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बच्चों को कृमि संक्रमण से बचाने के लिए रखें हाइजीन का विशेष ध्यान - common types of worm infections

छोटे बच्चों में पेट में कीड़े होने की समस्या बहुत आम होती है. लेकिन यदि इस समस्या के निवारण के लिए प्रयास ना किया जाए तो ना सिर्फ बच्चों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है बल्कि उनके शारीरिक व मानसिक विकास की गति पर भी असर पड़ सकता है.

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बच्चों को कृमि संक्रमण से बचाने के लिए रखें हाइजीन का विशेष ध्यान
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Published : Jun 20, 2022, 5:41 PM IST

बच्चों के पेट में कृमि संक्रमण होना, जिसे आम भाषा में पेट में कीड़े होना भी कहते हैं, बहुत ही आम समस्या है. हालांकि यह समस्या बड़ों को भी प्रभावित कर सकती है, लेकिन छोटे बच्चों के पेट में यदि कृमि संक्रमण हो जाए तो यह उनके शरीर को मिलने वाले पोषण को प्रभावित करने लगता है, जिससे ना सिर्फ उन्हें कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, बल्कि वे कुपोषण का भी शिकार हो सकते हैं.

चिकित्सक मानते हैं कि बच्चों के पेट में कीड़े होने के लिए हाइजीन की कमी को विशेषतौर पर जिम्मेदार होती है. हालांकि और भी कई कारण होते हैं जो इस समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी पाने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने बेंगलुरु की केयर क्लिनिक की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुधा एम रॉय से बात की.

पेट में होने वाले कीड़ों के प्रकार
डॉ. सुधा बताती हैं कि दरअसल यह छोटे कृमि या कीड़े आंतों में रहने वाले परजीवी होते हैं जो बच्चे के आहार से पोषण ग्रहण करते हैं. पेट में संक्रमण के लिए जिम्मेदार कृमि कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे टेपवर्म, राउंडवर्म, हुकवर्म तथा पिनवर्म या थ्रेडवर्म. यह कृमि आकार और बनावट में अलग-अलग प्रकार के होते हैं, लेकिन सामान्य तौर पर इनमें से किसी के भी होने के गंभीर या प्रत्यक्ष लक्षण प्रारंभिक स्तर पर बच्चे के शरीर में नजर नहीं आते हैं. लेकिन समस्या बढ़ने पर विशेषकर पेट में टेपवर्म का संक्रमण होने पर कई बार बच्चे को दौरे भी पड़ सकते हैं या फिर उनकी आंतों में रुकावट भी आ सकती है. वही पेट में हुकवर्म का संक्रमण होने पर भी आंतों की परत को नुकसान पहुंच सकता है. हालांकि यह स्थिति अपेक्षाकृत काफी कम देखने में आती है. वह बताती हैं कि छोटे बच्चों में पिनवर्म की समस्या सबसे ज्यादा आम होती है.

पढ़ें: बिना जरूरत सप्लीमेंट का सेवन बढ़ा सकता है बच्चों में परेशानी

समस्या के लक्षण
डॉ सुधा बताती हैं कि पेट में कृमि संक्रमण का प्रभाव बढ़ने पर बच्चों में कुछ परेशानियां जरूर नजर आने लगती हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • बच्चे की गुदा या मलद्वार के पास खुजली होना
  • पेट में दर्द होना
  • भूख संबंधी समस्याएं होना
  • पेट खराब रहना
  • जल्दी थक जाना या ज्यादा थकान होना
  • वजन कम होना
  • बच्चे का चिड़चिड़ा होना
  • सोने में परेशानी होना
  • बच्चे के मल से तेज दुर्गंध आना
  • मुंह में लार का ज्यादा बनना तथा बार-बार थूकना
  • चेहरे पर सफेद निशान नजर आना
  • बच्चे के विकास की गति धीमा होना

