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चहेते सितारों की मौत का कई लोगों पर हो सकता है गहरा मानसिक प्रभाव - चहेते सितारों की मृत्यु का प्रशंसकों पर असर

अपने चहेते सितारों या चर्चित हस्तियों की मृत्यु उनके प्रशंसकों को हिलाकर रख देती है. उनका जाना उनके प्रशंसकों के लिए ऐसा ही होता है, जैसे उनके किसी अपने सगे-संबंधी का जाना. ऐसी हस्तियों की मृत्यु का दर्द भी उनके दिलों में लंबे समय तक बना रहता है. इसके चलते कई बार प्रशंसक अवसाद या तनाव जैसी मानसिक समस्या के शिकार बन जाते हैं. कई बार तो कई प्रशंसक अपने किसी चहेते सितारे के निधन के बाद खुद की जान देने की भी कोशिश तक करते हैं.

Effect of death of stars
सितारों की मौत का प्रभाव
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Published : Oct 4, 2020, 9:35 AM IST

पिछले कुछ महीनों में कुछ फिल्मी सितारों की मृत्यु ने उनके प्रशंसकों को काफी दुखी किया है. सुशांत सिंह राजपूत, इरफान खान व ऋषि कपूर सरीखे अभिनेताओं की मृत्यु से उनके प्रशंसकों को काफी ठेस पहुंची है. वहीं मशहूर गायक व अभिनेता पी. बालासुब्रमण्यम स्वामी की कोरोना के चलते हुई मृत्यु ने भी उनके प्रशंसकों को काफी दुख पहुंचाया है. सोशल मीडिया पर शोक संदेशों की जैसे बाढ़ आ गई. ऐसा लगा जैसे यह उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि उनके प्रशंसकों के लिए भी दुख की घड़ी है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि अपने चहेते सितारों या पसंदीदा लोगों के जाने के बाद उनके प्रशंसक अंदर तक टूट जाते हैं. मानव व्यवहार की इस प्रवृत्ति के बारे में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने अपनी विशेषज्ञ व मनोचिकित्सक सलाहकार डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

भावनात्मक जुड़ाव

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि जब हम अपने चहेते सितारों को पर्दे पर अलग-अलग किरदार निभाते देखते हैं, तो हम उनके साथ भावनात्मक संबंध बना लेते हैं. यह संबंध बहुत कुछ वैसा ही होता है, जैसा हमारे किसी अपने के साथ. उनकी फिल्में देखते हुए हम उनकी हंसी में हंसते हैं और उनके दुख में परेशान होते हैं. यह भाव सिर्फ अभिनेताओं के लिए ही नहीं होता है, बल्कि अपने पसंदीदा लेखक, गायक या चर्चित नेताओं के साथ भी उनके प्रशंसक ऐसा ही भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं. इस जुड़ाव को ‘पैरा सोशल कनेक्ट’ कहा जाता है. कई बार यह संबंध इतना मजबूत होता है कि पर्दे के अलावा भी जब उनके सामान्य जीवन से जुड़ी कोई अच्छी खबर प्रशंसकों को सुनने में आती है, तो वह बहुत खुश हो जाते हैं. वहीं उनसे जुड़ी कोई बुरी खबर प्रशंसकों को दुखी कर जाती है. ऐसे में यदि किसी के चहेते सितारे की मृत्यु हो जाती है, तो वह प्रशंसक लंबे समय तक शोक मनाते रहते हैं.

भावनात्मक जुड़ाव के कारण

अभिनेताओं की बात करें तो पर्दे पर निभाए जाने वाले किरदार कहीं न कहीं आम जन की जिंदगी पर आधारित होते हैं. जब हम अपने पसंदीदा सितारे को वह जीवन जीते हुए देखते हैं, जो कि आमतौर पर अपनी जिंदगी में जीते हैं, तो कहीं न कहीं हम स्वयं को उससे जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं. यह मानव व्यवहार की प्रवृत्ति है, जो भी घटना या व्यक्ति उसे अपने जीवन या परिस्थिति से जुड़ी हुई नजर आती है, तो वह उसे पसंद करने लगता है. यहां तक कि कई बार अपने जीवन से जुड़ी हुई कहानियों में नकारात्मक किरदार निभाने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों के प्रति वह घृणा और नफरत का भाव भी रखने लगते हैं.

