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कोविड-19 की नई लहर कैसे कर रही है बच्चों को प्रभावित?

कोविड-19 की नई लहर देश में  ना सिर्फ वयस्कों बल्कि बच्चों के लिए भी काफी भारी रही है। हालांकि वर्तमान समय में पहले के मुकाबले कोरोना संक्रमण की गंभीरता में कमी आई है ,लेकिन बड़ी संख्या में बच्चों द्वारा अनजाने में संक्रमण फैलने का जरिया बनने के मामलों में भी काफी बढ़ोतरी हुई हैं।

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कोविड-19 कर रही है बच्चों को प्रभावित
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Published : May 13, 2021, 3:08 PM IST

Updated : May 13, 2021, 3:35 PM IST

कोविड-19 की दूसरी लहर ने यकीनन भारत में संत्रास का माहौल बना दिया है। नई लहर के चलते लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामले खतरे की घंटी बजा रहे हैं। चिंतनीय बात यह है कि इसका असर सिर्फ वयस्कों पर ही नहीं बल्कि बच्चों पर भी काफी ज्यादा नजर आ रहा है। आंकड़ों की मानें तो पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने वाले बच्चों की संख्या में काफी ज्यादा इजाफा हुआ है। कोरोना की नई लहर के चलते बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने नैनोटेक्नोलॉजिस्ट तथा रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल हैदराबाद के चिकित्सक डॉक्टर विजयानंद जमालपुरी से बात की

पहली लहर और दूसरी लहर के दौरान परिस्थितयों में अंतर

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के पहले दौर में माना जा रहा था कि बच्चों पर इस संक्रमण का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। जिन बच्चों में संक्रमण की पुष्टि हो भी रही थी उन्हे परिवार के किसी संक्रमित सदस्य से ही संक्रमण पहुँचा था,लेकिन उसका प्रभाव गंभीर नही था। लेकिन ऐसे मामले बहुत ही कम थे। लेकिन वर्तमान समय में बड़ी संख्या में नवजात से लेकर हर उम्र के बच्चों में कोविड-19 के लक्षण नजर आ रहे हैं। यहाँ चिंता की बात यह है की इस संक्रमण का प्रभाव उनके शरीर पर उसी प्रकार से हो रहा है जिस तरह से व्यस्को पर होता है । लेकिन यहाँ राहत की बात यह है की बच्चों में व्यस्को के मुकाबले संक्रमण के जानलेवा होने संभावना कम है।

आंकड़ों की माने तो इस नई लहर का असर आठ साल से कम उम्र के बच्चों से लेकर नवजातो पर ज्यादा नजर आ रहा है। नवजातो में यह संक्रमण माता के संक्रमित होने की अवस्था में फैल रहा है, क्योंकि नवजात बच्चा अधिकांश समय अपनी माता के समीप रहता है। हालांकि यहां यह जानना भी जरूरी है की कोरोना संक्रमण माता के बच्चे को दूध पिलाने से नहीं फैलता है । लेकिन कुछ मामलों में देखा गया है कि यह संक्रमण प्लेसेंटा के माध्यम से माता से उसके गर्भस्थ शिशु या नवजात बच्चे तक पहुंच जाता है।

बच्चों में नजर आने वाले आम लक्षण

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि वर्तमान समय में कोरोना के जो लक्षण बच्चों में सबसे ज्यादा नजर आ रहे हैं वह है बुखार, खांसी, गला खराब होना, सर्दी लगना, साथ ही डायरिया या उल्टी आने जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण। वे बताते हैं कि ऐसे बच्चे जो कि पेट खराब होने, डायरिया या उल्टी आने जैसी शिकायत लेकर उनके पास आते हैं उनमें से बड़ी संख्या में जांच के बाद कोरोना संक्रमण की पुष्टि हो रही है।

गौरतलब है कि आमतौर पर डायरिया या पेट के खराब होने जैसी समस्याएं बारिश के मौसम में नजर आती हैं, लेकिन वर्तमान समय में गर्मियों के मौसम में भी बच्चों में बड़ी संख्या में यह समस्या नजर आ रही है। जिसका एक कारण कोरोना संक्रमण भी माना जा रहा है।

वही 10 वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चों में नजर आने वाले कोरोना संक्रमण के मुख्य लक्षणों में सिरदर्द, बदनदर्द, कमजोरी, स्वाद तथा सूंघने की क्षमता में कमी तथा भूख ना लगने जैसे लक्षण शामिल हैं।

संक्रमण की गंभीरता के मानक

आमतौर पर बच्चों में कोरोना संक्रमण के गंभीर लक्षण कम नजर आते हैं। साथ ही इस संक्रमण के कारण बच्चों की अवस्था गंभीर होने की घटनाएं भी काफी कम है। लेकिन ऐसी परिस्थितियां सामने न आयें इसके लिए जरूरी है की बच्चों में लक्षणों को लेकर सतर्क रहा जाय तथा उनकी अनदेखी न की जाए। जिससे जरूरत पड़ने पर बच्चे को जरूरी इलाज के लिए समय से अस्पताल पहुंचाया जा सके। बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों के आधार पर रोग की गंभीरता को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है जो इस प्रकार है।