कारण

  • वह बताती हैं कि ज्यादा छोटे बच्चे, विशेषकर जो घुटनों के बल चलते हैं या चलना सीख रहे होते हैं उनमें पिनवर्म की समस्या ज्यादा देखने में आती है. दरअसल मादा पिनवर्म ज्यादातर गुदाद्वार के पास अंडे देती है. ऐसे में जब बच्चा खुजली होने पर अपने मलद्वार के आसपास खुजलाता है तो कुछ अंडे उसके हाथ पर लग जाते हैं और कुछ उसके कपड़ों या जिस चादर पर वह सोता है उस पर गिर जाते हैं. वहीं जब बच्चा बिना हाथ धोए किसी स्थान या सामान को छूता है तो वे अंडे उन स्थानों पर भी लग जाते हैं. अब ये अंडे ना सिर्फ छूने से बल्कि कई बार सांस लेने से भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और संक्रमण का कारण बन जाते हैं.
  • इसके अलावा मिट्टी में भी पेट में संक्रमण फैलाने वाले कृमि तथा उनके अंडे मिलते हैं. ऐसे में छोटे बच्चे जब मिट्टी में खेलते हैं तो मिट्टी में मौजूद कृमि तथा उनके अंडे उनके पेट में पहुंच जाते हैं. इसके अलावा कई बार घर के पालतू जानवर भी इन कृमियों के संक्रमण को फैलाने का कार्य करते हैं.
  • आमतौर पर ज्यादा छोटे बच्चों का हाथ उनके मुंह में जाता ही रहता है. ऐसे में यदि उनके हाथों तथा उसके समान या खिलौनों की साफ सफाई का नियमित ध्यान नही रखा जाता हैं तो भी बच्चों के हाथों के जरिए गंदगी तथा कृमि के अंडे उनके शरीर में पहुंच जातें है.
  • यदि बच्चों के कपड़े या उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वालों चादर व तौलियों की हाइजीन का ध्यान नहीं रखा जाता है तो भी कृमियों के अंडे बच्चे के शरीर में पहुंच सकते हैं.
  • ज्यादा मीठे दूध या मिठाई का सेवन करने के बाद तत्काल सो जाने से भी पेट में कीड़े होने की आशंका बढ़ जाती हैं.

ऐसे करें बचाव
डॉ सुधा रॉय बताती हैं कि बच्चों को पेट में कीड़ों की समस्या से बचाना है तो सबसे जरूरी है कि उसके आसपास का वातावरण बिल्कुल साफ सुथरा हो, साथ ही बच्चे की साफ-सफाई का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाए. इसके अलावा भी कुछ तरीके हैं जिससे बच्चों को पेट में कीड़े होने की समस्या से बचाया जा सकता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • बच्चों के कपड़ों, तौलियों तथा चादर को हमेशा गर्म पानी से साफ करें.
  • उन्हें हमेशा पूरी तरह से पकाया गया भोजन ही दें.
  • बच्चों को दिए जाने वाले फल अच्छी तरह से धुले हुए हो और जहां तक संभव हो बच्चों को पीने के लिए उबला हुआ पानी ही दें.
  • उनके नाखूनों को छोटा और साफ रखें तथा नियमित अंतराल पर उनके हाथों को अच्छे से धोते तथा साफ करते रहें.
  • वे आमतौर पर जिन खिलौने से खेलते हैं उन्हें हमेशा गर्म पानी से धोकर रखना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे जमीन से उठाकर कोई भी चीज सीधे मुंह में ना डालें.
  • बच्चे के डायपर को नियमित रूप से बदले तथा डायपर को बदलने से पहले तथा बाद में साबुन से हाथ अवश्य धोएं.
  • बच्चों के खेलने वाले स्थान को अच्छे से साफ रखे.

