बेहतर स्वास्थ्य में अपना योगदान देने के साथ ही डाइटरी फैट यानी भोजन में मिलने वाली वसा, भोजन के रंग, स्वाद, बनावट तथा उसकी गुणवत्ता, सभी को प्रभावित करती है। लेकिन इनका जरूरत से ज्यादा उपयोग हमारे स्वास्थ्य को नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसलिए इस बात की जानकारी बहुत जरूरी है की किस प्रकार के तेल और अन्य वसा युक्त भोज्य पदार्थों का कितनी मात्रा में तथा किस तरह से इस्तेमाल किए जाने पर हमारे शरीर को फायदा पहुंच सकता है।
पणजी गोवा की पोषण विशेषज्ञ रोहिणी डिनीज़ ने ETV भारत सुखीभवा को भोजन में स्वस्थ फैट की जरूरत, उसके गुणों, उसके सेवन और उसे इस्तेमाल के सही तरीकों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
अलग अलग होती है तेल की प्रकृति
बाजार में अलग अलग प्रकार के तेल और घी मिलते है। सब की प्रकृति तथा उनके गुण व अवगुण अलग अलग होते है। एक और जहां कुछ तेल तलने की बजाय बिना गरम हुए या कम गरम होने पर फायदा देते हैं तो कई तेल एक बार तलने में इस्तेमाल होने के बाद यदि दोबारा इस्तेमाल में लाए जाएं तो शरीर पर हानिकारक प्रभाव छोड़ते हैं।
इनमें रिफाइंड ऑइल की दो श्रेणीयां मानी जाती है , मोनो-अनसैचरेटेड (मूफा) और पॉली-अनसैचरेटेड (पूफा)।
रोहिणी डिनीज़ बताती हैं की डीप फ्राइ के लिए मोनो-अनसैचरेटेड (मूफा) तेल का इस्तेमाल बेहतर रहता है। क्योंकि मूफा युक्त तेल ज्यादा गर्म तापमान पर भी टॉक्सिन यानी हानिकारक तत्व उत्पन्न नहीं करते हैं।
वहीं पॉली-अनसैचरेटेड (पूफा)फैट युक्त तेल को यदि एक से ज्यादा बार तेज गर्म किया जाए तो इनमें हानिकारक तत्व उत्पन्न होना शुरू हो जाते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि पूफा युक्त तेल का इस्तेमाल ऐसे भोजन में ही किया जाय जिसे पकाने में कम आंच का इस्तेमाल किया जाता हो जैसे स्टीर फ्राइ, शैलो फ्राई तथा भूना हुआ भोजन। इसके अलावा सलाद की ड्रेसिंग में भी इसका उपयोग बेहतर रहता है।
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अलग अलग होते है विभिन्न तेलो के स्वाद और उनकी गंध
रोहिणी डिनीज़ बताती हैं की तेल का इस्तेमाल हमेशा स्वास्थ को ही नही बल्कि ही नहीं खाने के स्वाद को भी प्रभावित करता है। क्योंकि कुछ विशेष प्रकार के फैट तथा तेल अपने आप में प्राकृतिक तीव्र गंध तथा स्वाद दिए होते हैं। इसलिए अलग अलग प्रकार का भोजन बनाने में अलग अलग प्रकार के तेलों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। उदाहरण के लिए ...
