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जानें बवासीर की समस्या में कैसे बचें ऑपरेशन से, कैसे फिस्टुला व फिशर से अलग है ये - piles cure

आज के समय में बड़ी संख्या में लोग बवासीर की समस्या (Why Piles Happen)से जूझ रहे हैं. नजरअंदाज करने से बवासीर की समस्या गंभीर हो जाता है. जाने कैसे बवासीर को कैसे पहचानें और इसका क्या इलाज है..

What is hemorrhoid Disease Concept Image
बवासीर पर प्रदर्शनी का फाइल फोटो
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Published : Jan 7, 2023, 2:09 PM IST

आमतौर पर बवासीर होने पर लोग चिकित्सक से समय से मदद लेने से कतराते हैं, विशेषकर महिलायें . लेकिन बवासीर का समय से इलाज काफी जरूरी है, अन्यथा यदि समस्या गंभीर हो जाए तो कई बार सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती ( Treatment And Symptoms OF Piles) है. वहीं आम लोग बवासीर, फिस्टुला व फिशर में अंतर नहीं कर पाते हैं. इससे भी कई बर समस्याएं और बढ़ जाती है. जानें बवासीर की समस्या को कैसे पहचानें और इसका इलाज का सही तरीका क्या है.

छुपाएं नहीं समय से इलाज करें बवासीर का
बवासीर या पाइल्स एक ऐसा रोग है जिसके बारे में आमतौर पर लोग बात करना पसंद नहीं हैं. यहां तक की इसके इलाज के लिए ज्यादातर लोग तब तक चिकित्सक के पास भी नहीं जाते हैं जब तक समस्या काफी ज्यादा बढ़ नहीं जाती है. चिकित्सकों कि मानें तो पिछले कुछ सालों में बवासीर के मरीजों की संख्या में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. लेकिन चिंता की बात यह है कि युवाओं में यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों में भी इसके मामलों की संख्या बढ़ रही है. चिकित्सक तथा जानकार इसके लिए काफी हद तक खराब व तनावपूर्ण जीवनशैली तथा खराब भोजन संबंधी आदतों को जिम्मेदार मानते हैं.

क्या है बवासीर
दरअसल बवासीर एक गुदा विकृति है (why piles happen) जिसमें गुदा या एनस के अंदर और बाहरी हिस्से यानी मल द्वार के पास की नसों में सूजन आ जाती है और वहां गांठ या मस्से बनने लगते हैं. जिनमें से कई बार खून भी निकलने लगता है. यदि इस समस्या को नजरअंदाज किया जाए या इसका समय से इलाज नहीं करवाया जाय तो कई बार इसे ठीक करने के लिए सर्जरी तक करवाने की नौबत आ जाती है.

दिल्ली के लाइफ अस्पताल के चिकित्सक डॉ अशरीर कुरैशी (Dr Ashir Qureshi) बताते हैं कि यह समस्या पुरुषों तथा महिलाओं दोनों में हो सकती है. लेकिन बवासीर के बिगड़ने कि स्थिति ज्यादातर महिलाओं में नजर आती हैं क्योंकि ज्यादातर मामलों में वे तब तक इस समस्या को नजरअंदाज करती रहती हैं जब तक समस्या बहुत ज्यादा नहीं बढ़ जाती है. वह बताते हैं बवासीर की गंभीरता के आधार पर उसके चार चरण माने जाते हैं. शुरुआत में या पहले चरण में ज्यादातर लोगों को कोई खास लक्षण महसूस नहीं होते हैं. इस अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को सिर्फ गुदाद्वार पर खुजली महसूस होती है. वही कुछ लोगों में कब्ज की अवस्था में कभी-कभी मल के साथ खून भी आ जाता है. लेकिन बवासीर के दूसरे चरण में मलद्वार के आसपास मस्से या गांठ बनने की शुरुआत होने लगती हैं. इस अवस्था में पीड़ित को कभी कभी हल्का दर्द हो सकता है.

