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नवजात शिशु के स्वास्थ्य और विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है ये समयावधि , ऐसे करें शिशु की देखभाल - नवजात शिशु

नवजात मृत्यु दर (Neonatal Mortality Rate) को कम करने तथा नवजात शिशु की सही देखभाल के लिए लोगों को जागरूक व प्रेरित करने के उद्देश्य से हर से 15 से 21 नवंबर तक नवजात शिशु देखभाल सप्ताह मनाया जाता है. Newborn Care Week 15 to 21 November . National Newborn Care Week .

Newborn Care Week 15 to 21 November National Newborn Care Week
फाइल फोटो
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Published : Nov 19, 2022, 12:38 AM IST

एक बच्चे का जन्म ना सिर्फ उसके लिए बल्कि उसकी माता के लिए भी एक चमत्कार से कम नहीं होता है लेकिन जन्म के बाद बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास सही तरीके से हो तथा वह किसी बीमारी या संक्रमण की चपेट में ना जाए इसके लिए बहुत जरूरी है की उसकी देखभाल को लेकर विशेष ध्यान रखा जाय. गौरतलब है कि जन्म के बाद शुरुआती 28 दिन में अपरिपक्वता, बीमारी, संक्रमण या कुछ अन्य कारणों के चलते नवजात में मृत्यु का ज़ोखिम अधिक रहता है. हर साल दुनिया भर में इन तथा अन्य कारणों के चलते बड़ी संख्या में नवजात अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. नवजात मृत्यु दर में कमी लाने तथा उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करने के लिए उनकी सही व समुचित देखभाल के तरीकों को अपनाने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 15 से 21 नवंबर तक राष्ट्रीय नवजात शिशु देखभाल सप्ताह (Newborn Care Week 15 to 21 November) मनाया जाता है.

Newborn Care Week 15 to 21 November National Newborn Care Week
फाइल फोटो

शुरुआती 28 दिन काफी संवेदनशील
चिकित्सक बताते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद के पहले 24 घंटे तथा शुरुआती 28 दिन काफी संवेदनशील होते हैं. इसे उनके आजीवन स्वास्थ्य और विकास के लिए आधारभूत अवधि माना जाता है. लेकिन कई बार जन्म के समय बच्चे का जरूरी शारीरिक विकास ना होना, संक्रमण, इंट्रा-पार्टम जटिलताओं तथा जन्मजात विकृतियों के चलते हर साल बड़ी संख्या में नवजात अपने जन्म के बाद पहले माह में ही मृत्यु से हार जाते हैं.

Newborn Care Week 15 to 21 November National Newborn Care Week
फाइल फोटो

क्या कहते हैं आंकड़े
सरकारी आंकड़ों की माने तो वर्ष 2019 में दो मिलियन से अधिक स्टिल बर्थ या मृत जन्म के साथ वैश्विक स्तर पर लगभग 2.4 मिलियन बच्चे ऊपर बताए गए कारणों के चलते जन्म के प्रथम माह में ही मृत्यु का शिकार हो गए थे. हालांकि आँकड़े बताते हैं लगातार सरकारी, सामाजिक तथा व्यक्तिगत प्रयासों के चलते बच्चे के जन्म के एक माह के भीतर मृत्यु दर में कुछ गिरावट देखी गई है. जैसे वर्ष 2019 में भारत में नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 44 थी, वहीं वर्ष 2000 में यह आंकड़ा 22 प्रति 1000 रिकार्ड किया गया था. लेकिन अभी भी इसके लिए सतत प्रयासों की जरूरत है.