  • हल्का संक्रमण : बच्चों में नजर आने वाली बुखार, सर्दी-जुखाम, गला खराब होने, उल्टी आने तथा डायरिया जैसी समस्याओं को हल्के संक्रमण के लक्षणों की श्रेणी में रखा जाता है। इन लक्षणों के चलते आम तौर पर बच्चों के शरीर पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है और ना ही उन्हें सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • मध्यम संक्रमण : कोविड-19 के हल्के संक्रमण के लक्षणों के साथ यदि बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगे या फिर उसकी सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाए तो यह मध्यम श्रेणी का संक्रमण कहलाता हैं।
  • गंभीर या उग्र संक्रमण : सामान्य लक्षण नजर आने के उपरांत यदि यदि बच्चे में निमोनिया के लक्षण नजर आने लगे और उसके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य के मुकाबले कम होने लगे तो उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है । इस अवस्था में फेफड़ों में संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसी अवस्था में आमतौर पर बच्चे कमजोरी, थकान, आलस या हर समय नींद आने जैसी अनुभूति महसूस करने लगते हैं।

इसके अलावा यदि संक्रमण के प्रभाव के चलते बच्चे के शरीर के सभी अंगों पर असर नजर आने लगे या उनके कार्यों पर असर पड़ने लगे तो इसका तात्पर्य है की बच्चे की अवस्था अतिगंभीर है। ऐसे में उसके जरूरी अंगों के कार्यों को सुचारु रखने तथा शरीर में रक्त के दबाव को नियंत्रित रखने के लिए उसे वेंटिलेशन सपोर्ट तथा डायलिसिस जैसी चिकित्सीय यंत्रों द्वारा दी जाने वाली मदद की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि बच्चों में संक्रमण की वजह से उत्पन्न यह अवस्था बहुत ही कम देखने में आती है

बड़ों के मुकाबले कम हैं अस्पताल में भरती होने वाले बच्चों की संख्या

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि कोरोना की पहली लहर के मुकाबले इस बार अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लेकिन यदि अस्पताल में दाखिल होने वाले वयस्कों की अपेक्षा बच्चों की संख्या अभी भी कम है। यहाँ यह जानना भी जरूरी है कि अधिकांश मामलों में बच्चें व्यस्कों से जल्दी बेहतर और स्वस्थ हो जाते हैं। इसके साथ ही आमतौर पर बच्चों को आईसीयू में जरूरत बहुत कम नजर आती है।

कोविड-19 की दूसरी लहर ने यकीनन भारत में संत्रास का माहौल बना दिया है। नई लहर के चलते लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामले खतरे की घंटी बजा रहे हैं। चिंतनीय बात यह है कि इसका असर सिर्फ वयस्कों पर ही नहीं बल्कि बच्चों पर भी काफी ज्यादा नजर आ रहा है। आंकड़ों की मानें तो पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने वाले बच्चों की संख्या में काफी ज्यादा इजाफा हुआ है। कोरोना की नई लहर के चलते बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर ईटीवी भारत सुखीभवा की टीम ने नैनोटेक्नोलॉजिस्ट तथा रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल हैदराबाद के चिकित्सक डॉक्टर विजयानंद जमालपुरी से बात की

पहली लहर और दूसरी लहर के दौरान परिस्थितयों में अंतर

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के पहले दौर में माना जा रहा था कि बच्चों पर इस संक्रमण का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। जिन बच्चों में संक्रमण की पुष्टि हो भी रही थी उन्हे परिवार के किसी संक्रमित सदस्य से ही संक्रमण पहुँचा था,लेकिन उसका प्रभाव गंभीर नही था। लेकिन ऐसे मामले बहुत ही कम थे। लेकिन वर्तमान समय में बड़ी संख्या में नवजात से लेकर हर उम्र के बच्चों में कोविड-19 के लक्षण नजर आ रहे हैं। यहाँ चिंता की बात यह है की इस संक्रमण का प्रभाव उनके शरीर पर उसी प्रकार से हो रहा है जिस तरह से व्यस्को पर होता है । लेकिन यहाँ राहत की बात यह है की बच्चों में व्यस्को के मुकाबले संक्रमण के जानलेवा होने संभावना कम है।

आंकड़ों की माने तो इस नई लहर का असर आठ साल से कम उम्र के बच्चों से लेकर नवजातो पर ज्यादा नजर आ रहा है। नवजातो में यह संक्रमण माता के संक्रमित होने की अवस्था में फैल रहा है, क्योंकि नवजात बच्चा अधिकांश समय अपनी माता के समीप रहता है। हालांकि यहां यह जानना भी जरूरी है की कोरोना संक्रमण माता के बच्चे को दूध पिलाने से नहीं फैलता है । लेकिन कुछ मामलों में देखा गया है कि यह संक्रमण प्लेसेंटा के माध्यम से माता से उसके गर्भस्थ शिशु या नवजात बच्चे तक पहुंच जाता है।

