42 साल की नीलिमा एक पढ़ी-लिखी महिला हैं, जिसकी दिनचर्या सुबह पति और बच्चों का डिब्बा बनाने से शुरू होती थी और पूरा दिन घर, परिवार तथा बाहर की जिम्मेदारियों में बीतता था. नीलिमा के जीवन का दायरा उन्हीं सब के आसपास सिमटा था, जिसमें सिर्फ उन लोगों को पसंद, जरूरतों तथा उनकी सोच के लिए जगह थी, लेकिन धीरे-धीरे नीलिमा को लगने लगा की वह खुश नही है और किसी को उसकी खुशी का ख्याल भी नही हैं. यहां तक कि कोई भी उसकी मेहनत को नही समझता है. जिसके चलते वह गुस्से, चिड़चिड़ाहट तथा हीनभावना का शिकार होने लगी.
यह कहानी सिर्फ नीलिमा की नहीं है. वर्तमान समय में बहुत से महिला और पुरुष जीवन की भागदौड़ में दूसरों की खुशी के लिए, परिवार, ऑफिस व समाज की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए तथा दूसरों से अच्छी प्रतिक्रिया पाने की उम्मीद में समाज व दूसरों के बनाए दायरों में सिमट कर जीवन जीने लगते हैं . जिसके चलते उनके व्यवहारिक व मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव पड़ने लगता है, और वे खुश रहने की बजाय चिंता, घबराहट, गुस्से तथा अवसाद आदि का शिकार बनने लगते हैं. जानकार मानते हैं दुनिया भर में मानसिक व व्यवहारिक समस्याओं के बढ़ते हुए मामलों के लिए जिम्मेदार कारकों में से यह भी एक महत्वपूर्ण कारक है.
जानकार तथा मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि ऐसे लोग जो खुद को दूसरों की अपेक्षाओं की दायरे से बाहर निकाल कर, खुद की अहमियत, जिम्मेदारी व भूमिका को समझ कर और दूसरों के साथ अपनी खुशी को भी महत्व देते हुए जीवन बिताते हैं, वे ना सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभा पाते हैं बल्कि वे अपने जीवन में अपेक्षाकृत ज्यादा खुश भी रहते हैं.
सेल्फ लव
मनोवैज्ञानिक डॉ रेणुका बताती हैं की आजकल लोगों में “सेल्फ लव” शब्द काफी ट्रेंडी हो रहा है. इस शब्द से तात्पर्य यह नही हैं कि व्यक्ति सिर्फ अपने आप से प्यार करे और बाकी सब को भूल जाए . सेल्फ लव से तात्पर्य है अपनी अहमियत, दूसरों के जीवन में अपनी जरूरत, अपनी उपलब्धियों तथा अपनी खुशियों को दूसरों की नजर से नही बल्कि अपनी नजर से देखना तथा उसे सम्मान देना. दूसरों के साथ-साथ खुद से भी प्यार करना तथा खुद को खुश रखने के लिए हर संभव प्रयास करना.
सही नहीं है खुद को कमतर आंकना
डॉ रेणुका बताती हैं कि आमजन की आदत होती हैं कि लोगों को उनके रूप, गुण, सोशल स्टेटस, आर्थिक स्तिथि तथा कई अन्य मानकों पर अच्छे या बुरे का तमगा देने की. ऐसे में अधिकांश लोग जो उन सभी में दूसरों से कुछ कमतर हों, तो उनमें हीनभावना आने लगती है. वे अपने आप को दूसरों से कम समझने लगते हैं और दूसरों को खुश करने के लिए अपनी इच्छाओं, पसंद, प्राथमिकताओं, खुशियों तथा संतोष तो भूल कर प्रयास करने लगते हैं. ऐसे में उनमें खीझ, उदासी, चिड़चिड़ाहट, उचाटता, गुस्सा तो कभी-कभी अवसाद उत्पन्न होने लगता है. ऐसे में ना तो वे खुश रह पाते हैं और ना ही उनके साथ रहने वाला उनका परिवार, उनके दोस्त तथा उनसे जुड़े अन्य लोग.
