क्या आपने कभी ध्यान दिया है की मौसम के बदलने या तबीयत के खराब होने पर चेहरे पर अचानक से गहरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं. जो आंखों को बहुत खटकते हैं. झाइयां या पिगमेंटेशन कहे जाने वाले इन धब्बों के होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें बदलते मौसम और खराब स्वास्थ्य को मुख्य माना जाता है. झाइयां क्यों होती है और किस तरह से इनसे बचा तथा इनका इलाज किया जा सकता है. इस बारे में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने काया क्लिनिक इंडिया के हेड स्किन स्पेशलिस्ट डॉक्टर सुशांत शेट्टी से बात की.
झाइयां या हाइपरपिगमेंटेशन
डॉ. सुशांत शेट्टी बताते हैं कि चेहरे पर त्वचा के रंग से अधिक गहरे रंग के बड़े-छोटे धब्बे, झाइयां या पिगमेंटेशन कहलाते हैं. यह पैच छोटे या बड़े किसी भी आकार के हो सकते हैं. झाइयां होने के पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं, बदलते मौसम के अलावा स्वास्थ्य में किसी प्रकार का विकार, हार्मोन में गड़बड़ी, गर्भनिरोधक का इस्तेमाल, मेनोपोज और महिलाओं में कई बार बच्चों को जन्म देने के बाद चेहरे या शरीर पर झाइयों की समस्या देखने में आती है. कई बार झाइयां होने के पीछे अनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं. हाइपरपिगमेंटेशन कोई गंभीर बीमारी नहीं है, लेकिन त्वचा पर धब्बे आमतौर पर किसी को भी अच्छे नहीं लगते हैं. इसलिए यह लोगों की आंखों में खटकते हैं.
झाइयों के प्रकार
⦁ एपिडर्मल : ये झाइयां धूप के कारण जली हुई सी, भूरे या गहरे भूरे रंग की होती हैं और इनसे छुटकारा पाने में महीनों या साल तक लग सकते हैं.
⦁ डर्मिस : इस प्रकार की झाइयां नीले-भूरे रंग की होती हैं और अगर इनका इलाज ना किया जाए, तो ये स्थायी भी हो सकती हैं.
⦁ मेलास्मा : यह डार्क स्पॉट्स का वो प्रकार है, जो गालों पर बड़े धब्बों जैसा दिखता है. हार्मोनल असंतुलन, हार्मोनल थेरेपी या थायरॉयड हार्मोन के सही से कार्य ना करने के कारण इस तरह के काले धब्बे पैदा होते हैं.
⦁ लेंटईगिनेस : लेंटईगिनेस वो डार्क स्पॉट हैं, जिनका कोई खास पैटर्न नहीं होता है. ये सामान्य तौर पर भूरे रंग के धब्बों के रूप में देखने को मिलते हैं, जो बड़े-बूढ़ों की खाल पर दिखाई देते हैं. ये त्वचा के सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणों के अत्यधिक संपर्क में आने के कारण होते हैं.
⦁ पोस्ट-इंफ्लेमेटरी हाइपरपिगमेंटेशन : इस प्रकार के पिगमेंटेशन में किसी भी कारण से लगने वाली चोट, जलने तथा मुहांसों के कारण त्वचा पर धब्बे पड़ जाते हैं. ज्यादातर यह धब्बे काले रंग के होते हैं और त्वचा पर अलग से नजर आते हैं.
झाइयों के कारण
डॉ. शेट्टी बताते हैं की हमारी त्वचा हमारे शरीर का आईना होती है. शरीर में होने वाली कोई भी गड़बड़ी हमारी त्वचा पर नजर आने लगती है. और यही हमारी सबसे संवेदनशील इंद्री भी है, क्योंकि त्वचा ही सबसे पहले बाहरी घटकों के संपर्क में आती है. चेहरे सहित शरीर के अन्य अंगों की त्वचा पर पड़ने वाली झाइयों के अलग-अलग कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- पराबैंगनी या अल्ट्रावायलेट किरणें : सूर्य की किरणों तथा रोशनी में पाई जाने वाली पराबैंगनी किरणें हाइपरटेंशन का प्रमुख कारण हो सकती है, क्योंकि यह सीधे-सीधे त्वचा में मिलने वाले मेलेनिन को प्रभावित करती हैं. मेलानिन एक ऐसा तत्व है, जो प्राकृतिक सनस्क्रीन की तरह काम करता है और हमारी त्वचा को सूर्य की किरणों से बचाता है.
- बढ़ती उम्र : युवावस्था से प्रौढ़ावस्था की ओर जाते-जाते जैसे व्यक्ति की उम्र बढ़ने लगती है, उसकी त्वचा पर भी असर पड़ने लगता है. विशेष तौर पर 40 साल के बाद की उम्र वाले लोगों में ज्यादातर लेटिंगों सोलारिस की समस्या उत्पन्न होने लगती है. जिनमें उनकी त्वचा पर छोटे-बड़े धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं. ये स्पॉट हल्के भूरे रंग से काले रंग के होते जाते हैं, जो कि लिवर के समान दिखाई देते हैं. इस कारण इन्हें लिवर स्पॉट भी कहा जाता है. उम्र भी झाइयों का बहुत बड़ा कारण है.
- हार्मोन परिवर्तन : हार्मोनल उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप पिगमेंटेशन और ब्लैक स्पॉट उत्पन्न होने लगते हैं. यह उन महिलाओं में भी पाया जा सकता है, जो रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रही हो, गर्भनिरोधक गोलियां लेती हो, या जो हार्मोन थेरेपी लेती हो.
- इत्र : कई इत्र में फोटोसेंसीटाइजर यानी प्रकाश के प्रति संवेदनशील कारक होता है, जो त्वचा को सूर्य के प्रकाश के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है. जब त्वचा पर परफ्यूम लगाकर आप तुरंत धूप में निकलते हैं, तो उससे भी त्वचा पर काले धब्बे पड़ते हैं. इस स्थिति को लॉक डर्मेटाइटिस भी कहा जाता है.
- प्रदूषण : यदि आप बड़े शहरों में रहते हैं और आपके चेहरे पर लाल भूरे रंग के धब्बे हो रहे हैं, तो इसका कारण प्रदूषण हो सकता है. ये स्पॉट इसलिए विकसित होते हैं, क्योंकि त्वचा कोशिकाएं, प्रदूषण की वजह से त्वचा के होने वाले नुकसान को रोकने के लिए अतिरिक्त मेलानिन एंटीऑक्सिडेंट का उत्पादन करती हैं.
झाइयों से बचाव
डॉ. शेट्टी बताते हैं कि झाइयां शुरू होने के शुरुआती दौर में ही यदि अपने खान-पान पर नियंत्रण किया जाए, साथ ही चिकित्सक की सलाह दी जाए, तो झाइयों पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है. हालांकि बहुत से ब्यूटी पार्लर यह डर्मेटोलॉजिस्ट इस बात का दावा करते हैं कि वह झाइयों के लिए विशेष ट्रीटमेंट देते हैं, लेकिन यह ट्रीटमेंट ज्यादातर मामलों में 100 प्रतिशत तक कार्य नहीं होते हैं. इसलिए जरूरी है कि शरीर पर झाइयों के शुरू होते ही तुरंत चिकित्सक से सलाह कर उसके कारणों का पता करें तथा उसका इलाज करें.