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टूटते रिश्ते, जिम्मेदार कौन?

स्वस्थ यौन संबंध दो लोगों के बीच के रिश्ते को मजबूत बनाती है. लेकिन यदि एक भी साथी इस शारीरिक संबंध से असंतुष्ट है, तो ये रिश्तों के टूटने का कारण बन सकता है. आज के दौर में यौनिक संसर्ग बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे दोनों पक्ष सुख की प्राप्ति कर, भावनात्मक जुड़ाव भी महसूस कर सकते है.

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Published : Jul 18, 2020, 11:01 PM IST

शादीशुदा जीवन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक होती है, शारीरिक संसर्ग या परस्पर यौन संबंध. नवविवाहित जोड़ों में तो प्रेम को जाहिर करने का तरीका एक तरह से सेक्स ही होता है. लेकिन विभिन्न कारणों से यदि शारीरिक संबंधों में पति-पत्नी असंतुष्टि महसूस करने लगते हैं, तो यह उनके बीच के भावनात्मक संबंध को भी प्रभावित करता है.

टूटते रिश्ते

एक संतुष्टिदायक संसर्ग की कमी रिश्तों को टूटने की कगार पर ले आती है. वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. रश्मि वाधवा इस तथ्य की पुष्टि करते हुए बताती है कि शारीरिक संबंधों में असंतोष, रिश्तों में कलह उत्पन्न करता है और भावनात्मक संबंधों पर भी असर डालता है. वे बताती है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे जोड़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो कि अपने शारीरिक संबंधों में असंतोष के कारण अलग होने की कगार पर पहुंच गए हैं. नई-नई शादी में आपसी सामंजस्य तो हमेशा से ही परेशानी उत्पन्न करता रहा है, लेकिन शारीरिक रिश्तों में हद से ज्यादा उम्मीदों और मुखरता से उत्पन्न असंतोष शुरूआत से ही रिश्तों में दरार पैदा कर रहा है.

डॉ. वाधवा बताती हैं कि पुरुषों की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी होती है, जहां वह विपरीत लिंग के प्रति सहज आकर्षित हो जाता है. ये आकर्षण ज्यादातर भावनात्मक नहीं होता है. वहीं महिलाओं में विपरीत लैंगिक आकर्षण का आधार भावनात्मक होता है. ऐसे में जब बात शारीरिक संबंधों की आती है, तो पुरुष पक्ष की इच्छा और कामना महिलाओं के मुकाबले ज्यादा मुखर होती है. ऐसे में पारिवारिक समस्याओं, तनाव और संबंधों के लिए अनिच्छा जैसे विभिन्न कारणों से संसर्ग में संतुष्टि प्राप्त न कर पाने की स्थिति में महिलाओं में असंतोष की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और उसे यौन संबंधों के प्रति उदासीन बना देती है. और यदि महिला कभी अपने असंतोष को लेकर मुखर होती है, तो पुरुष का अहम उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता है और संबंधों में कलह उत्पन्न होने लगता है.

स्त्री-पुरुष के बीच शारीरिक भेद

वह बताती हैं कि महिलाओं और पुरुषों की शारीरिक संरचना ही नहीं बल्कि उनकी शारीरिक जरूरतें भी अलग-अलग होती हैं. उत्तेजना से लेकर संतुष्टि तक का सफर भी दोनों के लिए अलग-अलग होता है. कभी कोई साथी संसर्ग के लिए अति उत्साहित होता है, तो कोई साथी बिलकुल उदासीन. ऐसे में किसी भी साथी को चरम संतोष की अनुभूति न होना, उसके मन में न सिर्फ असंतोष पैदा करता है, बल्कि उनके रिश्तों पर भी असर डालता है. वे बताती है कि जिस तरह मानव शरीर को पौष्टिक भोजन की जरूरत होती है, उसी तरह एक उम्र के बाद स्वस्थ शारीरिक संबंध हमारे शरीर और मन की जरूरत बन जाती हैं.

सेक्सुअल कम्पेटिबिलिटी

डॉ. वाधवा बताती हैं कि सेक्सुअल कम्पेटिबिलिटी मुख्य कारण रहती है, किसी भी जोड़े के बीच के संबंधों की मधुरता या फिर उनके बीच कलह का. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए शारीरिक संसर्ग भावनात्मक आधार लिए होता है. जबकि पुरुषों के लिए शारीरिक संबंध उत्तेजना और आनंद का कारण होता हैं.

वे बताती हैं कि हमारे पुरुष सत्तात्मक समाज में बचपन से ही पुरुषों में अपनी इच्छा को सर्वोपरी रखने की आदत बन जाती है. वहीं लड़कियों को परिस्थिति अनुसार खुद को ढालने, अपनी इच्छाओं को दबाकर दूसरों को खुश रखने की सीख दी जाती है. पहले समय में इसी सीख के अनुसार चलते हुए महिलाएं असंतुष्ट यौन संबंधों को अपनी नियती मानते हुए चुपचाप अपना जीवन व्यतीत कर देती थी. लेकिन अब बदलते समय में आत्मनिर्भर होती महिलाएं अपनी शारीरिक जरूरतों को लेकर मुखर होने लगी हैं. आपसी सोच तथा रूढ़ीवादिता और बदलती सोच के बीच का यही टकराव आपसी कलह का कारण बन जाता है.