डॉ सुधा बताती हैं कि ऊपर बताए गए लक्षणों में से थोड़े लक्षण भी यदि बच्चों में लगातार नजर आने लगते हैं, उन्हें अपने आप बाजार से कोई भी डी वार्मिंग दवाई लाकर देने की बजाय तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. क्योंकि ध्यान ना देने पर इस समस्या का प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य को ज्यादा प्रभावित भी कर सकता है.

बच्चों के पेट में कृमि संक्रमण होना, जिसे आम भाषा में पेट में कीड़े होना भी कहते हैं, बहुत ही आम समस्या है. हालांकि यह समस्या बड़ों को भी प्रभावित कर सकती है, लेकिन छोटे बच्चों के पेट में यदि कृमि संक्रमण हो जाए तो यह उनके शरीर को मिलने वाले पोषण को प्रभावित करने लगता है, जिससे ना सिर्फ उन्हें कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, बल्कि वे कुपोषण का भी शिकार हो सकते हैं.

चिकित्सक मानते हैं कि बच्चों के पेट में कीड़े होने के लिए हाइजीन की कमी को विशेषतौर पर जिम्मेदार होती है. हालांकि और भी कई कारण होते हैं जो इस समस्या के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. इस बारे में ज्यादा जानकारी पाने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने बेंगलुरु की केयर क्लिनिक की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुधा एम रॉय से बात की.

पेट में होने वाले कीड़ों के प्रकार
डॉ. सुधा बताती हैं कि दरअसल यह छोटे कृमि या कीड़े आंतों में रहने वाले परजीवी होते हैं जो बच्चे के आहार से पोषण ग्रहण करते हैं. पेट में संक्रमण के लिए जिम्मेदार कृमि कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे टेपवर्म, राउंडवर्म, हुकवर्म तथा पिनवर्म या थ्रेडवर्म. यह कृमि आकार और बनावट में अलग-अलग प्रकार के होते हैं, लेकिन सामान्य तौर पर इनमें से किसी के भी होने के गंभीर या प्रत्यक्ष लक्षण प्रारंभिक स्तर पर बच्चे के शरीर में नजर नहीं आते हैं. लेकिन समस्या बढ़ने पर विशेषकर पेट में टेपवर्म का संक्रमण होने पर कई बार बच्चे को दौरे भी पड़ सकते हैं या फिर उनकी आंतों में रुकावट भी आ सकती है. वही पेट में हुकवर्म का संक्रमण होने पर भी आंतों की परत को नुकसान पहुंच सकता है. हालांकि यह स्थिति अपेक्षाकृत काफी कम देखने में आती है. वह बताती हैं कि छोटे बच्चों में पिनवर्म की समस्या सबसे ज्यादा आम होती है.

पढ़ें: बिना जरूरत सप्लीमेंट का सेवन बढ़ा सकता है बच्चों में परेशानी

समस्या के लक्षण
डॉ सुधा बताती हैं कि पेट में कृमि संक्रमण का प्रभाव बढ़ने पर बच्चों में कुछ परेशानियां जरूर नजर आने लगती हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • बच्चे की गुदा या मलद्वार के पास खुजली होना
  • पेट में दर्द होना
  • भूख संबंधी समस्याएं होना
  • पेट खराब रहना
  • जल्दी थक जाना या ज्यादा थकान होना
  • वजन कम होना
  • बच्चे का चिड़चिड़ा होना
  • सोने में परेशानी होना
  • बच्चे के मल से तेज दुर्गंध आना
  • मुंह में लार का ज्यादा बनना तथा बार-बार थूकना
  • चेहरे पर सफेद निशान नजर आना
  • बच्चे के विकास की गति धीमा होना

