नई दिल्ली: पिछले तीन वर्षो में कोविड महामारी के बावजूद कई चीजों के बीच बच्चों का नियमित टीकाकरण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने शनिवार को खोए हुए समय को पकड़ने की जरूरत पर जोर दिया. विश्व टीकाकरण सप्ताह अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों से बचाने के लिए आवश्यक सामूहिक कार्रवाई को उजागर करना है. यूनिसेफ की स्टेट ऑफ द वल्र्डस चिल्ड्रन रिपोर्ट (State of the World's Children Report) के अनुसार, 2019 और 2021 के बीच अनुमानित 6.7 करोड़ बच्चे पूरी तरह या आंशिक रूप से अपने नियमित टीकाकरण से चूक गए.
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में पीडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर के सीनियर कंसल्टेंट नमीत जेरथ ने आईएएनएस से कहा, "एक्सपोजर के डर, स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान, गलत सूचना, आर्थिक चुनौतियों और कोविड-19 को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करने से वयस्कों और बच्चों दोनों के लिए टीकाकरण की दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है.सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में नियोनेटोलॉजी और सामान्य बाल चिकित्सा निदेशक राहुल वर्मा ने कहा, "महामारी के कारण हर किसी का ध्यान केवल कोविड टीकाकरण पर था और पोलियो जैसे बुनियादी आवश्यक टीकाकरण, बुनियादी प्राथमिक और माध्यमिक टीकाकरण, खसरा, कंठमाला, रूबेला, इन सभी की उपेक्षा की गई.
डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड महामारी के कारण दुनिया ने लगभग 30 वर्षो में बचपन के टीकाकरण में सबसे बड़ी निरंतर गिरावट का अनुभव किया है. साल 2021 में भारत में 27.1 लाख बच्चों को डीटीपी3 के खिलाफ टीके की एक भी खुराक नहीं मिली थी. रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 35 लाख से अधिक, यानी दुनिया के कुल का 15 प्रतिशत हिस्सा भारत में वैक्सीन लेने से चूक गया. डॉ. वर्मा ने आईएएनएस से कहा, "हमें उच्च प्राथमिकता पर टीकाकरण और टीकाकरण सेवाओं को पकड़ना है और सभी टीकाकरण नियमित कार्यक्रम की तुलना में कम समय में पूरा किया जाना चाहिए, जो कि अगले तीन महीनों में दिया जाना चाहिए."
मेदांता, गुरुग्राम में बाल रोग, बाल चिकित्सा पल्मोनोलॉजी और पेडिएट्रिक क्रिटिकल केयर के चेयरमैन प्रवीण खिलनानी ने कहा, "किसी बच्चे का टीकाकरण करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें जानलेवा बीमारियों से बचा सकता है, विशेष रूप से उन शिशुओं में, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है. लोगों को शिक्षित करना और टीकों के बारे में मिथकों को दूर करना महत्वपूर्ण है. भारत में टीकाकरण के लिए व्यापक बुनियादी ढांचा है.
कोविड महामारी के दौरान खराब टीकाकरण देश में खसरे के मामले में हाल ही में देखी गई वृद्धि में भी परिलक्षित हुआ था. खसरा के कारण 2022 में कम से कम 40 बच्चों की मौत हो गई और लगभग 10,000 बच्चे संक्रमित हो गए. इस बीच, भारत ने 2022 में एक गहन मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई) 4.0 लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य देश के 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 416 जिलों में 3 करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं और 2.6 करोड़ बच्चों को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के माध्यम से कवर करना है.
यूनिसेफ की नवीनतम रिपोर्ट से पता चला है कि भारत (चीन और मैक्सिको के साथ) दुनिया में सबसे अधिक वैक्सीन विश्वास वाले तीन देशों में से एक है, अन्य सभी देशों में गिरावट दर्ज की जा रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में डेल्टा से संबंधित गंभीर व्यवधानों के बावजूद भारत 2020 के टीकाकरण बैकस्लाइड को रोकने में सक्षम था और स्थिति खराब नहीं हुई है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने वयस्कों के अलावा बच्चों का भी नियमित टीकाकरण की जरूरत पर जोर दिया.
वयस्कों के लिए टीकाकरण में फ्लू के टीके, न्यूमोकोकल, टाइफाइड, एमएमआर और मेनिंगोकोकल टीके शामिल हैं, जो अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु को रोक सकते हैं. नए टीकों में हर्पीज जोस्टर, सर्वाइकल कैंसर (एचपीवी वैक्सीन) के खिलाफ टीके शामिल हैं. मलेरिया (आर-21) के लिए एक टीका भी पाइपलाइन में है. फोर्टिस अस्पताल नोएडा में आंतरिक चिकित्सा निदेशक और विभाग के प्रमुख अजय अग्रवाल ने आईएएनएस को बताया, "वयस्कों का टीकाकरण भारत में आम तौर पर एक उपेक्षित अवधारणा है. न केवल रोगी, बल्कि स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता भी इस पहलू पर सतर्क नहीं हैं. कोविड टीकाकरण कार्यक्रम ने हमें सिखाया है कि कैसे समय पर टीकाकरण अस्पताल में भर्ती होने की नौबत और मौत को रोक सकता है. Coronavirus Health life and style Lifestyle news
(आईएएनएस)
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