क्या आप अपने बच्चे के बढ़ते वजन और लगातार आक्रामक व चिड़चिड़े होते स्वभाव को लेकर चिंतित है, तो आप अकेले नहीं हैं. कोरोना काल में रहने के लिए मजबूर नव युवा इस समय बहुत अधिक मानसिक दबाव से गुजर रहें हैं. इस परिस्थिति में अवसाद के चलते जहां एक ओर नवयुवाओं की दिनचर्या और उनके व्यवहार पर कई नकारात्मक असर देखने को मिल रहें हैं. वहीं उनके शारीरिक स्वास्थ्य विशेषकर लड़कियों के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी खासा प्रभाव पड़ रहा है. वजन बढ़ना, हार्मोन में असंतुलन, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना और लड़कियों में मासिक चक्र संबंधी परेशानियां ऐसी है, जो इस दौर में बच्चों में ज्यादा नजर आ रही है.
सुस्त दिनचर्या और ऑनलाइन कक्षाएं
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. लतिका जोशी बताती हैं कि कोरोना के दौर में बच्चे घर से बाहर नहीं जा रहें हैं. बाहरी खेलकूद पर भी रोक है और सबसे चिंतनीय बात यह है की अपना अधिकांश समय कंप्यूटर या मोबाइल के सामने बिता रहे हैं. फिर चाहे वह पढ़ाई के लिए हो या फिर गेम्स खेलने के लिए. जिससे उनका अधिकांश समय बैठ कर या लेट कर बीत रहा है. बिना किसी शारीरिक व्यायाम के यह सुस्त और आलस भरी जीवन शैली उनके लिए खतरे की घंटी बन रही है. वहीं नियमित दिनचर्या न होने के कारण वे रात-रात भर जागते हैं और देर से उठते हैं. कभी भी कुछ भी खाते हैं.
डॉ. जोशी बताती हैं कि कोरोना के बाद से उनके पास ऐसे बहुत से केस आ रहें हैं, जहां बच्चों में कोलेस्ट्रॉल बार्डर लाइन पर आ रहा है. यही नहीं मोटापा तथा उनसे पैदा होने वाली अनेक समस्याएं भी इन बच्चों में नजर आ रहीं हैं. ज्यादातर समय मोबाईल या कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठने के चलते उन्हें दृष्टि दोष के साथ-साथ लगातार सर दर्द और आंखों से पानी आने की भी समस्या हो रही है. वहीं लड़कियों में मासिक चक्र में अनियमितता तथा उनके हार्मोन संबंधी परेशानियां भी ज्यादा नजर आने लगी है.
साइको थियेमेटिक यानि मनोवैज्ञानिक समस्याएं
डॉ. जोशी बताती हैं कि लॉकडाउन लागू होने के दो महीने बाद से ही उनके पास ऐसे केस आने शुरू हो गए थे, जहां बच्चों में अवसाद के लक्षण नजर आ रहे थे. लेकिन पिछले कुछ समय में ऐसे केसेज की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है, जो चिंतनीय है. दरअसल यह टीनएज ऐसी उम्र होती है, जहां बच्चे अपने दोस्तों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहते हैं. उस पर पहले नियमित स्कूल के चलते वह पूरा दिन व्यस्त रहते थे. लगातार शारीरिक और मानसिक सक्रियता के चलते उनका शरीर तथा दिमाग दोनों की कसरत होती रहती थी. साथ ही वह एक दिनचर्या में बंधे रहते थे, जो उन्हें अनुशासन में रखती थी. लेकिन फिलहाल इन सभी गतिविधियों का अभाव और उस पर कोरोना के चलते अनिश्चित भविष्य का डर, उन्हें शारीरिक और मानसिक बीमारियों का शिकार बना रहा है.
संयम है जरूरी
डॉ. जोशी कहती हैं कि ऐसे समय में बहुत जरूरी है कि माता-पिता कोशिश करें की वह बच्चों के साथ थोड़ा संयम बरते और प्यार से उन्हें ऐसी गतिविधियों में शामिल करने की कोशिश करें, जहां वह आनंद के साथ शारीरिक तौर पर सक्रिय रह सकें. उनके खान पान पर विशेष ध्यान रखें तथा उनके मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करने की कोशिश करें. जैसे पढ़ाई के अलावा खेल तथा अन्य ऑनलाइन गतिविधियों के लिए समय बांध दे. यह छोटी-छोटी कोशिशें बच्चों के व्यवहार के साथ ही उनके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित होगी.