- एक्स्ट्रा वर्जिन ओलिव ऑयल का इस्तेमाल सलाद की ड्रेसिंग, सूप, विशेष प्रकार की सब्जी, ब्रेड पर लगाने में तथा म्योनीज बनाने में किया जाता है।
- कोकोनट यानी नारियल के तेल का इस्तेमाल मछली को शैलो फ्राई करने तथा मालाबारी भोजन में किया जाता है।
- सरसों के तेल का उपयोग अचार बनाने तथा विशेष तौर पर बंगाली खाने में किया जाता है।
- तिल के तेल का उपयोग सूखी चटनी का पाउडर बनाने में किया जाता है।
रोहिणी बताती है की हम लोग सबसे ज्यादा फैट्स घी और खाने के तेल से लेते हैं जो की वसा के प्रत्यक्ष स्त्रोत माने जाते हैं , लेकिन हमारे रोजमर्रा के आहार जैसे आटा, दाल, दूध, दूध से बने उत्पाद, डेयरी उत्पाद, मीट, मछली, अंडे, सूखे मेवो सहित कुछ विशेष प्रकार के बीजों में भी प्राकृतिक तेल पाया जाता है। दरअसल भोजन में इन अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद तेलों के चलते हमें आमतौर पर पता भी नहीं चल पाता है कि हम प्रतिदिन कितना तेल ग्रहण कर रहे हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि हम आमतौर पर जितनी हमारे शरीर को जरूरत है उससे काफी ज्यादा मात्रा में तेल का सेवन कर लेते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।
शरीर में सिर्फ आवश्यक मात्रा में तेल पहुंचे इसके लिए बहुत जरूरी है की अपने भोजन के बारे में लोगों को सही जानकारी हो। अपने नियमित भोजन में वसा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कुछ विशेष तरीकों को अपनाया जा सकता है जो इस प्रकार है।
- सलाद के लिए हमेशा इस प्रकार की ड्रेसिंग का उपयोग करना चाहिए जिसमें सब्जियों के तेल का इस्तेमाल किए गया हो ना कि मेंयोनीज़ का । यदि घर में सलाद की ड्रेसिंग तैयार की जा रही है जो भी मायोनिज के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
- सब्जियों में ऊपर से भूनकर पीसा गया मूंगफली का पाउडर, तिल का पाउडर तथा अलसी का का पाउडर डाला जा सकता है। इस प्रकार के मेवें तथा बीज प्रोटीन के उच्च स्रोत होते हैं तथा इनमें मुफा, पुफा, ओमेगा-3, विटामिन-बी, मिनरल्स, फाइबर तथा एंटीऑक्सीडेंट प्लांट केमिकल भरपूर मात्रा में मिलते है।
- लाल मास, आंतरिक अंगों के मांस तथा चिकन की त्वचा और अन्य पक्षियों में मोनो सचूरेटेड फैट तथा कोलेस्ट्रॉल भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए लाल मास का कम से कम सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही चिकन बनाने से पहले उसकी त्वचा को पूरी तरह से हटा देना चाहिए।
- बाजार में मिलने वाले “रेडी टू इट” मिनस्ड मीट के उपयोग से भी बचना चाहिए क्योंकि इसमें काफी ज्यादा मात्रा में अप्रत्यक्ष फैट हो सकता है। आप बाजार से पतला कटा हुआ मीट खरीद सकते हैं और घर में ही उसे मींसड यानी पीस सकते हैं
- ना सिर्फ दूध बल्कि दूध से बनने वाला पनीर, प्रोसेस चीज, चीज स्प्रेड तथा आइसक्रीम में भरपूर मात्रा में सेचुरेटेड फैट तथा कोलेस्ट्रॉल मिलते हैं। इसलिए यदि संभव हो तो बाजार से साधारण दूध की बजाय टोंड मिल्क यानी कम फैट वाला दूध खरीद कर उसका दही पनीर और वाइट सॉस बनाई जा सकती है।
- नारियल तथा नारियल का तेल से बना भोजन सेहत के लिहाज से आदर्श माना जा सकता हैं बशर्ते उनमें अन्य प्रकार के सेचुरेटेड फैट का उपयोग कम से कम मात्रा में किया गया हो ।
- बेकिंग के लिए घी,मक्खन मर्ग्रीन की बजाए सब्जियों के तेल का उपयोग किया जाना बेहतर होता है।
- बेकिंग में वसा की पूर्ति के लिए भोजन में मक्खन और मर्ग्रीन की बजाय कम वसा वाला दही, सेब की चटनी, खजूर का पेस्ट , कसी हुई गाजर या अंडे की सफेदी भी इस्तेमाल में लाई जा सकती है। लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि इन पदार्थों के उपयोग से खाने के स्वाद और उनकी बनावट में थोड़ा अंतर आ सकता है। घर पर ही सेब की चटनी बनाने के लिए सेव को अच्छे से धो कर, छील कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेना चाहिए। पानी में नींबू, दालचीनी तथा थोड़ी मात्रा में जायफल डालकर सेब के मुलायम होने तक उबालना चाहिए। यदि आप चाहे तो उसमें चीनी भी डाल सकते हैं। उबले हुए सेब को कुचल कर या फिर मिक्सी की मदद से पीस लें। इस पेस्ट का इस्तेमाल केक में बसा या तेल के स्थान पर भी किया जा सकता है
इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए rohinidiniz@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।