अधिक जानकारी या अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मेल करें wadwa_rashmi01@yahoo.com

शादीशुदा जीवन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ियों में से एक होती है, शारीरिक संसर्ग या परस्पर यौन संबंध. नवविवाहित जोड़ों में तो प्रेम को जाहिर करने का तरीका एक तरह से सेक्स ही होता है. लेकिन विभिन्न कारणों से यदि शारीरिक संबंधों में पति-पत्नी असंतुष्टि महसूस करने लगते हैं, तो यह उनके बीच के भावनात्मक संबंध को भी प्रभावित करता है.

टूटते रिश्ते

एक संतुष्टिदायक संसर्ग की कमी रिश्तों को टूटने की कगार पर ले आती है. वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. रश्मि वाधवा इस तथ्य की पुष्टि करते हुए बताती है कि शारीरिक संबंधों में असंतोष, रिश्तों में कलह उत्पन्न करता है और भावनात्मक संबंधों पर भी असर डालता है. वे बताती है कि पिछले कुछ सालों में ऐसे जोड़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो कि अपने शारीरिक संबंधों में असंतोष के कारण अलग होने की कगार पर पहुंच गए हैं. नई-नई शादी में आपसी सामंजस्य तो हमेशा से ही परेशानी उत्पन्न करता रहा है, लेकिन शारीरिक रिश्तों में हद से ज्यादा उम्मीदों और मुखरता से उत्पन्न असंतोष शुरूआत से ही रिश्तों में दरार पैदा कर रहा है.

डॉ. वाधवा बताती हैं कि पुरुषों की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी होती है, जहां वह विपरीत लिंग के प्रति सहज आकर्षित हो जाता है. ये आकर्षण ज्यादातर भावनात्मक नहीं होता है. वहीं महिलाओं में विपरीत लैंगिक आकर्षण का आधार भावनात्मक होता है. ऐसे में जब बात शारीरिक संबंधों की आती है, तो पुरुष पक्ष की इच्छा और कामना महिलाओं के मुकाबले ज्यादा मुखर होती है. ऐसे में पारिवारिक समस्याओं, तनाव और संबंधों के लिए अनिच्छा जैसे विभिन्न कारणों से संसर्ग में संतुष्टि प्राप्त न कर पाने की स्थिति में महिलाओं में असंतोष की स्थिति उत्पन्न होने लगती है और उसे यौन संबंधों के प्रति उदासीन बना देती है. और यदि महिला कभी अपने असंतोष को लेकर मुखर होती है, तो पुरुष का अहम उसे बर्दाश्त नहीं कर पाता है और संबंधों में कलह उत्पन्न होने लगता है.

स्त्री-पुरुष के बीच शारीरिक भेद

वह बताती हैं कि महिलाओं और पुरुषों की शारीरिक संरचना ही नहीं बल्कि उनकी शारीरिक जरूरतें भी अलग-अलग होती हैं. उत्तेजना से लेकर संतुष्टि तक का सफर भी दोनों के लिए अलग-अलग होता है. कभी कोई साथी संसर्ग के लिए अति उत्साहित होता है, तो कोई साथी बिलकुल उदासीन. ऐसे में किसी भी साथी को चरम संतोष की अनुभूति न होना, उसके मन में न सिर्फ असंतोष पैदा करता है, बल्कि उनके रिश्तों पर भी असर डालता है. वे बताती है कि जिस तरह मानव शरीर को पौष्टिक भोजन की जरूरत होती है, उसी तरह एक उम्र के बाद स्वस्थ शारीरिक संबंध हमारे शरीर और मन की जरूरत बन जाती हैं.

सेक्सुअल कम्पेटिबिलिटी

डॉ. वाधवा बताती हैं कि सेक्सुअल कम्पेटिबिलिटी मुख्य कारण रहती है, किसी भी जोड़े के बीच के संबंधों की मधुरता या फिर उनके बीच कलह का. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिए शारीरिक संसर्ग भावनात्मक आधार लिए होता है. जबकि पुरुषों के लिए शारीरिक संबंध उत्तेजना और आनंद का कारण होता हैं.

वे बताती हैं कि हमारे पुरुष सत्तात्मक समाज में बचपन से ही पुरुषों में अपनी इच्छा को सर्वोपरी रखने की आदत बन जाती है. वहीं लड़कियों को परिस्थिति अनुसार खुद को ढालने, अपनी इच्छाओं को दबाकर दूसरों को खुश रखने की सीख दी जाती है. पहले समय में इसी सीख के अनुसार चलते हुए महिलाएं असंतुष्ट यौन संबंधों को अपनी नियती मानते हुए चुपचाप अपना जीवन व्यतीत कर देती थी. लेकिन अब बदलते समय में आत्मनिर्भर होती महिलाएं अपनी शारीरिक जरूरतों को लेकर मुखर होने लगी हैं. आपसी सोच तथा रूढ़ीवादिता और बदलती सोच के बीच का यही टकराव आपसी कलह का कारण बन जाता है.

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