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संक्रमण का खतरा बढ़ा सकते हैं सेनेट्री नैपकिन।

माहवारी के दौरान इस्तेमाल होने वाले सेनेट्री नैपकिन कई बार महिलाओं तथा लड़कियों में असहजता तथा संक्रमण का कारण भी बन सकते हैं। मासिक धर्म के दौरान तथा उसके बाद भी महिलाओं का निजी स्वास्थ्य बरकरार रहे इसलिए बहुत जरूरी है की इस दौरान साफ सफाई का तो विशेष ध्यान रखा ही जाए, साथ ही  सेनेट्री नैपकिन के उपयोग से जुड़े निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया जाय। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने देवास (मध्यप्रदेश ) की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ प्राची माहेश्वरी से बात की।

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सेनेट्री नैपकिन संक्रमण का खतरा
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Published : May 30, 2021, 9:01 AM IST

माहवारी के दौरान आमतौर पर महिलाएं सेनेट्री नैपकिन जिन्हें प्रचलित भाषा में पैड कहा जाता है का इस्तेमाल करती है। यह पैड कपड़ों पर दाग लगने से तो बचा देते हैं लेकिन इनकी वजह से कई बार महिलाओं के निजी अंगों की त्वचा पर रेशेज ,खुजली, जलन तथा फंगल इंफेक्शन होने की आशंका रहती है।

सेनेटरी नैपकिन महिलाओं के निजी अंगों को किस तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं साथ ही विभिन्न प्रकार के संक्रमणो से बचने के लिए महिलाएं सैनिटरी नैपकिंस के स्थान पर किन विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती हैं इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने देवास (मध्यप्रदेश ) की महिला रोग विशेषज्ञ (गायनाकोलॉजिस्ट) डॉ प्राची माहेश्वरी से बात की।

कैसे नुकसान पहुंचते हैं सेनेट्री नैपकिन

डॉ प्राची बताती हैं की बड़ी संख्या में महिलाओं में सेनेट्री नैपकिन के इस्तेमाल के चलते फंगल संक्रमण तथा अन्य प्रकार के त्वचा व योनि से जुड़े संक्रमण देखने में आते हैं। दरअसल महावारी के दौरान लड़कियां तथा महिलायें लंबे समय तक पैड का इस्तेमाल करती है, यहीं नही वह एक पैड का इस्तेमाल निर्देशित अवधि से काफी ज्यादा समय तक करती है। ऐसे में योनी के आसपास के हिस्सों में रक्तस्राव तथा पसीने का कारण नमी तथा गिलापन बना रहता है। जिसके कारण बड़ी संख्या में महिलाओं में विभिन्न प्रकार के संक्रमण , खुजली तथा जलन के मामले देखने में आते हैं।

इसके अतिरिक्त कई बार पैड की ऊपरी परत यानी उसका आवरण भी महिलाओं के निजी अंगों की त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। डॉ प्राची बताती हैं की पैड का निर्माण में आमतौर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों का उपयोग किया जाता है जिससे उनकी सोखने के क्षमता बढ़े तथा उनसे बदबू न आए। ऐसी महिलायें जिनकी त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है उनकी त्वचा जब पैड के संपर्क में आती है तो त्वचा पर रैश, दाने या संक्रमण के प्रभाव नजर आने लगते हैं।

गौरतलब है की सेनेट्री नैपकिन के निर्माण में आमतौर पर डाइऑक्सिन नामक रसायन का इस्तेमाल किए जाता है, जिसका सैनिटरी पैड को ब्लीच करने के लिए उपयोग किया जाता है। डाइऑक्सिन एक हानिकारक तत्व होता है और इससे कई खतरे हो सकते हैं। वहीं अधिकांश पैड में रक्त की गंध को नियंत्रित करने के लिए डिओडोरेंट या न्यूट्रलाइजर मिलाए जाते हैं। सुगंधित पैड के साथ जोखिम यह है कि वे आपकी प्रजनन क्षमता पर गलत तरह से असर डाल सकते हैं। इन्ही सब घटकों के चलते सेनेट्री नैपकिन का इस्तेमाल त्वचा में खुजली व जलन पैदा करने के अलावा, यह वेजाइनल यीस्‍ट इंफेक्‍शन और अन्य संक्रमणों के जोखिम को भी बढ़ाते हैं।

पढ़ें: महिलाओं के शारीरिक विकास की मुख्य प्रक्रिया है मासिक चक्र

क्या हैं पैड के विकल्प

डॉ प्राची बताती है की बहुत जरूरी है की महिलायें माहवारी के दौरान सफाई और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें । आमतौर पर नियमित अंतराल पर पैड बदलने तथा स्वच्छता का ज्यादा ध्यान रखने से काफी हद तक समस्याओं से बचा जा सकता है। लेकिन फिर भी यदि महिलाओं को माहवारी के दौरान या उसके उपरांत योनि तथा योनि के आसपास की त्वचा में दर्द, जलन, खुजली तथा लालिमा नजर आए तो बाजार में मिलने वालए सिंथेटिक आवरण वाले पैड की बजाय रुई तथा सूती कपड़े से बनने वाले पैड या मैनस्ट्रूअल कप यानी मासिक चक्र कप का इस्तेमाल भी किया जा सकता हैं

