गर्मी के मौसम में मटका या सुराही का पानी पीना, फ्रिज के मुकाबले ज्यादा बेहतर तथा सुरक्षित माना जाता है. ना सिर्फ एलोपैथिक, बल्कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में माना जाता है कि फ्रिज का पानी शरीर में कई रोगों तथा दोषों का कारण बन सकता है. वहीं घड़े का पानी सेहत को कई तरह से फायदे पहुंचाता है.
संतुलित रहता है पानी का पीएच स्तर
विशेषतौर पर आयुर्वेद में माना जाता है कि मटके का पानी पीने से शरीर ना सिर्फ गर्मी के मौसम में होने वाली मौसमी समस्याओं से बचा रहता है, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा मेटाबोलिज़्म को दुरुस्त रखने में भी सक्षम होता है. भोपाल के वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि मिट्टी के घड़े का पानी पीने से शरीर की अम्लता घटती है तथा उसकी क्षारीयता बढ़ती है, क्योंकि मिट्टी के घड़े में पानी का पीएच स्तर संतुलित रखता है. जिससे एसिडिटी या पेट दर्द सहित कई समस्याओं में राहत मिलती है.
नुकसानदायक होता है फ्रिज का पानी
दिल्ली की पोषण विशेषज्ञ डॉ दिव्या शर्मा बताती हैं कि आमतौर पर फ्रिज का ठंडा पानी पीने से हमारी प्यास नहीं बुझती है. लेकिन मटके या सुराही का पानी पीने से प्यास कम महसूस होती है. वह बताती है कि मिट्टी की प्रकृति दरअसल एल्कलाइन होती है. ऐसे में कुछ समय मिट्टी के घड़े में रखे रहने के बाद पानी में एल्कलाइन गुण विकसित होने लगते हैं. जो सेहत को कई तरह से फायदा पहुंचाते हैं. ऐसे पानी का सेवन करने से ना सिर्फ शरीर में हार्मोन संतुलित रहते हैं, बल्कि पर शरीर पर बढ़ती उम्र का प्रभाव भी कम नजर आता है. इसके अलावा यह वजन को अनावश्यक रूप से बढ़ने से भी रोकता है. विशेषतौर पर गर्भवती महिलाओं तथा बुजुर्गों के लिए घड़े का पानी पीना ज्यादा सुरक्षित रहता है.
वहीं, डॉ राजेश बताते हैं कि दरअसल फ्रिज का पानी वैसे तो ठंडा होता है लेकिन उस की तासीर गर्म होती है, जो वात्त को बढ़ाती है. वहीं बर्फ वाला या ठंडा पानी शरीर के सभी तंत्रों यहां तक कि नसों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. गर्मी के मौसम में बाहर धूप से आने के बाद तत्काल ठंडा पानी पीने से ना सिर्फ सर्दी जुखाम, गला खराब होने तथा बुखार जैसी समस्या हो सकती है बल्कि यह कब्ज सहित पाचन संबंधी कई समस्याओं, अन्य संक्रमणों तथा कई बार गंभीर रोगों का खतरा बढ़ा देता है.
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वाष्पीकरण की प्रक्रिया से ठंडा होता है घड़े का पानी
वहीं, मिट्टी के घड़े में पानी वाष्पीकरण की प्रक्रिया से ठंडा होता है. दरअसल मिट्टी के घड़े में बहुत सारे सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिनके जरिए पानी का वाष्पीकरण होता है. मटके के ठंडे रहने की प्रक्रिया बहुत कुछ हमारे शरीर के पसीने की मदद से ठंडे रहने की प्रक्रिया के समान ही होती है. दरअसल बहुत ज्यादा गर्मी होने पर जब हमारे शरीर से पसीना बाहर निकलने लगता है तो उसके बाद हमारी त्वचा ठंडक महसूस करने लगती है, उसी प्रकार घड़े के सूक्ष्म छिद्रों से जब पानी का वाष्पीकरण होता रहता है तो घड़ा ठंडा रहता है.
माना जाता है कि घड़े से वाष्पीकरण जितनी ज्यादा मात्रा में होता है उतना ही ज्यादा वह ठंडा रहता है. यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा इसमें पानी का तापमान प्राकृतिक रूप से कम होता है जो पीने पर शरीर को नुकसान नही पहुंचाता है. वहीं मिट्टी के गुण घड़े के पानी को भी सेहतमंद बना देते हैं. इसलिए इस पानी के सेवन से कई प्रकार के संक्रमण और व्याधियों का खतरा कम हो जाता है. यही नहीं मटके या सुराही का पानी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा मेटाबोलिज़्म को बनाए रखने मेरी मदद करता है.
कब बदलें घड़ा
डॉ राजेश बताते हैं कि सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर होता है कि घड़े के पानी को नियमित रूप से बदला जाता रहे. इसके अलावा मिट्टी के घड़े या सुराही को लगभग हर तीन महीने बाद बदल देना चाहिए. इनके अलावा मिट्टी के घड़े को साफ रखने के लिए कुछ अन्य बातों को भी ध्यान में रखना फायदेमंद हो सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- घड़े में पानी भरने से पहले हर बार मटके को अच्छे से साफ करके तथा सुखाकर ही उसमें पानी भरना चाहिए.
- यदि संभव हो तो मिट्टी के घड़े में आरओ का पानी भरने की बजाय उसमें उबले हुए पानी को ठंडा करके डालें. क्योंकि कई आरओ में शरीर के लिए जरूरी मिनरल तथा अन्य पोषक तत्व भी अन्य अशुद्धियों के साथ छन जाते हैं. ऐसे में उबले हुए पानी का इस्तेमाल करने से सिर्फ पानी की अशुद्धियां समाप्त होती है, लेकिन उसके पोषक तत्व बने रहते हैं.
- पानी के मटके में कभी भी हाथ डालकर पानी नहीं निकालना चाहिए. जहां तक संभव हो मटके से पानी निकालने के लिए ऐसे बर्तन का उपयोग करना चाहिए जिसमें डंडी की लगी हो.
- बाजार में आजकल टोंटी लगे मटके तथा सुराही भी मिलते हैं. इनका उपयोग करना अपेक्षाकृत ज्यादा सरल और सुरक्षित रहता है.
- मटके को धूल, कीड़ों तथा कीटाणुओं से सुरक्षित रखने के लिए हमेशा ढक कर रखना चाहिए. ध्यान रहे कि मटके के अंदर या बाहर काई ना जमे.
- पानी के मटके या सुराही को किसी खिड़की के पास रखना ज्यादा प्रभावी होता है, क्योंकि हवा से पानी ज्यादा ठंडा होता है.
- यदि मटके या सुराही में दरारें आने लगे, उससे पानी रिसने लगे या फिर उनकी सतह टूटने या चटकने लगे तो उन्हें तत्काल बदल देना चाहिए.