यह आज की कहानी नहीं है, जब से फिल्में बनती आई हैं, कलाकारों को लेकर उनके प्रशंसकों में ऐसा ही भाव देखने में आता है. वहीं अपने चहेते गायकों की आवाज उनके प्रशंसकों को एक अलग ही सपनों की दुनिया में ले जाती है. लड़कियां अपने पसंदीदा पुरुष हस्तियों के प्रति इतनी आकर्षित रहती हैं कि कई बार वह उनको अपने सपनों में जीवन साथी के रूप में देखने लगती हैं. कुछ यही हाल युवा तथा व्यस्क पुरुषों के मन में प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को लेकर भी कई बार देखने को मिलता है. यही नहीं प्रसिद्धि के शिखर पर स्थापित कोई भी व्यक्ति अपनी एक अलग ही फैन फॉलोइंग रखता है. चाहे वह संगीतकार हो, गायक हो या कोई बड़ा नेता. उनके निधन पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर संदेश देकर या फिर कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लाखों फैंस रोते और दुख जताते नजर आते हैं.

मानसिक समस्या उत्पन्न कर सकता है चहेते सितारे का जाना

पिछले दिनों सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कई ऐसे मामले सामने आए जहां ना सिर्फ लड़कियों, बल्कि पुरुष प्रशंसकों ने खुद की जान देने की कोशिश की. यह पहली बार नहीं हुआ. सुपरस्टार राजेश खन्ना की मृत्यु के बाद भी कई प्रशंसकों ने अपनी जान देने की कोशिश की थी. यही नहीं कई प्रशंसक अवसाद में आ गए थे. प्रसिद्ध राजनेता जयललिता की मृत्यु के बाद भी उनके प्रशंसकों में कुछ ऐसे ही भाव नजर आए थे.

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि हम अपने पसंदीदा कलाकारों या हस्तियों को अपना आइडियल मान लेते हैं और कहीं न कहीं यह मानने लगते हैं कि उनके साथ कोई भी बुरी घटना नहीं हो सकती. ऐसे में उनकी मृत्यु उनके प्रशंसकों के मन में निराशा की भावना उत्पन्न करती है. उदाहरण के तौर पर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कई लोगों के मन में यह विचार आ रहा था कि इतना सफल, सुंदर और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व ऐसा कदम उठा सकता है, तो उनके जीवन में तो कुछ भी नहीं है.

हाल ही में कोरोना वायरस के चलते अपनी जान गंवाने वाले प्रसिद्ध गायक व अभिनेता पी. बालासुब्रमण्यम स्वामी की मृत्यु के बाद लोगों के मन में यह भावना आ रही है कि जब इतने प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति नहीं बच पाए, तो उन जैसे सामान्य व्यक्ति के जीवन का तो कोई भी भरोसा नहीं है. कैंसर के चलते अपनी जान गंवा बैठे ऋषि कपूर तथा इरफान खान की मृत्यु ने भी लोगों के मन में कैंसर को लेकर एक अलग ही डर पैदा कर दिया है. इस डर को बढ़ाने में काफी बड़ा हाथ मीडिया तथा सोशल मीडिया का भी है. उदाहरण के तौर पर श्रीदेवी, इरफान खान या अब सुशांत सिंह राजपूत की प्राकृतिक और अप्राकृतिक मृत्यु के कारणों और उनसे जुड़ी परिस्थितियों को लेकर मीडिया में इस प्रकार बढ़ा-चढ़ाकर खबरें प्रसारित की गई कि लोगों के व्यवहार और उनकी सोच पर काफी नकारात्मक असर पड़ा.

