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Lung Disease : हमारे फेफड़ों को वायु प्रदूषण क्यों व कैसे प्रभावित करता है! - USC news

USC में केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में पैथोलॉजी के प्रोफेसर एडवर्ड क्रैन्डल ने कहा, हम जानते हैं कि बीमारियां, विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारियां, वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप हो सकती हैं. हम नहीं जानते कि यह किस तंत्र द्वारा होता है. Air pollution . Lung disease

Air pollution Lung disease relation
वायु प्रदूषण फेफड़ों की बीमारी
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Published : May 18, 2023, 10:38 AM IST

न्यूयॉर्क : वायु प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारी के बीच संबंध को लंबे समय से लोग स्वीकारते आए हैं. एक नए अध्ययन से एक जैविक प्रक्रिया का पता चलता है जो उस संबंध की वजह हो सकती है - एक खोज जो प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के इलाज या रोकथाम के बेहतर तरीकों पर नई रौशनी डाल सकती है. अध्ययन में पाया गया कि परिवेश में मौजूद नैनोकणों या हवा में बहुत छोटे प्रदूषकों के संपर्क में आने से ऑटोफैगी नामक एक कोशिकीय रक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है जो अन्य संभावित कुप्रभावों से लड़ने की कोशिकाओं की क्षमता को कम कर सकता है.

इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि वायु प्रदूषण कैसे किसी व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर, इंटरस्टिशियल पल्मोनरी फाइब्रोसिस और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज सहित फेफड़ों की कई अक्यूट और क्रॉनिक बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न कैलिफॉर्निया- USC में केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में पैथोलॉजी के प्रोफेसर एडवर्ड क्रैन्डल ने कहा, हम जानते हैं कि बीमारियां, विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारियां, वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप हो सकती हैं. हम नहीं जानते कि यह किस तंत्र द्वारा होता है.

पहली बार, शोधकर्ताओं ने पाया कि नैनोकणों के संपर्क में आने पर, कोशिकाओं में ऑटोफैगी गतिविधि ऊपरी सीमा तक पहुंच जाती है. क्रैन्डल ने कहा, इन अध्ययनों का निहितार्थ यह है कि ऑटोफैगी एक रक्षा तंत्र है जिसकी ऊपरी सीमा होती है, जिसके आगे यह सेल की रक्षा नहीं कर सकता है. जर्नल ऑटोफैगी रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा कोशिकाओं का उपयोग करके परीक्षणों की एक श्रंखला आयोजित की.

वे पहले कोशिकाओं को नैनोकणों के संपर्क में लेकर आए. इसके बाद रैपामाइसिन (एक रसायन जिसे ऑटोफैगी को उत्तेजित करने के लिए जाना जाता है) के संपर्क में लाए और फिर दोनों के संपर्क में एक साथ लाए. हर मामले में ऑटोफैगी गतिविधि उसी ऊपरी सीमा तक पहुंच गई और आगे नहीं बढ़ी. नतीजतन, कोशिकाओं में अन्य खतरों, जैसे सांस में धुआं जाना या विषाणु अथवा जीवाणु के संक्रमण से बचाव के लिए ऑटोफैगी का स्तर और बढ़ाने की क्षमता खत्म हो सकती है. ऑटोफैगी स्वस्थ कोशिकाओं के लिए वरदान है तो वहीं इसके कारण कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना कठिन हो जाता है. टीम ने कहा कि कोशिकाओं में ऑटोफैगी को बढ़ाने या कम करने का तरीका विकसित करना बीमारी से बचाव और इलाज का एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है. Air pollution . Lung disease

(आईएएनएस)

ये भी पढ़ें : Ayurvedic precautions for asthma : अस्थमा से बचना है तो औषधि व सही आहार के साथ सावधानियां भी है जरूरी

न्यूयॉर्क : वायु प्रदूषण और फेफड़ों की बीमारी के बीच संबंध को लंबे समय से लोग स्वीकारते आए हैं. एक नए अध्ययन से एक जैविक प्रक्रिया का पता चलता है जो उस संबंध की वजह हो सकती है - एक खोज जो प्रदूषण से होने वाली बीमारियों के इलाज या रोकथाम के बेहतर तरीकों पर नई रौशनी डाल सकती है. अध्ययन में पाया गया कि परिवेश में मौजूद नैनोकणों या हवा में बहुत छोटे प्रदूषकों के संपर्क में आने से ऑटोफैगी नामक एक कोशिकीय रक्षा तंत्र सक्रिय हो जाता है जो अन्य संभावित कुप्रभावों से लड़ने की कोशिकाओं की क्षमता को कम कर सकता है.

इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि वायु प्रदूषण कैसे किसी व्यक्ति के फेफड़ों के कैंसर, इंटरस्टिशियल पल्मोनरी फाइब्रोसिस और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज सहित फेफड़ों की कई अक्यूट और क्रॉनिक बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न कैलिफॉर्निया- USC में केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में पैथोलॉजी के प्रोफेसर एडवर्ड क्रैन्डल ने कहा, हम जानते हैं कि बीमारियां, विशेष रूप से फेफड़ों की बीमारियां, वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप हो सकती हैं. हम नहीं जानते कि यह किस तंत्र द्वारा होता है.

पहली बार, शोधकर्ताओं ने पाया कि नैनोकणों के संपर्क में आने पर, कोशिकाओं में ऑटोफैगी गतिविधि ऊपरी सीमा तक पहुंच जाती है. क्रैन्डल ने कहा, इन अध्ययनों का निहितार्थ यह है कि ऑटोफैगी एक रक्षा तंत्र है जिसकी ऊपरी सीमा होती है, जिसके आगे यह सेल की रक्षा नहीं कर सकता है. जर्नल ऑटोफैगी रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा कोशिकाओं का उपयोग करके परीक्षणों की एक श्रंखला आयोजित की.

वे पहले कोशिकाओं को नैनोकणों के संपर्क में लेकर आए. इसके बाद रैपामाइसिन (एक रसायन जिसे ऑटोफैगी को उत्तेजित करने के लिए जाना जाता है) के संपर्क में लाए और फिर दोनों के संपर्क में एक साथ लाए. हर मामले में ऑटोफैगी गतिविधि उसी ऊपरी सीमा तक पहुंच गई और आगे नहीं बढ़ी. नतीजतन, कोशिकाओं में अन्य खतरों, जैसे सांस में धुआं जाना या विषाणु अथवा जीवाणु के संक्रमण से बचाव के लिए ऑटोफैगी का स्तर और बढ़ाने की क्षमता खत्म हो सकती है. ऑटोफैगी स्वस्थ कोशिकाओं के लिए वरदान है तो वहीं इसके कारण कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना कठिन हो जाता है. टीम ने कहा कि कोशिकाओं में ऑटोफैगी को बढ़ाने या कम करने का तरीका विकसित करना बीमारी से बचाव और इलाज का एक महत्वपूर्ण तरीका हो सकता है. Air pollution . Lung disease

(आईएएनएस)

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