इंडियन सोसायटी फॉर क्लीनिकल रिसर्च ( Indian Society for Clinical Research ) के आंकड़ों के अनुसार भारत में फिलहाल 7 करोड़ (70 मिलियन) और दुनिया भर में 35 करोड़ (350 मिलियन ) लोग दुर्लभ बीमारियों या रेयर डिजीज से पीड़ित हैं. Rare Disease या जिसे ऑरफन डिजीज ( Orphan Disease) भी कहा जाता है ये रोगों की एक श्रेणी का नाम है जिसमें कई दुर्लभ रोग शामिल हैं. आमतौर पर इस श्रेणी में आने वाले रोगों के पीड़ितों को सही समय पर इलाज तथा सहायता नहीं मिल पाती है क्योंकि एक तो इन रोगों को लेकर आमजन में जागरूकता की भारी कमी है वहीं उनके दुर्लभ होने कारण इनके लक्षणों में पहचानने में देरी हो जाती है. ऐसे में Orphan Disease की श्रेणी में आने वाले रोगों को लेकर आमजन में जागरूकता फैलाना आज के दौर की एक बड़ी जरूरत बन चुका हैं.
दुर्लभ रोगों, उनके लक्षणों व निदान, उनसे जुड़ी जांचों के बारे में लोगों में जन जागरूकता फैलाने के अलावा उन्हें लेकर चर्चा के लिए एक मंच देने के उद्देश्य से हर साल 28 फरवरी को ( Rare Disease Day ) मनाया जाता है. इस वर्ष यह विशेष आयोजन पिछले वर्ष की भांति "शेयर योर कलर" थीम ( Share your color theme ) पर ही मनाया जा रहा है. Rare Disease Day 28 February .
क्या है रेयर डिजीज
विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) के अनुसार, एक दुर्लभ बीमारी वह कहलाती है जिसकी आवृत्ति प्रति 10000 लोगों पर 6.5-10 से कम हो. भारत में दुर्लभ बीमारियों के संबंध में कार्य करने वाले संगठन “दुर्लभ रोग संगठन भारत ( ORDI )" के अनुसार चूंकि भारत की आबादी काफी बड़ी है, ऐसे में यहां उस बीमारी को दुर्लभ की श्रेणी में रखा जा सकता है जो प्रत्येक 5,000 भारतीयों या उससे कम में से एक को प्रभावित करती है. ORDI द्वारा फिलहाल भारत में 263 दुर्लभ बीमारियों को सूचीबद्ध किया है. वहीं यूरोपीय देशों में उन रोगों को दुर्लभ की श्रेणी में रखा जाता है जिसकी चपेट में 2,000 नागरिकों में से एक नागरिक आता है. हालांकि आंकड़ों की मानें तो दुर्लभ रोग के 50% मामले बच्चों में देखने आते हैं.
जानकारों के अनुसार दुनिया भर में रेयर डिजीज के तहत 7000 से रोग माने जाते हैं लेकिन इन 7000 दुर्लभ बीमारियों में से केवल 5% का ही उपचार संभव है. इस श्रेणी में आने वाले कुल रोगों में से 80% के लिए आनुवंशिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है. अनुवांशिक कारणों के अलावा कुछ मामलों में बैक्टीरिया, वायरस, इंफेक्शन या एलर्जी भी जिम्मेदार कारकों में से एक हो सकती है. Rare Disease से पीड़ित लोगों को आमतौर पर समय से इलाज नहीं मिल पाता है क्योंकि एक तो इनमें से कई के लक्षणों का पता देर से चलता हैं. वहीं कई बार लक्षणों के आधार पर भी रोगों के बारें में जानना मुश्किल हो जाता है क्योंकि कई बार एक ही तरह के दुर्लभ रोग से पीड़ित अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग लक्षण भी नजर आ सकते हैं. भारत में जिन रेयर डिजीज के मामले ज्यादा देखने में आते हैं, उनमें से कुछ खास हैं .