सरकारी आंकड़ों में माना गया है कि यदि वर्ष 2035 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को प्रति 1000 बच्चों में 20 या उससे कम करना चाहते है, तो अतिरिक्त विशिष्ट प्रयास करने जरूरी हैं. गौरतलब है कि बच्चे के जन्म के पहले एक माह में जरूरी शारीरिक विकास ना होना या अपरिपक्वता के चलते 35%, नवजात संक्रमण के चलते 33%, इंट्रापार्टम जटिलताओं या सांस रुकने व अस्फीक्सिया के चलते 20% तथा जन्मजात विकृतियों के कारण लगभग 9 % बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं. चिकित्सक मानते हैं कि लगभग 75 % नवजात शिशुओं की मृत्यु को जन्म के दौरान और जन्म के बाद, पहले सप्ताह तथा पहले माह में जरूरी सावधानियां बरत कर तथा समय पर इलाज उपलब्ध कराकर रोका जा सकता है. लेकिन इसके लिए बहुत जरूरी है की इस संबंध में माता तथा उनके परिजनों को पूरी जानकारी हो.

जागरूकता जरूरी
जानकारों का मानना है तथा कई शोधों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जन्म के बाद बच्चे के लिए कोलोस्ट्रम या माता के पहले दूध के साथ , नियमित स्तनपान व माता के साथ उसका शारीरिक स्पर्श भी बेहद जरूरी होता है. इसके अलावा सुरक्षित प्रसव, गर्भनाल को सुरक्षित तरीके से काटना, जन्म के तत्काल बाद बच्चे की चिकित्सीय जांच, बच्चे तथा उसके आसपास के वातावरण की स्वच्छता तथा अन्य कई प्रकार की सावधानियों को बरतना भी बेहद जरूरी है. इसके अलावा भी कुछ बातें हैं जिनका ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जिनमें से कुछ प्रकार हैं.

  • सामान्य परिस्थिति में जन्म के बाद बच्चे को तुरंत स्तनपान कराना .
  • जन्म के पहले घंटे के बाद नवजात की सम्पूर्ण शारीरिक जांच कराना तथा इस समय लगने वाले सभी टीके उसे लगवाना, जैसे ओपीवी जन्म टीका, हेपेटाइटिस बी टीका तथा बीसीजी आदि.
  • जन्म के समय नवजात के भार, माता के गर्भ में रहने की उसकी अवधि, यानी उसकी गर्भकालीन आयु, क्या उसमें किसी प्रकार का कोई जन्मजात दोष है ? तथा कहीं उसमें किसी बीमारी के संकेत तो नजर नहीं आ रहें है , इस बात की जांच करना व उसका रिकार्ड रखना भी बेहद जरूरी है.
  • आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद कुछ बच्चों में पीलिया या कुछ अन्य बीमारियों के लक्षण नजर आ सकते हैं, ऐसे में चिकित्सक के निर्देशों का पालन करना तथा बच्चे को जरूरी इलाज उपलब्ध कराना जरूरी है.
  • ऐसे बच्चे जो निर्धारित समय से पहले जन्मे हों, जो जन्म के समय अपरिपक्व हों, जिनका वजन जन्म के समय कम हो या फिर जो जन्म के समय से ही किसी विशेष अवस्था से पीड़ित हो, उसकी देखभाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए निर्देशों तथा सावधानियों के अनुसार ही उनकी देखभाल करनी चाहिए.
  • बच्चे के लिए कंगारू केयर तकनीक (Kangaroo care technique ) का पालन करना चाहिए, जिसमें बच्चे के ज्यादा अवधि तक माता व पिता के साथ शारीरिक स्पर्श की बात कही जाती है.
  • बच्चे की साफ सफाई तथा उसके आसपास की स्वच्छता का विशेष तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए तरीके से ध्यान रखना चाहिए.
  • यह ध्यान रखना कि दूध पीते समय या किसी भी अवस्था में बच्चे के सांस लेने में अवरोध उत्पन्न ना हो.
  • बच्चे के लगातार रोने, या उनकी गतिविधि में किसी भी प्रकार की असामान्यता नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें.
  • गौरतलब है कि इन सावधानियों का ध्यान रखने से कई नवजात आपातकालीन स्थिति से बच सकते हैं.

