चितता और डर

स्वरूप पांडा बताते हैं की वर्तमान समय में परिस्तिथिया ऐसी हैं की हमारी जनसंख्या का एक बड़ा प्रतिशत इस महामारी का शिकार है ऐसे में बड़ी संख्या में लोग अस्पताल जाकर इलाज करवाने में डर रहें हैं। ऐसे बहुत से कारण जिनके चलते लोग संक्रमण की पुष्टि होने पर अपने आप ही बिना चिकित्सक से सलाह लिए इधर उधर से जानकारी लेकर दवाइयां लेना शुरू कर दे रहे हैं। चिकित्सक तथा जानकर कोरोना संक्रमण को लेकर स्वः चिकित्सा प्रवत्ति का कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि बगैर शारीरिक अवस्था की जांच किए अपने आप कोरोना के लिए दवाई लेने से पीड़ित के शरीर पर कोरोना का असर कम नहीं होता है बल्कि बहुत ज्यादा बढ़ सकता है।यहाँ तक की स्तिथि जानलेवा भी हो सकती है।

क्यों अपनाते हैं लोग स्वः चिकित्सा

ऐसी कई परिस्तिथ्यां या कारण हो सकते हैं जिनके चलते लोग अपने आप दवाइयाँ लेना शुरू कर देते हैं जो इस प्रकार हैं।

  • संक्रमण से बचाव की उम्मीद में लोग पहले से ही दवाइयाँ खाना शुरू कर देते हैं।
  • उपचार के विकल्प के रूप में।
  • चिकित्सक द्वारा दिए गए प्रिस्क्रिप्शन में बेहतर परिणाम की संभावना में कुछ लोग अपने आप कुछ दवाइयां बढ़ा लेते हैं ।
  • संक्रमण के इलाज की अवधि लगभग पूरी होने के बावजूद भी यदि किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो भी लोग अपने आप अतिरिक्त दवाइयों का सेवन शुरू कर देते हैं ।

पढ़ें : कोविड-19 के नित नए प्रकार प्रकार दे रहें है चेतावनी

सूचनाओं का दुरुपयोग

स्वरूप पांडा बताते हैं की आजकल कोरोना को लेकर दवाइयों और उपचारों के बारे में सभी जगह जानकारियां उपलब्ध है विशेष तौर पर सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स और सर्च इंजंस पर। यही नहीं बहुत से लोगों ने कोरोना होने पर चिकित्सक द्वारा दिए गए प्रिसक्रिप्शन को सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रसारित कर दिया है। ऐसे में कई लोग इस संक्रमण से बचने या संक्रमण के हल्के लक्षण नजर आने पर भी लोग खुद ही अपना इलाज शुरू कर दे रहे हैं भले ही वह कोरोना पॉजिटिव हो या नहीं हों।

विभिन्न चिकित्सक और जानकार अलग अलग माध्यमों से इस बारें में लोगों को अवगत करवाते रहते हैं की कोरोना का स्थाई इलाज नही है और मरीज के अवस्था के आधार पर ही उनकी दवाइयाँ तथा उपचार निर्धारित किया जाता है। इसी संबंध में स्वरूप पांडा बताते हैं की रोगी की शारीरिक अवस्था ,उसकी आयु, उस पर संक्रमण का असर तथा उसकी पुरानी शारीरिक बीमारियों सहित बहुत से ऐसे कारक हैं जो उसकी दवाइयों तथा उनकी मात्रा को निर्धारित करते हैं।

उदाहरण के लिए मधुमेह के रोगियों की दवाइयां कुछ अलग होंगी, हृदय रोगियों या कुछ अन्य गंभीर रोगियों से ग्रसित लोगों की दवाइयां कुछ अलग होंगी । वहीं संक्रमण से जूझ रहे सामान्य स्वास्थ्य वाले लोगों की दवाइयां विशेषकर उन की मात्रा अलग होंगी। ऐसे में सभी का प्रिस्क्रीप्शन अलग होता है। लेकिन बगैर इस बात को जाने समझे जो लोग स्वः उपचार के चलते स्टेरॉइड, एंटीवायरल, एंटीबायोटिक- एंटीवायरल इंजेक्शन का बगैर चिकित्सीय सलाह के उपयोग करते हैं तो उनमें बहुत गंभीर पार्श्व प्रभाव नजर आते हैं। जैसे एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोधक सूक्ष्म जीवों का पैदा होना तथा उनसे जुड़े संक्रमण होना, डर्माटोक्सिटी,कर्डियोटोक्सिटी तथा हेपाटोक्सिटी संबंधित दवाइयों के अनावश्यक उपयोग या ज्यादा या कम मात्रा में उपयोग के आधार पर शरीर में उच्च संवेदनशीलता की शिकायत होना आदि।

विशेष तौर पर कोरोना के इलाज में दिए जाने वाले स्टेरॉइड का अनावश्यक या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल भी ना सिर्फ शरीर पर संक्रमण के प्रभाव को गंभीर कर सकता है बल्कि संक्रमण से ठीक होने के बाद भी पीड़ित में अलग प्रकार के संक्रमण का कारण बन सकता है जैसे ब्लैक फंगस आदि। वहीं बगैर जानकारी रेमदेसीविर जैसी दवाई का इस्तेमाल भी जानलेवा हो सकता है। गौरतलब है रेमदेसीविर के इस्तेमाल को लेकर वैसे भी काफी सख्त नियम बनाए गए हैं , जैसे इसे किसी चिकित्सक के दिशा निर्देश में अस्पताल में ही मरीज को दिया जाना चाहिए। बिना जरूरत इसका उपयोग करने पर मरीज में कोरोना से ठीक होने के बाद भी घातक परिणाम नजर आते हैं।

ज्यादातर मामलों में दवाइयों की जरूरत नहीं है

इसी संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए पीजीआई चंडीगढ़ के प्रोफेसर पूरी बताते हैं कि कोरना संक्रमण से ग्रसित लगभग 80% लोगों को किसी प्रकार की दवाई की जरूरत नहीं होती है। दरअसल कोरोना के चलते जो मुख्य समस्या लोगों में नजर आती है वह है उनके फेफड़ों पर असर पड़ना, जिसके चलते उनके शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। यदि पीड़ित नियमित तौर पर ऑक्सीमीटर की मदद से अपने शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का निरीक्षण कर रहे हैं और वह सामान्य है तो चिंता की कोई बात नहीं होती है। लेकिन कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद चिकित्सीय सलाह लेना बहुत जरूरी है, जिससे जल्द से जल्द मरीज ठीक हो सके।

ऐसे मरीज जो कोरोना संक्रमण के चलते अपने घर पर ही क्वारंटाइन हो, उनके लिए भी बहुत जरूरी है कि क्वारंटाइन होने से पहले एक बार चिकित्सक से जांच करवाएं तथा उन्हीं के निर्देशों के आधार पर जरूरत के अनुसार बताई गई दवाइयों का सेवन करें। रिश्तेदारों, दोस्तों , सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम से बताए जा रहे दवाइयों या इलाज के अन्य तरीकों का उपयोग बिना चिकित्सीय सलाह के बिल्कुल भी न करें। विशेष तौर पर यदि ऑक्सीजन में कमी आने लगे, लगातार खांसी हो, सांस लेने में समस्या हो या हद से ज्यादा कमजोरी नजर आने लगे तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।

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