- एसेंथोसाइटोसिस कोरिया
- अचलासिया कार्डिया
- एक्रोमेसोमेलिक डिसप्लेसिया
- एक्यूट इंफ्लेमेटरी डिमेलिनेटिंग पोलीन्यूरोपैथी
- तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया - रक्त कैंसर, विशेष रूप से श्वेत रक्त कोशिकाएं.
- एडिसन रोग
- अलागिल सिंड्रोम
- एल्केप्टोनूरिया
- हीमोफीलिया
- थैलेसीमिया
- सिकल-सेल एनीमिया
- एसेंथा मोहबा केराटाइटिस
- सिस्टसरकोसिस
- बच्चों में प्राथमिक इम्युनो की कमी
- ऑटो-इम्यून रोग
- क्रूज़ फेल्ट-जैकब रोग
- लाइसोसोमल स्टोरेज विकृतियाँ, जैसे– पोम्पे डिजीज, हिर्स्चप्रंग रोग, गौचर की बीमारी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हेमांगीओमा
- कुछ प्रकार के मस्कुलर डिस्ट्रोफी.
इतिहास, उद्देश्य तथा महत्व : Rare Disease Day History, Purpose and Significance
दुर्लभ रोगों की अनदेखी ना हो तथा आम जन में उन्हे लेकर जागरूकता फैलाने व दुर्लभ रोग से पीड़ित व्यक्ति की हर संभव मदद करने के लिए प्रयास करने व उनका हौसला बढ़ाने के उद्देश्य से यूरोपियन यूनियन ने साल 2008 में रेयर डिजीज डे की स्थापना की थी. इसके बाद वर्ष 2011 से नेशनल सेंटर फॉर एडवांसिंग ट्रांसलेशनल साइंसेज ( National Center for Advancing Translational Sciences ) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ क्लिनिकल सेंटर ( National Institute of Health Clinical Center ) द्वारा इस दिशा में लगातार कई प्रयास किए जा रहे हैं तथा हर साल इस दिवस पर विशेष आयोजन किए जाते हैं. रेयर डिजीज डे दुर्लभ रोगों को लेकर जनजागरूकता फैलाने के साथ ही पीड़ितों की देखभाल तथा नए उपचारों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता जैसी चुनौतियों तथा मुद्दों को लेकर चर्चा करने का भी मौका देता हैं.
सरकारी प्रयास
गौरतलब है कि दुर्लभ रोग देखभाल तथा उपचार दोनों ही लिहाज से एक बड़ी चुनौती माने जाते हैं. इन में से कई रोगों के कुछ मामले गंभीर, दीर्घकालिक और जानलेवा हो सकते हैं. वहीं कुछ मामलों में पीड़ित विशेषकर बच्चे अपाहिज भी हो सकते हैं. इन रोगों से बचाव व इनके निदान की दिशा में सरकारी स्तर पर भी काफी प्रयास किए गए हैं. वर्ष 2017 में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ( Ministry of Health and Family Welfare India ) ने 450 दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए राष्ट्रीय नीति प्रकाशित की थी, जिसके तहत दुर्लभ रोगों की एक पंजी बनाने की बात कही गई थी. साथ ही इन रोगों को श्रेणीगत करने जैसे कौन से रोग एक बार उपचार से ठीक हो सकते हैं तथा कौन से रोगों के उपचार में समय लगता है आदि के आधार पर रोगों के वर्गीकरण की बात कही गई थी.
यही नहीं वर्गीकरण के आधार पर पीड़ित को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ( Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana ) के तहत लाभ देने की संस्तुति भी की गई थी. इस प्रतिवेदन में यह भी बताया गया था कि आधे से अधिक दुर्लभ रोगों के मामले बच्चों में देखने में आते हैं तथा ऐसे रोगों से मरने वाले 35% बच्चे एक वर्ष से कम आयु वाले होते हैं. वहीं इन रोगों के कारण जान गंवाने वालो में 10% 1 से 5 वर्ष की आयु वाले बच्चें तथा 12% 5 से 15 वर्ष की आयु वाले बच्चे होते हैं.