बच्चों में नजर आने वाले आम लक्षण

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि वर्तमान समय में कोरोना के जो लक्षण बच्चों में सबसे ज्यादा नजर आ रहे हैं वह है बुखार, खांसी, गला खराब होना, सर्दी लगना, साथ ही डायरिया या उल्टी आने जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण। वे बताते हैं कि ऐसे बच्चे जो कि पेट खराब होने, डायरिया या उल्टी आने जैसी शिकायत लेकर उनके पास आते हैं उनमें से बड़ी संख्या में जांच के बाद कोरोना संक्रमण की पुष्टि हो रही है।

गौरतलब है कि आमतौर पर डायरिया या पेट के खराब होने जैसी समस्याएं बारिश के मौसम में नजर आती हैं, लेकिन वर्तमान समय में गर्मियों के मौसम में भी बच्चों में बड़ी संख्या में यह समस्या नजर आ रही है। जिसका एक कारण कोरोना संक्रमण भी माना जा रहा है।

वही 10 वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चों में नजर आने वाले कोरोना संक्रमण के मुख्य लक्षणों में सिरदर्द, बदनदर्द, कमजोरी, स्वाद तथा सूंघने की क्षमता में कमी तथा भूख ना लगने जैसे लक्षण शामिल हैं।

संक्रमण की गंभीरता के मानक

आमतौर पर बच्चों में कोरोना संक्रमण के गंभीर लक्षण कम नजर आते हैं। साथ ही इस संक्रमण के कारण बच्चों की अवस्था गंभीर होने की घटनाएं भी काफी कम है। लेकिन ऐसी परिस्थितियां सामने न आयें इसके लिए जरूरी है की बच्चों में लक्षणों को लेकर सतर्क रहा जाय तथा उनकी अनदेखी न की जाए। जिससे जरूरत पड़ने पर बच्चे को जरूरी इलाज के लिए समय से अस्पताल पहुंचाया जा सके। बच्चों में नजर आने वाले लक्षणों के आधार पर रोग की गंभीरता को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है जो इस प्रकार है।

  • हल्का संक्रमण : बच्चों में नजर आने वाली बुखार, सर्दी-जुखाम, गला खराब होने, उल्टी आने तथा डायरिया जैसी समस्याओं को हल्के संक्रमण के लक्षणों की श्रेणी में रखा जाता है। इन लक्षणों के चलते आम तौर पर बच्चों के शरीर पर ज्यादा असर नहीं पड़ता है और ना ही उन्हें सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • मध्यम संक्रमण : कोविड-19 के हल्के संक्रमण के लक्षणों के साथ यदि बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने लगे या फिर उसकी सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाए तो यह मध्यम श्रेणी का संक्रमण कहलाता हैं।
  • गंभीर या उग्र संक्रमण : सामान्य लक्षण नजर आने के उपरांत यदि यदि बच्चे में निमोनिया के लक्षण नजर आने लगे और उसके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य के मुकाबले कम होने लगे तो उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है । इस अवस्था में फेफड़ों में संक्रमण फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसी अवस्था में आमतौर पर बच्चे कमजोरी, थकान, आलस या हर समय नींद आने जैसी अनुभूति महसूस करने लगते हैं।

इसके अलावा यदि संक्रमण के प्रभाव के चलते बच्चे के शरीर के सभी अंगों पर असर नजर आने लगे या उनके कार्यों पर असर पड़ने लगे तो इसका तात्पर्य है की बच्चे की अवस्था अतिगंभीर है। ऐसे में उसके जरूरी अंगों के कार्यों को सुचारु रखने तथा शरीर में रक्त के दबाव को नियंत्रित रखने के लिए उसे वेंटिलेशन सपोर्ट तथा डायलिसिस जैसी चिकित्सीय यंत्रों द्वारा दी जाने वाली मदद की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि बच्चों में संक्रमण की वजह से उत्पन्न यह अवस्था बहुत ही कम देखने में आती है

बड़ों के मुकाबले कम हैं अस्पताल में भरती होने वाले बच्चों की संख्या

डॉक्टर विजयानंद बताते हैं कि कोरोना की पहली लहर के मुकाबले इस बार अस्पताल में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लेकिन यदि अस्पताल में दाखिल होने वाले वयस्कों की अपेक्षा बच्चों की संख्या अभी भी कम है। यहाँ यह जानना भी जरूरी है कि अधिकांश मामलों में बच्चें व्यस्कों से जल्दी बेहतर और स्वस्थ हो जाते हैं। इसके साथ ही आमतौर पर बच्चों को आईसीयू में जरूरत बहुत कम नजर आती है।

Last Updated : May 13, 2021, 3:35 PM IST
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