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अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस 2021

हमारे पुरुष प्रधान समाज में हमेशा से ही महिलाएं भेदभाव का शिकार रही है। सामाजिक और व्यावहारिक तौर पर ही नहीं बल्कि उनके स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों तथा उनसे जुड़े अधिकारों व नियमों कि लोग अनदेखी करते रहे हैं। लेकिन समय के बदलते चक्र के साथ आज के समय की महिलाएं अपनी समस्याओं तथा मुद्दों को लेकर मुखर होने लगी है। महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों को लोगों के संज्ञान में लाने के उद्देश्य से हर साल 28 मई को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस मनाया जाता है।

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अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्रवाई दिवस 2021
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Published : May 28, 2021, 12:08 PM IST

वर्ष 1987 में कोस्टा रिका में इंटरनेशनल वुमन हेल्थ मीटिंग में डब्लू.जी.एन.आर.आर के सदस्यों द्वारा 28 मई को महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए आवाज उठाने के उद्देश्य से “ अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस” के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया था । जिसके उपरांत हर साल दुनिया भर में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों विशेषकर यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाया जाता रहा है।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस 2021 “वुमेन हेल्थ मैटर : एंडिंग द इनइक्वेलिटी पनडेमिक एंड इंश्योरिंग एस.आर.एच.आर इमेज एसेंशियल” यानी “महिला स्वास्थ्य संबंधी मामले : असमानता व भेदभाव रूपी महामारी का अंत हो तथा एस.आर.एच.आर को प्राथमिकता के आधार सभी के लिए जरूरी किया जाए “ थीम पर मनाया जा रहा है।

क्या है एस.आर.एच.आर

एस.आर.एच.आर यानी “सेक्शुअल एंड रीप्रोडक्टिव हेल्थ एंड राइट” जिसे हिंदी में “यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य तथा उससे संबंधित अधिकार” कहा जाता है, को ऐसे मानवाधिकार की श्रेणी में रखा जाता है जो कि पूरी दुनिया में महिलाओं तथा पुरुषों के लिए जरूरी माना जाता है। एस.आर.एच.आर के तहत जिन मुख्य अधिकारों को शामिल किया जाता है वह इस प्रकार है।

  • लैंगिकता से जुड़ी जानकारी का अधिकार
  • लैंगिकता से जुड़ी शिक्षा का अधिकार
  • अपने लैंगिक साथी के चयन का अधिकार
  • यौन संबंधों को लेकर सक्रिय होने तथा सक्रिय ना होने का अधिकार
  • बच्चे को जन्म देने का अधिकार
  • आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों के स्वैछिक उपयोग का अधिकार
  • मातृत्व देखभाल का अधिकार
  • सुरक्षित गर्भपात तथा गर्भपात के उपरांत देखभाल का अधिकार
  • सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज यानी असुरक्षित यौन संबंधों द्वारा होने वाले तथा फैलने वाले रोगों से बचाव, उनकी देखभाल तथा उनके उपचार संबंधी जानकारी का ज्ञान होना

महामारी के दौर में प्रभावित होता महिलाओं का स्वास्थ्य

महामारी के चलते पिछले लगभग एक साल से ज्यादा समय से कोरोना के अतिरिक्त अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को अपनी नियमित जांच और इलाज के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है । इस दौर में बहुत सी महिलाएं ऐसी भी रही जिन्हें न सिर्फ अपने सामान्य स्वास्थ्य को बरकरार रखने, बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों (कोरोना के अतिरिक्त ) के बचाव, इलाज तथा यौनिक अधिकारों के अंतर्गत आने वाली विभिन्न समस्याओं को लेकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन के इस दौर में बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ डोमेस्टिक वायलेंस यानी घरेलू हिंसा, यौन हिंसा तथा बलात्कार तथा मैरिटल रेप जैसी घटनाओं के मामले भी दर्ज हुए। जिनके चलते ना सिर्फ उनके शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफी असर पडा।

अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस 2021 को लेकर जारी आधिकारिक सूचना में बताया गया है की महामारी इस दौर में दुनिया भर में अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के साथ असमानता , भेदभाव तथा अपराध से जुड़े बहुत से सामाजिक मुद्दे तथा मामलें सामने आए हैं जहां महिलाओं के जीने, उनके स्वास्थ्य, समानता, भेदभाव तथा अपनी बात कहने की स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों का हनन किया गया है ।