सरकारी प्रयास

  • UNICEF website पर उपलब्ध आंकड़ों की माने तो भारत में लगातार प्रयासों के चलते नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में काफी कमी आई है. वर्ष 1990 में यह आंकड़ा विश्‍वभर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक तिहाई थी, वहीं वर्ष 2016 तक यह आंकड़ा एक चौथाई से भी कम रह गया था.
  • राष्ट्रीय नवजात शिशु देखभाल सप्ताह (National Newborn Care Week) जैसे आयोजनों के अलावा भी भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों को रोकने के लिए तथा उन्हे स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए सालों से लगातार कई प्रयास किए जा रहें हैं. जिनके तहत कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले भी लिए गए हैं तथा कई योजनाएं भी बनाई गई हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
  • वर्ष 1992 में (Child Survival and Safe Motherhood Program) बाल उत्तरजीविता और सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम (CSSM) की शुरुआत.
  • वर्ष 1997 में (Reproductive and Child Health Program) प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के प्रथम चरण (RCH 1) की शुरुआत.
  • वर्ष 2005 में RCH 2 लागू किया गया था.
  • वर्ष 2016 में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम MAA निरपेक्ष मातृ स्नेह (Absolute Maternal Affection) का शुभारंभ.
  • वर्ष 2016 में ही प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (Pradhan Mantri Surakshit Matritva Abhiyan) की भी शुरुआत की गई थी.
  • वर्ष 2005 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (National Urban Health Mission) के साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) भी लागू किया गया था. यह अभियान वर्ष 2013 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission ) का हिस्सा बना, जिसके तहत बच्चों की मृत्यु दर को कम करने व उनके विकास के लिए रणनीतिक ढांचा बनाया गया था .
  • वर्ष 2014 में MoHFW द्वारा वैश्विक हर नवजात कार्य योजना की शुरुआत की गई . जिसका उद्देश्य नवजात शिशुओं की मृत्यु और मृत जन्म की रोकथाम के लिए प्रयास करने के साथ वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर और मृत जन्म दर को एक अंक में लाना हैं.

एक बच्चे का जन्म ना सिर्फ उसके लिए बल्कि उसकी माता के लिए भी एक चमत्कार से कम नहीं होता है लेकिन जन्म के बाद बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास सही तरीके से हो तथा वह किसी बीमारी या संक्रमण की चपेट में ना जाए इसके लिए बहुत जरूरी है की उसकी देखभाल को लेकर विशेष ध्यान रखा जाय. गौरतलब है कि जन्म के बाद शुरुआती 28 दिन में अपरिपक्वता, बीमारी, संक्रमण या कुछ अन्य कारणों के चलते नवजात में मृत्यु का ज़ोखिम अधिक रहता है. हर साल दुनिया भर में इन तथा अन्य कारणों के चलते बड़ी संख्या में नवजात अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं. नवजात मृत्यु दर में कमी लाने तथा उन्हें स्वस्थ जीवन प्रदान करने के लिए उनकी सही व समुचित देखभाल के तरीकों को अपनाने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 15 से 21 नवंबर तक राष्ट्रीय नवजात शिशु देखभाल सप्ताह (Newborn Care Week 15 to 21 November) मनाया जाता है.

Newborn Care Week 15 to 21 November National Newborn Care Week
फाइल फोटो

शुरुआती 28 दिन काफी संवेदनशील
चिकित्सक बताते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद के पहले 24 घंटे तथा शुरुआती 28 दिन काफी संवेदनशील होते हैं. इसे उनके आजीवन स्वास्थ्य और विकास के लिए आधारभूत अवधि माना जाता है. लेकिन कई बार जन्म के समय बच्चे का जरूरी शारीरिक विकास ना होना, संक्रमण, इंट्रा-पार्टम जटिलताओं तथा जन्मजात विकृतियों के चलते हर साल बड़ी संख्या में नवजात अपने जन्म के बाद पहले माह में ही मृत्यु से हार जाते हैं.

