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कोलोरेक्टल कैंसर में राहत दिला सकता है कीटो मोलीक्यूल 'बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटाइरेट': रिसर्च

कीटो डाइट से शरीर में उत्पन्न होने वाला एक अणु (मोलीक्यूल) कोलोरेक्टल ट्यूमर के विकास को रोक सकता है. हाल ही में चूहों पर हुए एक शोध में सामने आया है कि कीटो मोलीक्यूल बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटाइरेट, पशुओं को कोलोरेक्टल कैंसर से राहत दिला सकता है.

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कोलोरेक्टल कैंसर में राहत दिला सकता है कीटो मोलीक्यूल “बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटाइरेट”: शोध
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Published : May 21, 2022, 1:57 PM IST

मेडिकल जर्नल 'नेचर' में प्रकाशित हुए एक अध्धयन में सामने आया है कि ऐसी आहार प्रणाली जिसमें उपवास और कैलोरी प्रतिबंध वाले आहार शामिल हों, वे पशुओं को आंतों के ट्यूमर से बचाने में सक्षम हैं. इस शोध के दौरान चूहों पर नैदानिक परीक्षण किया गया था जिसमें सामने आया कि कम कार्ब वाले आहार से उत्पादित होने वाला एक वैकल्पिक-ऊर्जा अणु बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटाइरेट (बीएचबी), आंतों में ट्यूमर के विकास को दबा देता है.

गौरतलब है कि इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जांचने का प्रयास किया कि कैसे कम कार्ब वाली आहार प्रणाली विशेषकर कीटो डाइट, कोलोरेक्टल ट्यूमर के विकास को कम कर सकती हैं. गौरतलब है कि कोलोरेक्टल कैंसर (सीआरसी) संयुक्त राज्य अमेरिका में तीसरा सबसे आम कैंसर है.

क्या है 'बीएचबी' मोलीक्यूल
इस शोध में ट्यूमर के विकास में विभिन्न प्रकार के आहारों के प्रभावों के बारे में ज्यादा जानने व समझने के लिए शोधकर्ताओं को चूहों पर अध्धयन किया था. 'बीएचबी' मोलीक्यूल के बारे में शोध में बताया गया कि यह मोलीक्यूल भूखे रखने या केटोजेनिक डाइट के चलते यकृत में उत्पादित होता है. जो विकास गति को धीमा करने वाले रिसेप्टर एचसीएआर2, जोकि व्यक्ति के बॉउल की परत में पाया जाता है. उनको सक्रिय करके कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ने की गति को रोकता है. यह रिसेप्टर आंत के भीतर कोशिका वृद्धि को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

कैसे हुआ शोध
इस शोध में शोधकर्ताओं ने पहले आहार संबंधी उन डाएटरी इंटरवेंशन को जानने का प्रयास किया जो आंतों के ट्यूमर के विकास को प्रभावित करते हैं. जिसके लिए शोधकर्ताओं ने अलग-अलग वसा व कार्बोहाइड्रेट के अनुपात वाले छह प्रकार के आहार तैयार किए. इनमें 90% वसा व कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाले दो ऐसे किटोजेनिक आहार भी शामिल थे जिनके स्रोत पौधे तथा पशु थे. चूहों को इन आहारों को देने की शुरुआत करने के बाद शोधकर्ताओं ने मानक रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से चूहों में सीआरसी इंडयूस किया. जिसके उपरांत उन पर डाइट के असर का निरीक्षण किया गया.

निष्कर्ष
शोध में पाया गया कि जिन चूहों के आहार में वसा-कार्बोहाइड्रेट अनुपात में वृद्धि हुई थी उनमें ट्यूमर की संख्या और उसका आकार दोनों कम हुए थे. शोध में सीआरसी पीड़ित कुछ चूहों को भी शामिल किया गया था. परीक्षण के दौरान ऐसे चूहे जिन्हें कीटो आहार दिया गया था वे अधिक समय तक जीवित रहे. कीटो डाइट ने सीआरसी पीड़ित चूहों के आनुवंशिक मॉडल में भी ट्यूमर के विकास पर रोक लगा दी थी. हालांकि कीटो डाइट को बंद करने पर उनका ट्यूमर फिर से बढ़ गया था. यह परिस्थिति उन चूहों में भी नजर आई जिनके ट्यूमर के आकार पहले कीटो डाइट के कारण कम हो गया था. परीक्षण के बाद शोध के निष्कर्ष में शोधकर्ताओं ने बताया कि कीटो आहार सीआरसी की रोकथाम और उपचार मॉडल दोनों में कोलोरेक्टल ट्यूमर के विकास को संभावित रूप से दबा देता है.

अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ मायन लेवी ने शोध के निष्कर्षों में बताया है कि 'बीएचबी' ट्रांसक्रिप्शनल रेगुलेटर हॉप्क्स को सक्रिय करके आंतों की उपकला कोशिकाओं के विकास और प्रसार को रोकता है. वहीं बदले में हॉप्क्स सेल डिवीजन में शामिल जीनों की अभिव्यक्ति को कम करता है. वह बताते हैं है कि हॉप्क्स यह कैसे करता है इस बारें में अभी जांच की जा रही हैं. "

मानव कोशिकाओं पर भी हुआ परीक्षण
वह बताते हैं कि शोध में मनुष्यों में बीएचबी की प्रतिक्रिया जानने के लिए शोधकर्ताओं ने मानव कोशिका रेखाओं पर भी इसके प्रभावों का अवलोकन किया था. जिसमें सामने आया कि बीएचबी ने हेल्दी डोनर, सीआरसी सेल लाइनों और बढी हुई हॉप्क्स की गतिविधि, सभी में ऑर्गेनोइड के विकास को कम कर दिया था, लेकिन यह प्रतिक्रिया सिर्फ एचसीएआर2 - हॉप्क्स में देखी गई थी.

अन्य सेल लाइन या मानव कोशिका रेखा, जिनमें एचसीटी116 तथा आरकेओ था, उनमें बीएचबी को लेकर प्रतिक्रिया नहीं देखी गई. इस परीक्षण के लिए शोधकर्ताओं ने बीएचबी और हॉप्क्स स्तरों तथा रक्त स्तरों के बीच के संबंध का आंकलन करने के लिए सीआरसी पीड़ित 41 रोगियों से रक्त के नमूने एकत्र किए थे . जिसमें सामने आया कि बीएचबी का स्तर हॉप्क्स लेवल के साथ सकारात्मक रूप में तथा सेल साइकिल प्रोग्रेशन के साथ नकारात्मक रूप से संबंधित था.

इस परीक्षण के नतीजों के बारें में शोध के निष्कर्षों में कहा गया है कि “बीएचबी” हॉप्क्स के स्तर को बढ़ा सकता है और लोगों में सीआरसी ट्यूमर के विकास को कम कर सकता है. डॉ लेवी ने यहाँ यह भी बताया है कि सीआरसी में बीएचबी की भूमिका के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए उनकी टीम ने अन्य नैदानिक परीक्षण भी शुरू कर दिए हैं. शोध के निष्कर्षों में उम्मीद जताई गई है कि इस अध्धयन से सीआरसी के लिए उपचार और निवारण के लिए नए विकल्प विकसित करने में मदद मिल सकेगी.

पढ़ें: स्वीटनर्स के इस्तेमाल से बढ़ता है कई तरह के कैंसर का खतरा: शोध

मेडिकल जर्नल 'नेचर' में प्रकाशित हुए एक अध्धयन में सामने आया है कि ऐसी आहार प्रणाली जिसमें उपवास और कैलोरी प्रतिबंध वाले आहार शामिल हों, वे पशुओं को आंतों के ट्यूमर से बचाने में सक्षम हैं. इस शोध के दौरान चूहों पर नैदानिक परीक्षण किया गया था जिसमें सामने आया कि कम कार्ब वाले आहार से उत्पादित होने वाला एक वैकल्पिक-ऊर्जा अणु बीटा-हाइड्रॉक्सीब्यूटाइरेट (बीएचबी), आंतों में ट्यूमर के विकास को दबा देता है.

गौरतलब है कि इस शोध में शोधकर्ताओं ने यह जांचने का प्रयास किया कि कैसे कम कार्ब वाली आहार प्रणाली विशेषकर कीटो डाइट, कोलोरेक्टल ट्यूमर के विकास को कम कर सकती हैं. गौरतलब है कि कोलोरेक्टल कैंसर (सीआरसी) संयुक्त राज्य अमेरिका में तीसरा सबसे आम कैंसर है.

क्या है 'बीएचबी' मोलीक्यूल
इस शोध में ट्यूमर के विकास में विभिन्न प्रकार के आहारों के प्रभावों के बारे में ज्यादा जानने व समझने के लिए शोधकर्ताओं को चूहों पर अध्धयन किया था. 'बीएचबी' मोलीक्यूल के बारे में शोध में बताया गया कि यह मोलीक्यूल भूखे रखने या केटोजेनिक डाइट के चलते यकृत में उत्पादित होता है. जो विकास गति को धीमा करने वाले रिसेप्टर एचसीएआर2, जोकि व्यक्ति के बॉउल की परत में पाया जाता है. उनको सक्रिय करके कोलोरेक्टल कैंसर के बढ़ने की गति को रोकता है. यह रिसेप्टर आंत के भीतर कोशिका वृद्धि को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