पढ़ें: माहवारी के दौरान स्वच्छता जरूरी : विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2021

भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति

हमारे देश में महिलाओं को सदियों से भेदभाव का सामना करना पड़ा है। हालांकि बदलते समय के साथ समाज में महिलाओं की स्थिति भी काफी बदली है। वर्तमान समय में महिलाएं खुलकर सशक्तता से अपनी बात दूसरों के सामने रखना तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानती हैं। लेकिन लैंगिक समानता की इस लड़ाई में आज भी पुरुष सत्ता को सर्वोपरि माना जाता है और आमतौर पर महिलाओं को अपनी लैंगिकता के चलते भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ इंडिया (एन.एच.पी) के अनुसार भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य तथा उनकी सामाजिक स्तिथि को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं

  • कुपोषण

तमाम विकासशील देशों के बीच में हमारे देश में कुपोषण की शिकार महिलाओं का आंकड़ा अपेक्षाकृत दूसरे देशों के मुकबलें ज्यादा है। वर्ष 2012 में समाजसेवी संस्था “तरोज़ी” द्वारा कराए गए एक शोध में सामने आया था कि ना सिर्फ नवजात शिशु तथा छोटे बच्चे कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं बल्कि दूध पिलाने वाली माताओं में भी कुपोषित की समस्या आमतौर पर नजर आती हैं। आंकड़ों की माने तो हर साल बड़ी संख्या में प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान या उसके उपरांत कुपोषण सहित विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में महिलाओं व नवजातों अपनी जान गवां बैठते हैं।

  • मातृ स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने वाली सुविधाओं में कमी

माता का कमजोर स्वास्थ्य ना सिर्फ बच्चे के संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि माता के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही उसके मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य तथा उसकी आर्थिक अवस्था को भी प्रभावित करता है। बच्चे के जन्म से पहले या जन्म के उपरांत हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी जान गवा बैठती हैं। आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1992 से 2006 के बीच प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान तथा प्रसव के बाद होने वाली महिलाओं की कुल मृत्युदर में से लगभग 20% संख्या सिर्फ भारतीय महिलाओं की थी।

हालांकि समय के साथ-साथ महिलाओं में साक्षरता की दर तथा नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या बढ़ी है, इसके अलावा महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों विशेषकर गर्भावस्था तथा बच्चे के जन्म के उपरांत बरती वाली सावधानियों तथा मानवाधिकारों से जुड़े अन्य मुद्दो को लेकर सरकारी तथा गैरसरकारी स्तर पर विभिन्न प्रकार के जागरूकता अभियान चलाए जा रहें है। जिनके चलते उम्मीद लगाई जा रही है कि भविष्य में इन कारणों से होने वाली महिलाओं की मृत्यु दर में कमी आएगी तथा उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा कुपोषण को दूर रखने के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाओं में भी बढ़ोतरी होगी।

  • आत्महत्या

आंकड़ों की मानें तो हमारे देश में हर साल होने वाली आत्महत्याओं के मामलें दुसरें विकसित देशों के मुकाबले पाँच गुना ज्यादा है, जिनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले काफी ज्यादा है यह आंकड़े वाकई काफी चिंतनीय है। माना जाता हैं की महिलाओं निम्नलिखित कारणों के चलते आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होती है।

  • तनाव
  • घबराहट/ बेचैनी
  • लैंगिक भेदभाव
  • घरेलू हिंसा

इन तथ्यों से जुड़े आंकड़ों का विस्तार से अध्ध्यन करें तो पता चलता हैं की आत्महत्या करने वाली महिलाओं में बड़ा आंकड़ा यौन कर्मी यानी सेक्स वर्कर महिलाओं का भी होता है, जो अपने सामाजिक स्तर, भेदभाव, सामाजिक व पारिवारिक जीवन या फिर अपने कार्य के प्रति कुंठा के कारण आत्महत्या करती है।

