किशोरावस्था जीवन का एक ऐसा पड़ाव होता है, जिसमें इंसान का शरीर ही नहीं मस्तिष्क भी बड़ी तेजी से विकास करता है. नोवल कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने इन बढ़ते बच्चों के विकास पर रोक लगा दिया है. बच्चों के स्कूल बंद कर दिए गए है. वहीं बाहर आने-जाने पर भी रोक लगा दिया गया है.
ऐसे में घर में कैद कई बच्चे मानसिक समस्याओं से जूझ रहे है. इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक बच्चों पर खास ध्यान दे और उनपर किसा प्रकार का दबाव न डालें. ETV भारत सुखीभवा ने ऊर्जा से भरे कुछ बच्चों से अचानक मिली छुट्टियों को किस तरह बिता रहे, इसे लेकर उनके अनुभवों पर बातचीत की. आइये जानते है इन बढ़ते बच्चों के साथ कैसा व्यवहार रखें और क्या सावधानियां बरतें.
किशोरों ने बांटे अनुभव
20 साल की संभवी रांगनेकर का कहना है कि इस भाग दौड़ की जिंदगी में मुझे खुद के लिए मुश्किल से समय मिलता है. ऐसे में लॉकडाउन के कारण मिली छुट्टी किसी सपने से कम नहीं है. जिंदगी धीमी हो गई है, जिससे अब खुद के लिए समय मिल जाता है. संभवी बताती है कि, लॉकडाउन में मैंने कोई निश्चित दिनचर्या नहीं बनाया है, हर दिन को अलग तरीके से जी रही हूं. इन दिनों मैं लिखना, नाचना, व्यायाम करना और खाना बनाना आदि कर रही हूं. कभी-कभी चित्र भी बनाती हूं. खुद के सोने के रिकॉर्ड तोड़ती हूं.
लॉकडाउन के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि मैं जो कुछ भी करती हूं, मेरा उद्देश्य सिर्फ अपने आप को व्यक्त करना है और इसका आनंद लेना है. भले ही मैं इसमें अच्छी नहीं हूं या यह उत्पादक नहीं है. मैं वो हर चीज करती हूं जो मेरा दिल करता है. संभवी का कहना है कि लॉकडाउन से इतना सीखने को मिला है कि कुछ भी चीज हमारे नियंत्रण में नहीं है, इसलिए हमें किसी भी चीज की चिंता नहीं करनी चाहिए और ऐसा जीना चाहिए जैसे कि ये आखरी दिन हो. जिंदगी जैसी चल रही है चलने दो, भविष्य की चिंता मत करो. बहुत जल्द स्थिति सामान्य हो जाएगी.
बाहरी जिंदगी को कर रहे याद
19 साल के प्रांजल ने अपना अनुभव व्यक्त करते हुए बताया कि लॉकडाउन में मानसिक स्वास्थ्य समस्या बढ़ गई है, जिससे जरूरत से ज्यादा सोचने और क्रोध जैसी समस्याएं आ रही है. इसके अलावा ये दिन मेरे लिए बहुत मुश्किल है, क्योंकि मुझे नहीं पता मैं दिन भर क्या करू. लॉकडाउन में सबसे ज्यादा दोस्तों को और बाहरी जिंदगी को याद कर रहा हूं. इसके कारण मेरे सोने का समय बिगड़ गया है. दिनभर कुछ न करना और आराम करना यही दिनचर्या बन गया है. सिर्फ अपने त्वचा और बालों का ध्यान रख रहा हूं. व्यायाम करने का प्लैन बना रहा हूं. वेब सीरीज देखकर खुद को व्यस्त रखता हूं और लॉकडाउन के बाद के लिए लक्ष्य निर्धारित कर रहा हूं.
सीखे घरेलू काम
सोहम जो सिर्फ 14 साल का है, उसका कहना है कि वो लॉकडाउन में पूरी तरह से बोर हो रहा है, लेकिन सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करना भी जरूरी है. मैंने नहीं सोचा था कि लॉकडाउन इतना लंबा चलेगा. मैं सबसे ज्यादा समय बुक पढ़ने, घर के काम सीखने, विडियो गेम खेलने और परिवार के साथ बिताता हूं. यही समय है जब हम परिवार के साथ अपने संबंध बढ़ा सकते है और नई चीजें सीख सकते है. इस दौरान मैंने खाना पकाना, कपड़े जमाना, पौधों को पानी डालना, साफ-सफाई और बेड बनाना सीखा है. कोरोना वायरस का संक्रमण फैला न होता तो मैं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा होता.
लॉकडाउन का दिमाग पर असर
लॉकडाउन का बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़ रहा इसे लेकर समरूद्धि पटकर, मनोचिकित्सक ने सलाह दी है कि यहां भावनात्मक गुणक की अवधारणा महत्वपूर्ण है. नकल तंत्र इस बात पर निर्भर करता है कि किशोर भावनाओं के बारे में कितने जागरूक हैं. संकट के समय में वे कितने लचीले होते हैं, उनके सोचने के तरीके से उनका प्रतिक्रिया आता है.
तनाव कभी बाहरी नहीं होता है, लेकिन बाहरी घटना के लिए हमारी सहज प्रतिक्रिया होती है. इसलिए सबसे पहले उन्हें इस बारे में जागरूक होना होगा कि वे भावनाओं को दबाने के बजाय यह कैसे सोचते और स्वीकार करते हैं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं. वहीं इस बारे में बात करें कि वे दूसरों को कैसा महसूस कराते हैं.
किशोरावस्था में बच्चे विभिन्न गतिविधियां कर रहे है, जो उन्हें पसंद है. खाना पकाना, पेंटिंग, संगीत, नाटक, चिकित्सीय कार्य हो सकता है. स्वस्थ मन और फिटनेस के लिए कुछ व्यायामों को नियमित करना महत्वपूर्ण है.