अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकेट्री में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक शोध में शोधकर्ताओं ने बताया है “अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (एडीएचडी)” मनोविकार से पीड़ित बच्चों में से मात्र 10 प्रतिशत ऐसे होते है जिनमें वयस्क होने के बाद भी इसका असर नजर आता है। गौरतलब है की दशकों के विभिन्न शोधों में एडीएचडी को एक ऐसे न्यूरोबायोलॉजिकल डिसऑर्डर के रूप में चिह्नित किया गया है जिसके लक्षण आमतौर पर बचपन में पहली बार नजर आते हैं। पूर्व में किए गए इन अध्धयनों में माना गया है की लगभग 50 प्रतिशत मामलों में एडीएचडी के लक्षण वयस्क होने पर भी बने रहते हैं।
शोध के नतीजे
इस अध्धयन में शोधकर्ता तथा वाशिंगटन विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा और व्यवहार विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर, मार्गरेट सिबली बताते हैं की , “एडीएचडी से पीड़ित लोगों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि उनके जीवन में कभी भी ऐसी परिस्तिथ्यां या समय आना सामान्य और स्वाभाविक है जब उनके हाइपर व्यवहार के चलते चीजें नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, यदि एडीएचडी से पीड़ितों को दो समूहों में बांटे तो उनमें पहले समूह में असावधान लक्षण अव्यवस्था, विस्मृति और कार्य पर बने रहने में परेशानी तथा अतिसक्रिय या आवेगी लक्षण तथा दूसरे समूह में बहुत अधिक ऊर्जा होना जैसे कि इधर-उधर भागना और चीजों पर चढ़ना जैसे लक्षण नजर आते हैं।
वहीं वयस्कों में आमतौर पर एडीएचडी का प्रभाव मौखिक आवेग, निर्णय लेने में कठिनाई और बिना सोचे-समझे कार्य करने के रूप में अधिक प्रकट होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार यह विकार पीड़ितों को अलग-अलग तरह से प्रभावित करता है।
शोधकर्ता बताते हैं की एडीएचडी वाले कुछ लोग हाइपर-फोकस करने की एक अनूठी क्षमता की भी रिपोर्ट करते हैं। ओलंपिक एथलीट माइकल फेल्प्स और सिमोन बाइल्स ने भी खुलकर अपने एडीएचडी विकार की पुष्टि की है।
शोधकर्ता मानते हैं की यह विकार लगभग 5 से 10 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करता है।
इस शोध में अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं की टीम ने 16 साल तक एडीएचडी वाले 558 बच्चों के समूह का अनुसरण किया था, जिनकी उम्र 8 साल से 25 साल की उम्र तक थी।
शोध में समूह के आठ आकलन किए गए थे, जिनमें हर दो साल में यह निर्धारित करने के लिए कि क्या विषय में एडीएचडी के लक्षण हैं, उनका निरीक्षण किया जाता था, साथ ही उनके परिवार के सदस्यों और शिक्षकों से उनके लक्षणों के बारे में जानकारी ली जाती थी।
हालांकि शोध में एडीएचडी के भड़काने वाले कारणों का विस्तृत अध्धयन नहीं किया गया है लेकिन सिबली मानते हैं की यह तनाव गलत वातावरण, और उचित नींद, स्वस्थ भोजन और नियमित रूप से स्वस्थ जीवन शैली का न होना, हो सकते है।
इस शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादातर लोग वयस्क होने पर एडीएचडी के मापदंडों के घेरे में नहीं आते हैं। वहीं जिनमें एडीएचडी के कुछ लक्षण नजर भी आते हैं वे अपने दम पर उनका प्रबंधन करने में समर्थ होते हैं। सिबली बताते हैं इस विकार से पीड़ित वयस्कों में नौकरी ढूँढने या जीवनयापन करने में एडीएचडी के लक्षण हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
क्या है “अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर” (एडीएचडी)
ETV भारत सुखीभवा की विशेषज्ञ तथा वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन बताती हैं की एडीएचडी एक दिमाग से संबंधित विकार है, जो सिर्फ बच्चों में ही नहीं बड़ो में भी नजर आ सकता है। इस विकार के प्रभाव स्वरूप बच्चे आमतौर पर किसी भी कार्य या व्यवहार में अतिसक्रियता दिखाते हैं। एडीएचडी के लक्षणों को नजरअंदाज करने पर बच्चे की मानसिक अवस्था पर काफी नकारात्मक असर दिखाई देने लगता है| आमतौर पर बच्चे हों या फिर बड़े, इस मानसिक अवस्था या बीमारी के होने पर उनके व्यवहार में निराशाजनक अंतर आ जाता है| उसकी याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है और वह किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते है। इस विकार के लिये परिवार में तनाव भरे माहौल, कोई मस्तिष्क तंत्र संबंधी समस्या, पोषणयुक्त खानपान की कमी तथा दृष्टि दोष को जिम्मेदार माना जाता है लेकिन कई बार यह समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है।
बच्चों में एडीएचडी का सबसे मुख्य लक्षण है, अतिसक्रियता| जिसके चलते एक जगह पर ना बैठना, लगातार व्याकुल या बेचैन रहना, दूसरों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते रहना, स्कूल और घर सभी जगह लापरवाही बरतना, दूसरों की बात ना सुनना, ज्यादातर बातें भूल जाना, किसी भी कार्य को ढंग से ना करना, चिल्लाना और कई बार दूसरों से मार पिटाई करने जैसे लक्षण उसमें नजर आते हैं।
वहीं बड़ों में एडीएचडी के लक्षण ज्यादा व्यापक तरीके से नजर आते हैं जैसे एकाग्रता में कमी, भूलने की बीमारी, अकारण हमेशा उदास रहना, बहुत जल्दी किसी भी बात को लेकर हाइपर या बेचैन हो जाना, निजी रिश्तों में सामंजस्य बैठाने में समस्या होना आदि।