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Teeth Braces : दांतों-जबड़े में टेढ़ापन को दूर करने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है भारतीय वैज्ञानिको की खोज

टेढे़-मेढ़े अनियमित दांतों को ठीक करने में ऑर्थोडॉन्टिक ब्रेसेस और उसको दांत पर चिपकाने वाले बॉन्डिंग मैटेरियल का महत्वपूर्ण रोल होता है कई मामलों में इलाज के बाद दांतों का आकार तो ठीक हो जाता है, लेकिन उनकी प्राकृतिक चमक या सफेदी नहीं रहती. ब्रेसेस लगे रहने के दौरान दांत साफ करते समय कई जगहों पर ठीक से सफाई नहीं हो पाती.

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Published : Mar 23, 2023, 1:17 PM IST

Teeth Braces
ब्रेसेस

नई दिल्ली : दांतों में विकृति या जबड़े का टेढ़ापन होने से न सिर्फ खाने पीने में दिक्कत होती है बल्कि मुंह व चेहरा भी असामान्य दिखते हैं. इस समस्या का इलाज किसी भी उम्र में किया जा सकता है, हालांकि, इलाज के लिए सात साल से 18 साल तक की उम्र सबसे उपयुक्त रहती है. इस इलाज में 6 महीने से 3 साल तक का समय लग सकता है. इस इलाज में दांतों पर ब्रेसेस का प्रयोग किया जाता है.

ऑर्थोडॉन्टिक्स ( Orthodontics ) शाखा Dentistry की सुपरस्पेशलिटी है, जिसमें टेढ़े मेढ़े अनियमित दांत ( irregular teeth ) , जबड़े और चेहरे को ठीक किया जाता है. टेढे़-मेढ़े अनियमित दांतों को ठीक करने में ऑर्थोडॉन्टिक ब्रेसेस और उसको दांत पर चिपकाने वाले बॉन्डिंग मैटेरियल का महत्वपूर्ण रोल होता है. वर्तमान में प्रयुक्त होने वाले बॉन्डिंग पदार्थ की अपनी कमियां हैं. हालांकि अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने बॉन्डिंग से जुड़ी एक नई खोज की है. विश्वविद्यालय की खोज को बकायदा अगले 20 वर्षों का पेटेंट भी प्रदान किया गया है.

Teeth Braces
ब्रेसेस

ऑर्थोडॉन्टिक ब्रेसेस को दांत पर चिपकाने के लिए बॉन्डिंग मैटेरियल का उपयोग होता है. कई मामलों में इलाज के बाद दांतों का आकार तो ठीक हो जाता है, लेकिन उनकी प्राकृतिक चमक या सफेदी नहीं रहती. ब्रेसेस लगे रहने के दौरान दांत साफ करते समय कई जगहों पर ठीक से सफाई नहीं हो पाती, इसके चलते दांतों के बीच कैविटी जमा होने लगती है, जो दांतों की सेहत को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है.

IIT - BHU ने नए पदार्थ की खोज की
इस समस्या के समाधान के लिए दंत चिकित्सा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा आईआईटी-बीएचयू के शोधकतार्ओं ने नए पदार्थ की खोज की है. इस शोध समूह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कार्यरत ऑर्थोडॉन्टिक विषय के चिकित्सक प्रोफेसर अजीत विक्रम परिहार, प्रोफेसर टी पी चतुर्वेदी, शोधार्थी साधना स्वराज, तथा आईआईटी-बीएचयू के स्कूल ऑफ मैटिरियल साइंस विभाग के प्रो. प्रलय मैती व उनके शोध छात्र सुदीप्त सेनापति शामिल हैं.

