अल्जाइमर रोग एक मानसिक विकार है, जिसके कारण मरीज की याददाश्त कमजोर हो जाती है और उसे भूलने की बीमारी हो जाती है. यह डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार है, जिसका असर व्यक्ति की सोचने और याद रखने की क्षमता तथा उसकी रोजमर्रा की गतिविधियों पर पड़ता है. अल्जाइमर रोग का पक्का इलाज अभी संभव नहीं है, लेकिन समय पर इस बीमारी का पता चलने पर दवाइयों की मदद से इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है.
चिकित्सा शास्त्र की सभी विधाओं में इस रोग के इलाज के लिए खोज की जा रही है. आयुर्वेद की बात करें तो, इस विधा में भी जड़ी बूटियों, तेल चिकित्सा पद्दती से अल्जाइमर से बचाव में मदद संभव है. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्दती में अल्जाइमर को कैसे नियंत्रण में रखा जा सकता है. इस बारे में ETV भारत सुखीभवा की टीम ने बीएएमएस, एमडी आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. टी शैलजा से बात की.
अल्जाइमर और आयुर्वेद
डॉ. शैलजा बताती है की अल्जाइमर की समस्या बढ़ती उम्र के साथ ही आनुवंशिक कारकों, डिप्रेशन, सिर की चोट तथा उच्च रक्तचाप के कारण भी हो सकती है. इसका असर मरीज के मानसिक कार्यों और पहचानने की क्षमता पर पड़ता है. अल्जाइमर के मरीजों के व्यवहार में बदलाव आने लगते हैं, जैसे बातों को भूल जाना, लोगों को ना पहचान पाना, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, एक ही बात को बार-बार दोहराना, बेचैनी तथा एकाग्रता में कमी.
इसके अलावा उनमें मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे डिप्रेशन, हैलुसिनेशन या पैरानोइया के लक्षण भी नजर आ सकते हैं. डॉ. शैलजा बताती हैं की आयुर्वेद में विभिन्न औषधियों की मदद से अल्जाइमर को नियंत्रण में किया जा सकता है. इसकी चिकित्सा संशमन और संशोधन दोनों प्रकार से की जाती है.
संशमन विधि
इस विधि में औषधियों के माध्यम से रोग को दूर करने का प्रयास किया जाता है. जिसके लिए कुछ विशेष जड़ी बूटियों तथा औषधियों के सेवन की सलाह दी जाती है.
जड़ी बूटियां
डॉ. शैलजा बताती हैं की रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के आठ अंगों में से एक है तथा रसायन योगों के सेवन से ना सिर्फ रोगों का नाश होता है, बल्कि स्वास्थ में वृद्धि भी होती है. इनमें अल्जाइमर की रोकथाम के लिए मेध रसायन को उपयुक्त माना गया है. क्योंकि वह मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बेहतर करता है. मेध रसायन में दी जाने वाली जड़ी बूटियां तथा औषधियां इस प्रकार हैं.
⦁ शंखपुष्पी- इसे ब्रेन टोनिक भी कहा जाता है. इसके खास तत्व दिमागी कोशिकाओं को सक्रिय कर भूलने की समस्या को दूर करते हैं.
⦁ अश्वगंधा- यह एक ऐसी जड़ीबूटी है, जो रोग को बढ़ने से रोकती है. इससे शरीर में एंटी ऑक्सीडेंट्स बनते है, जो दिमाग की नसों को सक्रिय रखते हुए मानसिक कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं.
⦁ ब्राह्मी- यह तंत्रिका संचारक के स्राव को बढ़ाता है, तंत्रिकाओं को शांत करता है और मस्तिष्क को स्फूर्ति देता है.
⦁ गुडूची या गिलोय- यह वात, पित्त और कफ तीनों को नियंत्रित करती है. शरीर के हानिकारक टॉक्सिन्स को बाहर निकलती है. आयुर्वेद में इससे अमृत की उपमा भी दी जाती है.
⦁ मुलेठी या यष्टिमधु- यह तनाव में आराम देती है.
⦁ वचा - इस जड़ी का उपयोग तंत्रिका तंत्र को मजबूत करता है और याददाश्त को बढ़ाता है.
संशोधन विधि
डॉ. शैलजा बताती हैं की संशोधन विधि में पंचकर्म तथा तेल चिकित्सा पद्दती का उपयोग किया जाता है. इस आयुर्वेदिक प्रणाली से शरीर में मौजूद जीव विष को बाहर निकाला जाता है. इस क्रिया में पांच प्रकार से शरीर की शुद्धि एवं मस्तिष्क की कोशिकाओं को मजबूत करने का कार्य किया जाता है.
⦁ नस्या- इसमें नाक के माध्यम से औषधि दी जाती है. फलस्वरूप औषधी का विस्तार मस्तिष्क के प्रभावित क्षेत्रों में होता है.
⦁ शिरो अभ्यंगा- इसमें चिकित्सीय तेलों से सर की मालिश की जाती है.
⦁ शिरोधारा- इस प्रणाली में औषधीय तेलों को एक पात्र द्वारा एक धरावट रोही से माथे पर प्रवाहित किया जाता है.
⦁ शिरो वस्ती- इस प्रणाली में एक टोपी के माध्यम से औषधीय तेलों को रोगी के माथे पर रखा जाता है.
⦁ शिरो लेप- इस प्रणाली में औषधियों का लेप बनाकर रोगी के सिर पर लगाया जाता है.
पंचकर्म क्रिया के लिए अनु तेल, षडबिन्दु तेल, वचा चूर्ण, बादाम तेल, ब्राह्मी तेल, महानारायण तेल को बेहतर माना जाता है.
डॉ. शैलजा बताती है की इन सभी रोग निवारक औषधियों और संशोधन विधि के उपयोग से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अनिवार्य है.