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि ऐसे में जब जीवन में नकारात्मक भावनाएं बढ़ने लगती हैं, तो लोगों में अवसाद, तनाव, बेचैनी और कई बार स्वयं की जान देने जैसी प्रवृत्ति भी जागृत होने लगती है, जिसका असर उनके जीवन पर लंबे समय तक बना रह सकता है.

पिछले कुछ महीनों में कुछ फिल्मी सितारों की मृत्यु ने उनके प्रशंसकों को काफी दुखी किया है. सुशांत सिंह राजपूत, इरफान खान व ऋषि कपूर सरीखे अभिनेताओं की मृत्यु से उनके प्रशंसकों को काफी ठेस पहुंची है. वहीं मशहूर गायक व अभिनेता पी. बालासुब्रमण्यम स्वामी की कोरोना के चलते हुई मृत्यु ने भी उनके प्रशंसकों को काफी दुख पहुंचाया है. सोशल मीडिया पर शोक संदेशों की जैसे बाढ़ आ गई. ऐसा लगा जैसे यह उनके परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि उनके प्रशंसकों के लिए भी दुख की घड़ी है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि अपने चहेते सितारों या पसंदीदा लोगों के जाने के बाद उनके प्रशंसक अंदर तक टूट जाते हैं. मानव व्यवहार की इस प्रवृत्ति के बारे में जानने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने अपनी विशेषज्ञ व मनोचिकित्सक सलाहकार डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.

भावनात्मक जुड़ाव

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि जब हम अपने चहेते सितारों को पर्दे पर अलग-अलग किरदार निभाते देखते हैं, तो हम उनके साथ भावनात्मक संबंध बना लेते हैं. यह संबंध बहुत कुछ वैसा ही होता है, जैसा हमारे किसी अपने के साथ. उनकी फिल्में देखते हुए हम उनकी हंसी में हंसते हैं और उनके दुख में परेशान होते हैं. यह भाव सिर्फ अभिनेताओं के लिए ही नहीं होता है, बल्कि अपने पसंदीदा लेखक, गायक या चर्चित नेताओं के साथ भी उनके प्रशंसक ऐसा ही भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं. इस जुड़ाव को ‘पैरा सोशल कनेक्ट’ कहा जाता है. कई बार यह संबंध इतना मजबूत होता है कि पर्दे के अलावा भी जब उनके सामान्य जीवन से जुड़ी कोई अच्छी खबर प्रशंसकों को सुनने में आती है, तो वह बहुत खुश हो जाते हैं. वहीं उनसे जुड़ी कोई बुरी खबर प्रशंसकों को दुखी कर जाती है. ऐसे में यदि किसी के चहेते सितारे की मृत्यु हो जाती है, तो वह प्रशंसक लंबे समय तक शोक मनाते रहते हैं.

भावनात्मक जुड़ाव के कारण

अभिनेताओं की बात करें तो पर्दे पर निभाए जाने वाले किरदार कहीं न कहीं आम जन की जिंदगी पर आधारित होते हैं. जब हम अपने पसंदीदा सितारे को वह जीवन जीते हुए देखते हैं, जो कि आमतौर पर अपनी जिंदगी में जीते हैं, तो कहीं न कहीं हम स्वयं को उससे जुड़ा हुआ महसूस करने लगते हैं. यह मानव व्यवहार की प्रवृत्ति है, जो भी घटना या व्यक्ति उसे अपने जीवन या परिस्थिति से जुड़ी हुई नजर आती है, तो वह उसे पसंद करने लगता है. यहां तक कि कई बार अपने जीवन से जुड़ी हुई कहानियों में नकारात्मक किरदार निभाने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियों के प्रति वह घृणा और नफरत का भाव भी रखने लगते हैं.