तीसरे चरण में स्थिति थोड़ी गंभीर होने लगती है. क्योंकि इसमें मस्से सख्त होने लगते हैं. इस स्थिति में मरीज को मल त्याग करते समय तेज दर्द हो सकता है और ज्यादा रक्तस्राव भी हो सकता है.
चौथे चरण को बवासीर की गंभीर स्थिति माना जाता है. इस अवस्था में मस्सों में असहनीय दर्द के साथ रक्तस्राव की मात्रा भी बढ़ जाती है . यहां तक की पीड़ित को चलने और बैठने में भी परेशानी होने लगती है. इसके साथ ही इस अवस्था में संक्रमण होने की आशंका भी बढ़ जाती है.

बवासीर के प्रकार

डॉ अशरीर कुरैशी बताते हैं कि मस्सों की स्थिति तथा समस्या की गंभीरता के आधार पर इसके चार प्रकार माने गए हैं. जो इस प्रकार हैं.

  1. अंदरूनी बवासीर
  2. बाहरी बवासीर
  3. प्रोलेप्सड बवासीर
  4. खूनी बवासीर

बवासीर के लक्षण

डॉ कुरैशी बताते हैं कि बवासीर के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं.

1.गुदा या मल मार्ग के आसपास सूजन, खुजली और जलन महसूस होना
2. मल त्याग करते समय असहजता महसूस करना
3.मल त्याग करते समय कभी हल्का या कभी तेज दर्द महसूस होना
4.मल के साथ कम या ज्यादा खून आना
5. गुदा के अंदर की तरफ , मुख पर या उसके आसपास गांठ या मस्से होना
6. मल त्याग करते समय ऐसा महसूस करना जैसे मलद्वार से मस्से बाहर निकल रहे हो
7. बैठने में समस्या होना
8. कई बार, बार-बार मल त्यागने की इच्छा होना, लेकिन मल का ना निकलना, आदि.

बवासीर के कारण
डॉ कुरैशी बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में बवासीर के लिए पुरानी व ज्यादा कब्ज को जिम्मेदार माना जाता है. वहीं कई बार अनुवंशिक कारणों से भी यह हो सकती हैं. इसके अलावा और भी कुछ कारण हैं जो इस रोग के होने की आशंका को बढ़ाते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  1. ज्यादा मिर्च मसाले वाला , तला हुआ या ज्यादा तेल में बना हुआ भोजन नियमित रूप से करना
  2. नियमित रूप से शौच ना होना या शौच को रोकना
  3. शारीरिक सक्रियता में कमी
  4. महिलाओं में गर्भावस्था में यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है
  5. कभी-कभी कुछ गंभीर रोगों या उनके इलाज के प्रभाव के कारण पहले कब्ज तथा फिर बवासीर के होने की आशंका हो सकती है.

बवासीर, फिस्टुला व फिशर में अंतर
डॉ कुरैशी बताते हैं बवासीर की तरह फिस्टुला तथा फिशर नामक बीमारियां भी होती हैं जो गुदा या मलद्वार के आसपास होती है. इसी के चलते कई लोग इनमें तथा बवासीर में भ्रमित हो जाते हैं. इनमें अंतर की बात करें तो बवासीर में मलद्वार के अंदर की तरफ या बाहर मस्से या गांठे होती हैं, लेकिन फिशर रोग में मलद्वार के आसपास की त्वचा क्षतिग्रस्त हो जाती तथा वहां दरारे या कट पड़ जाते हैं. जिन पर ध्यान ना देने पर कभी कभी संक्रमण भी हो सकता है. वहीं फिस्टुला रोग में गुदा ग्रंथियों में संक्रमण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप गुदा पर मवाद वाला फोड़ा हो जाता है.
डॉ कुरैशी बताते हैं कि विशेषतौर पर बवासीर की बात करें तो पहले के समय में इस प्रकार की समस्याएं ज्यादातर 50 वर्ष या उससे ज्यादा आयु वाले लोगों में देखने में आती थी लेकिन वर्तमान समय में कम उम्र के युवाओं में भी बवासीर की समस्या के मामले ज्यादा संख्या में नजर आने लगे हैं.

