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बचपन में फलों का जूस पीने की आदत किशोरावस्था में दे सकती है फायदे

बचपन में नियमित रूप से फलों का जूस पीने से ना सिर्फ किशोरावस्था में बच्चों में ज्यादा फल खाने की आदत विकसित होती है बल्कि उनकी आहार संबंधी आदतें भी स्वस्थ रहती हैं. बोस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक शोध में बच्चों में नियमित तौर पर जूस पीने की आदतों के सकारात्मक प्रभाव को लेकर शोध किया गया था, जिसमें उन्होंने 10 सालों तक विषय रहे बच्चों के स्वास्थ्य तथा खान-पान संबंधी आदतों की निगरानी की.

Habit of drinking juice in childhood can be beneficial in later life, nutrition tips for kids
बचपन में फलों का जूस पीने की आदत किशोरावस्था में दे सकती है फायदे
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Published : Dec 27, 2021, 5:32 PM IST

बच्चों में फलों का जूस पीने के फ़ायदों लेकर समय-समय पर कई प्रकार के शोध किए जाते रहे हैं. कुछ शोधों के अनुसार बचपन में जूस पीने की आदत बच्चों के स्वास्थ्य को काफी फायदा पहुंचा सकती है तो वहीं कुछ शोधों की माने तो कुछ विशेष प्रकार के फलों के जूस के चलते बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी नजर आ सकती हैं. हालांकि अधिकांश शोधों के निष्कर्षों में यही पाया जाता रहा है कि फलों तथा उनके जूस का सेवन बच्चों के स्वास्थ्य को सकारात्मक फायदे पहुंचाता है. इसी श्रंखला में कुछ समय पूर्व हुए एक शोध में यह बात भी सामने आई थी कि यदि बचपन में बच्चा नियमित रूप से जूस का सेवन करता है तो ना सिर्फ किशोरावस्था में उनमें जंक फूड के प्रति रुझान कम देखने में आता है, बल्कि आजीवन उनमें खाने-पीने की स्वस्थ आदतें बनी रहती हैं. साथ ही उनका वजन भी नियंत्रित रहता है.

क्या कहते हैं शोध के नतीजे

बीएमसी न्यूट्रीशन के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित इस शोध में अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अमेरिका में ही 3 से 6 साल तक की उम्र के बच्चों के खाने पीने में फलों के शुद्ध जूस को शामिल कर लगभग एक दशक तक उनके खानपान तथा स्वास्थ्य के पैटर्न पर निगरानी रखी थी. इस शोध के नतीजों में पाया गया था कि यदि बच्चे अपने प्री स्कूल के दिनों से नियमित तौर पर अपने आहार में फलों के जूस का सेवन करते हैं तो उनके किशोरावस्था में आने से पहले ही खानपान की बेहतर आदतें विकसित होने लगती हैं, साथ ही उनका वजन अवशक्त से अधिक नहीं बढ़ता है.

गौरतलब है की वर्तमान जीवन शैली के प्रभाव के चलते आजकल बचपन के शुरुआती दिनों से किशोरावस्था तक आते-आते बच्चों के आहार की गुणवत्ता खराब होने लगती है. अधिकांश बच्चे इस आयु में फलों सब्जियों तथा अन्य प्रकार के स्वस्थ आहार को छोड़कर जंक व प्रोसेस्ड फूड की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं. जो उनकी सेहत पर बुरा असर डालते हैं.

शोध में कैसे हुआ परीक्षण

शोध के निष्कर्षों में ज्यादा जानकारी देते हुए मुख्य शोधकर्ता लीन मूर ने बताया कि इस शोध में 3 से 6 साल की आयु वाले 100 बच्चों को विषय बनाया गया था. जिन्हे नियमित रूप से प्रतिदिन फलों का जूस दिया गया था. इनमें जिन बच्चों ने अपने प्रीस्कूल की अवधि के दौरान प्रतिदिन तकरीबन एक से डेढ़ कप शुद्ध फलों के रस का सेवन किया था उनमें किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उन बच्चों की तुलना में जिन्होंने बहुत कम मात्रा में जूस का स्वन किया था, स्वस्थ आहार लेने की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत ज्यादा पाई गई थी. इसके साथ ही 10 वर्ष की आयु तक एक से दो कप फलों के जूस का सेवन करने वाले बच्चों में अतिरिक्त वजन बढ़ने की समस्या भी नजर नहीं आई थी.

शोध में पाया गया कि जिन बच्चों ने प्री स्कूल के दिनों में शतप्रतिशत रूप से फलों के जूस का ज्यादा सेवन किया था उनके अंदर 14 से 17 साल की आयु के दौरान भी फल खाने की प्रवृत्ति उन बच्चों से ज्यादा देखी गई थी, जिन्होंने बचपन में कम जूस पिया था. शोधकर्ता लीन मूर ने बताया कि शोध के दौरान देखा गया कि जिन बच्चों ने प्री स्कूल की अवधि के दौरान दिन में 4 बार फलों के रस का सेवन किया था उनमें किशोरावस्था में ज्यादा मात्रा में फलों का सेवन करने की आदत पाई गई. वहीं जिन बच्चों ने इस अवधि में कम मात्रा में जूस का सेवन किया उनमें किशोरावस्था में फलों का सेवन करने की आदत अपेक्षाकृत काफी कम देखी गई.

यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि शोध में जूस के सेवन और बचपन से किशोरावस्था तक बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई में परिवर्तन के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया था.

पढ़ें: फलों-सब्जियों की स्मूदी के साथ करें दिन की शुरुआत

बच्चों में फलों का जूस पीने के फ़ायदों लेकर समय-समय पर कई प्रकार के शोध किए जाते रहे हैं. कुछ शोधों के अनुसार बचपन में जूस पीने की आदत बच्चों के स्वास्थ्य को काफी फायदा पहुंचा सकती है तो वहीं कुछ शोधों की माने तो कुछ विशेष प्रकार के फलों के जूस के चलते बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी नजर आ सकती हैं. हालांकि अधिकांश शोधों के निष्कर्षों में यही पाया जाता रहा है कि फलों तथा उनके जूस का सेवन बच्चों के स्वास्थ्य को सकारात्मक फायदे पहुंचाता है. इसी श्रंखला में कुछ समय पूर्व हुए एक शोध में यह बात भी सामने आई थी कि यदि बचपन में बच्चा नियमित रूप से जूस का सेवन करता है तो ना सिर्फ किशोरावस्था में उनमें जंक फूड के प्रति रुझान कम देखने में आता है, बल्कि आजीवन उनमें खाने-पीने की स्वस्थ आदतें बनी रहती हैं. साथ ही उनका वजन भी नियंत्रित रहता है.

क्या कहते हैं शोध के नतीजे

बीएमसी न्यूट्रीशन के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित इस शोध में अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अमेरिका में ही 3 से 6 साल तक की उम्र के बच्चों के खाने पीने में फलों के शुद्ध जूस को शामिल कर लगभग एक दशक तक उनके खानपान तथा स्वास्थ्य के पैटर्न पर निगरानी रखी थी. इस शोध के नतीजों में पाया गया था कि यदि बच्चे अपने प्री स्कूल के दिनों से नियमित तौर पर अपने आहार में फलों के जूस का सेवन करते हैं तो उनके किशोरावस्था में आने से पहले ही खानपान की बेहतर आदतें विकसित होने लगती हैं, साथ ही उनका वजन अवशक्त से अधिक नहीं बढ़ता है.

गौरतलब है की वर्तमान जीवन शैली के प्रभाव के चलते आजकल बचपन के शुरुआती दिनों से किशोरावस्था तक आते-आते बच्चों के आहार की गुणवत्ता खराब होने लगती है. अधिकांश बच्चे इस आयु में फलों सब्जियों तथा अन्य प्रकार के स्वस्थ आहार को छोड़कर जंक व प्रोसेस्ड फूड की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं. जो उनकी सेहत पर बुरा असर डालते हैं.

शोध में कैसे हुआ परीक्षण

शोध के निष्कर्षों में ज्यादा जानकारी देते हुए मुख्य शोधकर्ता लीन मूर ने बताया कि इस शोध में 3 से 6 साल की आयु वाले 100 बच्चों को विषय बनाया गया था. जिन्हे नियमित रूप से प्रतिदिन फलों का जूस दिया गया था. इनमें जिन बच्चों ने अपने प्रीस्कूल की अवधि के दौरान प्रतिदिन तकरीबन एक से डेढ़ कप शुद्ध फलों के रस का सेवन किया था उनमें किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उन बच्चों की तुलना में जिन्होंने बहुत कम मात्रा में जूस का स्वन किया था, स्वस्थ आहार लेने की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत ज्यादा पाई गई थी. इसके साथ ही 10 वर्ष की आयु तक एक से दो कप फलों के जूस का सेवन करने वाले बच्चों में अतिरिक्त वजन बढ़ने की समस्या भी नजर नहीं आई थी.

शोध में पाया गया कि जिन बच्चों ने प्री स्कूल के दिनों में शतप्रतिशत रूप से फलों के जूस का ज्यादा सेवन किया था उनके अंदर 14 से 17 साल की आयु के दौरान भी फल खाने की प्रवृत्ति उन बच्चों से ज्यादा देखी गई थी, जिन्होंने बचपन में कम जूस पिया था. शोधकर्ता लीन मूर ने बताया कि शोध के दौरान देखा गया कि जिन बच्चों ने प्री स्कूल की अवधि के दौरान दिन में 4 बार फलों के रस का सेवन किया था उनमें किशोरावस्था में ज्यादा मात्रा में फलों का सेवन करने की आदत पाई गई. वहीं जिन बच्चों ने इस अवधि में कम मात्रा में जूस का सेवन किया उनमें किशोरावस्था में फलों का सेवन करने की आदत अपेक्षाकृत काफी कम देखी गई.

यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि शोध में जूस के सेवन और बचपन से किशोरावस्था तक बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई में परिवर्तन के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया था.

पढ़ें: फलों-सब्जियों की स्मूदी के साथ करें दिन की शुरुआत

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