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वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर - ETV भारत सुखीभवा

दुनिया भर में वायु प्रदूषण कहर बन कर उभर रहा है। वहीं इससे मौत के आंकड़े आसमान छू रहे है, जो आश्चर्यजनक है। हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम 2.5 के कण, लोगों के फेफड़े को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। जीवाश्म ईंधनों के जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है।

Death toll increased due to air pollution
वायु प्रदूषण से बढ़े मौत के आंकड़े
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Published : Mar 1, 2021, 2:56 PM IST

वायु प्रदूषण दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। साल 2020 में महीनों बंद होने के बावजूद वायु प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि इसके परिणाम चिंताजनक नजर आ रहे है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अधिकांश मौतों का कारण वायु प्रदूषण से जुड़ा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व वैज्ञानिक, नदी प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन कार्यकारी, महेंद्र पाण्डेय ने वायु प्रदूषण से मौत और अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर ETV भारत सुखीभवा को जानकारी दी है।

ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले 5 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 के दौरान 1,60,000 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो गयी। इसका कारण हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम 2.5 के कण हैं, जो सीधा फेफड़े तक पहुंच जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक ऐसी मौत (54,000 मौत), दिल्ली में दर्ज की गयी और वायु प्रदूषण के जानकार लोगों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दिल्ली हमेशा ही वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर से घिरी रहती है। इसके बाद जापान की राजधानी टोक्यो का स्थान है, जहां 40,000 असामयिक मौतें दर्ज की गईं हैं। टोक्यो की हालत पर जरूर आश्चर्य होता है, क्योंकि वहां पिछले वर्ष ओलम्पिक खेलों का आयोजन किया जाना था, और पिछले पांच वर्षों से जापान में प्रदूषण का स्तर कम करने की सरकारी पहल चल रही है। इसके बाद चीन के शंघाई, ब्राजील के साओ पाउलो और फिर मेक्सिको के मेक्सिको सिटी का स्थान है।

वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार, तब पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में थी और लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां बंद थी। पिछले वर्ष दुनिया के सभी क्षेत्र में लंबे समय तक वायु प्रदूषण का स्तर लगभग नगण्य था। इस दौरान प्रदूषण-रहित समाज पर बड़े-बड़े लेख लिखे गए।

पिछले वर्ष ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने संयुक्त तौर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार जीवाश्म ईंधनों के जलाने पर 2018 के आकलन के अनुसार दुनियाभर में होने वाले वायु प्रदूषण के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन 8 अरब डॉलर का झटका लगता है, यानि प्रतिवर्ष 2.9 खरब डॉलर, जो पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत हैI सबसे अधिक नुकसान चीन को 900 अरब डॉलर, फिर अमेरिका को 610 अरब डॉलर और भारत को 150 अरब डॉलर का नुक्सान उठाना पड़ता है। इसके बाद जर्मनी को 140 अरब डॉलर, जापान को 130 अरब डॉलर, रूस को 68 अरब डॉलर और ग्रेट ब्रिटेन को 66 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में 45 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिसमें से 18 लाख लोग चीन के और 10 लाख लोग भारत के होते हैं। इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बताया था की दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण 42 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है। एक दूसरे अध्ययन के अनुसार दिल्ली में रहने वाला हर एक व्यक्ति जो वायु प्रदूषण की मार झेलता है, वह 10 सिगरेट के धुवें के बराबर हैI केवल पीएम 2.5 के प्रदूषण के कारण दुनिया को 2 खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है, जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण 350 अरब डॉलर का और ओजोन के कारण 380 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों में से 29 का कारण वायु प्रदूषण से जुड़े प्रभाव हैं।

हाल में ही प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 नामक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 5 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, और अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे यदि बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। वायु प्रदूषण का घातक असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी पड़ता है, इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं, और ये दोनों ही शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। ऐसी अधिकतर मौतें विकासशील देशों में होती है। रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण के असर का विस्तार से अध्ययन किया गया है, लेकिन शिशुओं पर इसके प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत कम पता है। इस रिपोर्ट को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट नामक संस्था ने प्रकाशित किया है।

वायु प्रदूषण से नवजातों की कुल मृत्यु में से दो-तिहाई का कारण घरों के अन्दर का प्रदूषण हैI यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत समेत तमाम विकासशील देशों में घरों के अन्दर के प्रदूषण स्तर का कोई अध्ययन नहीं किया जाता, और ना ही इसके बारे में कोई दिशा निर्देश हैंI घरों के अन्दर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बंद घरों के अन्दर की रसोई है, जिसपर लकड़ी, उपले इत्यादि जैव-इंधनों से खाना पकाया जाता है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में कुल 67 लाख व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई है, और वायु प्रदूषण दुनिया में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सबसे अधिक मौतें अफ्रीका में और एशिया में होती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की वैज्ञानिक बेट रिट्ज के अनुसार घरों के अन्दर वायु प्रदूषण की सबसे अधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।

