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Unborn Child Day : ईसाइयों के धर्मगुरु ने शुरुआत की थी इसकी, अजन्मे बच्चों को याद करने का मौका देता है ये दिवस

ऐसे बच्चे जो मुख्यतः गर्भपात लेकिन अन्य कारणों से भी अजन्मे रह गए ( Unborn Child Day ) हों यानी जन्म ही नहीं ले पाए हों, उन्हे याद करने तथा उनके जीने के अधिकार के समर्थन में गर्भपात के विरोध स्वरूप हर साल 25 मार्च को अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. International Day of the Unborn Child .

25 march special day is International Day of the Unborn Child
अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
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Published : Mar 25, 2023, 7:32 AM IST

Updated : Mar 30, 2023, 11:26 AM IST

ऐसे बच्चे जो गर्भपात सहित किसी भी कारण से माता के गर्भ में, प्रसव के दौरान या जन्म लेने के तुरंत बाद मृत्यु का शिकार हो गए हों, उन्हे याद करने तथा उनके जीवन का जश्न मनाने के लिए हर साल हर साल 25 मार्च को अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस वैश्विक स्तर पर गर्भपात के खिलाफ मुखर होने तथा उसकी खिलाफत करने का मौका भी देता है. International Day of the Unborn Child . Unborn Child Day .

क्या कहते हैं आंकड़े
गर्भपात के अलावा जन्म से पहले ही गर्भ में भ्रूण की मृत्यु या बच्चे के अजन्मे रह जाने के के कई कारण हो सकते हैं जैसे भ्रूण का सही विकास ना हो पाना, गर्भवती महिला व भ्रूण का ज्यादा कमजोर होना या दोनों में किसी को कोई गंभीर रोग होना, आदि. कई बार गर्भ में बच्चे की गंभीर अवस्था या माता की अवस्था के चलते चिकित्सक स्वास्थ्य कारणों से गर्भपात के लिए कहते हैं . लेकिन वहीं कई बार नाबालिक गर्भावस्था, यौन हिंसा , अवांछित गर्भावस्था, लैंगिक प्राथमिकता, वित्तीय कठिनाई तथा सामाजिक आर्थिक कारक सहित कई अन्य कई कारणों के चलते महिलाएं स्वैच्छिक या मजबूरन गर्भपात करवाती हैं.

चूंकि हमारे देश में गर्भपात के विरोध में कड़े कानून हैं तथा बिना स्वास्थ्य संबंधी या सरकार द्वारा घोषित कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर गर्भपात करवाना एक दंडनीय अपराध माना जाता है तथा तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को उसकी अनुमति नहीं है ऐसे में बहुत से लोग गैर पंजीकृत स्वास्थ्य संस्थाओं व असुरक्षित तरीकों से गर्भपात का प्रयास करते हैं. अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों की माने तो हर साल दुनिया भर में लगभग 40-50 मिलियन गर्भपात किए जाते हैं, जो हर दिन लगभग 125,000 गर्भपात के बराबर है. वहीं सिर्फ संयुक्त राज्य में ही हर साल लगभग 24,000 बच्चे मृत पैदा होते हैं. आंकड़ों के अनुसार गर्भावस्था के 28 सप्ताह के बाद, अलग अलग कारणों से लगभग 60% भ्रूण की मृत्यु हो जाती है.

वहीं भारत से जुड़े आंकड़ों की माने तो भारत में हर साल औसतन 1.56 करोड़ गर्भपात होते हैं, जिनमें से लगभग 95% यानी करीब 1.48 करोड़ अबॉर्शन निजी अस्पतालों या क्लिनिक में होते हैं. जून 2020 में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में सिर्फ 16,296 प्राइवेट अस्पताल/क्लिनिक को स्वास्थ्य या अन्य जरूरी कारणों के चलते एमटीपी एक्ट(मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम 1971) के तहत गर्भपात की अनुमति है लेकिन फिर भी हर साल बड़ी संख्या में गैर पंजीकृत क्लिनिक या अस्पतालों में सुरक्षित या असुरक्षित तरीके से गर्भपात होते हैं.

