संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक नीतियों तथा विकास विभाग में यूएन-डीईएसए के तहत उम्र बढ़ने के केंद्र- बिन्दु विषय पर एक शोध किया गया, जिसमें बढ़ती उम्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इस शोध से जुड़ी 'रोज़ मेरी लिन' बताती हैं की बढ़ती उम्र को लेकर हमारे समाज में बहुत सी नकारात्मकता व्याप्त हैं, जिसके चलते दुनिया भर में सभी जगह उम्र दराज लोगों को शारीरिक रूप से कमजोर, समाज पर बोझ तथा ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता हैं, जिनका समाज में कोई खास योगदान नहीं है।
बढ़ती उम्र, शारीरिक परिवर्तन और सामाजिक स्थिति
समाज में उम्र के आधार पर भेद-भाव तथा उसके चलते बुजुर्गों की समाज में स्थिति को लेकर ETV भारत सुखीभवा की टीम ने वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर वीना कृष्णन से बात की।
डॉ. कृष्णन बताती हैं कि उम्र बढ़ना कोई रोग या समस्या नहीं है, लेकिन उम्र बढ़ने के अलग-अलग स्तर जैसे बचपन, युवावस्था, जवान होना, अधेड़वस्था तथा बुढ़ापे के दौरान शरीर में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों तथा उनके चलते होने वाली विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का व्यक्ति सामना करता है। विशेषकर अधेड़वस्था तथा बुढ़ापे में होने वाले शारीरिक परिवर्तन, विभिन्न समस्याएं तथा शरीर में ऊर्जा की कमी व्यक्ति की मानसिकता और शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित अरने लगती है। कई बार यह समस्या इतनी गंभीर हो जाती है की व्यक्ति की ना सिर्फ लोगों बल्कि स्वयं पर से भी विश्वास कम होने लगता है। यहां तक की कभी-कभी उनमें जीवन जीने की चाह भी खत्म सी हो जाती है
सेवानिवृत्ति के बाद बढ़ती मानसिक समस्याएं
डॉ. कृष्णन बताती हैं की हमारे समाज में 60 वर्ष को रिटायरमेंट की उम्र माना जाता है और रिटायरमेंट यानी सेवानिवृत्ति को कहीं ना कहीं लोग इस भावना के साथ जोड़ते हैं कि व्यक्ति की कार्य करने की उम्र पूरी हो चुकी है और अब वह शारीरिक और सामाजिक स्तर पर कार्य करने में सक्षम नहीं है। नतीजतन बड़ी उम्र के लोग जो कार्य कर रहे हैं या जो लोग सेवानिवृत्ति भी पा चुके हैं, उनमें उम्र संबंधी तनाव और अवसाद जैसी स्थितियां उत्पन्न होने लगती हैं।
अकेला ना होने दे बुजुर्गों को
60 वर्ष की आयु होने के उपरांत चाहे नौकरीपेशा महिला या पुरुष हो या फिर ग्राहिणी सभी के जीवन में एक विराम आ जाता है, जो सामाजिक सोच और व्यवस्थाओं के चलते परिवार, समाज तथा स्वयं व्यक्ति द्वारा लगाया गया होता है। जिसके चलते महिला तथा पुरुष ज्यादातर विभिन्न प्रकार के मानसिक दबावों, अकेलापन तथा हीनभावना का शिकार हो जाते हैं। डॉ. कृष्णन बताती हैं की मानसिक अस्वस्थता शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है और शरीर में हृदय संबंधी रोग, मधुमेह, और उच्च रक्तचाप सरीखे कोमोरबिडिटी तथा अन्य रोगों के खतरे को भी बढ़ाता है।
उम्र आधारित समस्याओं पर यूएन की रिपोर्ट
उम्र के आधार पर होने वाले फायदे और नुकसान को लेकर यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी तथा छोटी उम्र के व्यस्को के समक्ष ना सिर्फ कार्य क्षेत्र में बल्कि सामान्य जीवन में भी अलग-अलग प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं। हर उम्र के लोगों के लिए ना सिर्फ कार्य क्षेत्र बल्कि स्वास्थ्य, राजनीति और निजी जीवन में चुनौतियां और समस्याएं भी अलग-अलग होती है।
