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दिल्ली में 88 साल के  'मेडिसिन बाबा' जरूरतमंदों के लिए घर-घर जाकर मांगते हैं दवाइयां - MEDICINE BABA DELHI

15 साल से बीमारों की सेवा कर रहे है ओंकारनाथ, स्कूली बच्चे कॉल करके फ्री दवाओं के बारे में पूछते हैं.

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15 साल से जरूतमंदों को फ्री बांट रहे दवाइयां (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 12 hours ago

Updated : 11 hours ago

नई दिल्ली: पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर की संकरी गलियों में एक बाबा घर-घर जाकर लोगों से दवाइयां मांगता है और फिर उन दवाइयों से गरीबों की मदद करता है. इन बाबा का नाम है मेडिसिन बाबा. असली नाम ओंकारनाथ. जो खुद अपने आप में एक मिसाल बन गए हैं.

उत्तम नगर में तीन कमरों वाले किराए के मकान में ओंकारनाथ यानि मेडिसिन बाबा रहते हैं. जिसमें दो कमरों में 1 रुपए से लेकर 2 लाख रुपए तक की दवाइयां, ऑक्सीजन सिलेंडर, महंगे इंजेक्शन, व्हील चेयर, बैसाखी और बीमारी के समय उपयोग आने वाली तमाम आवश्यक सामान रखे हैं, वहीं दूसरे कमरे में उनका ऑफिस है. 88 साल के ओंकारनाथ गरीबों के बीच मेडिसिन बाबा के नाम से चर्चित हैं. वो हर साल डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की दवाई मंगाकर जरूरतमंद गरीबों की मदद करते हैं. हैरानी की बात यह है कि मेडिसिन बाबा 85 फीसदी दिव्यांग हैं और वह पूरे दिन गलियों में घूम घूम कर आवाज लगाकर लोगों से दवाइयां मंगाते हैं. आइये जानते हैं ओंकारनाथ की पूरी कहानी उन्हीं की जुबानी.

'मेडिसिन बाबा' ओंकारनाथ से खास बातचीत (SOURCE: ETV BHARAT)

15 साल पहले एक हादसे ने बदल दी ओंकारनाथ की जिंदगी
मेडिसिन बाबा ने बताया कि करीब 15 साल पहले लक्ष्मी नगर में निर्माणधीन मेट्रो का एक पिलर गिर गया था. जिसमें कई लोग घायल हुए थे और कुछ की मौत हो गयी थी. इस दौरान वह भी घटना स्थल के पास से ही गुजर रहे थे. घायल होने वालों में गरीब और मज़दूर लोग थे. जब उनको इलाज के लिए अस्पताल ले गए तो वहां मौजूद डॉक्टरों ने इन घायलों से कहा कि कुछ जरुरत की दवाइयां अस्पताल में ख़त्म हो चुकी हैं. अगर आपके पास कोई दवाई लाने वाला हो तो बाजार के मंगवा लें. लेकिन सभी घायल गरीब थे. उनके पास इतने रुपए नहीं थे कि दवा खरीद कर मंगवा सकें. डॉक्टर बोल कर चले गए. लेकिन उनके दिमाग में यह घटना बैठ गई. तब मेडिसिन बाबा को लगा कि हर घर में जरूरत की दवाइयां होती हैं. जिनमें कई तो ऐसे होती हैं जिनको लोग इस्तेमाल भी नहीं करते और कूड़ेदान में फेंक देते हैं. यही सोच कर ओंकारनाथ ने उसी समय संकल्प लिया कि वह गरीबों के लिए दवाइयां इकट्ठा करेंगे. आज मेडिसिन बाबा के पास 2 रुपये से लेकर 2 लाख तक की दवाएं मौजूद हैं.

गली-गली जाकर लगाते हैं आवाज
मेडिसिन बाबा आगे बताते हैं कि उनको गरीबों की दवाओं से मदद करनी थी. लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर उन्होंने दिल्ली की गलियों में फेरीवालों की तरह आवाज लगा कर दवाएं मांगनी शुरू की. वह बोलते हैं" हैं साहब कोई जो बेकार की दवाई हो, उसे दान कर दो, जो दवाइयां आपके काम की नहीं है" ऐसा दो तीन बार बोले हैं फिर देखते हैं कोई बाहर आया या नहीं. उम्र बढ़ने के कारण अब 5 वषों से माइक पर इसको रिकॉर्ड कर के प्ले कर देते हैं और दान देने वालों का इंतज़ार करते हैं.