भारत में गर्भपात
वर्ष 2015 में अमेरिका की गटमैचर यूनिवर्सिटी द्वारा भारत में गर्भपात से जुड़े विषय पर देश के 6 राज्यों पर एक शोध किया गया था जिसके नतीजों में कहा गया था कि लगभग 74% अबॉर्शन गैर-मान्यता प्राप्त संस्थान में होते हैं. वहीं माता के गर्भ में 24वें हफ्ते के बाद या जन्म के समय मृत्यु का शिकार होने वाले बच्चों का आंकड़ा भी काफी ज्यादा है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार 175 जन्मे बच्चों में से लगभग 1 शिशु स्टिलबर्थ पैदा होता है.

इतिहास
अजन्मे शिशु के अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थापना पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा की गई थी. जिसका उद्देश्य "जीवन के पक्ष में एक सकारात्मक विकल्प और हर स्थिति में मानव गरिमा के लिए सम्मान की गारंटी देने के लिए जीवन के लिए एक संस्कृति का प्रसार" करना था. पोप ने इस दिन को "जीवन के पक्ष में एक अनुकूल विकल्प" के रूप में देखा. तथा मानव जीवन के सबसे कमजोर और सबसे छोटे हिस्से को सम्मानित व याद करने के लिए यीशु मसीह के जन्म से ठीक नौ महीने पहले यानी 25 मार्च को इस दिवस को मनाए जाने का निर्णय लिया. इसलिए इस दिवस की तारीख मदर मैरी के गर्भ में यीशु मसीह के अवतार का जश्न मनाने के पर्व के साथ मेल खाती है, जो 25 दिसंबर यानी येशु के जन्म या क्रिसमस से ठीक नौ महीने पहले की है.

वर्ष 1993 में, अल सल्वाडोर आधिकारिक तौर पर जन्म लेने के अधिकार का दिवस मनाने वाला पहला राष्ट्र बना था. इसके उपरांत अन्य देशों ने भी अजन्मे बच्चों के लिए आधिकारिक उत्सवों की शुरुआत की , जैसे 1998 में अजन्मे बच्चे के दिवस नाम से अर्जेंटीना में , गर्भधारण और अजन्मे दिवस नाम से चिली में , अजन्मे के राष्ट्रीय दिवस के नाम से ग्वाटेमाला में , और जन्म से पहले जीवन का राष्ट्रीय दिवस नाम से कोस्टा रिका में इस दिवस को मनाया गया. इसके बाद निकारागुआ, डोमिनिकन गणराज्य, पेरू, पैराग्वे, फिलीपींस , होंडुरास, इक्वाडोर, प्यूर्टो रिको और चिली सहित कई देशों में अलग अलग समय पर इस दिवस को मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई . वर्तमान में यह एक वैश्विक आयोजन के तौर पर दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है.

उद्देश्य
अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस अजन्मे बच्चे की मृत्यु के दु: ख की मुक्त अभिव्यक्ति तथा उनके जीवन का सम्मान करने का मौका देता है. महिलाएं इस दिन सार्वजनिक रूप से अपना दुख व्यक्त कर सकती हैं और अपने नुकसान का शोक मना सकती हैं, जो वो आमतौर पर सार्वजनिक तौर पर नहीं कर पाती हैं. यह दिवस उन हजारों अजन्मे शिशुओं का सम्मान करता है जो गर्भपात या स्टीलबर्थ के कारण जी नहीं पाए. इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को मानने के पीछे का एक मुख्य उद्देश्य गर्भपात से जुड़ी हिंसा का विरोध करना भी है. आमतौर अजन्मे शिशुओं के अधिकार को गर्भ धारण करने वाली मां के अधिकार में सम्मिलित माना जाता है. लेकिन यह दिवस इस धारणा का प्रचार करता है कि हर गर्भस्थ शिशु को जीने का अधिकार है और उसके इस अधिकार को बिना कारण छीनना सही नहीं है. इस दिवस का एक मुख्य उद्देश्य हमें यह याद दिलाना भी है कि मानव जीवन का हर स्तर पर सम्मान किया जाना चाहिए तथा सभी जीवित चीजों को महत्व देना चाहिए.

