नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में कई क्षेत्रों के अंदर बड़ी संख्या में लघु एवं कुटीर उद्योग चल रहे हैं. लेकिन महामारी का रूप ले चुकी कोरोना की वजह से इन सभी एवं लघु एवं कुटीर उद्योगों पर काफी बुरा असर पड़ा है. यहां तक कि राजधानी दिल्ली के लगभग 50 प्रतिशथ लघु एवं कुटीर उद्योग अब बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं.
लघु एवं कुटीर उद्योग के अंतर्गत चल रही फैक्ट्री मालिकों के पास अपनी फैक्ट्री चलाने के लिए ना तो पैसा है और ना ही कर्मचारियों को देने के लिए वेतन. जिसकी वजह से लघु एवं कुटीर उद्योग के फैक्ट्री मालिकों को अपनी अपनी फैक्ट्री बंद करनी पड़ रही है.
बाजार में नहीं मिल रहा काम
इसी बीच ईटीवी भारत की टीम गई बसई दारापुर के क्षेत्र में जहां पर एक बड़ा इलाका लघु एवं कुटीर उद्योगों की फैक्ट्रियां का है. अनिल त्यागी जो बसई दारापुर क्षेत्र के अंदर ही पंखे की फैक्ट्री के मालिक हैं और उनकी फैक्ट्री लघु उद्योग के अंतर्गत आती है. उनसे ईटीवी भारत ने बातचीत की तो अनिल त्यागी ने बताया कि बाजार में इन दिनों बिल्कुल भी काम नहीं है.
उन्होंने बनाया कि जून के महीने में आम तौर पर काफी ज्यादा पंखों की बिक्री होती है. लेकिन इस साल बिल्कुल भी बिक्री नहीं हुई है. पहले का जो माल हम लोग लेकर आए थे. इस आशा में कि उसकी बिक्री होगी. वो अभी तक वैसे का वैसे ही पड़ा है. बस रॉ मटेरियल को असेंबल करके पंखे बनाए जा रहे हैं. पहले मेरे पास 9 कारीगर काम करते थे लेकिन अब हालात ये हैं कि सिर्फ तीन मजदूरों से काम चलाना पड़ रहा है.
मजदूरों के पलायन से बढ़ी परेशानी
अनिल त्यागी ने आगे बातचीत के दौरान बताया कि उनके पास दो से तीन ऐसी मशीनें है. जो पंखे बनाने के लिए इस्तेमाल होती है. लेकिन तीनों ही मशीनें पिछले 3 महीने से बंद पड़े हैं. क्योंकि इन मशीनों को चलाने वाले कारीगर अपने गांव चले गए हो और दिल्ली में कोई कारीगर मिल नहीं रहा है.
साथ ही साथ बाजार में इतना काम भी नहीं है कि वो अब पहले की तरह मजदूर काम पर रख सके. फैक्ट्री का खर्चा और काम कर रहे मजदूरों को वेतन भी अपनी जेब से देना पड़ रहा है. हालांकि फैक्ट्री के अंदर सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जा रहा है. सोशल डिस्टेंस मेंटेन किया जा रहा है और सैनिटाइजेशन भी रोजाना की जा रही है.
राजधानी दिल्ली में कोरोना का सबसे ज्यादा बुरा असर लघु एवं कुटीर उद्योगों पर पड़ा है. लघु उद्योगों के अंतर्गत आने वाली फैक्ट्री मालिक इन दिनों काफी ज्यादा परेशान है. एक तो बाजार में काम नहीं है. वहीं दूसरी तरफ व्यापारियों के पास फैक्ट्री मालिकों की पेमेंट भी फंसी हुई है.
यहां तक की फैक्ट्री का खर्चा और कारीगरों का वेतन भी फैक्ट्री मालिकों को अपनी जेब से देना पड़ रहा है. साथ ही साथ पिछले 3 महीने बंद पड़ी मशीनें भी अब खराब होने की कगार पर पहुंच चुकी है.