कारण

  • वह बताती हैं कि ज्यादा छोटे बच्चे, विशेषकर जो घुटनों के बल चलते हैं या चलना सीख रहे होते हैं उनमें पिनवर्म की समस्या ज्यादा देखने में आती है. दरअसल मादा पिनवर्म ज्यादातर गुदाद्वार के पास अंडे देती है. ऐसे में जब बच्चा खुजली होने पर अपने मलद्वार के आसपास खुजलाता है तो कुछ अंडे उसके हाथ पर लग जाते हैं और कुछ उसके कपड़ों या जिस चादर पर वह सोता है उस पर गिर जाते हैं. वहीं जब बच्चा बिना हाथ धोए किसी स्थान या सामान को छूता है तो वे अंडे उन स्थानों पर भी लग जाते हैं. अब ये अंडे ना सिर्फ छूने से बल्कि कई बार सांस लेने से भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और संक्रमण का कारण बन जाते हैं.
  • इसके अलावा मिट्टी में भी पेट में संक्रमण फैलाने वाले कृमि तथा उनके अंडे मिलते हैं. ऐसे में छोटे बच्चे जब मिट्टी में खेलते हैं तो मिट्टी में मौजूद कृमि तथा उनके अंडे उनके पेट में पहुंच जाते हैं. इसके अलावा कई बार घर के पालतू जानवर भी इन कृमियों के संक्रमण को फैलाने का कार्य करते हैं.
  • आमतौर पर ज्यादा छोटे बच्चों का हाथ उनके मुंह में जाता ही रहता है. ऐसे में यदि उनके हाथों तथा उसके समान या खिलौनों की साफ सफाई का नियमित ध्यान नही रखा जाता हैं तो भी बच्चों के हाथों के जरिए गंदगी तथा कृमि के अंडे उनके शरीर में पहुंच जातें है.
  • यदि बच्चों के कपड़े या उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वालों चादर व तौलियों की हाइजीन का ध्यान नहीं रखा जाता है तो भी कृमियों के अंडे बच्चे के शरीर में पहुंच सकते हैं.
  • ज्यादा मीठे दूध या मिठाई का सेवन करने के बाद तत्काल सो जाने से भी पेट में कीड़े होने की आशंका बढ़ जाती हैं.

ऐसे करें बचाव
डॉ सुधा रॉय बताती हैं कि बच्चों को पेट में कीड़ों की समस्या से बचाना है तो सबसे जरूरी है कि उसके आसपास का वातावरण बिल्कुल साफ सुथरा हो, साथ ही बच्चे की साफ-सफाई का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाए. इसके अलावा भी कुछ तरीके हैं जिससे बच्चों को पेट में कीड़े होने की समस्या से बचाया जा सकता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • बच्चों के कपड़ों, तौलियों तथा चादर को हमेशा गर्म पानी से साफ करें.
  • उन्हें हमेशा पूरी तरह से पकाया गया भोजन ही दें.
  • बच्चों को दिए जाने वाले फल अच्छी तरह से धुले हुए हो और जहां तक संभव हो बच्चों को पीने के लिए उबला हुआ पानी ही दें.
  • उनके नाखूनों को छोटा और साफ रखें तथा नियमित अंतराल पर उनके हाथों को अच्छे से धोते तथा साफ करते रहें.
  • वे आमतौर पर जिन खिलौने से खेलते हैं उन्हें हमेशा गर्म पानी से धोकर रखना चाहिए. साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे जमीन से उठाकर कोई भी चीज सीधे मुंह में ना डालें.
  • बच्चे के डायपर को नियमित रूप से बदले तथा डायपर को बदलने से पहले तथा बाद में साबुन से हाथ अवश्य धोएं.
  • बच्चों के खेलने वाले स्थान को अच्छे से साफ रखे.

डॉ सुधा बताती हैं कि ऊपर बताए गए लक्षणों में से थोड़े लक्षण भी यदि बच्चों में लगातार नजर आने लगते हैं, उन्हें अपने आप बाजार से कोई भी डी वार्मिंग दवाई लाकर देने की बजाय तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. क्योंकि ध्यान ना देने पर इस समस्या का प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य को ज्यादा प्रभावित भी कर सकता है.

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