ऐसे बच्चे जो गर्भपात सहित किसी भी कारण से माता के गर्भ में, प्रसव के दौरान या जन्म लेने के तुरंत बाद मृत्यु का शिकार हो गए हों, उन्हे याद करने तथा उनके जीवन का जश्न मनाने के लिए हर साल हर साल 25 मार्च को अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस वैश्विक स्तर पर गर्भपात के खिलाफ मुखर होने तथा उसकी खिलाफत करने का मौका भी देता है. International Day of the Unborn Child . Unborn Child Day .

क्या कहते हैं आंकड़े
गर्भपात के अलावा जन्म से पहले ही गर्भ में भ्रूण की मृत्यु या बच्चे के अजन्मे रह जाने के के कई कारण हो सकते हैं जैसे भ्रूण का सही विकास ना हो पाना, गर्भवती महिला व भ्रूण का ज्यादा कमजोर होना या दोनों में किसी को कोई गंभीर रोग होना, आदि. कई बार गर्भ में बच्चे की गंभीर अवस्था या माता की अवस्था के चलते चिकित्सक स्वास्थ्य कारणों से गर्भपात के लिए कहते हैं . लेकिन वहीं कई बार नाबालिक गर्भावस्था, यौन हिंसा , अवांछित गर्भावस्था, लैंगिक प्राथमिकता, वित्तीय कठिनाई तथा सामाजिक आर्थिक कारक सहित कई अन्य कई कारणों के चलते महिलाएं स्वैच्छिक या मजबूरन गर्भपात करवाती हैं.

चूंकि हमारे देश में गर्भपात के विरोध में कड़े कानून हैं तथा बिना स्वास्थ्य संबंधी या सरकार द्वारा घोषित कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़ कर गर्भपात करवाना एक दंडनीय अपराध माना जाता है तथा तमाम सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों को उसकी अनुमति नहीं है ऐसे में बहुत से लोग गैर पंजीकृत स्वास्थ्य संस्थाओं व असुरक्षित तरीकों से गर्भपात का प्रयास करते हैं. अंतर्राष्ट्रीय आंकड़ों की माने तो हर साल दुनिया भर में लगभग 40-50 मिलियन गर्भपात किए जाते हैं, जो हर दिन लगभग 125,000 गर्भपात के बराबर है. वहीं सिर्फ संयुक्त राज्य में ही हर साल लगभग 24,000 बच्चे मृत पैदा होते हैं. आंकड़ों के अनुसार गर्भावस्था के 28 सप्ताह के बाद, अलग अलग कारणों से लगभग 60% भ्रूण की मृत्यु हो जाती है.

वहीं भारत से जुड़े आंकड़ों की माने तो भारत में हर साल औसतन 1.56 करोड़ गर्भपात होते हैं, जिनमें से लगभग 95% यानी करीब 1.48 करोड़ अबॉर्शन निजी अस्पतालों या क्लिनिक में होते हैं. जून 2020 में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर में सिर्फ 16,296 प्राइवेट अस्पताल/क्लिनिक को स्वास्थ्य या अन्य जरूरी कारणों के चलते एमटीपी एक्ट(मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम 1971) के तहत गर्भपात की अनुमति है लेकिन फिर भी हर साल बड़ी संख्या में गैर पंजीकृत क्लिनिक या अस्पतालों में सुरक्षित या असुरक्षित तरीके से गर्भपात होते हैं.

