लक्षणों के आधार पर बुजुर्गों की लाइलाज बीमारी अल्जाइमर (World Alzheimer Day 2022) का समय रहते पता लगाने में सहायक तकनीक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर (IIT Jodhpur) ने अन्य संस्थानों के साथ मिलकर विकसित की है. इस तकनीक से दिमाग की (Alzheimers symptoms) याददाश्त को कमजोर करने वाले कारक अल्जाइमर को ढूंढ़ा जा सकता है. इसके लिए लैब में नए अणु मॉलिकुलर प्रोब (Molecular probe) की खोज की गई जो मस्तिष्क में जाकर फ्लोरोसेंट लैंप (प्रतीदिप्ती प्रकाश) के जरिए अल्जाइमर की मौजूदगी का मापन करेगा. इसके लिए लैब में चूहों के मस्तिष्क पर सफलतापूर्वक प्रयोग किए गए हैं. इसमें पांच साल का समय लगा है. World alzheimer's day 2022 . Alzheimer's symptoms .
IIT Jodhpur के बायोसाइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ सुरजीत घोष (Dr Surjit Ghosh, Professor, Biosciences Department) ने बताया कि हमने जो प्रोब विकसित (New technique to detect Alzheimer) किया हैं वह एमोलॉयड बीटा एग्रिगेट को ढूंढता है. अल्जाइमर होने पर एमोलॉयड बीटा मस्तिष्क में एग्रिगेट के रूप में जमा हो जाता है. जिससे न्यूरोंस प्रभावित होते हैं. इससे धीरे धीरे याददाश्त प्रभावित होने लगती है. विकसित अणु के जरिए इस एमलाइड बीटा एग्रिगेट की मौजूदगी की पता चलता है. प्रोब एग्रिगेट की मौजूदगी पर रेड फ्लोरेसेंट देता है. यह रिसर्च एससीएस केमिकल न्यूरोसाइंस जर्नल (SCS Chemical Neuroscience Journal) में प्रकाशित हुई है. रिसर्च में आईआईटी जोधपुर के बायो साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ सुरजीत घोष के नेतृत्व में उनके रिसर्चर रथनाम मलैस, जूही खान और राजशेखर रॉय (Researchers Ratnam Malais, Juhi Khan and Rajshekhar Roy, Biosciences Department, IIT Jodhpur ) भी शामिल हैं.
ये भी पढ़ें : विश्व अल्जाइमर दिवस: भूलने वाली इस गंभीर बीमारी के क्या हैं लक्षण और बचाव के उपाय?
अब सेरिब्रल स्पाइनल फ्लूइड से डिटेक्शन पर काम : डॉ घोष का कहना है कि यूके (IIT Jodhpur New technique to detect Alzheimer) और यूएसए में इस पर काम चल रहा है. कई और ग्रुप भी काम कर रहे हैं. हमने दो तरीके से आगे बढ़ने की योजना बनाई है. जिससे डिटेक्शन के साथ-साथ थैरेपी भी डेवलप हो. अब हम सीएसएफ फ्लूइड में एलाइड बीटा एग्रिगेट की मौजदूगी का पता लगाने की कोशिश करेंगे. अगर वहां सफलता मिलती है तो और ज्यादा हम शरीर में अल्जाइमर का पता लगा सकेंगे. साथ ही थैरेपी पर भी काम हो सकेगा. जिससे बीमारी का भी पता लगे और उपचार भी तलाशा जा सके. आईआईटी जोधपुर के अलावा आईआईटी खड़गपुर और सीएसआईआर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी कोलकाता (IIT Kharagpur and CSIR, Indian Institute of Chemical Biology Kolkata) के संयुक्त प्रयास से इस प्लैक बनाने वाले एग्रिगेट की पहचान कर अणु विकसित किया गया है. जो भविष्य में इस बीमारी के उपचार के लिए भी फायदेमंद होगा.
यूं समझे इस अल्जाइमर बीमारी को : हमारे मस्तिष्क में कई सेल्स और न्यूरॉन्स होते हैं. मस्तिष्क (What is Alzheimer disease) में दो प्रोटीन एमलाइड बीटा और ताऊ का भी निर्माण होता है. यह प्रोटीन मस्तिष्क कोशिका के अंदर मकड़ी के जाले की तरह से एक संरचना का निर्माण करते हैं. इससे न्यूरॉन्स कोशिकाएं और उसके चारों ओर एक प्लैक का निर्माण करते हैं. इससे कोशिकाएं धीरे-धीरे क्षणी होने के साथ साथ मस्तिष्क की याद करने की ताकत कम होने लगती है. जिससे व्यक्ति भूलने लगता है.
भारत में लक्षणों के प्रति जागरूकता जरूरी : अल्जाइमर एंड रिलेटेड डिसऑर्डर (Awareness for Alzheimer in India) सोसाइटी ऑफ इंडिया (ARDSI) की डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट के अनुसार 2010 में देश में लगभग 37 लाख अल्जाइमर से पीड़ित थे. सोसायटी का अनुमान है कि यह संख्या 2030 तक बढ़कर 76 लाख तक हो जाएगी. इसकी वजह है कि अल्जाइमर के बारे में लोगों में जागरूकता का अभाव है. खास तौर से ग्रामीण व कस्बों में लोगों को इसके लक्षणों की जानकारी नहीं है. ऐसे में लोगों को जागरूक करना जरूरी है. जिससे परिवार के सदस्य समय रहते पहचान कर देखरेख कर सकें.
ये भी पढ़ें : Alzheimer : आंत-पेट विकार व अल्जाइमर में आनुवांशिक जुड़ाव है, ऑस्ट्रेलियाई शोध