इस समूह द्वारा खोजे गए बॉन्डिंग मटिरियल की विशेषता यह है कि यह ब्रेसेस के साथ इस्तेमाल होने पर दांतों पर कैल्शियम व फॉसफोरस की उपस्थिति सुनिश्चित करता है, जिससे दांतों की चमक व सफेदी पर असर नहीं पड़ता. साथ ही साथ यह नया पदार्थ बैक्टीरिया रोधी गुणों के चलते कैविटी को उत्पन्न होने से रोकने में सहायक होता है. इस खोज की नवीनता के मद्देनजर भारत सरकार ने शोधकर्ताओं के इस कार्य को 20 वर्ष के लिए पेटेंट प्रदान किया है. आगे की खोज में शोधकर्ता इस पदार्थ को इलाज में इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें : Oil Pulling : कवलधारण हो या गंडूशा , हर तरह से मुंह की सेहत के लिए फायदेमंद

नई दिल्ली : दांतों में विकृति या जबड़े का टेढ़ापन होने से न सिर्फ खाने पीने में दिक्कत होती है बल्कि मुंह व चेहरा भी असामान्य दिखते हैं. इस समस्या का इलाज किसी भी उम्र में किया जा सकता है, हालांकि, इलाज के लिए सात साल से 18 साल तक की उम्र सबसे उपयुक्त रहती है. इस इलाज में 6 महीने से 3 साल तक का समय लग सकता है. इस इलाज में दांतों पर ब्रेसेस का प्रयोग किया जाता है.

ऑर्थोडॉन्टिक्स ( Orthodontics ) शाखा Dentistry की सुपरस्पेशलिटी है, जिसमें टेढ़े मेढ़े अनियमित दांत ( irregular teeth ) , जबड़े और चेहरे को ठीक किया जाता है. टेढे़-मेढ़े अनियमित दांतों को ठीक करने में ऑर्थोडॉन्टिक ब्रेसेस और उसको दांत पर चिपकाने वाले बॉन्डिंग मैटेरियल का महत्वपूर्ण रोल होता है. वर्तमान में प्रयुक्त होने वाले बॉन्डिंग पदार्थ की अपनी कमियां हैं. हालांकि अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने बॉन्डिंग से जुड़ी एक नई खोज की है. विश्वविद्यालय की खोज को बकायदा अगले 20 वर्षों का पेटेंट भी प्रदान किया गया है.

Teeth Braces
ब्रेसेस

ऑर्थोडॉन्टिक ब्रेसेस को दांत पर चिपकाने के लिए बॉन्डिंग मैटेरियल का उपयोग होता है. कई मामलों में इलाज के बाद दांतों का आकार तो ठीक हो जाता है, लेकिन उनकी प्राकृतिक चमक या सफेदी नहीं रहती. ब्रेसेस लगे रहने के दौरान दांत साफ करते समय कई जगहों पर ठीक से सफाई नहीं हो पाती, इसके चलते दांतों के बीच कैविटी जमा होने लगती है, जो दांतों की सेहत को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है.

IIT - BHU ने नए पदार्थ की खोज की
इस समस्या के समाधान के लिए दंत चिकित्सा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा आईआईटी-बीएचयू के शोधकतार्ओं ने नए पदार्थ की खोज की है. इस शोध समूह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कार्यरत ऑर्थोडॉन्टिक विषय के चिकित्सक प्रोफेसर अजीत विक्रम परिहार, प्रोफेसर टी पी चतुर्वेदी, शोधार्थी साधना स्वराज, तथा आईआईटी-बीएचयू के स्कूल ऑफ मैटिरियल साइंस विभाग के प्रो. प्रलय मैती व उनके शोध छात्र सुदीप्त सेनापति शामिल हैं.

इस समूह द्वारा खोजे गए बॉन्डिंग मटिरियल की विशेषता यह है कि यह ब्रेसेस के साथ इस्तेमाल होने पर दांतों पर कैल्शियम व फॉसफोरस की उपस्थिति सुनिश्चित करता है, जिससे दांतों की चमक व सफेदी पर असर नहीं पड़ता. साथ ही साथ यह नया पदार्थ बैक्टीरिया रोधी गुणों के चलते कैविटी को उत्पन्न होने से रोकने में सहायक होता है. इस खोज की नवीनता के मद्देनजर भारत सरकार ने शोधकर्ताओं के इस कार्य को 20 वर्ष के लिए पेटेंट प्रदान किया है. आगे की खोज में शोधकर्ता इस पदार्थ को इलाज में इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं.

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