यह आज की कहानी नहीं है, जब से फिल्में बनती आई हैं, कलाकारों को लेकर उनके प्रशंसकों में ऐसा ही भाव देखने में आता है. वहीं अपने चहेते गायकों की आवाज उनके प्रशंसकों को एक अलग ही सपनों की दुनिया में ले जाती है. लड़कियां अपने पसंदीदा पुरुष हस्तियों के प्रति इतनी आकर्षित रहती हैं कि कई बार वह उनको अपने सपनों में जीवन साथी के रूप में देखने लगती हैं. कुछ यही हाल युवा तथा व्यस्क पुरुषों के मन में प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को लेकर भी कई बार देखने को मिलता है. यही नहीं प्रसिद्धि के शिखर पर स्थापित कोई भी व्यक्ति अपनी एक अलग ही फैन फॉलोइंग रखता है. चाहे वह संगीतकार हो, गायक हो या कोई बड़ा नेता. उनके निधन पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर संदेश देकर या फिर कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लाखों फैंस रोते और दुख जताते नजर आते हैं.

मानसिक समस्या उत्पन्न कर सकता है चहेते सितारे का जाना

पिछले दिनों सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कई ऐसे मामले सामने आए जहां ना सिर्फ लड़कियों, बल्कि पुरुष प्रशंसकों ने खुद की जान देने की कोशिश की. यह पहली बार नहीं हुआ. सुपरस्टार राजेश खन्ना की मृत्यु के बाद भी कई प्रशंसकों ने अपनी जान देने की कोशिश की थी. यही नहीं कई प्रशंसक अवसाद में आ गए थे. प्रसिद्ध राजनेता जयललिता की मृत्यु के बाद भी उनके प्रशंसकों में कुछ ऐसे ही भाव नजर आए थे.

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि हम अपने पसंदीदा कलाकारों या हस्तियों को अपना आइडियल मान लेते हैं और कहीं न कहीं यह मानने लगते हैं कि उनके साथ कोई भी बुरी घटना नहीं हो सकती. ऐसे में उनकी मृत्यु उनके प्रशंसकों के मन में निराशा की भावना उत्पन्न करती है. उदाहरण के तौर पर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कई लोगों के मन में यह विचार आ रहा था कि इतना सफल, सुंदर और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व ऐसा कदम उठा सकता है, तो उनके जीवन में तो कुछ भी नहीं है.

हाल ही में कोरोना वायरस के चलते अपनी जान गंवाने वाले प्रसिद्ध गायक व अभिनेता पी. बालासुब्रमण्यम स्वामी की मृत्यु के बाद लोगों के मन में यह भावना आ रही है कि जब इतने प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति नहीं बच पाए, तो उन जैसे सामान्य व्यक्ति के जीवन का तो कोई भी भरोसा नहीं है. कैंसर के चलते अपनी जान गंवा बैठे ऋषि कपूर तथा इरफान खान की मृत्यु ने भी लोगों के मन में कैंसर को लेकर एक अलग ही डर पैदा कर दिया है. इस डर को बढ़ाने में काफी बड़ा हाथ मीडिया तथा सोशल मीडिया का भी है. उदाहरण के तौर पर श्रीदेवी, इरफान खान या अब सुशांत सिंह राजपूत की प्राकृतिक और अप्राकृतिक मृत्यु के कारणों और उनसे जुड़ी परिस्थितियों को लेकर मीडिया में इस प्रकार बढ़ा-चढ़ाकर खबरें प्रसारित की गई कि लोगों के व्यवहार और उनकी सोच पर काफी नकारात्मक असर पड़ा.

डॉक्टर कृष्णन बताती हैं कि ऐसे में जब जीवन में नकारात्मक भावनाएं बढ़ने लगती हैं, तो लोगों में अवसाद, तनाव, बेचैनी और कई बार स्वयं की जान देने जैसी प्रवृत्ति भी जागृत होने लगती है, जिसका असर उनके जीवन पर लंबे समय तक बना रह सकता है.

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