हर दिन ऑटो से निकलते हैं और 100 किलोमीटर तक का एरिया कवर लेते हैं मेडिसिन बाबा
मेडिसिन बाबा ने इस काम की शुरुआत दिल्ली से की थी. लेकिन अब वह देश के तमाम राज्यों में जा कर लोगों से दवाएं मांगते हैं. वहीं अब उनके पास विश्व के हर देश से दवाई आती है. फ्रांस, वियतनाम, इंग्लैंड, कनाडा से सबसे ज्यादा दवाएं आती हैं. जिनकी कस्टम ड्यूटी की राशि का भुगतान भेजने वाले लोग ही करते हैं. शुरुआत के दिनों में वह बसों से अलग अलग जगह जाते थे. और एक दिन में 15 किलोमीटर का सफर तय करते थे. अब कुछ वषों से ऑटो से जाते हैं. और एक दिन में 50 से लेकर 100 किलोमीटर तक एरिया कवर कर लेते हैं. जब वह फील्ड में निकलते हैं तो खुद को 40-45 वर्ष उम्र का व्यक्ति समझ कर काम करते हैं. ओंकारनाथ का मानना है कि "इंसान शरीर से नहीं दिमाग से जवान होना चाहिए. अगर किसी ने सोच लिया कि वह बूढ़ा हो चुका है, तो वह कुछ काम है कर पायेगा."

मेडिसिन बाबा बताते हैं कि एक बार उनके पास 7 लाख रुपए की तीन दवाएं आयी थी. जो लिवर सम्बन्धी बीमारी की थी. इसमें एक गोली की कीमत 2,04,435 रुपए थी. इसको उन्होंने AIIMS में एक गरीब जरूरतमंद को दान किया था.

21 लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट में कर चुके हैं मदद
ओंकारनाथ के जीवन का बस एक ही उद्देश्य है कि वह असहाय गरीबों को फ्री में दवाइयां और बीमारी में काम आने वाली चीजें डोनेट करें. उनको सबसे ज्यादा खुशी तब होती है, जब कोई बीमार व्यक्ति उनके पास व्हील चेयर पर आता है और दवाइयां ले जाने के बाद खुद चल कर आता है. यही उनकी असली कमाई है. जैसे एक बच्चा पेपर देकर पास हो जाता है, उसी तरह वह भी खुद को फर्स्ट क्लास पास मानते हैं. मेडिसिन बाबा की मदद से अभी तक 21 लोगों की किडनी बदलवाने में मदद कर चुके हैं.

दवाइयां देने के लिए रखा है एक फार्मासिस्ट
ओंकारनाथ पेशे से ब्लड बैंक टेक्नीशियन थे, लेकिन वह काफी पहले रिटायर हो गए और अब वह फुल टाइम दवाई मांगने और गरीबों को दान देने का काम करते हैं. उन्हें दवाइयों के क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव नहीं है लेकिन वह कहते हैं कि दवाई मांगने के लिए भला कैसा अनुभव. हां दवाएं देने के लिए जरूर उन्होंने एक फॉर्मासिस्ट रखा है.

ओंकारनाथ का मानना है कि सरकार को हर राज्य में एक मेडिसिन बैंक बनाना चाहिए. इस काम के लिए देश के युवाओं को भी आगे बढ़ना चाहिए. मेडिसिन बाबा बताते हैं कि कोविड के समय लोगों के घरों से दवाएं मिलना बंद हो गयी थी. उस वक्त उन्होंने दिल्ली के शमशान घाट, मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों पर मेडिसिन डोनेशन के बॉक्स लगाए थे. वहां भी काफी दवाएं इकट्ठा हो जाती हैं. महीने में एक बार उन बॉक्स में से दवाएं निकाली जाती है.

सरकार से मदद की लगाई गुहार
अंत में नम आंखों से ओंकारनाथ बताते हैं कि उनको 15 दिनों के अंदर इस मकान को खाली करना है. एक बेटा है जो मानसिक रूप से ठीक नहीं है. बहू भी अलग रहती है. बेटी की शादी कर दी है. वह आती जाती रहती हैं. वहीं बीवी का दो वर्ष पहले स्वर्गवास हो गया. लोगों से मिलने वाले दान से हर संभव मदद हो जाती है. मकान किराये का है उनका किराये का इंतज़ाम भी लोगों के दान से हो जाता है. वह सरकार से निवेदन करते हैं कि अगर वह लोगों की इतनी मदद कर रहे हैं उनको भी कुछ मदद दी जानी चाहिए.