  • घरेलू हिंसा

हमारे देश में घरेलू हिंसा कि मामले काफी देखने सुनने में आते हैं। दरअसल घरेलू हिंसा का तात्पर्य सिर्फ शारीरिक हिंसा यानी मारना-पीटना ही नहीं होता है। मानसिक प्रताड़ना तथा यौनिक हिंसा भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में ही आती है।

पूरी दुनिया में घरेलू हिंसा के अनगिनत मामलों के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे ऐसी महामारी की संज्ञा दी है जिसके बारे में मुखर होकर ज्यादा लोग बात नहीं करते हैं।

वर्ष 2005-06 में इंडिया नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 3 द्वारा एक शोध करवाया गया था, जिसके अनुसार उन 12 महीने में लगभग 31% महिलाओं के घरेलू हिंसा का शिकार होने की पुष्टि हुई थी। यह आँकड़े आधिकारिक थे, लेकिन जानकारों का कहना है की वास्तविकता में घरेलू हिंसा के पीड़ितों की संख्या इससे काफी ज्यादा हो थी।

सिर्फ यहीं नही और भी बहुत से कारण हैं जिनके चलते आज भी हमारे देश में महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से ना सिर्फ घर, बल्कि दफ्तर में भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में बहुत जरूरी हो जाता है कि ना सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी महिलाओं के अधिकारों तथा उनके हक के लिए एकजुट हो।

स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता जरूरी

सिर्फ अपने अधिकारों के लिए ही नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य को लेकर भी महिलाओं के लिए जागरूक होना जरूरी है। हर उम्र में स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी है कि महिलाएं नियमित तौर पर अपनी शारीरिक जांच कराएं। सामान्य रक्त शुगर की जांच के अतिरिक्त स्तन संबंधी रोगों से जुड़ी जांच , पेलविक की जांच, आंखों, कोलेस्ट्रोल, रक्तचाप की जांच महिलाओं को नियमित तौर पर करवानी चाहिए। इसके साथ ही जरूरी है कि वे अपने शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए ना सिर्फ पौष्टिक भोजन अपनाएं, बल्कि नियमित तौर पर व्यायाम, योग तथा मेडिटेशन की भी सहायता लें। ऐसा करने से ना सिर्फ उनका शारीरिक स्वास्थ्य बना रहेगा बल्कि मानसिक रूप से भी वे पूर्ण स्वस्थ महसूस करेंगी।

वर्ष 1987 में कोस्टा रिका में इंटरनेशनल वुमन हेल्थ मीटिंग में डब्लू.जी.एन.आर.आर के सदस्यों द्वारा 28 मई को महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों के लिए आवाज उठाने के उद्देश्य से “ अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस” के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया था । जिसके उपरांत हर साल दुनिया भर में महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों विशेषकर यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाया जाता रहा है।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस 2021 “वुमेन हेल्थ मैटर : एंडिंग द इनइक्वेलिटी पनडेमिक एंड इंश्योरिंग एस.आर.एच.आर इमेज एसेंशियल” यानी “महिला स्वास्थ्य संबंधी मामले : असमानता व भेदभाव रूपी महामारी का अंत हो तथा एस.आर.एच.आर को प्राथमिकता के आधार सभी के लिए जरूरी किया जाए “ थीम पर मनाया जा रहा है।

क्या है एस.आर.एच.आर

एस.आर.एच.आर यानी “सेक्शुअल एंड रीप्रोडक्टिव हेल्थ एंड राइट” जिसे हिंदी में “यौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य तथा उससे संबंधित अधिकार” कहा जाता है, को ऐसे मानवाधिकार की श्रेणी में रखा जाता है जो कि पूरी दुनिया में महिलाओं तथा पुरुषों के लिए जरूरी माना जाता है। एस.आर.एच.आर के तहत जिन मुख्य अधिकारों को शामिल किया जाता है वह इस प्रकार है।

