दुनिया भर में नर्सिंग पेशे से जुड़े लोगों की सराहना व उन्हें सम्मान देने तथा उनकी बेहतरी के लिए विभिन्न अवसरों के निर्माण के उद्देश्य से “द लेडी विद द लैंप “ नाम से मशहूर फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म तिथि के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष यह विशेष दिवस “ वॉइस टू लीड, अ विज़न फॉर फ्यूचर” थीम पर मनाया जा रहा है। जिसका आशय है की नर्स अब विश्व पटल पर स्वास्थ्य प्रणाली का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं।
वर्ष 1965 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा इस दिवस को प्रतिवर्ष मनाए जाने के संकल्प लिया गया था। जिसके उपरांत हर साल नर्सों कि बेहतरी के लिए नए विषयों की शैक्षिक और सार्वजनिक सूचना की जानकारी तथा उससे जुड़ी सामग्री का निर्माण तथा वितरण करने तथा नर्सों के कार्यों की सराहना करने का उद्देश्य लेकर अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस का आयोजन किया जाता रहा है। इस विशेष दिवस को मनाए जाने का प्रस्ताव पहली बार अमेरिका के स्वास्थ्य शिक्षा और कल्याण विभाग के अधिकारी डोरोथी सदरलैंड ने प्रस्तावित किया था जिसे अमेरिका के राष्ट्रपति डी डी आइजनहावर ने मान्यता प्रदान की थी। गौरतलब है कि भारत सरकार के परिवार एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा हर वर्ष नर्सों की सराहनीय सेवा को मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से ”राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल” पुरस्कार दिया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाए जाने का उद्देश्य
नर्सिंग को दुनिया भर में स्वास्थ्य रखरखाव से संबंधित सबसे बड़े और सम्मानीय पेशों में गिना जाता है। दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के योगदान को मान्यता तथा सराहना देने के उद्देश्य से आयोजित इस दिवस पर रोगियों के कल्याण के लिए नर्सों को सामाजिक, चिकित्सीय तथा मनोवैज्ञानिक रूप से ज्यादा प्रशिक्षित और शिक्षित करने के उद्देश्य से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इसके अतिरिक्त नर्सिंग पेशे से जुड़े लोगों के आर्थिक व सामाजिक विकास से जुड़े मुद्दों के बारे में चर्चा करना तथा उसके लिए विभिन्न योजनाएं बनाना व उन्हें लागू करने के लिए प्रयास करना भी इस दिवस को मनाए जाने के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है।
राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार
भारत सरकार के परिवार एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 1973 में राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार दिए जाने की शुरुआत की गई थी। चिकित्सा के क्षेत्र में नर्सों की भूमिका को सराहने उद्देश्य से दिए जाने वाले इस पुरस्कार में ₹50,000 नगद राशि के साथ प्रशस्ति पत्र तथा मेडल देकर चयनित नर्सों को सम्मानित किया जाता है। गौरतलब है कि अब तक 250 से ज्यादा नर्सों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
दुनिया भर में है प्रशिक्षित नर्सों की कमी
आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में नोबेल पेशा माने जाने वाले नर्सिंग को अच्छे वेतन और सुविधाओं के अभाव के चलते लोग प्राथमिक पेशे या व्यवसाय के रूप से अपनाने में कतराते हैं। यह परिस्थितियां विकासशील देशों में ज्यादा नजर आती हैं। गौरतलब है कि इस पेशे से जुड़े कई लोग बेहतर तनख्वाह और सुविधाओं के चलते देश से दूसरे देशों की तरफ पलायन कर जाते थे। ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार नर्सिंग के क्षेत्र में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के उपरांत पलायन करने वाली नर्सों की संख्या में कमी आई है। हालांकि अभी भी बड़ी संख्या में राज्य तथा गैर सरकारी क्षेत्रों में नर्सिंग से जुड़े लोगों को आर्थिक तथा अन्य स्तर पर काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कोविड-19 महामारी में नर्सों की भूमिका
कोविड-19 महामारी के पहले चरण में जहां स्थिति भयावह थी , वहीं अब महामारी के दूसरे चरण में यह स्थिति युद्ध स्तर तक जा पहुंची है। महामारी के इस दौर में नर्से चिकित्सकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वास्थ्य सेवाओं में अतुलनीय योगदान दे रही हैं।कोरोना काल में नर्से रोगियों की जांच, इलाज और देखभाल की सही प्रक्रिया का पालन करते हुए चिकित्सकों के पूरक के रूप में भी कार्य कर रही हैं। कोरोना के शुरुआती दौर से ही नर्स अस्पतालों में अधिकतम ड्यूटी देखकर मरीजों की देखभाल कर रही है। यही नहीं मौजूदा दौर में कोरोना संक्रमण से लड़ते हुए वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में नर्सों ने अपनी जान की आहुति भी दी है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में कोरोना संक्रमण के कारण लगभग 1500 नर्सों ने अपनी जान गवाई है। भारत में यह आंकड़ा लगभग 200 से ऊपर है।