डॉ प्राची बताती हैं की हालांकि पैड के मुकाबले टैम्पून का इस्तेमाल संक्रमण की आशंका की कुछ हद तक कम करता है लेकिन संक्रमण को पूरी तरह से रोकने में यह सक्षम नही होता है। इसके अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों विशेषकर, मेट्रो शहरों में महिलायें मैनस्ट्रूअल कप का बड़ी संख्या में इस्तेमाल करती है। जिसका मुख्य कारण यह है की यह इस्तेमाल में सरल होता है। इसे हर महीने खरीदने की जरूरत नही पड़ती है, इसलिए किफायती होता है और चूंकि यह योनि की बाहरी तथा आसपास की त्वचा को नही छूता है इसलिए इसके कारण संक्रमण का खतरा भी कम होता है।

सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून तथा मैनस्ट्रूअल कप के इस्तेमाल से जुड़ी जरूरी जानकारी

डॉ प्राची बताती हैं की भले ही माहवारी के दौरान किसी भी साधन का उपयोग किया जा रहा हो, स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है।

  • सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं को हर चार घंटे में सेनेट्री नैपकिन/टैम्पून को बदलते रहना चाहिए।
  • सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून तथा मैनस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल से पहले तथा बाद में साबुन से अच्छे से हाथ धोना चाहिए।
  • एक बार में कम से कम दो मैनस्ट्रूअल कप खरीदने चाहिए, जिससे एक बार कप भर जाने पर दूसरा इस्तेमाल किया जा सके। हर बार अच्छे से धोकर तथा गरम पानी में उबाल कर ही मैनस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • मैनस्ट्रूअल कप तथा टैम्पून के इस्तेमाल से पहले उसके इस्तेमाल, उसके आकार के चयन तथा उससे जुड़ी सावधानियों के बारें में अच्छे से जानकारी ले लेनी चाहिए।
  • माहवारी के दौरान ज्यादा कसे हुए कपड़े नही पहनने चाहिए इससे निजी अंगों में वायु संचार होते रहता है और नमी पनपने नही पाती है।
  • जहां तक संभव हो जननांग को सुखा रखने का प्रयास करें।
  • यूटीआई संक्रमण को रोकने के लिए माहवारी के दौरान पर्याप्त मात्रा में में पानी पीना चाहिए।

अपने अंडरवियर को नियमित रूप से साफ करें और उन्हें ठीक धूप में सुखाएं ताकि कोई नमी न रहे।

माहवारी के दौरान आमतौर पर महिलाएं सेनेट्री नैपकिन जिन्हें प्रचलित भाषा में पैड कहा जाता है का इस्तेमाल करती है। यह पैड कपड़ों पर दाग लगने से तो बचा देते हैं लेकिन इनकी वजह से कई बार महिलाओं के निजी अंगों की त्वचा पर रेशेज ,खुजली, जलन तथा फंगल इंफेक्शन होने की आशंका रहती है।

सेनेटरी नैपकिन महिलाओं के निजी अंगों को किस तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं साथ ही विभिन्न प्रकार के संक्रमणो से बचने के लिए महिलाएं सैनिटरी नैपकिंस के स्थान पर किन विकल्पों का इस्तेमाल कर सकती हैं इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने देवास (मध्यप्रदेश ) की महिला रोग विशेषज्ञ (गायनाकोलॉजिस्ट) डॉ प्राची माहेश्वरी से बात की।

कैसे नुकसान पहुंचते हैं सेनेट्री नैपकिन

डॉ प्राची बताती हैं की बड़ी संख्या में महिलाओं में सेनेट्री नैपकिन के इस्तेमाल के चलते फंगल संक्रमण तथा अन्य प्रकार के त्वचा व योनि से जुड़े संक्रमण देखने में आते हैं। दरअसल महावारी के दौरान लड़कियां तथा महिलायें लंबे समय तक पैड का इस्तेमाल करती है, यहीं नही वह एक पैड का इस्तेमाल निर्देशित अवधि से काफी ज्यादा समय तक करती है। ऐसे में योनी के आसपास के हिस्सों में रक्तस्राव तथा पसीने का कारण नमी तथा गिलापन बना रहता है। जिसके कारण बड़ी संख्या में महिलाओं में विभिन्न प्रकार के संक्रमण , खुजली तथा जलन के मामले देखने में आते हैं।