  • लैंगिकता से जुड़ी जानकारी का अधिकार
  • लैंगिकता से जुड़ी शिक्षा का अधिकार
  • अपने लैंगिक साथी के चयन का अधिकार
  • यौन संबंधों को लेकर सक्रिय होने तथा सक्रिय ना होने का अधिकार
  • बच्चे को जन्म देने का अधिकार
  • आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों के स्वैछिक उपयोग का अधिकार
  • मातृत्व देखभाल का अधिकार
  • सुरक्षित गर्भपात तथा गर्भपात के उपरांत देखभाल का अधिकार
  • सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज यानी असुरक्षित यौन संबंधों द्वारा होने वाले तथा फैलने वाले रोगों से बचाव, उनकी देखभाल तथा उनके उपचार संबंधी जानकारी का ज्ञान होना

महामारी के दौर में प्रभावित होता महिलाओं का स्वास्थ्य

महामारी के चलते पिछले लगभग एक साल से ज्यादा समय से कोरोना के अतिरिक्त अलग-अलग स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को अपनी नियमित जांच और इलाज के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है । इस दौर में बहुत सी महिलाएं ऐसी भी रही जिन्हें न सिर्फ अपने सामान्य स्वास्थ्य को बरकरार रखने, बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों (कोरोना के अतिरिक्त ) के बचाव, इलाज तथा यौनिक अधिकारों के अंतर्गत आने वाली विभिन्न समस्याओं को लेकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन के इस दौर में बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ डोमेस्टिक वायलेंस यानी घरेलू हिंसा, यौन हिंसा तथा बलात्कार तथा मैरिटल रेप जैसी घटनाओं के मामले भी दर्ज हुए। जिनके चलते ना सिर्फ उनके शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफी असर पडा।

अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य कार्यवाही दिवस 2021 को लेकर जारी आधिकारिक सूचना में बताया गया है की महामारी इस दौर में दुनिया भर में अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के साथ असमानता , भेदभाव तथा अपराध से जुड़े बहुत से सामाजिक मुद्दे तथा मामलें सामने आए हैं जहां महिलाओं के जीने, उनके स्वास्थ्य, समानता, भेदभाव तथा अपनी बात कहने की स्वतंत्रता से जुड़े अधिकारों का हनन किया गया है ।

पढ़ें: माहवारी के दौरान स्वच्छता जरूरी : विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2021

भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति

हमारे देश में महिलाओं को सदियों से भेदभाव का सामना करना पड़ा है। हालांकि बदलते समय के साथ समाज में महिलाओं की स्थिति भी काफी बदली है। वर्तमान समय में महिलाएं खुलकर सशक्तता से अपनी बात दूसरों के सामने रखना तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानती हैं। लेकिन लैंगिक समानता की इस लड़ाई में आज भी पुरुष सत्ता को सर्वोपरि माना जाता है और आमतौर पर महिलाओं को अपनी लैंगिकता के चलते भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ इंडिया (एन.एच.पी) के अनुसार भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य तथा उनकी सामाजिक स्तिथि को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं

  • कुपोषण

तमाम विकासशील देशों के बीच में हमारे देश में कुपोषण की शिकार महिलाओं का आंकड़ा अपेक्षाकृत दूसरे देशों के मुकबलें ज्यादा है। वर्ष 2012 में समाजसेवी संस्था “तरोज़ी” द्वारा कराए गए एक शोध में सामने आया था कि ना सिर्फ नवजात शिशु तथा छोटे बच्चे कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार बनते हैं बल्कि दूध पिलाने वाली माताओं में भी कुपोषित की समस्या आमतौर पर नजर आती हैं। आंकड़ों की माने तो हर साल बड़ी संख्या में प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान या उसके उपरांत कुपोषण सहित विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में महिलाओं व नवजातों अपनी जान गवां बैठते हैं।

  • मातृ स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने वाली सुविधाओं में कमी

माता का कमजोर स्वास्थ्य ना सिर्फ बच्चे के संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि माता के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही उसके मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य तथा उसकी आर्थिक अवस्था को भी प्रभावित करता है। बच्चे के जन्म से पहले या जन्म के उपरांत हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी जान गवा बैठती हैं। आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1992 से 2006 के बीच प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान तथा प्रसव के बाद होने वाली महिलाओं की कुल मृत्युदर में से लगभग 20% संख्या सिर्फ भारतीय महिलाओं की थी।