कैसे करें बचाव
डॉ कुरैशी बताते हैं कि बवासीर या इस जैसी किसी भी समस्या से बचाव के लिए बहुत जरूरी है कि आहार का विशेष ध्यान रखा जाए, विशेषतौर पर फाइबर तथा अन्य पोषक तत्वों से युक्त ऐसे आहार का सेवन किया जाए जिसे पचाना सरल हो तथा जिससे कब्ज जैसी समस्या के होने की आशंका कम हो. इसके अलावा आहार में तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ाने से भी काफी लाभ मिलता है. वैसे भी प्रतिदिन भरपूर मात्रा में पानी पीने से सिर्फ कब्ज ही नहीं बल्कि और भी कई तरह की समस्याओं से राहत मिलती है. वह बताते हैं कि सक्रिय जीवनशैली होना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि आलसी या असक्रिय जीवन शैली जीने वाले लोगों को भी यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है.


वहीं ऐसे लोग जिन्हे कार्य या अन्य कारण से बहुत देर खड़ा रहना या बैठे रहना पड़ता हो, उनके लिए बहुत जरूरी है कार्य के दौरान बीच में चलने-फिरने के लिए ब्रेक लें. जैसे जो लोग लंबी अवधि तक बैठे रहते हों वे 45 मिनट या एक घंटे के अंतराल कुछ मिनट अपने स्थान के आसपास ही चले या कुछ व्यायाम या स्ट्रेचिंग करें. वहीं जो लोग ज्यादा देर खड़े रहते हैं वे भी थोड़े थोड़े अंतराल पर बैठने या आरामदायक अवस्था में रहने का प्रयास करें.

इसके अलावा जिन लोगों को यह समस्या हो चुकी है उन्हें आहार संबंधी तथा अन्य सावधानियों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए तथा खान पान को लेकर चिकित्सक के निर्देशों का पालन करना चाहिए. साथ ही ऐसे लोगों को फास्ट फूड, जंक फूड और मैदे से बने आहार, राजमा, छोले, उड़द, चना तथा मांसाहार आदि से परहेज करना चाहिए. क्योंकि इन्हे पचाने में समय लगता है तथा कई बार यह कब्ज का कारण भी बन सकते हैं . इसके अलावा ऐसे लोगों को शराब तथा सिगरेट के सेवन से बचना चाहिए.

ये भी पढ़ें-अंतरराष्ट्रीय पाइल्स दिवस पर KGMU में जन जागरुकता कार्यक्रम का हुआ आयोजन

आमतौर पर बवासीर होने पर लोग चिकित्सक से समय से मदद लेने से कतराते हैं, विशेषकर महिलायें . लेकिन बवासीर का समय से इलाज काफी जरूरी है, अन्यथा यदि समस्या गंभीर हो जाए तो कई बार सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती ( Treatment And Symptoms OF Piles) है. वहीं आम लोग बवासीर, फिस्टुला व फिशर में अंतर नहीं कर पाते हैं. इससे भी कई बर समस्याएं और बढ़ जाती है. जानें बवासीर की समस्या को कैसे पहचानें और इसका इलाज का सही तरीका क्या है.

छुपाएं नहीं समय से इलाज करें बवासीर का
बवासीर या पाइल्स एक ऐसा रोग है जिसके बारे में आमतौर पर लोग बात करना पसंद नहीं हैं. यहां तक की इसके इलाज के लिए ज्यादातर लोग तब तक चिकित्सक के पास भी नहीं जाते हैं जब तक समस्या काफी ज्यादा बढ़ नहीं जाती है. चिकित्सकों कि मानें तो पिछले कुछ सालों में बवासीर के मरीजों की संख्या में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. लेकिन चिंता की बात यह है कि युवाओं में यहां तक कि स्कूल जाने वाले बच्चों में भी इसके मामलों की संख्या बढ़ रही है. चिकित्सक तथा जानकार इसके लिए काफी हद तक खराब व तनावपूर्ण जीवनशैली तथा खराब भोजन संबंधी आदतों को जिम्मेदार मानते हैं.