रिपोर्ट में माना गया है कि उम्र के आधार पर लोगों के व्यक्तित्व और उनकी क्षमताओं को आंकने की प्रवृत्ति के नुकसान काफी ज्यादा है, जो ना सिर्फ व्यक्ति के स्वास्थ्य बल्कि उसकी सामाजिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं। बढ़ती उम्र को कमजोर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ जोड़कर देखा जाना बुजुर्ग लोगों में सामाजिक तौर पर एकांतवास, अकेलापन, कमजोर आर्थिक अवस्था तथा उनके जीवन स्तर की गुणवत्ता में कमी और तदुपरांत विभिन्न शारीरिक समस्याओं के चलते मृत्यु की संख्या को बढ़ाता है।
शोध में बताए गए आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में लगभग 6.3 मिलियन बुजुर्ग लोग अवसाद और तनाव के शिकार हैं।
हेल्दी एजिंग (स्वस्थ तरीके से बढ़ती उम्र) का दशक (2021-2030)
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की ओर से वर्ष 2021 से 2030 को हेल्दी एजिंग के दशक के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया है। इस आयोजन का उद्देश्य बुजुर्गों की समाज में स्थिति तथा उनके आर्थिक स्तर और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सरकार, समाज, विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञों तथा मीडिया सहित विभिन्न विभागों के एकजुट प्रयास किया जाना है। रिपोर्ट में बताए गए आंकड़ों के अनुसार वर्तमान समय में 60 साल तथा उससे अधिक उम्र वाले लगभग 1 बिलियन लोग जो कि मध्यम तथा गरीब देशों में रहते हैं, अपनी आम जरूरतों को पूरा करने के लिए भी संघर्ष का सामना करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस विशेष दशक में चार स्तरों पर मुख्य रूप से कार्य करना निर्धारित किया गया है, जो इस प्रकार है;
- उम्र के अनुकूल वातावरण
- उम्र का मुकाबला
- एकीकृत देखभाल
- लंबी अवधि की देखभाल
उम्र के आधार पर वर्गीकरण को समाप्त किया जाना जरूरी
इस शोध में रोज मेरी लेन बताती हैं कि उम्र के आधार पर समाज के वर्गीकरण को समाप्त करने के लिए बहुत जरूरी है कि सामाजिक तौर पर ऐसे प्रयास किए जाएं, जहां जानबूझकर या अनजाने में लोगों की क्षमताओं का आंकलन उनकी उम्र के आधार पर ना किया जाये। जिससे सभी उम्र के लोग इस समाज में एक समान सम्मान तथा मौके प्राप्त कर सकें। बहुत जरूरी है कि उम्र दराज लोगों को सामाजिक तथा व्यावसायिक व्यवस्था में इस तरह सम्मिलित किया जाए, जिससे समाज में हर उम्र के लोगों के लिए अनुकूल वातावरण स्थापित हो सके।
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इसके साथ ही बुजुर्गों और उम्रदराज लोगों की सुरक्षा तथा उनके अधिकारों से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता के आधार पर सबके सामने रखना चाहिए तथा उनके लिए जरूरी नियम तथा कानून भी बनाए जाने चाहिए, जिससे बुजुर्ग लोगों के प्रति हिंसा, दुर्व्यवहार तथा भेदभाव में कमी आ सके। साथ ही नौकरी, स्वास्थ्य की देखभाल तथा अन्य जरूरी क्षेत्रों में भी उनकी मदद की जा सके।
इसके अतिरिक्त मीडिया के माध्यम से इस तरह के प्रयास भी किए जाने चाहिए कि समाज में बुढ़ापे को कमजोरी और बीमारी से जोड़ने की बजाए मजबूत, सकारात्मक तथा समृद्ध स्थिति से जोड़ कर देखा जाए। इसके लिए मीडिया के साथ ही सामाजिक तथा पारिवारिक स्तर पर काम किए जाने की भी जरूरत है।