बता दें कि ओंकारनाथ की कहानी देशभर के कई नामी किताबों में छप चुकी है. वहीं छतीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में 10वीं की किताब में उनकी कहानी बच्चों को प्रेरणा दे रही है.

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नई दिल्ली: पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर की संकरी गलियों में एक बाबा घर-घर जाकर लोगों से दवाइयां मांगता है और फिर उन दवाइयों से गरीबों की मदद करता है. इन बाबा का नाम है मेडिसिन बाबा. असली नाम ओंकारनाथ. जो खुद अपने आप में एक मिसाल बन गए हैं.

उत्तम नगर में तीन कमरों वाले किराए के मकान में ओंकारनाथ यानि मेडिसिन बाबा रहते हैं. जिसमें दो कमरों में 1 रुपए से लेकर 2 लाख रुपए तक की दवाइयां, ऑक्सीजन सिलेंडर, महंगे इंजेक्शन, व्हील चेयर, बैसाखी और बीमारी के समय उपयोग आने वाली तमाम आवश्यक सामान रखे हैं, वहीं दूसरे कमरे में उनका ऑफिस है. 88 साल के ओंकारनाथ गरीबों के बीच मेडिसिन बाबा के नाम से चर्चित हैं. वो हर साल डेढ़ करोड़ रुपये से ज्यादा की दवाई मंगाकर जरूरतमंद गरीबों की मदद करते हैं. हैरानी की बात यह है कि मेडिसिन बाबा 85 फीसदी दिव्यांग हैं और वह पूरे दिन गलियों में घूम घूम कर आवाज लगाकर लोगों से दवाइयां मंगाते हैं. आइये जानते हैं ओंकारनाथ की पूरी कहानी उन्हीं की जुबानी.

'मेडिसिन बाबा' ओंकारनाथ से खास बातचीत (SOURCE: ETV BHARAT)

15 साल पहले एक हादसे ने बदल दी ओंकारनाथ की जिंदगी
मेडिसिन बाबा ने बताया कि करीब 15 साल पहले लक्ष्मी नगर में निर्माणधीन मेट्रो का एक पिलर गिर गया था. जिसमें कई लोग घायल हुए थे और कुछ की मौत हो गयी थी. इस दौरान वह भी घटना स्थल के पास से ही गुजर रहे थे. घायल होने वालों में गरीब और मज़दूर लोग थे. जब उनको इलाज के लिए अस्पताल ले गए तो वहां मौजूद डॉक्टरों ने इन घायलों से कहा कि कुछ जरुरत की दवाइयां अस्पताल में ख़त्म हो चुकी हैं. अगर आपके पास कोई दवाई लाने वाला हो तो बाजार के मंगवा लें. लेकिन सभी घायल गरीब थे. उनके पास इतने रुपए नहीं थे कि दवा खरीद कर मंगवा सकें. डॉक्टर बोल कर चले गए. लेकिन उनके दिमाग में यह घटना बैठ गई. तब मेडिसिन बाबा को लगा कि हर घर में जरूरत की दवाइयां होती हैं. जिनमें कई तो ऐसे होती हैं जिनको लोग इस्तेमाल भी नहीं करते और कूड़ेदान में फेंक देते हैं. यही सोच कर ओंकारनाथ ने उसी समय संकल्प लिया कि वह गरीबों के लिए दवाइयां इकट्ठा करेंगे. आज मेडिसिन बाबा के पास 2 रुपये से लेकर 2 लाख तक की दवाएं मौजूद हैं.

गली-गली जाकर लगाते हैं आवाज
मेडिसिन बाबा आगे बताते हैं कि उनको गरीबों की दवाओं से मदद करनी थी. लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर उन्होंने दिल्ली की गलियों में फेरीवालों की तरह आवाज लगा कर दवाएं मांगनी शुरू की. वह बोलते हैं" हैं साहब कोई जो बेकार की दवाई हो, उसे दान कर दो, जो दवाइयां आपके काम की नहीं है" ऐसा दो तीन बार बोले हैं फिर देखते हैं कोई बाहर आया या नहीं. उम्र बढ़ने के कारण अब 5 वषों से माइक पर इसको रिकॉर्ड कर के प्ले कर देते हैं और दान देने वालों का इंतज़ार करते हैं.