भारत में गर्भपात
वर्ष 2015 में अमेरिका की गटमैचर यूनिवर्सिटी द्वारा भारत में गर्भपात से जुड़े विषय पर देश के 6 राज्यों पर एक शोध किया गया था जिसके नतीजों में कहा गया था कि लगभग 74% अबॉर्शन गैर-मान्यता प्राप्त संस्थान में होते हैं. वहीं माता के गर्भ में 24वें हफ्ते के बाद या जन्म के समय मृत्यु का शिकार होने वाले बच्चों का आंकड़ा भी काफी ज्यादा है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार 175 जन्मे बच्चों में से लगभग 1 शिशु स्टिलबर्थ पैदा होता है.

इतिहास
अजन्मे शिशु के अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थापना पोप जॉन पॉल द्वितीय द्वारा की गई थी. जिसका उद्देश्य "जीवन के पक्ष में एक सकारात्मक विकल्प और हर स्थिति में मानव गरिमा के लिए सम्मान की गारंटी देने के लिए जीवन के लिए एक संस्कृति का प्रसार" करना था. पोप ने इस दिन को "जीवन के पक्ष में एक अनुकूल विकल्प" के रूप में देखा. तथा मानव जीवन के सबसे कमजोर और सबसे छोटे हिस्से को सम्मानित व याद करने के लिए यीशु मसीह के जन्म से ठीक नौ महीने पहले यानी 25 मार्च को इस दिवस को मनाए जाने का निर्णय लिया. इसलिए इस दिवस की तारीख मदर मैरी के गर्भ में यीशु मसीह के अवतार का जश्न मनाने के पर्व के साथ मेल खाती है, जो 25 दिसंबर यानी येशु के जन्म या क्रिसमस से ठीक नौ महीने पहले की है.

वर्ष 1993 में, अल सल्वाडोर आधिकारिक तौर पर जन्म लेने के अधिकार का दिवस मनाने वाला पहला राष्ट्र बना था. इसके उपरांत अन्य देशों ने भी अजन्मे बच्चों के लिए आधिकारिक उत्सवों की शुरुआत की , जैसे 1998 में अजन्मे बच्चे के दिवस नाम से अर्जेंटीना में , गर्भधारण और अजन्मे दिवस नाम से चिली में , अजन्मे के राष्ट्रीय दिवस के नाम से ग्वाटेमाला में , और जन्म से पहले जीवन का राष्ट्रीय दिवस नाम से कोस्टा रिका में इस दिवस को मनाया गया. इसके बाद निकारागुआ, डोमिनिकन गणराज्य, पेरू, पैराग्वे, फिलीपींस , होंडुरास, इक्वाडोर, प्यूर्टो रिको और चिली सहित कई देशों में अलग अलग समय पर इस दिवस को मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई . वर्तमान में यह एक वैश्विक आयोजन के तौर पर दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है.

उद्देश्य
अजन्मे शिशु का अंतर्राष्ट्रीय दिवस अजन्मे बच्चे की मृत्यु के दु: ख की मुक्त अभिव्यक्ति तथा उनके जीवन का सम्मान करने का मौका देता है. महिलाएं इस दिन सार्वजनिक रूप से अपना दुख व्यक्त कर सकती हैं और अपने नुकसान का शोक मना सकती हैं, जो वो आमतौर पर सार्वजनिक तौर पर नहीं कर पाती हैं. यह दिवस उन हजारों अजन्मे शिशुओं का सम्मान करता है जो गर्भपात या स्टीलबर्थ के कारण जी नहीं पाए. इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को मानने के पीछे का एक मुख्य उद्देश्य गर्भपात से जुड़ी हिंसा का विरोध करना भी है. आमतौर अजन्मे शिशुओं के अधिकार को गर्भ धारण करने वाली मां के अधिकार में सम्मिलित माना जाता है. लेकिन यह दिवस इस धारणा का प्रचार करता है कि हर गर्भस्थ शिशु को जीने का अधिकार है और उसके इस अधिकार को बिना कारण छीनना सही नहीं है. इस दिवस का एक मुख्य उद्देश्य हमें यह याद दिलाना भी है कि मानव जीवन का हर स्तर पर सम्मान किया जाना चाहिए तथा सभी जीवित चीजों को महत्व देना चाहिए.

Last Updated : Mar 30, 2023, 11:26 AM IST
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