कैसे हुआ शोध
इस शोध में शोधकर्ताओं ने पहले आहार संबंधी उन डाएटरी इंटरवेंशन को जानने का प्रयास किया जो आंतों के ट्यूमर के विकास को प्रभावित करते हैं. जिसके लिए शोधकर्ताओं ने अलग-अलग वसा व कार्बोहाइड्रेट के अनुपात वाले छह प्रकार के आहार तैयार किए. इनमें 90% वसा व कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाले दो ऐसे किटोजेनिक आहार भी शामिल थे जिनके स्रोत पौधे तथा पशु थे. चूहों को इन आहारों को देने की शुरुआत करने के बाद शोधकर्ताओं ने मानक रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से चूहों में सीआरसी इंडयूस किया. जिसके उपरांत उन पर डाइट के असर का निरीक्षण किया गया.

निष्कर्ष
शोध में पाया गया कि जिन चूहों के आहार में वसा-कार्बोहाइड्रेट अनुपात में वृद्धि हुई थी उनमें ट्यूमर की संख्या और उसका आकार दोनों कम हुए थे. शोध में सीआरसी पीड़ित कुछ चूहों को भी शामिल किया गया था. परीक्षण के दौरान ऐसे चूहे जिन्हें कीटो आहार दिया गया था वे अधिक समय तक जीवित रहे. कीटो डाइट ने सीआरसी पीड़ित चूहों के आनुवंशिक मॉडल में भी ट्यूमर के विकास पर रोक लगा दी थी. हालांकि कीटो डाइट को बंद करने पर उनका ट्यूमर फिर से बढ़ गया था. यह परिस्थिति उन चूहों में भी नजर आई जिनके ट्यूमर के आकार पहले कीटो डाइट के कारण कम हो गया था. परीक्षण के बाद शोध के निष्कर्ष में शोधकर्ताओं ने बताया कि कीटो आहार सीआरसी की रोकथाम और उपचार मॉडल दोनों में कोलोरेक्टल ट्यूमर के विकास को संभावित रूप से दबा देता है.

अध्ययन के लेखकों में से एक डॉ मायन लेवी ने शोध के निष्कर्षों में बताया है कि 'बीएचबी' ट्रांसक्रिप्शनल रेगुलेटर हॉप्क्स को सक्रिय करके आंतों की उपकला कोशिकाओं के विकास और प्रसार को रोकता है. वहीं बदले में हॉप्क्स सेल डिवीजन में शामिल जीनों की अभिव्यक्ति को कम करता है. वह बताते हैं है कि हॉप्क्स यह कैसे करता है इस बारें में अभी जांच की जा रही हैं. "

मानव कोशिकाओं पर भी हुआ परीक्षण
वह बताते हैं कि शोध में मनुष्यों में बीएचबी की प्रतिक्रिया जानने के लिए शोधकर्ताओं ने मानव कोशिका रेखाओं पर भी इसके प्रभावों का अवलोकन किया था. जिसमें सामने आया कि बीएचबी ने हेल्दी डोनर, सीआरसी सेल लाइनों और बढी हुई हॉप्क्स की गतिविधि, सभी में ऑर्गेनोइड के विकास को कम कर दिया था, लेकिन यह प्रतिक्रिया सिर्फ एचसीएआर2 - हॉप्क्स में देखी गई थी.

अन्य सेल लाइन या मानव कोशिका रेखा, जिनमें एचसीटी116 तथा आरकेओ था, उनमें बीएचबी को लेकर प्रतिक्रिया नहीं देखी गई. इस परीक्षण के लिए शोधकर्ताओं ने बीएचबी और हॉप्क्स स्तरों तथा रक्त स्तरों के बीच के संबंध का आंकलन करने के लिए सीआरसी पीड़ित 41 रोगियों से रक्त के नमूने एकत्र किए थे . जिसमें सामने आया कि बीएचबी का स्तर हॉप्क्स लेवल के साथ सकारात्मक रूप में तथा सेल साइकिल प्रोग्रेशन के साथ नकारात्मक रूप से संबंधित था.

इस परीक्षण के नतीजों के बारें में शोध के निष्कर्षों में कहा गया है कि “बीएचबी” हॉप्क्स के स्तर को बढ़ा सकता है और लोगों में सीआरसी ट्यूमर के विकास को कम कर सकता है. डॉ लेवी ने यहाँ यह भी बताया है कि सीआरसी में बीएचबी की भूमिका के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए उनकी टीम ने अन्य नैदानिक परीक्षण भी शुरू कर दिए हैं. शोध के निष्कर्षों में उम्मीद जताई गई है कि इस अध्धयन से सीआरसी के लिए उपचार और निवारण के लिए नए विकल्प विकसित करने में मदद मिल सकेगी.

पढ़ें: स्वीटनर्स के इस्तेमाल से बढ़ता है कई तरह के कैंसर का खतरा: शोध

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