क्या है बवासीर
दरअसल बवासीर एक गुदा विकृति है (why piles happen) जिसमें गुदा या एनस के अंदर और बाहरी हिस्से यानी मल द्वार के पास की नसों में सूजन आ जाती है और वहां गांठ या मस्से बनने लगते हैं. जिनमें से कई बार खून भी निकलने लगता है. यदि इस समस्या को नजरअंदाज किया जाए या इसका समय से इलाज नहीं करवाया जाय तो कई बार इसे ठीक करने के लिए सर्जरी तक करवाने की नौबत आ जाती है.

दिल्ली के लाइफ अस्पताल के चिकित्सक डॉ अशरीर कुरैशी (Dr Ashir Qureshi) बताते हैं कि यह समस्या पुरुषों तथा महिलाओं दोनों में हो सकती है. लेकिन बवासीर के बिगड़ने कि स्थिति ज्यादातर महिलाओं में नजर आती हैं क्योंकि ज्यादातर मामलों में वे तब तक इस समस्या को नजरअंदाज करती रहती हैं जब तक समस्या बहुत ज्यादा नहीं बढ़ जाती है. वह बताते हैं बवासीर की गंभीरता के आधार पर उसके चार चरण माने जाते हैं. शुरुआत में या पहले चरण में ज्यादातर लोगों को कोई खास लक्षण महसूस नहीं होते हैं. इस अवस्था में आमतौर पर पीड़ित को सिर्फ गुदाद्वार पर खुजली महसूस होती है. वही कुछ लोगों में कब्ज की अवस्था में कभी-कभी मल के साथ खून भी आ जाता है. लेकिन बवासीर के दूसरे चरण में मलद्वार के आसपास मस्से या गांठ बनने की शुरुआत होने लगती हैं. इस अवस्था में पीड़ित को कभी कभी हल्का दर्द हो सकता है.

तीसरे चरण में स्थिति थोड़ी गंभीर होने लगती है. क्योंकि इसमें मस्से सख्त होने लगते हैं. इस स्थिति में मरीज को मल त्याग करते समय तेज दर्द हो सकता है और ज्यादा रक्तस्राव भी हो सकता है.
चौथे चरण को बवासीर की गंभीर स्थिति माना जाता है. इस अवस्था में मस्सों में असहनीय दर्द के साथ रक्तस्राव की मात्रा भी बढ़ जाती है . यहां तक की पीड़ित को चलने और बैठने में भी परेशानी होने लगती है. इसके साथ ही इस अवस्था में संक्रमण होने की आशंका भी बढ़ जाती है.

बवासीर के प्रकार

डॉ अशरीर कुरैशी बताते हैं कि मस्सों की स्थिति तथा समस्या की गंभीरता के आधार पर इसके चार प्रकार माने गए हैं. जो इस प्रकार हैं.

  1. अंदरूनी बवासीर
  2. बाहरी बवासीर
  3. प्रोलेप्सड बवासीर
  4. खूनी बवासीर

बवासीर के लक्षण

डॉ कुरैशी बताते हैं कि बवासीर के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं.

1.गुदा या मल मार्ग के आसपास सूजन, खुजली और जलन महसूस होना
2. मल त्याग करते समय असहजता महसूस करना
3.मल त्याग करते समय कभी हल्का या कभी तेज दर्द महसूस होना
4.मल के साथ कम या ज्यादा खून आना
5. गुदा के अंदर की तरफ , मुख पर या उसके आसपास गांठ या मस्से होना
6. मल त्याग करते समय ऐसा महसूस करना जैसे मलद्वार से मस्से बाहर निकल रहे हो
7. बैठने में समस्या होना
8. कई बार, बार-बार मल त्यागने की इच्छा होना, लेकिन मल का ना निकलना, आदि.

बवासीर के कारण
डॉ कुरैशी बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में बवासीर के लिए पुरानी व ज्यादा कब्ज को जिम्मेदार माना जाता है. वहीं कई बार अनुवंशिक कारणों से भी यह हो सकती हैं. इसके अलावा और भी कुछ कारण हैं जो इस रोग के होने की आशंका को बढ़ाते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  1. ज्यादा मिर्च मसाले वाला , तला हुआ या ज्यादा तेल में बना हुआ भोजन नियमित रूप से करना
  2. नियमित रूप से शौच ना होना या शौच को रोकना
  3. शारीरिक सक्रियता में कमी
  4. महिलाओं में गर्भावस्था में यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है
  5. कभी-कभी कुछ गंभीर रोगों या उनके इलाज के प्रभाव के कारण पहले कब्ज तथा फिर बवासीर के होने की आशंका हो सकती है.