ग्रेट ब्रिटेन में किये गए एक विस्तृत अध्ययन से स्पष्ट होता है की वायु प्रदूषण से आंखों में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और इससे आदमी पूरी तरह से अंधा भी हो सकता है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओपथल्मोलोजी में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण के प्रभाव से एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन नामक आंखों का रोग हो सकता है और इसके बाद मनुष्य दृष्टिहीन हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान किये गए अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आंखों में ग्लूकोमा और कैटेरेक्ट को बढ़ा सकता हैI अनेक अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आंखों के रेटिना को भी प्रभावित करता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर पॉल फॉस्टर के अनुसार आंखों में शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा रक्त का प्रवाह अधिक होता है, इसलिए रक्त में मौजूद प्रदूषणकारी पदार्थों का प्रभाव भी अधिक होता है।

पढ़े : सही भोजन से बनाए फेफड़ों को सुरक्षित

एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन का प्रमुख कारण अब तक अनुवांशिक और खराब स्वास्थ्य माना जाता था, पर अब इसमें वायु प्रदूषण का नाम भी जुड़ गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार अनुवांशिक कारणों को नियंत्रित करना कठिन है, पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर इससे राहत मिल सकती है। अध्ययन के अनुसार पीएम 2.5 की सांद्रता में एक माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी से एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन के मामलों में 8 प्रतिशत तक की बृद्धि दर्ज की जा सकती है। यदि पीएम10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में मामूली वृद्धि भी होती है, तब आबादी के बड़े भाग की आंखों का रेटीना प्रभावित होता है। दुनिया में एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन से लगभग 20 करोड़ व्यक्ति प्रभावित हैं, और 50 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी इससे अधिक प्रभावित रहती है। इस अध्ययन को 40 से 69 वर्ष के बीच की उम्र के 1,16,000 व्यक्तियों पर किया गया है। इससे पहले वर्ष 2019 में ताइवान के वैज्ञानिकों ने ट्रैफिक से होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करते हुए भी ऐसा ही निष्कर्ष निकाला था।

इस विषय पर अक्सर बात होती है कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जायेंगे, लेकिन यदि वायु प्रदूषण का यही हाल रहा तो, हम आने वाली पीढ़ियां ही नहीं छोड़के जायेंगे। जो जिन्दा रहेंगे, उनके भी फेफड़े और मस्तिष्क सामान्य काम नहीं कर रहे होंगे।

वायु प्रदूषण दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। साल 2020 में महीनों बंद होने के बावजूद वायु प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि इसके परिणाम चिंताजनक नजर आ रहे है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अधिकांश मौतों का कारण वायु प्रदूषण से जुड़ा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व वैज्ञानिक, नदी प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन कार्यकारी, महेंद्र पाण्डेय ने वायु प्रदूषण से मौत और अर्थव्यवस्था पर असर को लेकर ETV भारत सुखीभवा को जानकारी दी है।

ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले 5 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2020 के दौरान 1,60,000 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो गयी। इसका कारण हवा में भारी मात्रा में मौजूद पीएम 2.5 के कण हैं, जो सीधा फेफड़े तक पहुंच जाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक ऐसी मौत (54,000 मौत), दिल्ली में दर्ज की गयी और वायु प्रदूषण के जानकार लोगों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दिल्ली हमेशा ही वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर से घिरी रहती है। इसके बाद जापान की राजधानी टोक्यो का स्थान है, जहां 40,000 असामयिक मौतें दर्ज की गईं हैं। टोक्यो की हालत पर जरूर आश्चर्य होता है, क्योंकि वहां पिछले वर्ष ओलम्पिक खेलों का आयोजन किया जाना था, और पिछले पांच वर्षों से जापान में प्रदूषण का स्तर कम करने की सरकारी पहल चल रही है। इसके बाद चीन के शंघाई, ब्राजील के साओ पाउलो और फिर मेक्सिको के मेक्सिको सिटी का स्थान है।

वर्ष 2020 के आंकड़ों के अनुसार, तब पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में थी और लॉकडाउन के कारण सभी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां बंद थी। पिछले वर्ष दुनिया के सभी क्षेत्र में लंबे समय तक वायु प्रदूषण का स्तर लगभग नगण्य था। इस दौरान प्रदूषण-रहित समाज पर बड़े-बड़े लेख लिखे गए।

पिछले वर्ष ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने संयुक्त तौर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार जीवाश्म ईंधनों के जलाने पर 2018 के आकलन के अनुसार दुनियाभर में होने वाले वायु प्रदूषण के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन 8 अरब डॉलर का झटका लगता है, यानि प्रतिवर्ष 2.9 खरब डॉलर, जो पूरी दुनिया के अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत हैI सबसे अधिक नुकसान चीन को 900 अरब डॉलर, फिर अमेरिका को 610 अरब डॉलर और भारत को 150 अरब डॉलर का नुक्सान उठाना पड़ता है। इसके बाद जर्मनी को 140 अरब डॉलर, जापान को 130 अरब डॉलर, रूस को 68 अरब डॉलर और ग्रेट ब्रिटेन को 66 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है।

इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में 45 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिसमें से 18 लाख लोग चीन के और 10 लाख लोग भारत के होते हैं। इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी बताया था की दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण 42 लाख लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है। एक दूसरे अध्ययन के अनुसार दिल्ली में रहने वाला हर एक व्यक्ति जो वायु प्रदूषण की मार झेलता है, वह 10 सिगरेट के धुवें के बराबर हैI केवल पीएम 2.5 के प्रदूषण के कारण दुनिया को 2 खरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है, जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के कारण 350 अरब डॉलर का और ओजोन के कारण 380 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों में से 29 का कारण वायु प्रदूषण से जुड़े प्रभाव हैं।

हाल में ही प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 नामक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 5 लाख से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है, और अत्यधिक प्रदूषण में पलने वाले बच्चे यदि बच भी जाते हैं, तब भी उनका बचपन अनेक रोगों से घिरा रहता है। वायु प्रदूषण का घातक असर गर्भ में पल रहे शिशुओं पर भी पड़ता है, इससे समय से पूर्व प्रसव या फिर कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं, और ये दोनों ही शिशुओं में मृत्यु के प्रमुख कारण हैं। ऐसी अधिकतर मौतें विकासशील देशों में होती है। रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों पर वायु प्रदूषण के असर का विस्तार से अध्ययन किया गया है, लेकिन शिशुओं पर इसके प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत कम पता है। इस रिपोर्ट को हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट नामक संस्था ने प्रकाशित किया है।

वायु प्रदूषण से नवजातों की कुल मृत्यु में से दो-तिहाई का कारण घरों के अन्दर का प्रदूषण हैI यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारत समेत तमाम विकासशील देशों में घरों के अन्दर के प्रदूषण स्तर का कोई अध्ययन नहीं किया जाता, और ना ही इसके बारे में कोई दिशा निर्देश हैंI घरों के अन्दर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बंद घरों के अन्दर की रसोई है, जिसपर लकड़ी, उपले इत्यादि जैव-इंधनों से खाना पकाया जाता है।

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में कुल 67 लाख व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई है, और वायु प्रदूषण दुनिया में मौत के बड़े कारणों में चौथे स्थान पर है। वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं की सबसे अधिक मौतें अफ्रीका में और एशिया में होती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की वैज्ञानिक बेट रिट्ज के अनुसार घरों के अन्दर वायु प्रदूषण की सबसे अधिक समस्या भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है। इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क और दूसरे अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है।

ग्रेट ब्रिटेन में किये गए एक विस्तृत अध्ययन से स्पष्ट होता है की वायु प्रदूषण से आंखों में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और इससे आदमी पूरी तरह से अंधा भी हो सकता है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओपथल्मोलोजी में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार वायु प्रदूषण के प्रभाव से एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन नामक आंखों का रोग हो सकता है और इसके बाद मनुष्य दृष्टिहीन हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान किये गए अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आंखों में ग्लूकोमा और कैटेरेक्ट को बढ़ा सकता हैI अनेक अध्ययनों के अनुसार वायु प्रदूषण आंखों के रेटिना को भी प्रभावित करता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर पॉल फॉस्टर के अनुसार आंखों में शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा रक्त का प्रवाह अधिक होता है, इसलिए रक्त में मौजूद प्रदूषणकारी पदार्थों का प्रभाव भी अधिक होता है।

पढ़े : सही भोजन से बनाए फेफड़ों को सुरक्षित

एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन का प्रमुख कारण अब तक अनुवांशिक और खराब स्वास्थ्य माना जाता था, पर अब इसमें वायु प्रदूषण का नाम भी जुड़ गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार अनुवांशिक कारणों को नियंत्रित करना कठिन है, पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर इससे राहत मिल सकती है। अध्ययन के अनुसार पीएम 2.5 की सांद्रता में एक माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी से एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन के मामलों में 8 प्रतिशत तक की बृद्धि दर्ज की जा सकती है। यदि पीएम10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में मामूली वृद्धि भी होती है, तब आबादी के बड़े भाग की आंखों का रेटीना प्रभावित होता है। दुनिया में एज-रिलेटेड मैक्युलर डीजेनेरेशन से लगभग 20 करोड़ व्यक्ति प्रभावित हैं, और 50 वर्ष से अधिक उम्र की आबादी इससे अधिक प्रभावित रहती है। इस अध्ययन को 40 से 69 वर्ष के बीच की उम्र के 1,16,000 व्यक्तियों पर किया गया है। इससे पहले वर्ष 2019 में ताइवान के वैज्ञानिकों ने ट्रैफिक से होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करते हुए भी ऐसा ही निष्कर्ष निकाला था।

इस विषय पर अक्सर बात होती है कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए कैसी दुनिया छोड़कर जायेंगे, लेकिन यदि वायु प्रदूषण का यही हाल रहा तो, हम आने वाली पीढ़ियां ही नहीं छोड़के जायेंगे। जो जिन्दा रहेंगे, उनके भी फेफड़े और मस्तिष्क सामान्य काम नहीं कर रहे होंगे।

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