इसके अतिरिक्त कई बार पैड की ऊपरी परत यानी उसका आवरण भी महिलाओं के निजी अंगों की त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। डॉ प्राची बताती हैं की पैड का निर्माण में आमतौर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों का उपयोग किया जाता है जिससे उनकी सोखने के क्षमता बढ़े तथा उनसे बदबू न आए। ऐसी महिलायें जिनकी त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है उनकी त्वचा जब पैड के संपर्क में आती है तो त्वचा पर रैश, दाने या संक्रमण के प्रभाव नजर आने लगते हैं।

गौरतलब है की सेनेट्री नैपकिन के निर्माण में आमतौर पर डाइऑक्सिन नामक रसायन का इस्तेमाल किए जाता है, जिसका सैनिटरी पैड को ब्लीच करने के लिए उपयोग किया जाता है। डाइऑक्सिन एक हानिकारक तत्व होता है और इससे कई खतरे हो सकते हैं। वहीं अधिकांश पैड में रक्त की गंध को नियंत्रित करने के लिए डिओडोरेंट या न्यूट्रलाइजर मिलाए जाते हैं। सुगंधित पैड के साथ जोखिम यह है कि वे आपकी प्रजनन क्षमता पर गलत तरह से असर डाल सकते हैं। इन्ही सब घटकों के चलते सेनेट्री नैपकिन का इस्तेमाल त्वचा में खुजली व जलन पैदा करने के अलावा, यह वेजाइनल यीस्‍ट इंफेक्‍शन और अन्य संक्रमणों के जोखिम को भी बढ़ाते हैं।

पढ़ें: महिलाओं के शारीरिक विकास की मुख्य प्रक्रिया है मासिक चक्र

क्या हैं पैड के विकल्प

डॉ प्राची बताती है की बहुत जरूरी है की महिलायें माहवारी के दौरान सफाई और स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें । आमतौर पर नियमित अंतराल पर पैड बदलने तथा स्वच्छता का ज्यादा ध्यान रखने से काफी हद तक समस्याओं से बचा जा सकता है। लेकिन फिर भी यदि महिलाओं को माहवारी के दौरान या उसके उपरांत योनि तथा योनि के आसपास की त्वचा में दर्द, जलन, खुजली तथा लालिमा नजर आए तो बाजार में मिलने वालए सिंथेटिक आवरण वाले पैड की बजाय रुई तथा सूती कपड़े से बनने वाले पैड या मैनस्ट्रूअल कप यानी मासिक चक्र कप का इस्तेमाल भी किया जा सकता हैं

डॉ प्राची बताती हैं की हालांकि पैड के मुकाबले टैम्पून का इस्तेमाल संक्रमण की आशंका की कुछ हद तक कम करता है लेकिन संक्रमण को पूरी तरह से रोकने में यह सक्षम नही होता है। इसके अतिरिक्त शहरी क्षेत्रों विशेषकर, मेट्रो शहरों में महिलायें मैनस्ट्रूअल कप का बड़ी संख्या में इस्तेमाल करती है। जिसका मुख्य कारण यह है की यह इस्तेमाल में सरल होता है। इसे हर महीने खरीदने की जरूरत नही पड़ती है, इसलिए किफायती होता है और चूंकि यह योनि की बाहरी तथा आसपास की त्वचा को नही छूता है इसलिए इसके कारण संक्रमण का खतरा भी कम होता है।

सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून तथा मैनस्ट्रूअल कप के इस्तेमाल से जुड़ी जरूरी जानकारी

डॉ प्राची बताती हैं की भले ही माहवारी के दौरान किसी भी साधन का उपयोग किया जा रहा हो, स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है।

  • सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून का इस्तेमाल करने वाली महिलाओं को हर चार घंटे में सेनेट्री नैपकिन/टैम्पून को बदलते रहना चाहिए।
  • सेनेट्री नैपकिन, टैम्पून तथा मैनस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल से पहले तथा बाद में साबुन से अच्छे से हाथ धोना चाहिए।
  • एक बार में कम से कम दो मैनस्ट्रूअल कप खरीदने चाहिए, जिससे एक बार कप भर जाने पर दूसरा इस्तेमाल किया जा सके। हर बार अच्छे से धोकर तथा गरम पानी में उबाल कर ही मैनस्ट्रूअल कप का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • मैनस्ट्रूअल कप तथा टैम्पून के इस्तेमाल से पहले उसके इस्तेमाल, उसके आकार के चयन तथा उससे जुड़ी सावधानियों के बारें में अच्छे से जानकारी ले लेनी चाहिए।
  • माहवारी के दौरान ज्यादा कसे हुए कपड़े नही पहनने चाहिए इससे निजी अंगों में वायु संचार होते रहता है और नमी पनपने नही पाती है।
  • जहां तक संभव हो जननांग को सुखा रखने का प्रयास करें।
  • यूटीआई संक्रमण को रोकने के लिए माहवारी के दौरान पर्याप्त मात्रा में में पानी पीना चाहिए।

अपने अंडरवियर को नियमित रूप से साफ करें और उन्हें ठीक धूप में सुखाएं ताकि कोई नमी न रहे।

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