बवासीर, फिस्टुला व फिशर में अंतर
डॉ कुरैशी बताते हैं बवासीर की तरह फिस्टुला तथा फिशर नामक बीमारियां भी होती हैं जो गुदा या मलद्वार के आसपास होती है. इसी के चलते कई लोग इनमें तथा बवासीर में भ्रमित हो जाते हैं. इनमें अंतर की बात करें तो बवासीर में मलद्वार के अंदर की तरफ या बाहर मस्से या गांठे होती हैं, लेकिन फिशर रोग में मलद्वार के आसपास की त्वचा क्षतिग्रस्त हो जाती तथा वहां दरारे या कट पड़ जाते हैं. जिन पर ध्यान ना देने पर कभी कभी संक्रमण भी हो सकता है. वहीं फिस्टुला रोग में गुदा ग्रंथियों में संक्रमण हो जाता है, जिसके फलस्वरूप गुदा पर मवाद वाला फोड़ा हो जाता है.
डॉ कुरैशी बताते हैं कि विशेषतौर पर बवासीर की बात करें तो पहले के समय में इस प्रकार की समस्याएं ज्यादातर 50 वर्ष या उससे ज्यादा आयु वाले लोगों में देखने में आती थी लेकिन वर्तमान समय में कम उम्र के युवाओं में भी बवासीर की समस्या के मामले ज्यादा संख्या में नजर आने लगे हैं.

कैसे करें बचाव
डॉ कुरैशी बताते हैं कि बवासीर या इस जैसी किसी भी समस्या से बचाव के लिए बहुत जरूरी है कि आहार का विशेष ध्यान रखा जाए, विशेषतौर पर फाइबर तथा अन्य पोषक तत्वों से युक्त ऐसे आहार का सेवन किया जाए जिसे पचाना सरल हो तथा जिससे कब्ज जैसी समस्या के होने की आशंका कम हो. इसके अलावा आहार में तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ाने से भी काफी लाभ मिलता है. वैसे भी प्रतिदिन भरपूर मात्रा में पानी पीने से सिर्फ कब्ज ही नहीं बल्कि और भी कई तरह की समस्याओं से राहत मिलती है. वह बताते हैं कि सक्रिय जीवनशैली होना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि आलसी या असक्रिय जीवन शैली जीने वाले लोगों को भी यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है.


वहीं ऐसे लोग जिन्हे कार्य या अन्य कारण से बहुत देर खड़ा रहना या बैठे रहना पड़ता हो, उनके लिए बहुत जरूरी है कार्य के दौरान बीच में चलने-फिरने के लिए ब्रेक लें. जैसे जो लोग लंबी अवधि तक बैठे रहते हों वे 45 मिनट या एक घंटे के अंतराल कुछ मिनट अपने स्थान के आसपास ही चले या कुछ व्यायाम या स्ट्रेचिंग करें. वहीं जो लोग ज्यादा देर खड़े रहते हैं वे भी थोड़े थोड़े अंतराल पर बैठने या आरामदायक अवस्था में रहने का प्रयास करें.

इसके अलावा जिन लोगों को यह समस्या हो चुकी है उन्हें आहार संबंधी तथा अन्य सावधानियों का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए तथा खान पान को लेकर चिकित्सक के निर्देशों का पालन करना चाहिए. साथ ही ऐसे लोगों को फास्ट फूड, जंक फूड और मैदे से बने आहार, राजमा, छोले, उड़द, चना तथा मांसाहार आदि से परहेज करना चाहिए. क्योंकि इन्हे पचाने में समय लगता है तथा कई बार यह कब्ज का कारण भी बन सकते हैं . इसके अलावा ऐसे लोगों को शराब तथा सिगरेट के सेवन से बचना चाहिए.

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