पिछले दिनों हुए एक शोध में सामने आया है कि कोरोना के चलते हमारे तांत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंच सकता है, जिसके चलते याददाश्त में कमी तथा मूड स्विंग जैसे कई प्रकार के न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर पीड़ित को प्रभावित कर सकते हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया नेशनल प्रीमिटिव रिसर्च सेंटर के इस शोध में संक्रमित बंदरों पर हुए प्रयोग में पाया गया था कि कोरोना वायरस के चलते उनके ब्रेन सेल्स नष्ट हो गए थे. शोध में बताया गया है कि यह समस्या इंसानों में भी देखने को मिल सकती है.
कोरोना संक्रमित बंदरों पर प्रयोग
शोध के निष्कर्षों में शोधकर्ता तथा न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर जॉन मॉरिसन ने बताया कि इस शोध तथा प्रयोग का मुख्य उद्देश्य कोरोना वायरस के मूल रूप को समझना था. जिसके लिए वैज्ञानिकों की एक टीम ने संक्रमित बंदरों के दिमाग को स्टडी किया था. प्रयोग के दौरान हुए विभिन्न परीक्षणों से पता चला की सबसे पहले वायरस ने बंदरों के फेफड़ों और टिशूज को संक्रमित किया था. इसके उपरांत कोरोना वायरस से बंदरों के ब्रेन सेल्स भी संक्रमित हो गए थे और उन्हे काफी नुकसान पहुँचा था, यहां तक कि बड़ी संख्या में ब्रेन सेल्स नष्ट भी हो गए थे.
शोध में पाया गया कि सबसे पहले यह संक्रमण नाक तथा उसके बाद दिमाग तक पहुंचता है, जिसके उपरांत धीरे धीरे यह दिमाग के सभी हिस्सों को प्रभावित करने लगता है. प्रो. मॉरिसन ने शोध के निष्कर्षों में बताया है कि कोरोना इंसानों की तुलना में जानवरों में हल्के लक्षण पैदा करता है. शोध में सामने आया कि कोरोना संक्रमण ने बूढ़े तथा मधुमेह के शिकार बंदरों को ज्यादा प्रभावित किया था. जिसे लेकर प्रो. मॉरिसन ने बताया कि इंसानों में भी संक्रमण का यही पैटर्न देखने को मिलता है.
वह बताते हैं कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी शरीर को पहुंची न्यूरोलॉजीकल क्षति का ही नतीजा होता है की मरीजों में स्वाद व सुगंध को महसूस करने में समस्या, ब्रेन फॉग, यारदाश्त में कमी तथा अन्य व्यवहारात्मक समस्याओं के मामलें देखने में आते हैं.
पूर्व में किए गए शोध तथा उनके नतीजे
कोरोना के मस्तिष्क पर असर को लेकर पूर्व में हुए कुछ शोधों में भी इस बात की पुष्टि हुई है की कोरोना संक्रमण मस्तिष्क पर भी नकारात्मक असर डालता है. जिसके चलते न सिर्फ दिमाग में खून के थक्के जम सकते हैं या ब्लीडिंग हो सकती है, साथ ही स्ट्रोक आने की आशंका भी बढ़ जाती है. इसके अलावा यह संक्रमण मरीज के फेफड़ों को इतना खराब कर सकता है कि दिमाग में सही मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचने में भी समस्या हो सकती है. इसी संबंध में हुए एक अन्य शोध के नतीजों में शोध की मुख्य शोधकर्ता तथा ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन की प्रोफेसर जेनिफर फ्रंटेरा ने बताया था कि उनके शोध में अस्पताल में भर्ती होने वाले 13% से ज्यादा मरीजों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामले सामने आये थे. यही नही इस शोध की फॉलो-अप स्टडी में पाया गया था कि संक्रमण से ठीक होने के छः महीने बाद भी पीड़ितों की अवस्था में कोई सुधार नहीं आया था. गौरतलब बात यह है की इस शोध का हिस्सा रहे अधिकाँश प्रतिभागी बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे. शोध के नतीजों में प्रो. फ्रंटेरा ने यह भी आशंका जताई थी कि संक्रमण के ऐसे स्वरूप के चलते लोगों में समय से पहले ही अल्जाइमर होने का खतरा बढ़ सकता है.
शोध के नतीजों में विशेष रूप से कहा गया था कि ऐसे लोग जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी का शिकार हैं उन्हे जल्द से जल्द चिकित्सक के निर्देशों पर दिमाग का स्कैन करवा लेना चाहिए. जिससे न्यूरॉलजीकल समस्याओं के मद्देनजर सही समय पर सही इलाज लिया जा सके. इसके अलावा, कोरोना से बचाव के लिए कोविड प्रोटोकॉल को अपनाना और वैक्सीन लगवाना बहुत जरूरी है.
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