मिलेट अनाजों के उस समूह को कहा जाता है जो गेहूं और चावल जैसे सामान्य अनाज से थोड़े अलग होते हैं, लेकिन मौसम के आधार पर उनके आटे का उपयोग सामान्य खाने के जायके और पोषण को दोगुना कर देता है। तकनीकी तौर पर देखा जाए तो मिलेट ऐसे बीज होते है जिनका उपयोग अनाज के तौर पर भी किया जा सकता है। आमतौर पर मौसमी अनाज के रूप में प्रचलित मिलेट पौष्टिक तत्वों तथा ऊर्जा की खान माने जाते हैं।
अलग-अलग प्रकार के मिलेट यानी साबुत अनाज, उनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व तथा उनके स्वास्थ्य पर असर को लेकर ईटीवी भारत सुखी भव की टीम ने एंड शाइन होम्योपैथिक क्लिनिक मुंबई की क्लीनिकल पोषण विशेषज्ञ तथा होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ कृति. एस . धीरवानी से बात की।
पोषण का स्त्रोत्र होते है मिलेट
मिलेट की उत्पत्ति, उसके पोषक तत्वों तथा उसके उपयोग को लेकर जानकारी देते हुए डॉ कृति बताती है की मनुष्य द्वारा खेती करके उगाए जाने से पहले मिलेट मूलतः अफ्रीका में जंगली घास के रूप में पाए जाते थे।
वह बताती है की पोषण के लिहाज से उच्च श्रेणी के अनाज माने जाने वाले जाने वाले मिलेट की उपज ठंडे तथा शुष्क दोनों इलाकों में सरलता से उगाई जा सकती है। इस प्रकार के अनाज की खास बात यह होती है की आमतौर पर रोपित किए जाने के 70 दिन के अंदर ही इसकी उपज तैयार हो जाती है।
मिलेट से मिलने वाले पोषण के बारें में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ कृति बताती है की एक कप पके हुए मिलेट में लगभग 207 कैलोरी, 6 ग्राम प्रोटीन, 2 ग्राम डाइटरी फाइबर, 2 ग्राम से कम मात्रा में फैट यानी वसा तथा पर्याप्त मात्रा में मिनरल व विटामिन पाए जाते हैं।
आटे के रूप में इस्तेमाल में आने वाले विभिन्न प्रकार के साबुत अनाज यानी मिलेट
- रागी / नाचणी / मंडूआ/ फिंगर मिलेट
रागी मोटे अनाज का वह स्वरूप है जो ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रखता है। रागी जिसे देश के अलग-अलग हिस्सों में नाचणी, मंडुवा या फिंगर मिलेट के नाम से भी जाना जाता है, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम, नियाचिन, थियामाईन तथा अमीनो एसिड्स का भंडार माना जाता है। इसके नियमित सेवन से मांसपेशियों का विकास, क्षतिग्रस्त मांसपेशियों का पुनर्निर्माण, अनिद्रा से राहत तथा मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। रागी का इस्तेमाल रोटी, डोसा, इडली तथा बिस्किट सहित कई अन्य प्रकार के पकवान बनाने में भी किया जाता है।
- ज्वार /सोरघुम
ज्वार का आटा सिर्फ पौष्टिकता ही नहीं बल्कि स्वाद का भी खजाना माना जाता है। इसका इस्तेमाल चाहे जिस भी प्रकार के पकवान के रूप में किया जाए, इसका स्वाद हमेशा उम्दा होता है। ज्वार के आटे में विटामिन-बी12, थियामाईन, विटामिन-ए, फास्फोरस, कैल्शियम, प्रोटीन तथा फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह शरीर में रक्त प्रवाह को सुचारू रखने के साथ ही विभिन्न प्रकार के सेल्स के निर्माण व उनके विकास तथा बालों की समस्याओं को दूर करने में काफी मदद करता है। प्राकृतिक रूप से ग्लूटेन मुक्त माना जाने वाला यह साबुत अनाज उन लोगों के लिए गेहूं के आटे का बहुत अच्छा विकल्प है जिन्हें या तो ग्लूटेन एलर्जी है या फिर विभिन्न समस्याओं के चलते जिन्हे ग्लूटेन के इस्तेमाल के लिए मना किया गया है।
- पर्ल मिलेट / बाजरे का आटा
ज्वार की तरह बाजरा को भी स्वाद और सेहत दोनों का भंडार माना जाता है। गर्म स्थानों में आमतौर पर लोगों की स्थानीय थाली का मुख्य हिस्सा रहने वाले बाजरे के आटे में विटामिन तथा मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त बाजरे के आटे में प्रोटीन, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस तथा फाइबर के साथ ही विटामिन-ई, विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स, नियाचिन थिएमाइन तथा रिबोफ्लेवीन भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग जिन्हें ह्रदय रोग, कोलेस्ट्रोल तथा रक्तचाप की समस्या हो, उन्हें बाजरे को नियमित तौर पर अपने भोजन में शामिल करने की सलाह दी जाती है।
- अमरनाथ / राजगिरा आटा
राजगिरे के दानों को पश्चिमी देशों में छद्म अनाज माना जाता है। भारत में भी इसे अनाज के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है। इसीलिए विभिन्न व्रत और त्योहारों में जब लोग व्रत रखते है तो फलाहार के रूप में इसका सेवन करते हैं।
राजगिरी के आटे में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम तथा विटामिन-सी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह ह्रदय रोग, कैंसर तथा स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्याओं से बचाव में भी मदद करता है। राजगिरी के आटे के सेवन से अर्थराइटिस जैसी ज्वलन कारी समस्याओं में भी राहत मिलती है।
घर में आटा पीसते समय ध्यान देने योग्य बातें
डॉ कृति बताती है की हमारे देश में बहुत से लोग आज भी शुद्धता के लिहाज से अपने घर पर ही मिलेट का आटा पीसने को प्राथमिकता देते हैं। इस प्रक्रिया के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है जो इस प्रकार हैं।
- साबुत अनाज को या तो रात भर या कम से कम पांच 6 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखना चाहिए, जिससे उस में पाए जाने वाले फिटिक एसिड का स्तर सामान्य हो जाए और अनाज में मौजूद एंजाइम पर्याप्त मात्रा में बाहर आ जाएं। ऐसा करने से अनाज ज्यादा पौष्टिक तथा सुपाच्य होगा।
- बताई गई अवधि के उपरांत मिलेट का पानी निथारे तथा उसके बाद अनाज को सूर्य की रोशनी में प्राकृतिक तौर पर सूखने दे। जब एक बार अनाज पूरी तरह सूख जाए उसके बाद उसे मशीन में डालकर उसका आटा तैयार किया जा सकता है।
- मिलेट में मिलने वाले पोषक को दोगुना करने के लिए एक अन्य तरीके को भी उपयोग में लाया जा सकता है। जिसके तहत विभिन्न प्रकार के मिलेट के आटे को दही या छाछ में भिगोना चाहिए । इस प्रक्रिया के चलते आटे में फाइबर और अन्य पोषक तत्वों को प्रभावित करने वाले हानिकारक तत्वों का असर कम होता है। इसके साथ ही अनाज और दही या छाछ मिश्रण शरीर पर प्रीबायोटिक तथा प्रोबायोटिक के तौर पर असर करता है जो कि हमारी आंतों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के साथ ही विभिन्न प्रकार की गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं के समाधान में भी मदद करता है।