हालांकि समय के साथ-साथ महिलाओं में साक्षरता की दर तथा नौकरीपेशा महिलाओं की संख्या बढ़ी है, इसके अलावा महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों विशेषकर गर्भावस्था तथा बच्चे के जन्म के उपरांत बरती वाली सावधानियों तथा मानवाधिकारों से जुड़े अन्य मुद्दो को लेकर सरकारी तथा गैरसरकारी स्तर पर विभिन्न प्रकार के जागरूकता अभियान चलाए जा रहें है। जिनके चलते उम्मीद लगाई जा रही है कि भविष्य में इन कारणों से होने वाली महिलाओं की मृत्यु दर में कमी आएगी तथा उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने तथा कुपोषण को दूर रखने के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाओं में भी बढ़ोतरी होगी।

  • आत्महत्या

आंकड़ों की मानें तो हमारे देश में हर साल होने वाली आत्महत्याओं के मामलें दुसरें विकसित देशों के मुकाबले पाँच गुना ज्यादा है, जिनमें महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले काफी ज्यादा है यह आंकड़े वाकई काफी चिंतनीय है। माना जाता हैं की महिलाओं निम्नलिखित कारणों के चलते आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होती है।

  • तनाव
  • घबराहट/ बेचैनी
  • लैंगिक भेदभाव
  • घरेलू हिंसा

इन तथ्यों से जुड़े आंकड़ों का विस्तार से अध्ध्यन करें तो पता चलता हैं की आत्महत्या करने वाली महिलाओं में बड़ा आंकड़ा यौन कर्मी यानी सेक्स वर्कर महिलाओं का भी होता है, जो अपने सामाजिक स्तर, भेदभाव, सामाजिक व पारिवारिक जीवन या फिर अपने कार्य के प्रति कुंठा के कारण आत्महत्या करती है।

  • घरेलू हिंसा

हमारे देश में घरेलू हिंसा कि मामले काफी देखने सुनने में आते हैं। दरअसल घरेलू हिंसा का तात्पर्य सिर्फ शारीरिक हिंसा यानी मारना-पीटना ही नहीं होता है। मानसिक प्रताड़ना तथा यौनिक हिंसा भी घरेलू हिंसा की श्रेणी में ही आती है।

पूरी दुनिया में घरेलू हिंसा के अनगिनत मामलों के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे ऐसी महामारी की संज्ञा दी है जिसके बारे में मुखर होकर ज्यादा लोग बात नहीं करते हैं।

वर्ष 2005-06 में इंडिया नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 3 द्वारा एक शोध करवाया गया था, जिसके अनुसार उन 12 महीने में लगभग 31% महिलाओं के घरेलू हिंसा का शिकार होने की पुष्टि हुई थी। यह आँकड़े आधिकारिक थे, लेकिन जानकारों का कहना है की वास्तविकता में घरेलू हिंसा के पीड़ितों की संख्या इससे काफी ज्यादा हो थी।

सिर्फ यहीं नही और भी बहुत से कारण हैं जिनके चलते आज भी हमारे देश में महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से ना सिर्फ घर, बल्कि दफ्तर में भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में बहुत जरूरी हो जाता है कि ना सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी महिलाओं के अधिकारों तथा उनके हक के लिए एकजुट हो।

स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता जरूरी

सिर्फ अपने अधिकारों के लिए ही नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य को लेकर भी महिलाओं के लिए जागरूक होना जरूरी है। हर उम्र में स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी है कि महिलाएं नियमित तौर पर अपनी शारीरिक जांच कराएं। सामान्य रक्त शुगर की जांच के अतिरिक्त स्तन संबंधी रोगों से जुड़ी जांच , पेलविक की जांच, आंखों, कोलेस्ट्रोल, रक्तचाप की जांच महिलाओं को नियमित तौर पर करवानी चाहिए। इसके साथ ही जरूरी है कि वे अपने शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए ना सिर्फ पौष्टिक भोजन अपनाएं, बल्कि नियमित तौर पर व्यायाम, योग तथा मेडिटेशन की भी सहायता लें। ऐसा करने से ना सिर्फ उनका शारीरिक स्वास्थ्य बना रहेगा बल्कि मानसिक रूप से भी वे पूर्ण स्वस्थ महसूस करेंगी।

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