हर दिन ऑटो से निकलते हैं और 100 किलोमीटर तक का एरिया कवर लेते हैं मेडिसिन बाबा
मेडिसिन बाबा ने इस काम की शुरुआत दिल्ली से की थी. लेकिन अब वह देश के तमाम राज्यों में जा कर लोगों से दवाएं मांगते हैं. वहीं अब उनके पास विश्व के हर देश से दवाई आती है. फ्रांस, वियतनाम, इंग्लैंड, कनाडा से सबसे ज्यादा दवाएं आती हैं. जिनकी कस्टम ड्यूटी की राशि का भुगतान भेजने वाले लोग ही करते हैं. शुरुआत के दिनों में वह बसों से अलग अलग जगह जाते थे. और एक दिन में 15 किलोमीटर का सफर तय करते थे. अब कुछ वषों से ऑटो से जाते हैं. और एक दिन में 50 से लेकर 100 किलोमीटर तक एरिया कवर कर लेते हैं. जब वह फील्ड में निकलते हैं तो खुद को 40-45 वर्ष उम्र का व्यक्ति समझ कर काम करते हैं. ओंकारनाथ का मानना है कि "इंसान शरीर से नहीं दिमाग से जवान होना चाहिए. अगर किसी ने सोच लिया कि वह बूढ़ा हो चुका है, तो वह कुछ काम है कर पायेगा."

मेडिसिन बाबा बताते हैं कि एक बार उनके पास 7 लाख रुपए की तीन दवाएं आयी थी. जो लिवर सम्बन्धी बीमारी की थी. इसमें एक गोली की कीमत 2,04,435 रुपए थी. इसको उन्होंने AIIMS में एक गरीब जरूरतमंद को दान किया था.

21 लोगों को किडनी ट्रांसप्लांट में कर चुके हैं मदद
ओंकारनाथ के जीवन का बस एक ही उद्देश्य है कि वह असहाय गरीबों को फ्री में दवाइयां और बीमारी में काम आने वाली चीजें डोनेट करें. उनको सबसे ज्यादा खुशी तब होती है, जब कोई बीमार व्यक्ति उनके पास व्हील चेयर पर आता है और दवाइयां ले जाने के बाद खुद चल कर आता है. यही उनकी असली कमाई है. जैसे एक बच्चा पेपर देकर पास हो जाता है, उसी तरह वह भी खुद को फर्स्ट क्लास पास मानते हैं. मेडिसिन बाबा की मदद से अभी तक 21 लोगों की किडनी बदलवाने में मदद कर चुके हैं.

दवाइयां देने के लिए रखा है एक फार्मासिस्ट
ओंकारनाथ पेशे से ब्लड बैंक टेक्नीशियन थे, लेकिन वह काफी पहले रिटायर हो गए और अब वह फुल टाइम दवाई मांगने और गरीबों को दान देने का काम करते हैं. उन्हें दवाइयों के क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव नहीं है लेकिन वह कहते हैं कि दवाई मांगने के लिए भला कैसा अनुभव. हां दवाएं देने के लिए जरूर उन्होंने एक फॉर्मासिस्ट रखा है.

ओंकारनाथ का मानना है कि सरकार को हर राज्य में एक मेडिसिन बैंक बनाना चाहिए. इस काम के लिए देश के युवाओं को भी आगे बढ़ना चाहिए. मेडिसिन बाबा बताते हैं कि कोविड के समय लोगों के घरों से दवाएं मिलना बंद हो गयी थी. उस वक्त उन्होंने दिल्ली के शमशान घाट, मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों पर मेडिसिन डोनेशन के बॉक्स लगाए थे. वहां भी काफी दवाएं इकट्ठा हो जाती हैं. महीने में एक बार उन बॉक्स में से दवाएं निकाली जाती है.

सरकार से मदद की लगाई गुहार
अंत में नम आंखों से ओंकारनाथ बताते हैं कि उनको 15 दिनों के अंदर इस मकान को खाली करना है. एक बेटा है जो मानसिक रूप से ठीक नहीं है. बहू भी अलग रहती है. बेटी की शादी कर दी है. वह आती जाती रहती हैं. वहीं बीवी का दो वर्ष पहले स्वर्गवास हो गया. लोगों से मिलने वाले दान से हर संभव मदद हो जाती है. मकान किराये का है उनका किराये का इंतज़ाम भी लोगों के दान से हो जाता है. वह सरकार से निवेदन करते हैं कि अगर वह लोगों की इतनी मदद कर रहे हैं उनको भी कुछ मदद दी जानी चाहिए.

बता दें कि ओंकारनाथ की कहानी देशभर के कई नामी किताबों में छप चुकी है. वहीं छतीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में 10वीं की किताब में उनकी कहानी बच्चों को प्रेरणा दे रही है.

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