Newborn Care Week 15 to 21 November National Newborn Care Week
फाइल फोटो

क्या कहते हैं आंकड़े
सरकारी आंकड़ों की माने तो वर्ष 2019 में दो मिलियन से अधिक स्टिल बर्थ या मृत जन्म के साथ वैश्विक स्तर पर लगभग 2.4 मिलियन बच्चे ऊपर बताए गए कारणों के चलते जन्म के प्रथम माह में ही मृत्यु का शिकार हो गए थे. हालांकि आँकड़े बताते हैं लगातार सरकारी, सामाजिक तथा व्यक्तिगत प्रयासों के चलते बच्चे के जन्म के एक माह के भीतर मृत्यु दर में कुछ गिरावट देखी गई है. जैसे वर्ष 2019 में भारत में नवजात शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 पर 44 थी, वहीं वर्ष 2000 में यह आंकड़ा 22 प्रति 1000 रिकार्ड किया गया था. लेकिन अभी भी इसके लिए सतत प्रयासों की जरूरत है.

सरकारी आंकड़ों में माना गया है कि यदि वर्ष 2035 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को प्रति 1000 बच्चों में 20 या उससे कम करना चाहते है, तो अतिरिक्त विशिष्ट प्रयास करने जरूरी हैं. गौरतलब है कि बच्चे के जन्म के पहले एक माह में जरूरी शारीरिक विकास ना होना या अपरिपक्वता के चलते 35%, नवजात संक्रमण के चलते 33%, इंट्रापार्टम जटिलताओं या सांस रुकने व अस्फीक्सिया के चलते 20% तथा जन्मजात विकृतियों के कारण लगभग 9 % बच्चे अपनी जान गंवा देते हैं. चिकित्सक मानते हैं कि लगभग 75 % नवजात शिशुओं की मृत्यु को जन्म के दौरान और जन्म के बाद, पहले सप्ताह तथा पहले माह में जरूरी सावधानियां बरत कर तथा समय पर इलाज उपलब्ध कराकर रोका जा सकता है. लेकिन इसके लिए बहुत जरूरी है की इस संबंध में माता तथा उनके परिजनों को पूरी जानकारी हो.

जागरूकता जरूरी
जानकारों का मानना है तथा कई शोधों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जन्म के बाद बच्चे के लिए कोलोस्ट्रम या माता के पहले दूध के साथ , नियमित स्तनपान व माता के साथ उसका शारीरिक स्पर्श भी बेहद जरूरी होता है. इसके अलावा सुरक्षित प्रसव, गर्भनाल को सुरक्षित तरीके से काटना, जन्म के तत्काल बाद बच्चे की चिकित्सीय जांच, बच्चे तथा उसके आसपास के वातावरण की स्वच्छता तथा अन्य कई प्रकार की सावधानियों को बरतना भी बेहद जरूरी है. इसके अलावा भी कुछ बातें हैं जिनका ध्यान रखना बेहद जरूरी है. जिनमें से कुछ प्रकार हैं.

