आमतौर पर लोगों को लगता है कि घर से बाहर जाकर काम करना बहुत बड़ी उपलब्धि है लेकिन घर के कामों को लोग हीनभावना से देखते हैं. निसंदेह बाहर जाकर काम करना या नौकरी करना बड़ी बात है और जिंदगी की जरूरत भी है, लेकिन घर का काम हमारे जीवन की बड़ी जरूरतों में से एक है. उन्ही के कारण हमारा जीवन सरलता से चलता है क्योंकि भोजन और जीवन व रहन सहन में स्वच्छता हमारे स्वस्थ जीवन की सबसे बड़ी जरूरत होती है.
यह सभी जानते और मानते हैं कि जो लोग नियमित रूप से सभी गृह कार्य करते हैं वे शारीरिक रूप से ज्यादा सक्षम होते हैं लेकिन हाल ही में हुए एक शोध में सामने आया है कि घर का काम करने से लोगों की याददाश्त भी तेज होती है तथा उनकी ध्यान केंद्रित करने की अवधि भी बढ़ती है.
ओपन एक्सेस जनरल “बी.एम.जे ओपन” (BMJ open) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार जो लोग घर के सभी काम करते हैं उनकी ना सिर्फ याददाश्त तेज रहती है और ध्यान केंद्रित करने की अवधि तथा क्षमता बढ़ती है, वही उनके पैर की मजबूत होते हैं जिसके चलते उनके गिरने का खतरा कम रहता है और उन्हे इस कारण से लगने वाली चोंटों से अधिक सुरक्षा मिलती है.
शोध का उद्देश्य
गौरतलब है कि इस अध्ययन में सिर्फ घर पर किए जाने वाले कामों को शामिल किया गया था. यानी मनोरंजक और कार्यस्थल पर होने वाली शारीरिक गतिविधियों को इस अध्ययन में शामिल नहीं किया गया था. शोधकर्ताओं ने शोध में बताया है कि शोध का उद्देश्य इस बात का पता लगाना था कि क्या घर के काम करने से आदमी स्वस्थ तरीके से अपना जीवन जी सकता है?
अधेड़ लोगों को गृह कार्य करना ज्यादा फायदेमंद
शोधकर्ताओं ने शोध के निष्कर्षों में बताया है कि प्रतिदिन घर के कार्य करना हर उम्र के लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा होता है . विशेषकर अधेड़ उम्र के लोगों में घर के कार्य करने की आदत उन्हे शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय बनती हैं और उनकी कार्य करने की गति को भी बढ़ती है. इसके अतिरिक्त यह आदत उनकी दूसरों पर निर्भरता को और मृत्यु के जोखिम को भी कम करती है.
पढ़ें: आयुर्वेद से बढ़ाएं याददाश्त
489 लोगों पर हुआ शोध
इस शोध में 21 से 90 वर्ष के 489 ऐसे लोगों को शामिल किया गया था जो घर के दैनिक कार्यों को करने में सक्षम थे . सिंगापुर में आयोजित हुए इस शोध में प्रतिभागियों को दो आयु समूहों में बांटा गया था. जिसमें पहले वर्ग में 21 से 64 वर्ष के लोग थे और दूसरे वर्ग में 65 से 90 वर्ष के लोग थे.
शोध में प्रतिभागियों की शारीरिक क्षमता का अलग-अलग तरह से आंकलन किया गया था. जिसके लिए उनके घरेलू कामों को करने की गति और आवृत्ति के साथ-साथ वे कौन-कौन से कार्य करने में सक्षम हैं या करते हैं, इस बारे में भी उनसे जानकारी ली गई थी.
शोध में गृह कार्यों को दो भागों में विभाजित किया गया था, घर के हल्के काम तथा भारी काम. हल्के कामों की श्रेणी मे कपड़े धोना, बिस्तर झड़ना व बनाना, कपड़े सुखाना, कपड़ों को इस्त्री करना, साफ सफाई करना और खाना बनाना आदि कार्यों में प्रतिभागियों की शारीरिक क्षमता को मापा गया था .
वहीं भारी कामों में खिड़कियों की सफाई, घर को वैक्यूम करना, फर्श को धोना और घर को सजाने जैसी गतिविधियों को शामिल किया गया था. इन कार्यों को करने के दौरान प्रतिभागियों के कार्य करने की तीव्रता यानी गति को , उनके कार्य के ” मेटाबॉलिक इक्विवेलेंट ऑफ टास्क”( एमईटी) आधार पर मापा गया था. मापन की इस इकाई को प्रति मिनट शारीरिक गतिविधि पर खर्च की गई ऊर्जा यानी कैलोरी की मात्रा के बराबर माना जाता है. इसमें हल्के गृह कार्य के लिए 2.5 का एमईटी दिया गया था तथा भारी गृह कार्यों के लिए 4 का एमईटी दिया गया था.
शोध में सामने आया कि युवा समूह में से केवल 36% यानी 90 लोग और वृद्ध आयु वर्ग के लगभग आधे यानी 48% (116 लोग) केवल उन शारीरिक गतिविधियों का कोटा पूरा किया था. जो मनोरंजक थी . लेकिन लगभग दो तिहाई यानी कि 61% लोग जिनमें से 152 युवा और 159 वृद्ध थे उन्होंने अपने लक्ष्य को सभी गृह कार्य करके पूरा किया था.
प्रतिभागियों की सभी गृह कार्यों के दौरान हुई शारीरिक गतिविधियों के समायोजन के बाद उनका आंकलन किया गया तथा उनके प्रतिभागियों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारें में जानने का प्रयास किया गया. शोध में परिणामों में सामने आया कि घर का काम मनुष्यों की मानसिक क्षमताओं और शारीरिक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करता है. साथ ही घर का कार्य करने की आदत विशेषकर बड़े आयु वर्ग के लोगों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है.
पढ़ें: मानसिक सक्रियता से कैसे बढ़ाएं अपनी याददाश्त, यहां जानें