पुरुषों में एंड्रोपॉज वह अवस्था है जब उनमें पचास से साठ की उम्र के बाद टेस्टोस्टेरॉन सहित कुछ अन्य हार्मोन का स्तर कम होने लगता है. जिस तरह महिलाओं में मेनोपॉज होता है उसी तरह पुरुषों में एंड्रोपॉज होता है. जिस तरह मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं को कई शारीरिक परिवर्तनों तथा मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, ऐसे ही पुरुषों को भी एंड्रोपॉज के दौरान कई शारीरिक व मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. विशेष तौर पर इस अवस्था में होने वाले सेक्स हार्मोन 'टेस्टोस्टेरॉन' के स्तर में कमी के चलते पुरुषों की सेक्स ड्राइव यानी कामेच्छा काफी प्रभावित हो सकती है. एंड्रोपॉज के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने हरियाणा के एंड्रोलॉजिस्ट डॉ दिनेश लाल से बात की.
क्या होता है एंड्रोपॉज
डॉ दिनेश लाल बताते हैं कि महिलाओं में मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति होती है इस बारे में लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन पुरुषों में एंड्रोपॉज को लेकर लोगों में अभी भी ज्यादा जानकारी नहीं है. दरअसल, मेनोपॉज हो या एंड्रोपॉज दोनों वे अवस्थाएं हैं जिनमें महिलाओं में एस्ट्रोजन और पुरुष में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन प्रभावित होने लगते हैं. ये वे हार्मोन होते हैं जो यौन इच्छाओं सहित शरीर की कई क्रियाओं को प्रभावित करते हैं. सिर्फ पुरुषों की बात करें तो एंड्रोपॉज में टेस्टोस्टेरॉन की कमी के अलावा उनमें एंड्रोजन हार्मोन में भी कमी आने लगती है. जिसके परिणाम स्वरूप पुरुषों का सेक्स जीवन तो प्रभावित होता है, वहीं कुछ अन्य प्रकार की शारीरिक व मानसिक समस्याएं, विशेष तौर कोमोरबीटी कहलाने वाली समस्याएं भी उत्पन्न होने लगती हैं. पुरुषों में इस दौर को एंट्रोजेन डेफ़िशिएन्सी ऑफ द एजिंग मेल (एडीएएम) भी कहा जाता है.
एंड्रोपॉज के लक्षण
डॉ. दिनेश लाल बताते हैं कि एंड्रोपॉज के प्रत्यक्ष लक्षण सभी पुरुषों में नजर नहीं आते हैं. कुछ पुरुषों में जहां एंड्रोपॉज के लक्षण तथा प्रभाव ज्यादा नजर आ सकते हैं वहीं कुछ पुरुष सामान्य तौर पर इन लक्षणों को ज्यादा महसूस नहीं कर पाते हैं. इसके लिए उनके स्वास्थ्य सहित कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं.
पुरुषों में एंड्रोपॉज की अवस्था में निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं:
- शरीर में कमजोरी तथा ऊर्जा में कमी.
- मोटापा, रक्तचाप तथा मधुमेह रोग होना.
- मूड स्विंगस, डिमेंशिया, नींद ना आना या कम आना, आत्मविश्वास में कमी, किसी भी कार्य में ध्यान लगाने में परेशानी महसूस करना तथा अवसाद, तनाव या उदासी होना.
- हीमोग्लोविन के स्तर में कमी.
- हड्डियों के घनत्व में कमी, उनमें कमजोरी तथा जोड़ों में दर्द की समस्या का बढ़ना.
- कामेच्छा में कमी, स्तंभन दोष तथा बांझपन की समस्या होना.
एंड्रोपॉज और मेनोपॉज में अंतर
मेनोपॉज और एंड्रोपॉज दोनों ही अवस्था में महिलाओं और पुरुषों में शारीरिक व मानसिक परिवर्तन नजर आने लगते हैं. मानसिक समस्याओं की बात करें तो आम तौर पर इन अवस्थाओं में महिलाओं और पुरुषों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी, तनाव, मूड स्विंगस यानी मूड का बार-बार बदलना तथा ज्यादा गुस्सा आने जैसी समस्याएं बढ़ भी जाती हैं. वहीं, शारीरिक परिवर्तनों की बात करें तो इन अवस्थाओं में दोनों में कामेच्छा में कमी आने लगती है. वहीं कुछ अन्य शारीरिक समस्याओं के होने का खतरा भी बढ़ जाता है. लेकिन मेनोपॉज और एंड्रोपॉज दोनों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि जहां रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं की प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है, वहीं पुरुष एंड्रोपॉज के बाद भी पिता बन सकते हैं.
एंड्रोपॉज में फायदेमंद हो सकती है 'टीएसटी'
डॉ. दिनेश लाल बताते हैं कि पुरुषों में एंड्रोपॉज के दौरान कम होने वाले टेस्टोस्टेरॉन के स्तर को कुछ उपचारों की मदद से बढ़ाया भी जा सकता है. 'टीएसटी' यानी टेस्टोस्टेरॉन रिपलेसमेंट थेरेपी भी एक ऐसी ही उपचार पद्धति है. इसके तहत पीड़ित को हर तीसरे महीने में टेस्टोस्टेरॉन का इंजेक्शन दिया जाता है. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि इस प्रकार की थेरेपी के कुछ पार्श्वप्रभाव भी हो सकते हैं. इसके अलावा टेस्टोस्टेरॉन में कमी की समस्या झेल रहे हर व्यक्ति को यह थेरेपी लेने की सलाह नहीं दी जाती है, क्योंकि कई शारीरिक रोगों या अवस्थाओं जैसे प्रोस्टेट कैंसर आदि में यह उपचार काफी ज्यादा जटिलताएं बढ़ा सकता है.
एंड्रोपॉज से कैसे बचें
हालांकि, एंड्रोपॉज होने पर ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है. आप अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव करके भी एंड्रोपॉज की समस्या को कम कर सकते हैं. इसके लिए आपको डॉक्टर की सलाह का जरूर पालन करना चाहिए. पुरुष रजोनिवृत्ति से बचने के लिए स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना चाहिए जैसे-
- स्वस्थ भोजन
- नियमित व्यायाम
- पर्याप्त नींद लें
- तनाव कम लें
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