  • सामान्य परिस्थिति में जन्म के बाद बच्चे को तुरंत स्तनपान कराना .
  • जन्म के पहले घंटे के बाद नवजात की सम्पूर्ण शारीरिक जांच कराना तथा इस समय लगने वाले सभी टीके उसे लगवाना, जैसे ओपीवी जन्म टीका, हेपेटाइटिस बी टीका तथा बीसीजी आदि.
  • जन्म के समय नवजात के भार, माता के गर्भ में रहने की उसकी अवधि, यानी उसकी गर्भकालीन आयु, क्या उसमें किसी प्रकार का कोई जन्मजात दोष है ? तथा कहीं उसमें किसी बीमारी के संकेत तो नजर नहीं आ रहें है , इस बात की जांच करना व उसका रिकार्ड रखना भी बेहद जरूरी है.
  • आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद कुछ बच्चों में पीलिया या कुछ अन्य बीमारियों के लक्षण नजर आ सकते हैं, ऐसे में चिकित्सक के निर्देशों का पालन करना तथा बच्चे को जरूरी इलाज उपलब्ध कराना जरूरी है.
  • ऐसे बच्चे जो निर्धारित समय से पहले जन्मे हों, जो जन्म के समय अपरिपक्व हों, जिनका वजन जन्म के समय कम हो या फिर जो जन्म के समय से ही किसी विशेष अवस्था से पीड़ित हो, उसकी देखभाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए निर्देशों तथा सावधानियों के अनुसार ही उनकी देखभाल करनी चाहिए.
  • बच्चे के लिए कंगारू केयर तकनीक (Kangaroo care technique ) का पालन करना चाहिए, जिसमें बच्चे के ज्यादा अवधि तक माता व पिता के साथ शारीरिक स्पर्श की बात कही जाती है.
  • बच्चे की साफ सफाई तथा उसके आसपास की स्वच्छता का विशेष तथा चिकित्सक द्वारा बताए गए तरीके से ध्यान रखना चाहिए.
  • यह ध्यान रखना कि दूध पीते समय या किसी भी अवस्था में बच्चे के सांस लेने में अवरोध उत्पन्न ना हो.
  • बच्चे के लगातार रोने, या उनकी गतिविधि में किसी भी प्रकार की असामान्यता नजर आने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें.
  • गौरतलब है कि इन सावधानियों का ध्यान रखने से कई नवजात आपातकालीन स्थिति से बच सकते हैं.

सरकारी प्रयास

  • UNICEF website पर उपलब्ध आंकड़ों की माने तो भारत में लगातार प्रयासों के चलते नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में काफी कमी आई है. वर्ष 1990 में यह आंकड़ा विश्‍वभर में नवजात शिशुओं की मृत्यु का एक तिहाई थी, वहीं वर्ष 2016 तक यह आंकड़ा एक चौथाई से भी कम रह गया था.
  • राष्ट्रीय नवजात शिशु देखभाल सप्ताह (National Newborn Care Week) जैसे आयोजनों के अलावा भी भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों को रोकने के लिए तथा उन्हे स्वस्थ व सुरक्षित रखने के लिए सालों से लगातार कई प्रयास किए जा रहें हैं. जिनके तहत कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले भी लिए गए हैं तथा कई योजनाएं भी बनाई गई हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
  • वर्ष 1992 में (Child Survival and Safe Motherhood Program) बाल उत्तरजीविता और सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम (CSSM) की शुरुआत.
  • वर्ष 1997 में (Reproductive and Child Health Program) प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के प्रथम चरण (RCH 1) की शुरुआत.
  • वर्ष 2005 में RCH 2 लागू किया गया था.
  • वर्ष 2016 में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम MAA निरपेक्ष मातृ स्नेह (Absolute Maternal Affection) का शुभारंभ.
  • वर्ष 2016 में ही प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (Pradhan Mantri Surakshit Matritva Abhiyan) की भी शुरुआत की गई थी.
  • वर्ष 2005 में राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (National Urban Health Mission) के साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) भी लागू किया गया था. यह अभियान वर्ष 2013 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission ) का हिस्सा बना, जिसके तहत बच्चों की मृत्यु दर को कम करने व उनके विकास के लिए रणनीतिक ढांचा बनाया गया था .
  • वर्ष 2014 में MoHFW द्वारा वैश्विक हर नवजात कार्य योजना की शुरुआत की गई . जिसका उद्देश्य नवजात शिशुओं की मृत्यु और मृत जन्म की रोकथाम के लिए प्रयास करने के साथ वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर और मृत जन्म दर को एक अंक में लाना हैं.
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