वहीं ऐसे लोग जो खुद की कमी व खूबियों को स्वीकारते हुए ऐसा जीवन जीते हैं जहां वे दूसरों को खुश रखने के साथ ही अपनी पसंद और अपनी खुशियों को भी महत्व देते हैं, अपनी सोच व अपनी जरूरतों को महत्वपूर्ण मानते हैं तथा खुद को खुश रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, उनका जीवन अपेक्षाकृत ज्यादा संतोषपूर्ण व आनंदमई होता है. ऐसा नही होता कि उन्हे व्यावहारिक व मानसिक समस्याएं नहीं होती है , लेकिन उन पर इन अवस्थाओं का प्रभाव कम पड़ता है.
कुछ समय सिर्फ अपने लिए
डॉ रेणुका बताती हैं कि आमतौर लोग विशेषतौर पर महिलायें अपने परिजनों को खुश रखने में जीवन बीता देती हैं. कभी उनकी जरूरतें पूरी करने के लिए , तो कभी सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के चलते वे अपनी खुशियों, यहाँ तक की अपनी जरूरतों को भी नजरअंदाज कर देती हैं, जो सही नही है.
चाहे महिला हो या पुरुष अपने दिन का कुछ समय सिर्फ अपने साथ बिताना, कभी-कभी अपने दोस्तों के साथ खुलकर इन्जॉय करना, अपनी पसंद का खाना खाना या काम करना, सिर्फ दूसरों की ही नही बल्कि अपनी जरूरतों को भी समझना और उन्हे पूरा करने का प्रयास करना आदि बहुत से ऐसे काम हैं जो आपकों एक अलग तरह की खुशी और संतुष्टि देते हैं.
अपने मूल्य को समझें
डॉ रेणुका बताती हैं हम हमेशा किसी भी उपलब्धि के लिए दूसरों की स्वीकार्यता तथा उनसे सराहना की उम्मीद रखते हैं. यानी हम अपनी उपलब्धि को लेकर भी खुद से ज्यादा दूसरों की सोच को प्राथमिकता देते हैं. निसन्देह दुसरे जब आपकी तारिफ करते हैं तो मन काफी खुश हो जाता है, लेकिन यदि दूसरे हमारी उपलब्धि को ज्यादा मान नही देते हैं ,तो ना सिर्फ व्यक्ति का मनोबल व आत्मविश्वास कम होने लगता है बल्कि वह अपनी ही मेहनत और उपलब्धि को लेकर आशंकित हो जाता है.
यदि आप अपने साथी कर्मचारियों, परिजनों, दोस्तों तथा समाज के तुलनात्मक व्यवहार तथा उनकी अपेक्षाओं की और ज्यादा ध्यान ना देकर अपनी मेहनत का सम्मान करेंगे तथा उपलब्धि चाहे छोटी हो या बड़ी उसे लेकर खुश महसूस करेंगे तो ना सिर्फ खुशी बल्कि सेंस ऑफ अचिवमेंट भी महसूस करेंगे. जिससे आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और आगे बढ़ने की चाहत भी. साथ ही काम करने में आनंद भी महसूस करेंगे.
डॉ रेणुका बताती हैं “सेल्फ लव“ सुनने में बहुत आसन लगता है लेकिन सामाजिक दायरों में रहकर तमाम तरह की जिम्मेदारियों के बीच खुद के लिए “मी टाइम “ निकालना, दूसरों की अपेक्षाओं पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए अपने लिए खुद सफलता का मतलब तथा उसके लिए सही दिशा चुनना तथा सबसे पहले खुद से प्रेम करना सरल नही होता है. लेकिन यदि इस दिशा में रोज थोड़ा-थोड़ा प्रयास किया जाय तो सफलता अवश्य मिल सकती हैं.
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